सन 1920 में, ठीक उस वक़्त जब चुनाव में अमरीकी महिलाओं ने पहली बार भाग लिया, संयुक्त राज्य अमरीका में शराब बनाने, उसके परिवहन और बेचने पर रोक का क़ानून, संघीय क़ानून बन गया। अमरीकी औरतों की ओर से शराब पीने पर पाबंदी को सपोर्ट, इस तरह के पेय की लत के नुक़सान और अमरीका के पारंपरिक कल्चर के संबंध में उनकी सामाजिक सूझबूझ को दर्शाती थी। उसी साल ओलियो थामस, कमेडी फ़िल्म फ़्लीपर में शराब और सिगरेट पी रहा था और साथ ही उसे अपने पारंपरिक परिवार के ज़ुल्म का शिकार दिखाया जा रहा था। एक ही चीज़ के बारे में समाज की आम इच्छा और मीडिया की ओर से पेश की गयी छवि के बीच यह खुला विरोधाभास, उस बड़े संघर्ष का एक छोटा सा मंज़र था जो अमरीकी कल्चर में जारी था यानी सामाजिक परंपरा और पूंजीवाद की कभी न मिटने वाली भूख के बीच संघर्ष।
शराब और सिगरेट, महिलाओं को धोखा देने के मुख्य साधन
19वीं सदी के आख़िरी और 20वीं सदी के आरंभिक दशक में ब्रिटेन और अमरीका जैसे पश्चिमी औद्योगिक मुल्कों में, मर्दों के बराबर सामाजिक अधिकार हासिल करने के लिए नारीवादी आंदोलनों का दायरा दिन ब दिन फैलता जा रहा था। यह दौर जो इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के बीच 'वोट के अधिकार' के दौर के नाम से मशहूर है, अपने आप में, शादी के बाद, संपत्ति के स्वामित्व के अधिकार, वोट के अधिकार और मर्दों के बराबर नागरिक अधिकार हासिल करने के लिए बड़े बड़े नारीवादी संगठनों के गठित होने का साक्षी रहा है। ये आंदोलन अपने अधिकार हासिल करने के लिए सिर्फ़ क़ानूनी रास्ते से कोशिश पर रुके नहीं रहे बल्कि समाज की मानसिक और सांस्कृतिक सोच को बदलकर और ख़ास तौर पर वर्जित बातों को पैरों तले कुचलकर औरतों के लिए आज़ादी और बराबरी भी हासिल करना चाह रहे थे। उनका ख़याल था कि लोगों के मन में ज़ंजीरों को तोड़कर औरतों के लिए आज़ादी और समानता का मार्ग समतल किया जा सकता है। इस सोच के तो सबसे अहम प्रतीक, सिगरेट पीना और शराब का सेवन थे। 'आज़ादी के शोले' वह टाइटल था जो इन आंदोलनों ने औरतों के होठों में दबी हुयी सिगरेट को दे रखा था और 'रोमांच' (1) शब्द उस पार्टी की विशेषता के तौर पर इस्तेमाल होता था जिसमें शराब और सिगरेट पीने का चलन हो। इसी तरह 'जवान लड़कियों के लिए तमन्ना करने के क़ाबिल' औरत हर जगह होती थी(2) और कोशिश होती थी कि उसे घरेलू माहौल की क़ैद और सीमाओं को तोड़ने वाली एक प्रतीक के तौर पर पेश किया जाए।
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पश्चिम में नागरिक आबादी के फैलाव और मज़दूरों, मुलाज़िमों और सामूहिक तौर पर काम करने वाली औरतों की तादाद में इज़ाफ़े के साथ ही समाज का यह वर्ग जो इससे पहले तक वस्तुओं की मंडी में कोई सरगर्म रोल नहीं रखता था, अब पैसे कमाने लगा था और उस पैसे को ख़र्च करने की राह तलाश करने लगा था। पश्चिम के सामाजिक और पारंपरिक मूल्यों में सिगरेट और शराब के सेवन को औरतों के लिए उचित नहीं समझते थे और मुख़्तलिफ़ तरह से औरतों को इन चीज़ों से दूर रखने की कोशिश करते थे। "कोई भी सम्मानीय महिला शराब सेवन के हाल में नहीं जाती।"