उन्होंने कहाः जैसे ही यमनी कुछ करते हैं, वे चीख़ने लगते हैं कि देखिए हमला हो गया, क़त्ल हो गया! सब यही कहते हैं, राष्ट्र संघ भी यही कहता है, वाक़ई इस बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ का रवैया, अमरीका के रवैये से भी ज़्यादा बुरा है। अमरीकी सरकार, एक साम्राज्यवादी ज़ालिम सरकार है, संयुक्त राष्ट्र क्यों छः साल से जारी बमबारी पर उसकी निंदा नहीं करता? जब ये लोग (यमनी) प्रतिरक्षा करते हैं और उनका प्रतिरक्षात्मक क़दम, कारगर हो जाता है तो वे निंदा करने लगते हैं, सब हमला कर देते हैं, प्रचारिक हमला करते हैं। ये उनके झूठे होने का एक नमूना है।(1)

इस आधार पर यह नतीजा निकाला जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने यमन संकट के बारे में अहम और बड़ी ग़लतियां की हैं। इस लेख में इस संकट के इंसानी पहलुओं पर संक्षिप्त नज़र डालने के बाद, इस संकट के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ के क्रियाकलाप की समीक्षा की जाएगी।

यमन संकट से पैदा होने वाली इंसानी त्रासदी

सऊदी अरब ने अरबों डॉलर ख़र्च करके यमन पर लगातार बमबारी की और उसके बुनियादी ढांचे के एक बड़े हिस्से, अस्पतालों, हवाई अड्डों, स्कूलों व अन्य शैक्षिक संस्थानों, पानी की सप्लाई के तंत्र, कारख़ानों और आम लोगों के घरों को ध्वस्त कर दिया जिसके नतीजे में यमन, इतिहास की बदतरीन इंसानी त्रासदी में फंस गया और ख़ास तौर पर औरतें व बच्चे कुपोषण, भुखमरी और तरह तरह की बीमारियों में ग्रस्त हो कर मौत की कगार पर पहुंच गए हैं।(2)

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अक्तूबर 2018 में एलान किया था कि एक करोड़ तीस लाख यमनी बच्चे अकाल और भुखमरी का शिकार हैं। इस अकाल को पिछले सौ साल का सबसे बुरा अकाल बताया जा रहा है। इस लड़ाई की वजह से दसियों लाख यमनी बेघर भी हुए हैं जबकि बड़ी संख्या में देश छोड़ने पर भी मजबूर हुए हैं।(3)

यमन युद्ध के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर एक नज़र

संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने यमन युद्ध के बारे में जो प्रस्ताव पारित किए हैं, उनमें से ज़्यादातर में अस्पष्ट रूप से तुरंत युद्ध रोकने और लड़ रहे पक्षों के बीच वार्ता की अपील, हूसियों की निंदा और उनके ख़िलाफ़ पाबंदियां जारी रखने पर ज़ोर दिया गया है। हूसियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा परिषद का एकतरफ़ा रवैया और यमन के ख़िलाफ़ हमले में सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात और उनके समर्थकों यानी अमरीका व यूरोप के रोल की अनदेखी किए जाने की वजह से इन प्रस्तावों को सभी पक्षों ने स्वीकार नहीं किया और यमन की लड़ाई जारी रही।

ध्यान योग्य बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव में यमन के आम नागरिकों पर सऊदी अरब के युद्धक विमानों की बमबारी की खुल कर निंदा नहीं की गई है लेकिन हमलावरों के ख़िलाफ़ हूसियों की प्रतिरक्षात्मक कार्यवाहियों और रणनैतिक शहर मआरिब की ओर उनकी बढ़त और इसी के साथ इस शहर पर यमनी बलों के नियंत्रण की संभावना ने, जो युद्ध के संतुलन को उनके पक्ष में मोड़ देगा, सुरक्षा परिषद के सदस्यों को चिंता में डाल दिया और उन्होंने इस संबंध में भी एक पक्षपातपूर्ण प्रस्ताव पारित कर दिया।

यही पक्षपातपूर्ण और एकतरफ़ा सोच, जो लड़ाई के एक पक्ष के समर्थन में अपनाई गई है, यमन संकट से संबंधित सुरक्षा परिषद के सभी प्रस्तावों में दिखाई देती है। इसी आधार पर यमन के स्वयं सेवी अंसारुल्लाह संगठन ने इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया और सऊदी अरब ने इस विश्वास के साथ कि उसके अपराधों को विश्व समुदाय नज़र अंदाज़ कर रहा है, यमन के बुनियादी ढांचे की तबाही और निर्दोष व निहत्थे आम यमनी नागरिकों का जनसंहार जारी रखा है।(4)

यमन के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव “ताक़त के इस्तेमाल पर प्रतिबंध” के सिद्धांत के ख़िलाफ़ हैं और उनसे सऊदी अरब के सैन्य हमले की पुष्टि होती है। इस लिए इन प्रस्तावों की क़ानूनी हैसियत पर सवालिया निशान लग जाता है। इस लिए सऊदी अरब और उसके घटक देशों ने ताक़त के इस्तेमाल से यमन की जनता को अपने भविष्य के बारे में ख़ुद फ़ैसला करने के हक़ से वंचित कर दिया है। यमन पर किसी दूसरे देश ने क़ब्ज़ा नहीं किया था कि कुवैत की निर्वासित सरकार की तरह बाहरी सरकारों या संयुक्त राष्ट्र संघ से सत्ता की बहाली के लिए मदद व हस्तक्षेप की अपील की जाती।

नतीजा

अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के नियमों व सिद्धांतों ख़ास कर “ताक़त के इस्तेमाल पर प्रतिबंध” के सिद्धांत के आधार पर यमन के ख़िलाफ़ सऊदी सरकार और उसके घटकों के हमले को अपनी क़ानूनी प्रतिरक्षा नहीं ठहराया जा सकता, इस लिए कि यमन ने उस पर हमला नहीं किया है बल्कि इसके ठीक विपरीत सऊदी अरब का हमला विश्व शांति व सुरक्षा के लिए ख़तरा समझा जाता है और यमनी गुटों को हमलावरों के मुक़ाबले में प्रतिरक्षा का हक़ हासिल है। यमन पर सऊदी हमले की निंदा न करना, संयुक्त राष्ट्र संघ की कमज़ोरी की निशानी और शर्मनाक है। इसी के साथ यमन में जो युद्ध अपराध किए गए हैं उनके मद्देनज़र सुरक्षा परिषद की ज़िम्मेदारी थी कि वह असैनिकों के समर्थन में सऊदी अरब के ख़िलाफ़ सैन्य कार्यवाही करती लेकिन इस परिषद के अब तक के सभी फ़ैसले, सऊदी हमलों की भेंट चढ़ने वालों के ख़िलाफ़ ही किए गए हैं।

 

(1) https://farsi.khamenei.ir/speech-content?id=47510

(2) https://www.hrw.org/world-report/2021/country-chapters/yemen#

(3) https://www.bbc.com/news/av/world-middle-east-45857729

(4) https://reliefweb.int/report/yemen/examination-saudi-arabia-s-airstrike-rules-engagement-and-its-protection-civilians