2 दिसम्बर को दास प्रथा के अंत का विश्व दिवस मनाया जाता है। इस दिन कोशिश की जाती है कि मानव तस्करी, लोगों के यौन शोषण, बाल शोषण, बच्चों की जबरन शादी और जंगों में उनके इस्तेमाल जैसी इस दौर की ग़ुलामी के रूपों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए ताकि इन चीज़ों के ख़िलाफ़ विश्व स्तर पर आंदोलन शुरू हो सके।
इस बात में कोई शक नहीं है कि उक्त अपराध, इंसानों के ख़िलाफ़ होने वाले सबसे घिनौने अपराधों में शामिल हैं लेकिन क्या किसी काम के लिए इंसान को मजबूर किया जाना सिर्फ़ ग़ुलामी के रूप में ही होता है? क्या वैचारिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जंजीरें, इंसान को ग़ुलामी में नहीं जकड़ सकतीं?