सत्तर साल पहले की तुलना में आज ज़ायोनी सरकार के लिए हालात बदल चुके हैं और ज़ायोनी नेताओं की यह आशंका सही है कि यह शासन अपनी उम्र के 80 साल पूरे नहीं कर पाएगा।
इमाम ख़ामेनेई
14 जून 2023
अल्लाह इस अज़ीम ईद और ज़िक्रे मौला की बरकत से आपके दिलों को अपने लुत्फ़ और सूकून से भर दे और यह तौफ़ीक़ दे कि हम इस मौक़े से और इस जैसे दूसरे मौक़ों से सही अर्थों में फ़ायदा हासिल कर सकें।
इमाम ख़ामेनेई
20 सितम्बर 2016
जो लोग इस्लाम को समाजी व सियासी मैदानों से बाहर रखना चाहते हैं और उसे व्यक्तिगत मामलों और निजी ज़िंदगी तक सीमित कर देना चाहते हैं उनका जवाब ग़दीर का वाक़या है।
इमाम ख़ामेनेई
13 अकतूबर 2014
रूहानियत का मतलब दीनी अख़लाक़ियात की बुलंदी है। धर्म को नकारते हुए नैतिकता को अपनाने की भ्रामक सोच का अंजाम, जिसका लंबे समय तक पश्चिम के वैचारिक हल्क़े प्रचार करते रहे, पश्मिच में अख़लाक़ का तेज़ पतन है जिसे सारी दुनिया देख रही है। रूहानियत और अख़लाक़ हज में अंजाम दिए जाने वाले अमल से, (हज के विशेष लेबास) अहराम की सादगी से, निराधार भेदभाव को नकारने से, (और तंगदस्त मोहताज को खाना खिलाओ की सीख) से, (हज के दौरान कोई शहवत वाला अमल, कोई बुरा अमल और कोई लड़ाई झगड़ा न हो की तालीम) से, तौहीद के मरकज़ के गिर्द पूरी उम्मत के तवाफ़ से, शैतान को कंकरियां मारने से और मुशरिकों से बेज़ारी के एलान से सीखना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2023
किसी भी दौर में इस्लामी दुनिया की सतह पर शियों का आपसी राबेता और नेटवर्क का दायरा इतना बड़ा कभी नहीं रहा जैसा इमाम मुहम्मद तक़ी, इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के ज़माने में वजूद में आया। इन दोनों इमामों के सामर्रा में नज़रबंद होने और उनसे पहले इमाम मुहम्मद तक़ी और एक अलग अंदाज़ से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पर बंदिशें होने के बावजूद अवाम से राबेता लगातार बढ़ता गया।
इमाम ख़ामेनेई
6 अगस्त 2005
हमारी सरज़मीं पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का रौज़ा स्थित होने और मुल्क के कोने कोने और अवाम के दिलों में उनकी रूहानी मौजूदगी की बरकतें नुमायां हैं। आठवें इमाम अलैहिस्सलाम हमारी क़ौम की रूहानी, फ़िक्री और दुनियावी नेमतों का मरकज़ हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलामः जो किसी ऐसी सभा में बैठे जहां हम अहलेबैत का ज़िक्र हो रहा हो, उसका दिल उस दिन मुर्दा नहीं होगा जिस दिन दिल मुर्दा हो जाएंगे।
बेहारुल अनवार जिल्द 49 पेज 90
दिलचस्प बात यह है कि क़ुम शहर की पैदाइश भी एक जेहादी ऐक्शन का नतीजा है जो बसीरत के साथ अंजाम दिया गया। यानी अशअरियों का ख़ानदान जब यहां आया और इस इलाक़े में बस गया तो अस्ल में उसने अहले बैत अलैहेमुस्सलाम की शिक्षाओं को फैलाने के लिए एक कल्चरल अभियान चलाया था। अशअरियों ने इससे पहले कि वे क़ुम आएं, जंग के मैदान में जेहादी कारनामे भी अंजाम दिए थे। अशअरियों के बुज़ुर्ग जनाब ज़ैद बिन अली (अलैहिस्सलाम) के नेतृत्व में जेहाद किया था। यही वजह थी कि हज्जाज बिन यूसुफ़ उनका दुश्मन हो गया और ये लोग यहां आने पर मजबूर हुए। उन्होंने अपनी कोशिशों से, अपनी बसीरत से, अपने इल्म से