अगर हम तशबीह (उपमा) देना चाहें तो हमें कहना होगा कि एक मुसाफ़िर या एक कारवां सख़्त राहों, कठिन मोड़ों, पहाड़ों, वादियों, दलदलों और कंटीले रास्तों से लगातार गुज़रता जा रहा है, रास्ता तै करता जा रहा है ताकि ख़ुद को एक जगह तक पहुंचा सके, वो जगह क्या है? वो जगह एक हाईवे है, एक अहम सड़क है, एक खुली हुई सड़क है, एक समतल रास्ता है।

हम मानव इतिहास की शुरुआत से अब तक जो कुछ देखते हैं, वो इन्हीं कठिन राहों, इन्हीं उतार-चढ़ाव, इन्हीं कंटीले रास्तों और इन्हीं दलदलों से हो कर आगे बढ़ना है, इंसानियत लगातार ये रास्ता तै कर रही है ताकि हाईवे तक पहुंच सके, ये हाईवे महदवीयत का ज़माना है, हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर का ज़माना है।

ऐसा नहीं है कि जब हम वहां पहुंच जाएंगे तो एक ही बार में पूरा रास्ता तै हो जाएगा और सफ़र ख़त्म हो जाएगा, नहीं, वो एक रास्ता है।अस्ल में ये कहना चाहिए कि इंसान की अस्ल और वांछित ज़िंदगी, उस वक़्त से शुरू होगी और इंसानियत एक रास्ते पर आ जाएगी और वह रास्ता एक सीधा रास्ता है जो उसे सृष्टि की मंज़िल तक पहुंचाएगा।

इमाम ख़ामेनेई

11 जून 2014