इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के भाषण का हिंदी अनुवादः 

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

सारी तारीफ़ पूरी सृष्टि के मालिक के लिए और दुरूद व सलाम हो ‎हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद, उनकी पाक नस्ल और ख़ास तौर पर ‎ज़मीन पर अल्लाह की तरफ़ से मानवता के आख़िरी मुक्तिदाता हज़रत ‎इमाम महदी पर। ‎

अल्लाह की रहमत व रज़ामंदी हमारे प्रिय शहीद के शामिले हाल हो कि ‎इस महान हस्ती की शहादत की घटना न सिर्फ़ राष्ट्रीय बल्कि ‎अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी घटना बन गयी। ख़ैर, दूसरी बरसी है और ‎लोग उनसे श्रद्धा में बहुत से काम कर रहे हैं जिस पर मैं आगे बात ‎करुंगा। हक़ीक़त में हम अवाम के पीछे पीछे चल रहे हैं। हमारी बैठक, ‎हमारी बातचीत और इसी तरह की चीज़ें अस्ल में आम लोगों की पहल ‎के पीछे पीछे हैं जो पूरे देश में अंजाम पा रही है। ‎
हमने एक बात कही, हमने कहा ‘सुलैमानी विचारधारा’।(2) शहीद ‎सुलैमानी एक विचारधारा बन गए या पहले से एक विचारधारा थे और ‎इस मत के बारे में अल्लाह का शुक्र है, अभी मैंने देखा कि अनेक ‎किताबें छप चुकी हैं। मैंने इन किताबों को नहीं देखा था। अगर हम उसे ‎एक दो जुमले में बयान करना चाहें जिसे हम ‘सुलैमानी मत’ कहते हैं, ‎तो कहेंगे कि यह विचारधारा ‘सच्चाई’ और ‘ख़ुलूस’ का विचारधारा है। ‎यह दो शब्द अस्ल में सुलैमानी मत का शीर्षक, प्रतीक और ख़ाका हैं। ‎‎‘सच्चाई’ वही चीज़ जो पवित्र क़ुरआन की इस आयत में है कि मोमिनों ‎में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह से किये हुए अपने वादे को सच में पूरा ‎कर दिखाया।(3) इसके बारे में थोड़ी सी तफ़सील पेश करता हूं। ‘ख़ुलूस’ ‎भी यही है जिसका पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों जैसे कि इस आयत ‎में ज़िक्र आया है “मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं अल्लाह की इबादत ‎पूरे ख़ुलूस के साथ अंजाम दूं”;(4) ये दो क़ुरआनी शब्द शहीद सुलैमानी ‎के कर्म के दो बुनियादी स्तंभ थे। ‎
ये बरकतों से भरा अमल कि वाक़ई इस बहादुर मर्द की पूरी ज़िन्दगी ‎बरकत से भर गयी और शहादत भी बरकतों से भर गई। हम पैग़म्बरे ‎इस्लाम के पवित्र परिजनों के रौज़े के दर्शन के मौक़े की विशेष दुआ में ‎पढ़ते हैः “व क़बज़का इलैहे बे इख़्तियारेह व अलज़मा अअदाअकल ‎हुज्जह”(5) आपकी जान अल्लाह ने ली, जान लेना अल्लाह के हाथ में ‎है, लेकिन इस जान के निकलने की वजह से आपके दुश्मन और अल्लाह ‎के दुश्मन के लिए हुज्जत तमाम हो जाए; यहाँ भी ऐसा ही है; जान ‎अल्लाह के हाथ में है, सभी को दुनिया से जाना है, हर शख़्स किसी न ‎किसी तरह दुनिया से जाता है; शहीद भी दुनिया से गए- और उनकी ‎शहादत की हालत ने दुश्मन और देखने वालों पर हुज्जत तमाम कर दी। ‎