(3) यह आम स्तर पर एक मान्य सोच थी और "वह औरत जो सिगरेट पीती है, शराब पीती है और बात करते हुए गाली देती है" यह जुमला हेनरी फ़िल्डिंग के एक नावेल में एक बेलगाम औरत के लिए इस्तेमाल किया गया है। फिर ये मूल्य, जंज़ीरों को तोड़ने वालों के लिए तरक़्क़ी, मनोरंजन, रोज़गार के समान अवसर से फ़ायदा उठाने और नए संपर्क बनाने की राह में रुकावट के सिवा कुछ नहीं थे। अमरीका, ब्रिटेन और योरोप के दूसरे हिस्सों में फ़्लीपर महिलाएं, इन मूल्यों के ठीक विपरीत दिशा में थीं। वे सिगरेट पीती थीं, शराब पीती थीं और मर्दों के साश बिना झिझक डांस करती थीं और शारीरिक संबंध बनाती थीं। बहुत जल्दी हॉलीवुड और पश्चिम के फ़िल्म उद्योग के सरग़नाओं ने इसी तरह की औरत का ख़ाका पेश किया और उसकी सराहना शुरू कर दी। सिगरेट बनाने वाली कंपनियां, तथा कथित बहादुर और मूल्यों को कुचलने वाली औरतों की तस्वीरें अपने विज्ञापनों में इस्तेमाल करने लगीं। इस तरह औरत और मर्द के बीच फ़र्क़ ख़त्म करके औरतों को सिगरेट और शराब की वादी में ढकेल दिया गया।
सीमाओं को तोड़ना या घर की दिवार को ढाना?
औद्योगिक क्रांति के आग़ाज़ और काम करने की लंबी अवधि और कम तनख़्वाह पर मज़दूरों के पहले प्रदर्शन के साथ ही आम तौर पर पूंजीपति, सामाजिक न्याय के आंदोलनों के विरोध में खड़े हो जाते थे। यह बात समझ में आने वाली थी कि वे उद्योग और व्यापार के अपने हितों में, समाज के एक बड़े भाग को भागीदार न बनाना चाहें लेकिन महिलाओं के इंसाफ़ चाहने वाले आंदोलनों से रॉक फ़ेलर जैसे पूंजीपति के सहयोग पर कम ही लोगों को संदेह हुआ। अब सवाल यह है कि महिला के सिगरेट और शराब पीने के बारे में समाज के पारंपरिक मूल्य और मर्दों तथा औरतों के समान अधिकार के बीच क्या तार्किक संबंध पाया जाता है?
दूसरी औद्योगिक क्रांति के आग़ाज़ और कारख़ानों में पड़े पैमाने पर प्रोडक्शन लाइनें बनाए जाने के साथ ही उद्योग के लिए मैन पावर की ज़रूरत कई गुना बढ़ गयी। पश्चिमी मुल्क जो, सैन्य वर्चस्व और समुद्री रास्तों से दूसरे मुल्कों के प्राकृतिक संसाधनों पर क़ब्ज़ा करने की वजह से सबसे पहले औद्योगिक बन चुके थे, बहुत जल्दी इस बात को समझ गए कि उन्हें बड़े पैमाने पर सस्ते मैन पावर की ज़रूरत है। दूसरी औद्योगिक क्रांति के आग़ाज़ के साथ ही औरतों को स्वामित्व का अधिकार दिया जाना इस बात को दर्शा रहा था कि दुनिया के पूंजीपति अब, समाज के इस भाग को इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं। महिलाओं को घरों से बाहर लाने और सामाजिक सीमाओं को तोड़ने के लिए औरतों में एक तीव्र इच्छा की ज़रूरत थी और पूंजीपतियों ने स्वामित्व और वोट देने के अधिकार की उनकी मांगों का दुरूपयोग करते हुए उन्हें कारख़ानों में लाने का पहला चरण पूरा कर लिया। पहला विश्व युद्ध छिड़ने और पुरूष मैन पावर के कम हो जाने की वजह से कारख़ानों के बहुत से भारी काम भी औरतों के कांधों पर आ गए। काम की मंडी में दाख़िल होने की ख़ातिर औरतों को लुभाने के लिए कुछ नई बातों की ज़रूरत थी। पश्चिम में औद्योगिक मज़दूरी का कल्चर, शराब और सिगरेट पीने से जुड़ा हुआ था। मर्द मज़दूर जो शायद दिन में 12 घंटे कठिन शारीरिक मेहनत करते थे, रात में अपनी मज़दूरी शराबख़ानों में उड़ा देते थे और ख़ाली हाथ घर लौट जाते थे। इस जीवन शैली से जुड़े मुद्दे इस सीमा तक थे कि अमरीका में महिला आंदोलन, शराब के सेवन और घरेलू हिंसा से मुक़ाबले की मुख्य ज़िम्मेदारी संभाले हुए थे। फिर भी शराब और सिगरेट पीने के चलन और उसकी सराहना के सिलसिले में पश्चिमी पूंजीपतियों के प्रचारिक युद्ध ने एक तीर से दो निशाने लगाए। 