इस मौक़े पर सुप्रीम लीडर ने ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ साम्राज्यवाद की लामबंदी का ज़िक्र करते हुए कहाः साम्राज्यवाद  ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ लामबंदी में, पूरी ताक़त लगाए हुए है कि अवाम ख़ास तौर पर जवानों के मन में नाउम्मीदी पैदा करे। उन्होंने कहा कि साम्राज्यवाद के इस्लामी जुम्हूरिया से टकराने की अस्ल वजह यह है कि अगर यह सिस्टम तरक़्क़ी करे और दुनिया में नाम कमाए तो पश्चिमी दुनिया का लिबरल डेमोक्रेसी का नज़रिया सवालों के घेरे में आ जाएगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने यह सवाल उठाते हुए कि ʺकिस तरह तरक़्क़ी करें?ʺ कहाः तरक़्क़ी के लिए कई तरह के संसाधन की ज़रूरत होती है जिसमें सबसे अहम संसाधन उम्मीद है, इस वजह से दुश्मन मन में नाउम्मीदी बिठाने की पूरी कोशिश कर रहा है।

उन्होंने ईरान से दोस्ती के मेयारों में एक उम्मीद पैदा करना बताया और कहाः जो लोग मायूसी पैदा कर रहे हैं, वे ईरान के दुश्मन हैं, वे ईरान से दोस्ती का दावा नहीं कर सकते।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिमी दुनिया के लिबरल डेमोक्रेसी के नाम से मुख्तलिफ़ मुल्कों पर क़ब्ज़ा जमाने का ज़िक्र किया और कहाः पिछली तीन सदियों में आज़ादी या डेमोक्रेसी न होने के नाम पर, पश्चिम ने मुल्कों के रिसोर्सेज़ को लूटा और ग़रीब यूरोप बहुत से मालदार मुल्कों को मिट्टी में मिलाकर, मालदार बन गया। अब जब एक सिस्टम ने जो ईरान में दीन और वास्तविक डेमोक्रेसी की बुनियाद पर तैयार हुआ और उसने अपने अवाम को नई पहचान दी, उनमें जान डाल दी, तो दरअस्ल उसने पश्चिम के लिबरल डेमोक्रेसी के नज़रिए को ग़लत साबित कर दिया।

उन्होंने आज़ादी और डेमोक्रेसी के नाम पर दूसरे मुल्कों में आज़ादी और डेमोक्रेसी के ख़िलाफ़ पश्चिम की करतूतों का ज़िक्र करते हुए कहाः अफ़ग़ानिस्तान इसकी, सामने की मिसाल है जिस पर अमरीकियों ने इस बहाने से हमला किया कि वहाँ पर अवाम की हुकूमत नहीं है, लेकिन बीस साल तक लूटमार और अपराध करने के बाद, वही हुकूमत फिर सत्ता में आयी जिसके ख़िलाफ़ उन्होंने कार्यवाही की थी और वे ज़िल्लत के साथ बाहर निकले।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने कहा कि अगर इस्लामी जुम्हूरिया ईरान अमरीका और साम्राज्यवाद के सामने सर झुका देता तो दबाव कम हो जाते लेकिन वे मुल्क पर सवार हो जाते। उन्होंने कहा कहाः इन बरसों में जब जब दुनिया में इस्लामी जुम्हूरिया की मज़बूती का डंका बजा है तब तब इस्लामी जुम्हूरिया को नुक़सान पहुंचाने की दुश्मन की कोशिशें तेज़ हुयी हैं।

उन्होंने आगे कहाः आज हमारे मुल्क के सामने बुनियादी चैलेंज ʺठहराव, मंदी और पीछे की ओर लौटनेʺ का चैलेंज है, क्योंकि हम तरक़्क़ी कर रहे हैं इसी वजह से साम्राज्यवादी ताक़तें इस्लामी ईरान की तरक़्क़ी से बेचैन हो जाती और ग़ुस्से में आ जाती हैं। इसी ग़ुस्से की वजह से अमरीकी और यूरोपीय पूरी ताक़त से मैदान में आ जाते हैं, लेकिन कुछ बिगाड़ नहीं पाते, जैसे अब तक कुछ नहीं कर सके, आइंदा भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर का कहना था कि ईरान और साम्राज्यवाद के बीच लड़ाई में  अमरीका फ्रंट लाइन पर है और यूरोप उसके पीछे खड़ा है। उन्होंने कहाः इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद के बरसों में अमरीका के सभी प्रेज़िडेन्ट इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के ख़िलाफ़ खड़े हुए और उन्होंने पालतू कुत्ते ज़ायोनी शासन और इलाक़े के कुछ मुल्कों सहित जिससे मुमकिन था मदद ली, लेकिन इन सब कोशिशों के बावजूद ईरानी क़ौम के दुश्मन नाकाम रहे।