‎“अल्लाह से किये हुए वादे को सच कर दिखाने” का क्या मतलब है? ‎यानी उद्देश्य, अल्लाह से किए वादे और आकांक्षाओं के संबंध में हमारा ‎व्यवहार सच्चा होना चाहिए। यही तो हम सब की मुश्किल है; अकसर ‎मौक़ों पर हमारी मुश्किल यह होती है कि जब सच्चाई पर डटे रहने की ‎बात होती है, इस्लाम और क्रांति के उद्देश्य के प्रति पाबंद रहने की ‎बात आती है तो हमारे पैर लड़खड़ाने लगते हैं। इस बहादुर मर्द ने सही ‎अर्थों में सच्चाई पर अमल किया, अपनी ज़िन्दगी में इसी तरह अमल ‎करते रहे, जहां तक हमने उनकी ज़िंदगी को क़रीब से देखा और समझा ‎चाहे वह पवित्र प्रतिरक्षा का दौर हो, चाहे पवित्र प्रतिरक्षा के बाद क़ुद्स ‎फ़ोर्स की ज़िम्मेदारी संभालने से पहले तक और चाहे क़ुद्स फ़ोर्स में हो। ‎लक्ष्यों के रास्ते में मौजूद तकलीफ़ों को अपने ऊपर हावी न होने देना; ‎सच्चाई का यह मतलब है।
इस्लाम और क्रांति के प्रति वफ़ादार रहना, वह पूरे वजूद से इस्लाम और ‎क्रांति के प्रति वफ़ादार रहे, अल्लाह और इमाम से जो वादा किया था, ‎उसके प्रति वफ़ादार रहे, जो ज़िम्मेदारी ईरानी राष्ट्र के प्रति थी, इस्लामी ‎उम्मत के प्रति थी, पूरी तरह अमल से और अपने पूरे वजूद से वफ़ादार ‎रहे। ईरानी राष्ट्र के प्रति जो ज़िम्मेदारी थी और इस्लामी उम्मत के ‎संबंध में जो ज़िम्मेदारी थी उसके प्रति भी वफ़ादार रहे। ‎
कुछ लोग हैं जो राष्ट्र और उम्मत को दो अलग अलग चीज़ के तौर पर ‎पेश करने की कोशिश करते हैं। इस सोच के तार दुश्मन से जुड़े हैं और ‎वे ये काम कर रहे हैं। अलबत्ता कुछ लोगों को ग़लतफ़मी है और वे ‎अनजाने में इसी रास्ते पर चल रहे हैं। देश के भीतर हम कभी कभी ‎देखते हैं कि कुछ लोगों की यह सोच है कि अगर एक शख़्स है इस्लामी ‎जगत के लिए काम कर रहा है, तो अब वह ईरानी राष्ट्र के बारे में नहीं ‎सोचता; या इसके उलट। हमारे प्यारे शहीद, शहीद सुलैमानी ने साबित ‎कर दिखाया कि कोई देश का सबसे बड़ा राष्ट्रप्रेमी चेहरा होने के साथ ‎साथ, सबसे बड़ा उम्मती चेहरा (इस्लामी जगत से प्रेम करने वाला ‎चेहरा) भी हो सकता है; वह एक ही वक़्त में सबसे बड़ा राष्ट्रप्रेमी चेहरा ‎भी थे और सबसे बड़ा उम्मती चेहरा भी थे। ‎
वह सबसे बड़ा राष्ट्रवादी चेहरा थे, कैसे समझें? उनकी शवयात्रा से! क्या क्रांति ‎के दौर में इन बीते बरसों में –जिसके दौरान बड़ी बड़ी सभाएं हुयीं- दसियों लाख ‎लोगों की मौजूदगी वाली शहीद सुलैमानी की शवयात्रा जैसी कोई मिसाल है? ये ‎कौन लोग थे? राष्ट्र, यही तो है। राष्ट्रप्रेम कोई काल्पनिक चीज़ नहीं है, राष्ट्र ‎यही मौजूदा हक़ीक़त है। दसियों लाख लोग, इस बहादुर की शवयात्रा में शामिल ‎हुए, तो वह सबसे बड़ा