1 दिसम्बर सन 1932 को छपने वाली मैग्ज़ीन Britannia and Eve (4) की रिपोर्ट के मुताबकि, अंग्रेज़ महिलाएं, सिगरेट तैयार करने के उद्योग को भारी मुनाफ़ा देने वाला उद्योग बनाने में सफल रहीं और उसे पिछले कुछ दशकों में उनकी अहम सफलताओं की लिस्ट में शामिल करना चाहिए। दुनिया के बड़े बड़े पूंजीपति भी अब सिगरेट और शराब बनाने के अपने उद्योग को मुनाफ़ा देने वाला उद्योग बना चुके थे और महिलाओं की ओर से इन दोनों के इस्तेमाल को आम करके उन्होंने इस मज़दूर वर्ग को कमज़ोर बनाने और उसे नशे की लत लगाने की राह समतल कर दी थी।
इमाम ख़ामेनेई ने 17 दिसम्बर 2024 को अपनी स्पीच में इस ऐतिहासिक तथ्य को इस तरह बयान कियाः " दुनिया के पूंजीपति, जीवन शैली के सभी मसलों की तरह औरत के इस मसले में भी हस्तक्षेप करते हैं। इसके पीछे मंशा क्या है? मंशा राजनैतिक और साम्राज्यवादी हस्तक्षेप है। वे इस मसले में शामिल होते हैं ताकि उनके अतिरिक्त हस्तक्षेप, अतिरिक्त प्रभाव और उनकी पैठ का दायरा बढ़ने की राह समतल रहे, उनके पास बहाना रहे। वे इस आपराधिक मंशा को, बुरी मंशा को ज़ाहिरी तौर पर एक दार्शनिक लबादे में, ज़ाहिरी तौर पर वैचारिक आड़ में और ज़ाहिरी तौर पर एक मानवता प्रेमी जज़्बे के नाम पर पेश करते हैं। यह पश्चिमी पूंजीपतियों की बेईमानी है जो आज दुनिया पर छायी हुयी है। इसका एक नमूना यह है कि क़रीब एक सदी पहले, मिसाल के तौर पर उन्होंने औरत की आज़ादी और औरत की वित्तीय आत्मनिर्भरता की बात उठायी। इसका ज़ाहिरी रूप तो अच्छा था कि औरत वित्तीय लेहाज़ से आत्मनिर्भर होनी चाहिए या उसे आज़ादी हासिल होनी चाहिए लेकिन इसके भीतर क्या था? इसके भीतर यह था कि उनके कारख़ानों को मज़दूर की ज़रूरत थी, मर्द मज़दूर काफ़ी नहीं थे, वे औरतों को मज़दूरी के लिए लाना चाहते थे और वह भी मर्दों से कम मज़दूरी पर। इस सच्चाई को उन्होंने इस तरह छिपाया कि इसका रूप ज़ाहिर मानवीय दिखता था, इस नाम से कि औरत को वित्तीय आत्मनिर्भरता हासिल होनी चाहिए, उसे आज़ादी होनी चाहिए, वह घर से बाहर निकल सके।"
अब सवाल यह है कि क्या इन विषयों में पश्चिमी औरतों की ओर से मूल्यों को कुचला जाना, भेदभाव से भरे व्यवहार की ज़ंजीर को तोड़ना था या उनके घरों की दीवारों को गिराना था जो पूंजीपतियों से उनकी रक्षा कर रही थीं?
[1] coed at Ohio State: Paula S. Fass, The Damned and the Beautiful: American Youth in the 1920s (New York: Oxford University Press, 1977), 307.
2 Zeitz, Joshua: Flapper. A madcap story of sex, style, celebrity, and the women who made America modern, New York, 2006: Crown Publishing, 15.
4 https://britishonlinearchives.com/posts/category/articles/528/from-the-archive-the-tobacco-industry-and-advertising-women-smoking-in-interwar-britain