उन्होंने अपनी स्पीच के एक भाग में दंगाइयों को दिशा निर्देश देने वालों का अस्ली लक्ष्य क़ौम को मैदान में लाना बताया और कहा अब जबकि वे अवाम को मैदान में नहीं ला पाए तो शैतानी हरकतें कर रहे हैं ताकि ओहदेदारों और सिस्टम को थका दें, अलबत्ता यह उनकी भूल है क्योंकि इन शैतानी हरकतों से लोग तंग आ जाएंगे और उनसे और भी नफ़रत करेंगे।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बारे में कहा कि हंगामों की बिसात समेट दी जाएगी और ईरानी क़ौम ज़्यादा जोश और मज़बूती के साथ मुल्क की तरक़्क़ी के मैदान में अपना सफ़र जारी रखेगी।

इस्लामी क्रांति के नेता का कहना था कि ख़तरों को मौक़े में बदलना, ईमान रखने वाली क़ौम की फ़ितरत का हिस्सा है। उन्होंने पिछले कुछ हफ़्तों में उठाए गए बड़े क़दमों और तरक़्क़ी के कुछ नमूनों का ज़िक्र किया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरानी साइंटिस्टों की ब्लड कैंसर के इलाज के नए तरीक़े की खोज, तेल और गैस निकालने वाली मशीन का लोकलाइज़ेशन, सीस्तान-व-बलोचिस्तान में रेलवे लाइन का उद्घाटन जो उत्तर से दक्षिण रेलवे नेटवर्क का अहम हिस्सा है, कई कारख़ानों का उद्घाटन, ऑफ़शोर रिफ़ाइनरी का निर्माण, छह बिजली घरों का ऑप्रेट होना, दुनिया के सबसे बड़े टेलिस्कोपों में से एक टेलिस्कोप का अनरवरण, सैटलाइट ले जाने वाले रॉकेट और एक नई क़िस्म के मिसाइल का अनावरण, इन सब चीज़ों को मुल्क की प्रगति के नमूने बतया और कहा कि यह ऐसे वक़्त में हुआ जब दुश्मन इस कोशिश में है कि दंगों के ज़रिए इस बढ़ते क़दम को रोक दे।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इस बात का ज़िक्र किया कि किस तरह दंगों से ईरानी क़ौम का सपोर्ट करने का दावा करने वालों का अस्ली चेहरा सामने आ गया। उन्होंने कहा कि ईरानी क़ौम की मांगों और आस्थाओं का विरोध यानी इस्लाम से दुश्मनी, क़ुरआन जलाना, मस्जिद जलाना, ईरान से दुश्मनी है और राष्ट्र ध्वज जलाने और राष्ट्रगान का अनादर इन हरकतों से दंगें करवाने वालों का अस्ली चेहरा सामने आ गया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहाः वे ईरानी क़ौम का सपोर्ट करने का दावा करते हैं, ऐसी हालत में कि ईरानी क़ौम ʺमुसलमान क़ौमʺ और ʺक़ुरआन और इमाम हुसैन को मानने वाली क़ौमʺ है, क्या जो लोग इमाम हुसैन, अरबईन और मिलियन मार्च का अनादर करते हैं, वे ईरानी क़ौम के हमदर्द हो सकते हैं?

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में इस्फ़हान सूबे के दो डिवीजनों इमाम हुसैन डिवीजन और नजफ़ डिवीजन के कारनामों का ज़िक्र किया और कहाः 24 हज़ार शहीदों का नज़राना, दसियों हज़ार ज़ख़्मी, हज़ारों जंगी क़ैदी और इस्लाम, इंक़ेलाब और ईरान के लिए 2 से 7 शहीदों की क़ुरबानी देने वाले परिवार, इस सूबे की इंक़ेलाबी व जेहादी पहचान की निशानी और फ़ख़्र के लायक़ कारनामा है कि अज़मत से भरी इन चीज़ों की हिफ़ाज़त हर बाज़मीर इंसान का फ़र्ज़ है।  

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 16 नवंबर 1982 को इस्फ़हान में क़रीब 360 शहीदों के एक साथ अंतिम संस्कार का ज़िक्र करते हुए कहाः ख़ून में लथपथ इतने सारे जवानों की लाशें एक पूरे शहर को ग़म से निढाल कर देती हैं लेकिन इस्फ़हान के लोगों ने ईमान के जज़्बे के साथ उसी दिन और भी जवानों को जंग के मोर्चे पर भेजा और सहायता सामग्री के बड़े बड़े कारवां जंगी इलाक़ों की ओर रवाना किए।