राष्ट्रप्रेमी चेहरा हैं। इस्लामी जगत के स्तर का सबसे बड़ा ‎‎‘उम्मती’ चेहरा भी हैं क्योंकि इन्हीं दो बरसों में इस्लामी जगत में उनके नाम ‎और ज़िक्र का असर और पैठ दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस्लामी जगत में ‎लगातार शहीद सुलैमानी का नाम लिया जा रहा है, उनकी याद मनायी जा रही ‎है और यह दिन ब दिन बढ़ती जा रही है; यह नज़र आ रहा है। हक़ीक़त में वह ‎सच्चाई के प्रतीक थेः अल्लाह से किए हुए वादे को सच कर दिखाने वालों में।
जैसा कि हमने उनके काम को नज़दीक से देखा वह संघर्ष का प्रतीक थे, अथक ‎काम करने वाले। कभी कभी मिसाल के तौर पर वह किसी देश के दौरे पर जाते ‎और हमारे लिए रिपोर्ट भेजते थे, मैं जब उस रिपोर्ट को पढ़ता था तो मुझे बहुत ‎हैरत होती थी कि चंद दिन के भीतर इतने ज़्यादा काम अंजाम देना! इन रिपोर्टों ‎में से कुछ रिपोर्टें मैंने अपने पास रख ली हैं, उस पर मैने लिखा है कि मैंने इसे ‎इसलिए अपने पास रखा है ताकि भविष्य में इसे देखा जाए, पता तो चले कि ‎इस बहादुर मर्द ने कितने काम किए हैं। इस वक़्त कई रिपोर्टें- दो तीन रिपोर्टें- ‎इस तरह की मेरे पास हैं। ‎
बहादुरी के साथ अथक काम; यानी ऐसा काम जो आसान नहीं है और उसमें ‎बहादुरी की ज़रूरत है, साहस की ज़रूरत है और सूझबूझ भी हो, बहादुरी भी और ‎समझदारी भी, दोनों ही हैरतअंगेज़ हद तक। वह दुश्मन को सही तरह पहचानते ‎थे और दुश्मन के उपकरणों को भी जानते थे, यानी ऐसा नहीं था कि शहीद ‎सुलैमानी को पता ही न हो कि दुश्मन किस तरह के उपकरणों से नुक़सान ‎पहुंचाएगा, दुश्मन के उपकरणों को अच्छी तरह पहचानते हुए पूरी बहादुरी व ‎ताक़त के साथ मैदान में उतरते थे। दुश्मन से डरते नहीं थे और सूझबूझ के ‎साथ हल चुनते थे। ‎
मैंने देश के बड़े अधिकारियों के बीच जिसमें ख़ुद शहीद सुलैमानी भी थे- उनकी ‎मौजूदगी में और उनकी ग़ैर मौजूदगी में भी- कई बार यह बात कही कि वह ‎किसी काम को सूझबूझ के साथ करते थे। उनकी बहादुरी अलग तरह की थी। ‎बहादुरी भरे उनके कामों की आज लोगों के बीच चर्चा है, वे अपने काम ‎समझदारी से करते थे, सटीक होते थे! इसे सच्चाई कहते हैं, यानी अल्लाह से ‎किए हुए वचन को सच कर दिखाया।
उनका ख़ुलूस; सच्चाई और ख़ुलूस। अगर ख़ुलूस न हो तो काम में बर्कत नहीं ‎होती; आप किसी काम में बर्कत देखते हैं तो वह ख़ुलूस की वजह से होती है। ‎कैसे समझें कि उनके काम में ख़ुलूस था? इस बात से कि उनमें दिखावा नहीं ‎था, कण बराबर भी दिखावा नहीं था। वह दिखावे से दूर भागते थे, आज सारी ‎दुनिया उन्हें देख रही है। अल्लाह के लिए काम करते थे, दिखावा नहीं था, ‎बड़बोलापन  नहीं थी। उनके ख़ुलूस का अल्लाह की तरफ़ से दुनिया में पहला ‎इनाम, उनकी शवयात्रा में दसियों लाख की तादाद में लोगों का