इस इलाक़े को इल्म का केन्द्र बनाया और यही चीज़ इस बात का कारण बनी कि हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा जब इस इलाक़े में पहुंचीं तो आपने क़ुम आने की इच्छा ज़ाहिर की। यहां उन्हीं अशअरियों के बुज़ुर्गों की वजह से लोग गए, उनका स्वागत किया,हज़रत मासूमए (क़ुम) को इस शहर में ले आए और यह आध्यात्मिक जगह उस दिन से इस महान हस्ती की वफ़ात के बाद से ही क़ुम शहर में रौशनी बिखेर रही है। क़ुम के लोगों ने जिनकी वजह से वह महा सांस्कृतिक आंदोलन वजूद में आया था, उसी दिन से इस शहर में अहले बैत अलैहेमुस्सलाम की शिक्षाओं को फैलाने का केन्द्र क़ायम किया और सैकड़ों विद्वानों, धर्मगुरुओं, मोहद्दिसों, मोफ़स्सिरों और इस्लाम व क़ुरआन के प्रचारकों को इस्लामी जगत के पूरब व पश्चिम में रवाना किया। क़ुम से ही ख़ुरासान के इलाक़े, इराक़ और सीरिया के विभिन्न हिस्सों में इल्म फैला। पहले दिन से क़ुम वालों की बसीरत इस सतह की है, क्योंकि क़ुम की पैदाइश ही जेहाद और बसीरत की बुनियाद पर हुई है।
इमाम ख़ामेनेई
19 अक्तूबर 2010
बीवी के रोल में औरत सबसे पहले तो सुकून की प्रतीक है। और उसी (की जिन्स) से उसका जोड़ा क़रार दिया ताकि (उसके साथ रहकर) सुकून हासिल करे। (सूरए आराफ़ 189) क्योंकि ज़िंदगी में उतार चढ़ाव होता है। मर्द ज़िंदगी के समंदर में कामों और थपेड़ों से रूबरू होता है। जब घर आता है तो उसे सुकून और चैन की ज़रूरत होती है। घर में यह सुकून औरत पैदा करती है।
इमाम ख़ामेनेई
4 जनवरी 2023
सही अर्थों में ज़ायोनी सरकार राजनैतिक अस्थिरता में घिरी हुयी है। उनके अधिकारी बार बार चेतावनी दे रहे हैं कि बहुत जल्द बिखराव होने वाला है। उनका राष्ट्रपति कह रहा है, उनका पूर्व प्रधान मंत्री कह रहा है, उनका सुरक्षा विभाग का प्रमुख कह रहा है, उनका रक्षा मंत्री कह रहा है, वे सभी कह रहे हैं कि जल्द ही बिखर जाएंगे और हम 80 साल के नहीं हो पाएंगे। हमने कहा था, ʺतुम अगले 25 साल नहीं देख पाओगेʺ लेकिन उनको तो (मिट जाने की) और भी जल्दी पड़ी है।
स्कूलों में दिलचस्प प्रशैक्षिक (तरबियती) प्रोग्राम होने चाहिए। राष्ट्रीय पहचान को मज़बूत बनाना, वतन दोस्ती के जज़्बे को मज़बूत करना, राष्ट्र ध्वज को मज़बूत करना और इस्लामी तर्ज़े ज़िंदगी सिखाना सबसे महत्वपूर्ण कामों में शामिल हैं जिन्हें अंजाम दिया जाना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
2 मई 2023
रमजान का महीना अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने का महीना भी है और जेहाद का महीना भी। इस्लाम के आग़ाज़ में जंगे बद्र और फ़त्हे मक्का रमज़ान में थी। हालिया बरसों में क़ुद्स दिवस ईरानी क़ौम के संघर्ष का दिन रहा और इस साल बड़े पैमाने पर दूसरे राष्ट्रों ने भी इसमें साथ दिया।
इमाम ख़ामेनेई
22 अप्रैल 2023
दुनिया की हर जंग में बड़ी ताक़तें लिप्त हैं। आज यूक्रेन, सीरिया, लीबिया और #सूडान की जंग के योजनाकार कौन हैं? इम्पेरियल ताक़तों के लोग हैं जो जंग शुरु करवाते हैं कि उसका फ़ायदा किसी और जगह हासिल करें। अमरीका ने इसी तरह इराक़ व अफ़ग़ानिस्तान में जंग शुरू की थी।
इमाम ख़ामेनेई
16 अप्रैल 2023
