अलहाज आक़ा हुसैन क़ुम्मी मरहूम ने हिजाब पर पाबंदी के मुद्दे पर कहा कि वो जाकर रज़ा शाह से बात करेंगे और उसे बात मानने पर मजबूर करेंगे। इसी इरादे से वो मशहद से तेहरान पहुंचे। हालाँकि जब वो तेहरान पहुँचे तो सरकारी कारिंदे उन्हें शाह अब्दुल अज़ीम ले गए और वहीँ रोके रखा और शाह भी उनसे नहीं मिला। उन्होंने जाने से पहले कहा था कि मैं जा रहा हूँ और जाकर उससे कहूँगा, अगर वह मान गया तो ठीक है, नहीं तो मैं वहीँ उसका गला घोंट दूँगा, उसे मार डालूँगा। इस इरादे से गए लेकिन मुलाक़ात नहीं हो पाई। फिर वहां से उन्हें निर्वासित करके इराक़ भेज दिया गया। जब वो तेहरान में थे, उसी दौरान मशहद के उलमा गौहरशाद मस्जिद में इस मांग के साथ इकट्ठा हुए कि एक तो अलहाज आक़ा हुसैन क़ुम्मी मशहद वापस आएं और दूसरे ये कि अलहाज आक़ा हुसैन की जो मांग है वो पूरी की जाए। गौहरशाद मस्जिद में उलमा का विरोध प्रदर्शन इसी वजह से हुआ था। मोमिनों की एक बड़ी संख्या एक उद्देश्य के लिए एक पवित्र स्थान पर इकट्ठा हुई, सरकारी कारिंदों ने उन पर हमला कर दिया और उनका क़त्लेआम कर दिया। अलबत्ता क़त्लेआम सिर्फ़ गौहरशाद मस्जिद में नहीं हुआ था बल्कि बाहर भी उस चौक पर, उस पुराने चौक पर, जो अब मौजूद नहीं है, सड़क से सटे शेल्टर में, तेहरान रोड के सामने, यानी जो इमाम रज़ा रोड है, उसके सामने, इन सारी जगहों पर लोगों को क़त्ल किया गया। यही गौहरशाद मस्जिद का दक्षिण दरवाज़ा, जिसे अब बंद कर दिया गया है और उसकी जगह क़ुद्स कोर्टयार्ड बना दिया गया है, पहले वहाँ एक गलियारा था जो आ कर गौहरशाद मस्जिद से जुड़ जाता था, उसी गलियारे में बहुत से लोगों को क़त्ल कर दिया गया था। मुझे नहीं पता कि मैंने इन घटनाओं को कहाँ पढ़ा, मुझे इस वक़्त याद नहीं आ रहा है लेकिन मुझे पता है कि वहाँ कुछ लोगों को क़त्ल किया गया था। कुछ लोगों ने बताया कि हम घरों की छतों से देख रहे थे कि लोगों को क़त्ल किया जा रहा है, अधमरी हालत में लोगों को ट्रकों पर लाद कर ले जा रहे हैं और अलम दश्त नामक इलाक़े में उसी हालत में दफ़्न कर रहे हैं। वही बातें जो बहुत मशहूर हैं।

इमाम ख़ामेनेई

28 मार्च 2017