शामिल होना ‎था। यह शवयात्रा दुनिया में अल्लाह की तरफ़ से उनके ख़ुलूस का पहला बदला ‎था, परलोक का इनाम तो अपनी जगह बाक़ी है। शहीद सुलैमानी के नाम की ‎चर्चा, उनकी शख़्सियत की चर्चा, दुनिया में उनका नाम और याद, दुनिया में ‎उन्हें मिलने वाला बदला है। इन दो बरसों में अनगिनत बार शहीद सुलैमानी का ‎नाम लोगों की ज़बान पर आया और क़लम से लिखा गया। इस बार भी लोग ‎दिल से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं-जिसका बाद में ज़िक्र करने के बारे में कहा ‎था- यह इस प्रिय हस्ती के ख़ुलूस की वजह से है।   ‎
शहीद सुलैमानी आइडियल हो गए, यह एक साफ़ नज़र आने वाली हक़ीक़त है ‎कि शहीद सुलैमानी आइडियल बन गए। आज इस्लामी जगत में बहुत से ‎नौजवान- ख़ास तौर पर इस इलाक़े में, मुझे इस इलाक़े के बारे में जो जानकारी ‎है- शहीद सुलैमानी जैसे सूरमाओं की ज़रूरत को महसूस कर रहे हैं। जितनी ‎ज़्यादा सुलैमानी की चर्चा होगी, इन लोगों में लगाव बढ़ेगा, ये लोग अपने अपने ‎देश में इस तरह के सूरमाओं की मौजूदगी की ज़रूरत को बहुत ज़्यादा महसूस ‎करेंगे।  आज हमारे इलाक़े में शहीद सुलैमानी उम्मीद और आत्मविश्वास का ‎सिम्बल हैं, बहादुरी का सिंबल हैं, दृढ़ता और कामयाबी की कुंजी हैं। इस तरह ‎के काम अल्लाह करता है, ये किसी के हाथ में नहीं है, किसी भी उपाय से हम ‎इस तरह का काम नहीं कर सकते, इस तरह के काम अल्लाह के काम हैं।

किसी शख़्स ने कहा था कि ‘शहीद’ सुलैमानी दुश्मन के लिए जनरल सुलैमानी ‎से ज़्यादा ख़तरनाक हैं, उसने सही समझा, हक़ीक़त में ऐसा ही है। जिन लोगों ‎ने शहीद सुलैमानी, प्रिय शहीद अबू महदी और उनके साथियों को शहीद कर ‎दिया, सोच रहे थे कि काम ख़त्म हो गया, सोच रहे थे कि इन्हें मार दिया और ‎काम ख़त्म। आज देखिए कि वे किस हालत में हैं। अमरीका की हालत को ‎देखिए! अफ़ग़ानिस्तान से फ़रार हो गया और इराक़ से निकलने का दिखावा ‎करने पर मजबूर है-अलबत्ता इराक़ी भाइयों को बहुत होशियारी से इस मामले पर ‎नज़र रखनी चाहिए-अमरीका यह कहने पर मजबूर है कि आइंदा वह सलाहकार ‎का रोल निभाएगा, यानी यह इक़रार करने पर मजबूर है कि फ़ौजी मौजूदगी ‎नहीं रखना चाहता और रख भी नहीं सकता। यमन के मामले को देखिए, ‎लेबनान के मामले को देखिए।  ‎
क्षेत्र में साम्राज्य के ख़िलाफ़ मोर्चा, क्षेत्र में प्रतिरोध का मोर्चा, पिछले दो साल ‎के मुक़ाबले में आज ज़्य़ादा उम्मीद के साथ, ज़्यादा हौसले के साथ और ‎ज़्यादा लगन के साथ काम कर रहा और आगे बढ़ रहा है। सीरिया में ‎भी इन्हें धूल चाटनी पड़ी, सीरिया में भी भविष्य में उनके लिए कोई ‎उम्मीद नहीं है, ये सब इस प्रिय के मज़लूमाना तरीक़े से बहाए गए ख़ून ‎की बर्कत है। ‎
