इस संबोधन में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि जो दूसरों पर भरोसे के भ्रम में पड़ कर यह सोचते हैं कि वे उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित बना सकते हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि जल्द ही उन्हें इस सोच का नुक़सान उठाना पड़ेगा। उन्होंने अपने संबोधन में इस बुनियादी उसूल की तरफ़ इशारा किया कि ईरान में सशस्त्र बल, देश व राष्ट्र के लिए एक मज़बूत दीवार हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के संबोधन के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं।

सशस्त्र बल, देश व राष्ट्र के लिए एक मज़बूत दीवार

मेरे प्यारो! हमारे सशस्त्र बलों के लिए यह गर्व की बात है कि हमारे प्यारे देश में सशस्त्र बल, देश व राष्ट्र के लिए एक मज़बूत दीवार हैं, एक ठोस क़िला हैं। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया हैः सिपाही, ईश्वर की आज्ञा से जनता के मज़बूत क़िले हैं। यह चीज़ सही अर्थ में हमारे देश में व्यवहारिक हुई है और आज सशस्त्र बल, सेना, आईआरजीसी, पुलिस और स्वयं सेवी बल सही अर्थ में आंतरिक व बाहरी दुश्मनों के सख़्त ख़तरों के मुक़ाबले में सुरक्षा ढाल हैं।

अपने ही सशस्त्र बलों से सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने की ज़रूरत

सुरक्षा के मामले में एक अहम बिंदु यह है कि देश की सुरक्षा ग़ैरों के क़ब्ज़े में नहीं होनी चाहिए, यह बहुत अहम चीज़ है। आज हमारी जनता के लिए और हमारे देश के लिए यह एक सामान्य बात है कि देश की सुरक्षा अपने ही सुरक्षा बलों और इस देश के सपूतों के हाथों में है लेकिन दुनिया में हर जगह ऐसा नहीं है, यहां तक कि विकसित देशों में भी। आपने देखा कि हाल ही में यूरोप और अमरीका के बीच मनमुटाव हुआ और यूरोप वालों ने कहा कि अमरीका ने पीछे से उनकी पीठ में छुरा घोंपा है, बहस इस बात पर है कि यूरोप को इस बात की ज़रूरत है कि वह अपनी सुरक्षा को ख़ुद अपने बलों के माध्यम से सुनिश्चित बनाए यानी नेटो की अनदेखी करते हुए जिसका सब कुछ अमरीका के हाथ में है। यूरोप के विकसित देश भी, जब उनकी सुरक्षा एक बाहरी फ़ोर्स के क़ब्ज़े में या हाथ में है, चाहे वह विदित रूप से उनकी दुश्मन न भी हो, यानी ये सब एक ही संगठन में शामिल हैं, यह महसूस करते हैं कि उनमें कमी है, सच में है भी ऐसा ही, वास्तव में ऐसा है कि उनमें कमी है, अब जो देश ज़्यादा विकसित भी नहीं हैं और उनकी सेनाएं अमरीका या अमरीका जैसे देशों के सशस्त्र बलों के नियंत्रण में हैं, उनकी तो बात ही छोड़ दीजिए। यह बड़े गर्व की बात है कि कोई देश अपनी सुरक्षा को अपने शक्तिशाली, सक्षम और मज़बूत सुरक्षा बलों के माध्यम से सुनिश्चित बनाए। जो लोग दूसरों पर भरोसा करके या दूसरों पर भरोसे के भ्रम में यह सोचते हैं कि वे अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित बना सकते हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि जल्द ही वे इसका ख़मियाज़ा भुगतेंगे।