क़ुरआन के मुताबिक़ हमेशा डिफ़ेंस की मज़बूती अल्लाह का फ़रमान और अल्लाह के दुश्मनों और मिल्लत के दुश्मनों के ख़ौफ़ का सबब भी है। मुल्क के ख़िलाफ़ ख़तरे कभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं होते इसलिए आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को चाहिए कि जहां तक मुमकिन हो मुख़्तलिफ़ पहलुओं से अपनी तैयारी बढ़ाती रहें।
इमाम ख़ामेनेई
16 अप्रैल 2023
क़ुद्स दिवस हक़ और बातिल की लामबंदी, ज़ुल्म के मुक़ाबले में न्याय की लामबंदी का नक़्शा पेश करता है। क़ुद्स दिवस सिर्फ़ फ़िलिस्तान का दिन नहीं है, यह इस्लामी जगत का दिन है। यह ज़ायोनीवाद के जानलेवा कैंसर के ख़िलाफ़ मुसलमानों के आवाज़ उठाने का दिन है जिसे क़ाबिज़ हमलावरों, हस्तक्षेप करने वालों और साम्राज्यवादी ताक़तों के ज़रिए इस्लामी जगत की जान के पीछे लगा दिया गया है।
इमाम ख़ामेनेई
11/07/2015
वेस्ट को ईरानी महिलाओं से कोई हमदर्दी नहीं बल्कि दुश्मनी है। क्योंकि अगर महिलाओं की भागीदारी न होती तो इस्लामी इंक़ेलाब हरगिज़ कामयाब न होता। वाक़ई वेस्ट का औरतों के अधिकारों का दावा करना अच्छा नहीं लगता। आज भी पश्चिमी देशों में महिलाओं को बड़ी अहम मुश्किलों का सामना है।
इमाम ख़ामेनेई
5 अप्रैल 2023
ओबामा का अमरीका बुश के अमरीका से कमज़ोर था। ट्रम्प का अमरीका ओबामा के अमरीका से ज़्यादा कमज़ोर था। बाइडन का अमरीका ट्रम्प के अमरीका से भी ज़्यादा कमज़ोर है।
इमाम ख़ामेनेई
4 अप्रैल 2023
रमज़ान का महीना, दुआ का महीना है। दुआओं को मत भूलिए। रमज़ान के महीने के लिए जो दुआएं बतायी गयी हैं, वे उन नेमतों व मौक़ों में से हैं, जिनकी क़द्र करनी चाहिए। यह दुआए अबू हमज़ा सुमाली, दुआए इफ़्तेताह, दुआए जौशन कबीर और दूसरी दुआएं जो रमज़ान के महीने के दिनों, रातों और दूसरे ख़ास वक़्त के लिए बतायी गयी हैं, हक़ीक़त में अल्लाह की बड़ी नेमतों में से हैं।
इमाम ख़ामेनेई
23/02/1993
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक मोतबर हदीस हैः रोज़ा नरक से बचाने वाली ढाल है। रोज़े की ख़ुसूसियत, इच्छाओं पर क़ाबू पाना है। गुनाहों के मुक़ाबले में सब्र और इच्छाओं पर कंट्रोल का प्रतीक रोज़ा है। सूरए बक़रह की आयत 153 में सब्र से मुराद रोज़ा बताया गया है। रोज़ा, इच्छाओं से मुंह फेर लेने का प्रतीक है।
इमाम ख़ामेनेई
27/10/2004
जैसे ही हज़रत ख़दीजा ने अपनी पाक फ़ितरत के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) को देखा कि वो उस अलग हालत में हिरा से लौटे हैं तो वो फ़ौरन मामले की सच्चाई को समझ गयीं और उनका पाकीज़ा दिल आकर्षित हो गया और वो ईमान ले आयीं। फिर वो पूरे वजूद से ईमान पर डटी रहीं।
इमाम ख़ामेनेई
अगर हम मुसलसल अपने आप पर नज़र नहीं रख सकते और आत्म निर्माण नहीं कर सकते तो कम से कम रमज़ान के महीने को ग़नीमत समझें। रमज़ान के महीने में हालात अनुकूल होते हैं। इसमें सबसे अहम चीज़ यही रोज़ा है जो आप रखते हैं। यह अल्लाह की ओर से मिलने वाले सबसे क़ीमती मौक़ों में से एक है।
इमाम ख़ामेनेई
23/02/1993
रमज़ान का महीना बहुत क़ीमती मौक़ा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने इस महीने को अल्लाह की मेहमानी का महीना क़रार दिया है। क्या ऐसा हो सकता है कि इंसान किसी दानी के दस्तरख़ान पर पहुंचे और वहाँ से ख़ाली हाथ लौट आए?