शहीद सुलैमानी के हवाले से मैंने सुना कि एक स्पीच में उन्होंने कहा था कि जो ‎शहीद की तरह ज़िन्दगी गुज़ारता है, वही शहीद होता है। उन्होंने उसी तरह ‎ज़िन्दगी गुज़ारी, सच में शहीदों की तरह ज़िन्दगी गुज़ारी। ‎
शहीद सुलैमानी के अख़लाक़ की कुछ ख़ूबियां भी ध्यान देने योग्य हैं। हम शहीद ‎सुलैमानी की ज़िन्दगी और उनके अख़लाक़ की तफ़सील पर आधारित एक ‎किताब पढ़ रहे हैं जिसका टाइटल है ‘जिस सुलैमानी को मैं पहचानता हूं’;(6) ‎मेरे ख़्याल में कुछ इसी तरह का किताब का टाइटल है जिसमें रोचक बातें हैं। ‎शहीद सुलैमानी के एक पुराने दोस्त के हवाले से लिखा है कि शहीद के एक ‎दोस्त के नवासे का ऑप्रेशन होना था,(7) शहीद सुलैमानी अस्पताल पहुंच गए ‎और ऑप्रेशन के ख़त्म होने तक ठहरे रहे। ‎उस बच्चे की माँ ने कहा कि जनाब ऑप्रेशन हो गया, अब आप अपने दूसरे काम देखिए, शहीद सुलैमानी ने कहा नहीं! आपके बाप-इस बच्चे नाना मेरी ‎जगह गए और शहीद हो गए, मैं अब उनकी जगह यहाँ ठहरा रहुंगा। ठहरे रहे ‎यहाँ तक कि बच्चे को होश आ गया, जब इत्मेनान हो गया तब गए। शहीद के ‎परिवारों के साथ उनका ऐसा व्यवहार था। उपद्रवियों और अपराधियों के साथ ‎अलग रवैया। देश के बाहर, देश के भीतर, दक्षिणी किरमान, जीरुफ़्त के इलाक़े में ‎और उन बरसों में जो काम उन्होंने अंजाम दिए।(8) ऐसी ताक़त का प्रदर्शन ‎करते और ऐसी दृढ़ता भरा क़दम उठाते थे कि जब किसी जगह पहुंचते और दुश्मन ‎समझ जाते थे कि शहीद सुलैमानी आ गए हैं तों उनके पहुंचने से ही दुश्मन के ‎हौसले पस्त हो जाते थे।
आज साम्राज्यवादी उनके नाम से डरते हैं, उनके ज़िक्र से घबराते हैं। साइबर ‎स्पेस में देखिए-आप लोगों को मुझसे ज़्यादा जानकारी होगी- उनके नाम के साथ ‎क्या कर रहे हैं?! यह एक और चेतावनी है, हमारे लिए और देश के साइबर स्पेस ‎के अधिकारियों के लिए। इस ओर से ज़्यादा सचेत रहने की ज़रूरत है कि क्या करें ‎कि दुश्मन मनमानी न कर सके। दुनिया में साइबर स्पेस पर साम्राज्यवादियों ‎की पकड़ है, उन (शहीद सुलैमानी) के नाम से डरते हैं, डरते हैं कि कहीं उनके जैसे दूसरे न बन ‎जाएं, इसे कहते हैं आइडियल! डरते हैं कि कहीं उनके जैसे दूसरे न पैदा हो जाएं। ‎
बहरहाल शहीद सुलैमानी बाक़ी रहने वाले हैं, अमर हैं। जिन्होंने उन्हें शहीद ‎किया -ट्रम्प और उनके जैसे लोग- इतिहास के कूड़ेदान में उनकी जगह है, वे इतिहास ‎के कूड़ेदान में भुला दिए गए लोगों में होंगे, लेकिन वह अमर हैं। शहीद ऐसे हैं, उनके दुश्मन मिट जाएंगे। अलबत्ता इंशाअल्लाह दुनिया में अपने जुर्म की क़ीमत ‎चुकाने के बाद। ‎