देश की सुरक्षा में ग़ैरों का हस्तक्षेप, भयानक त्रासदी

दुनिया के देशों के लिए अत्यंत भयंकर त्रासदी यह है कि दूसरे उनकी सुरक्षा के मामलों में हस्तक्षेप करें, उनके युद्ध व शांति का प्लान बनाएं, उन्हें गाइड लाइन दें, यह हर उस देश के लिए एक तबाही फैलाने वाली त्रासदी है जो इस स्थिति में फंसा हुआ है। आपने देखा और हमने कहा कि आज यूरोपीय देश तक, जो नेटो की छाया में सांस ले रहे हैं, स्वाधीनता के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं।

अमरीकी सेना में अध्यात्म का अभाव और तालेबान से मुक़ाबले का नाकाम अनुभव

आपने देखा कि अमरीकी सेना, जो तरह तरह के जाने पहचाने और ख़ुफ़िया हथियारों से लैस है, हमारे पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में घुस गई ताकि तालेबान की सरकार को गिरा दे, वह बीस साल तक इस देश में रही और उसने जनसंहार व अपराध किए, अवैध क़ब्ज़ा किया, ड्रग्स को फैलाया और इस देश के सीमित बुनियादी ढांचे को तबाह कर दिया। बीस साल बाद वह, सत्ता तालेबान के हवाले करके अफ़ग़ानिस्तान से निकल गई। वह तालेबान को सत्ता से हटाने आई थी, बीस साल तक इस तरह और इस स्थिति में इस देश में रही और इतने अधिक अपराध, इतनी मौतों और इतने भौतिक व इंसानी नुक़सान के बाद आख़िरकार उसने सत्ता तालेबान के हाथ में थमा दी और देश से बाहर निकल गई। इसका मतलब यह है कि इस सेना में एक बुनियादी और निर्णायक तत्व नहीं है और वह, आध्यात्मिक तत्व है, शिष्टाचारिक व नैतिक भावना का तत्व है, ईश्वर व अध्यात्म पर ध्यान देने का तत्व है। यह बात सभी देशों के लिए पाठदायक है।

क्षेत्र में बाहरी देशों की सेनाओं की उपस्थिति, तबाही व जंग भड़कने का कारण

हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ख़ुद हमारे इलाक़े में अमरीकी सेना समेत बाहरी देशों की सेनाओं की मौजूदगी, तबाही और युद्ध भड़कने का कारण है, सभी को इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि अपनी सेनाओं को स्वाधीन, अपने राष्ट्र पर निर्भर और पड़ोसी सेनाओं व क्षेत्र की अन्य सेनाओं के साथ सहयोग करने वाली बनाएं। इस क्षेत्र की भलाई इसी में है। हमें इस बात की इजाज़त नहीं देनी चाहिए कि ग़ैरों की सेनाएं, अपने उन राष्ट्रीय हितों को पूरा करने क लिए जिनका उनके राष्ट्रों से कोई संबंध नहीं है, हज़ारों मील दूर से आएं और इन देशों में हस्तक्षेप करें, यहां उनकी उपस्थिति हो और वे उनकी सेनाओं में हस्तक्षेप करें। क्षेत्र के इन राष्ट्रों की सेनाएं ख़ुद ही इस क्षेत्र को नियंत्रित कर सकती हैं, दूसरों को यहां आने की इजाज़त मत दीजिए।

शक्ति और बुद्धिमत्ता, ईरानी सुरक्षा बल के काम का आधार

यह घटनाएं जो हमारे देश के पश्चिमोत्तर में कुछ पड़ोसी देशों में हो रही हैं, उन्हें भी इसी सोच और इसी तर्क से हल किया जाना चाहिए। अलबत्ता हमारा देश और हमारे सशस्त्र बल, बुद्धिमत्ता से काम करते हैं, सभी मामलों में हमारा तरीक़ा, बुद्धिमत्ता का ही है, बुद्धिमत्ता के साथ ताक़त। दूसरों के लिए भी बेहतर है कि वे बुद्धिमत्ता से काम करें और क्षेत्र को किसी संकट में न पड़ने दें। जो लोग अपने भाइयों के लिए गढ़ा खोदते हैं, वे पहले ख़ुद उस गढ़े में गिरते हैं।