सही मानी में वह महरूम है जो रमज़ान के महीने में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी न करवा पाए।
इमाम ख़ामेनेई
27/4/1990
रमज़ान का महीना, मुबारक महीना है। रमज़ान की बरकतें, इस महीने में अल्लाह की दावत में शिरकत का इरादा रखने वाले मुसलमानों से शुरू होती हैं, दिलों से शुरू होती हैं। इस महीने की बरकतों से प्रभावित होने वाली सबसे पहली चीज़ मोमिनों, रोज़ेदारों और इस पाक महीने में दाख़िल होने वालों के मन व आत्मा हैं।
इमाम ख़ामेनेई
24/12/1997
अगर आप अपने समाज में अपने और दूसरों के अंदर तक़वा (अल्लाह का डर) अच्छी ख़ूबियां, अख़लाक़, दीन पर अमल, ज़ोहद (सादगी) और अल्लाह से रूहानी निकटता पैदा कर सकें तो आपने इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के स्तंभ को और मज़बूत किया है।
इमाम ख़ामेनेई
27/6/1980
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम - हमारी जानें उन पर क़ुरबान हों - के ज़ाहिर होने और उनके वजूद का अक़ीदा रखने वाले कभी मायूसी व नाउम्मीदी का शिकार नहीं होते। वे जानते हैं कि यह सूरज निश्चित तौर पर निकलेगा और इन अंधेरों को मिटा देगा।
इमाम ख़ामेनेई
12/5/2017
रजब और शाबान ख़ुद को तैयार करने का मौक़ा है कि इंसान रमज़ान के महीने में तैयारी के साथ दाख़िल हो। सबसे पहली तैयारी है तवज्जो और दिल का मुतवज्जेह होना। अपने हर अमल के बारे में यह तसव्वुर रखना कि वह अल्लाह की नज़रों में है।
इमाम ख़ामेनेई
15 मई 2013
हम शाबान के महीने में, इबादत, तवस्सुल और मुनाजात के महीने में दाख़िल हो चुके हैं। “और जब मैं तुझ से दुआ करूं तो मेरी दुआ सुन ले, जब मैं तुझे पुकारूं तो मेरी निदा पर तवज्जहो फ़रमा।” (मुनाजाते शाबानिया) अल्लाह से मुनाजात का मौसम, इन पाकीज़ा दिलों को अज़मतों और नूर के ख़ज़ाने से जोड़ देने का मौसम। इसकी क़द्र करना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
12 जून 2013
समाज के लोगों के बीच मुहब्बत, ख़ुलूस और अपनाइयत भी बेसत के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना है। समाज में ज़िंदगी हमदर्दी और मुरव्वत की फ़ज़ा में गुज़रना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2023
पैग़म्बर की बेसत का सबसे पहला मक़सद तौहीद की दावत देना था। तौहीद सिर्फ़ फ़िक्री और फलसफ़ियाना नज़रिया नहीं बल्कि इंसानों के लिए एक जीवनशैली है। अल्लाह को पूरी ज़िंदगी में ग़ालिब रखना और इंसानी ज़िंदगी में दूसरी ताक़तों के हस्तक्षेप का रास्ता रोक देना।
इमाम ख़ामेनेई
24 सितम्बर 2003
नबी-ए-अकरम की बेसत इंसानियत को अता किया जाने वाला सबसे अज़ीम तोहफ़ा है। वजह यह है कि बेसत में इंसानियत के लिए असीम ख़ज़ाने हैं जो आख़ेरत से पहले तक इंसान की सारी दुनियावी ज़िंदगी की कामयाबी की गैरेंटी बन सकते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2023
बेसत का दिन यक़ीनन तारीख़े इंसानियत का सबसे अज़ीम दिन है। क्योंकि वो हस्ती जिससे अल्लाह ने ख़ेताब फ़रमाया और जिस के कांधों पर अज़ीम ज़िम्मेदारी रखी, तारीख़ की सबसे अज़ीम हस्ती और कायनात की सबसे अज़ीम मख़लूक़ है। इसी तरह वह ज़िम्मेदारी भी जो इस अज़ीम इंसान के कांधे पर रखी गई, यानी इंसानों को नूर की वादी में ले जाने की ज़िम्मेदारी वह भी सबसे अज़ीम ज़िम्मेदारी थी।
इमाम ख़ामेनेई
17 नवम्बर 1998
11 फ़रवरी 2023 के जुलूसों में क़ीमती और भरपूर शिरकत पर ईरानी क़ौम को सलाम करता हूं। मैं ख़ुद को इस क़ाबिल नहीं समझता कि शुक्रिया अदा करुं। इसकी क़द्रदानी तो अल्लाह ही कर सकता है। मिल्लते ईरान! अल्लाह आपकी मेहनतों की क़द्रदानी करे।
इमाम ख़ामेनेई
15 फ़रवरी 2023
मिल्लते ईरान का अल्लाहो अकबर का नारा अपनी ख़ास आवाज़ और अंदाज़ रखता है। क्योंकि यह पैग़म्बर का नार-ए-अल्लाहो अकबर है। यह बुतों को तोड़ने वाला नार-ए-अल्लाहो अकबर है। यह ताक़त और धन दौलत के बुतों को महत्वहीन साबित करने वाला नारा है। यह विश्व साम्राज्यवाद के मुक़ाबले में एक क़ौम की शुजाअत और बहादुरी का आईना है।
इमाम ख़ामेनेई
28 अगस्त 1985
#सीरिया और #तुर्किए में भूकंप से प्रभावित होने वाले अपने भाइयों के लिए दुखी हूं। हताहत हो जाने वालों के लिए अल्लाह से मग़फ़ेरत और उनके सोगवारों के लिए सब्र की दुआ करता हूं।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2023