आप सब लोग, उनके सम्मानीय घरवाले भी, उनके साथी भी और जनरल ‎क़ाआनी(9) भी, अल्लाह की कृपा से ये अच्छा काम कर रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, ‎आप सभी इसी रास्ते पर चलिए, आगे बढ़िए। अल्लाह ने कामयाबी का वादा ‎किया हैः “बेशक अल्लाह ईमान वालों की रक्षा करता है”,(10) रक्षा का वादा किया ‎है। हम अल्लाह के इरादे और उसके उद्देश्य की तरफ़ बढ़ रहे हैं और राष्ट्र ‎इस्लाम के लिए काम कर रहा है; पहले रक्षा और फिर मददः “अल्लाह उनकी ‎ज़रूर मदद करता है जो उसकी मदद करते हैं”(11) “अगर तुम अल्लाह की ‎मदद करो तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारें क़दम को जमा देगा।”(12)‎
हमें उम्मीद है इंशाअल्लाह आप सभी कामयाब होंगे। जिन कामों का इन ख़ातून ‎ने ज़िक्र किया, अच्छे काम हैं, इंशाअल्लाह बेहतरीन तरीक़े से ये सब आगे बढ़ें।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की तरफ़ से रहमत व बर्कत हो।

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‎(1)‎    इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में श्रीमती ज़ैनब सुलैमानी (क़ासिम सुलैमानी ‎की बेटी) और जनरल हुसैन सलामी (आईआरजीसी फ़ोर्स के चीफ़ ‎कमांडर) ने कुछ बातें पेश कीं।
‎(2)‎    ‎17 जनवरी 2020 को तेहरान में जुमे की नमाज़ के ख़ुतबे 
‎(3)‎    पवित्र क़ुरआन के अहज़ाब सूरे की आयत नंबर 23 का एक भागः ‎‎“मोमिनों में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह से किए गए वादे को सच ‎कर दिखाया।”‎
‎(4)‎    ज़ुमर सूरे की आयत नंबर 11, “मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं ‎अल्लाह की इबादत पूरी निष्ठा के साथ अंजाम दूं”‎
‎(5)‎    मिस्बाहुल मोतहज्जिद और सलाहुल मोतअब्बिद, जिल्द-2, पेज ‎‎738‎
‎(6)‎    ‎ “जिस क़ासिम को मैं पहचानता हूं” किताब है, जिसमें हुज्जतुल ‎इस्लाम अली शीराज़ी के हवाले से यादगार बातों का ज़िक्र है ‎
‎(7)‎    सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई की आँखों से आंसू निकल आए।
‎(8)‎    शहीद सुलैमानी ने पवित्र प्रतिरक्षा और सारल्लाह लश्कर के कमांडर का ‎ओहदा संभालने के बाद (जो किरमान, सीस्तानों बलोचिस्तान और ‎हुर्मुज़गान की फ़ोर्सेज़ से बना था) देश के दक्षिण-पूर्वी इलाक़े में सुरक्षा ‎क़ायम करने, इन इलाक़ों में उपद्रवियों और ड्रग्स के स्मगलरों के ‎ख़िलाफ़ ऑप्रेशन की ज़िम्मेदारी संभाली और इन इलाक़ों में सुरक्षा ‎क़ायम करने में कामयाब हुए। ‎
‎(9)‎    ब्रिगेडियर जनरल इस्माईल क़ाआनी (आईआरजीसी की क़ुद्स फ़ोर्स के ‎कमांडर) ‎
‎(10)‎    हज सूरे की आयत नंबर 10 का एक भागः “बेशक अल्लाह ईमान लाने ‎वालों की रक्षा करता है।”‎
‎(11)‎    हज सूरे की आयत नंबर 40 का एक हिस्साः “...बेशक अल्लाह उन ‎लोगों की मदद करता है जो उसकी मदद करते हैं।”‎
‎(12)‎    मोहम्मद सूरे की आयत नंबर 7 का हिस्सा, “...अगर अल्लाह की ‎मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा ‎देगा।”‎