इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के बयानों की बुनियाद पर 'मानसिक व मनोवैज्ञानिक सुरक्षा' के विषय पर सूरए अहज़ाब की आयत-60 पर एक नज़र
किसी समाज की सबसे बड़ी ज़रूरत सुरक्षा है। सुरक्षा अनेक शक्लों में होती है जबकि मानसिक सुरक्षा का समाज की तरक़्क़ी में बड़ा रोल है। "समाज की मानसिक सुरक्षा का मतलब लोगों को बेचैन न करना, लोगों को स्ट्रेस और संदेह में ग्रस्त न करना है।" (27/10/2024) क़ुरआन मजीद की अहम आयतों में से एक जिसमें साफ़ तौर पर इस विषय का ज़िक्र है, वह सूरए अहज़ाब की आयत नंबर 60 है। अल्लाह इस आयत में तीन गिरोहों 'मुनाफ़िकों', 'मानसिक मरीज़ों' और अफ़वाह फैलाने वालों की ओर इशारा करते हुए फ़रमाता हैः "अगर मुनाफ़ेक़ीन और वे लोग जिनके दिलों में बीमारी है और मदीना में अफ़वाहें फैलाने वाले (अपनी हरकतों से) बाज़ न आए तो हम आपको उनके ख़िलाफ़ हरकत में ले आएंगे फिर वह (मदीने) में आपके पड़ोस में नहीं रह सकेंगे मगर बहुत कम।"(सूरए अहज़ाब, आयत-60)
इन तीन गिरोहों में, ''मुर्जेफ़ून गिरोह लोगों में सबसे ज़्यादा अज्ञात रहा और इनके बारे में कम चर्चा हुयी है। चूंकि इस गिरोह की पहचान का समाज के मानसिक स्वास्थ्य से सीधा संबंध है, इस विषय के मद्देनज़र इस नोट में इस आयत के अहम आयामों की समीक्षा करेंगे।
'मुर्जेफ़ून' गिरोह की पहचान
'मुर्जेफ़ून' गिरोह का इस्लाम के आग़ाज़ और पैग़म्बरे इस्लाम के शासन काल से अब तक एक स्वरूप रहा है। हम इस गिरोह की मुख़्तलिफ़ आयाम से समीक्षा करेंगे।
1 डरपोक और नाकारा लोगों का नेटवर्क
'मुर्जेफ़ून' शख़्सियत के एतेबार से ऐसे लोग हैं जो "सख़्त हालात और दुश्मन का सामना होने पर बेकार, डरपोक, किनारे खड़े रहने वाले और आराम तलब लोग साबित होते हैं; जब कोई क़ौम कठिनाइयों में होती है, तो ये लोग कहीं नज़र नहीं आते!...लेकिन जब स्थिति ऐसी हो कि ज़ाहिरी तौर पर कोई ख़तरा न हो तो आप पाएंगे कि ऐसे लोगों की ज़बान मोमिनों के ख़िलाफ़ ख़ूब चलती है।" (11/6/1998) यह गिरोह "जब दुश्मन को देखता है तो उसका जिस्म बेंत की तरह कांपता है; अल्लाह पर ईमान रखने वालों और अल्लाह की राह में कठिनाइयां सहन करने वालों को पीड़ित करने और उन पर दबाव डालने के लिए हैंः "जनाब आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों झुक नहीं जाते? क्यों अपनी नीतियों को इस तरह की नहीं बनाते?" वह काम करते हैं जो दुश्मन चाहता है। (10/10/2012)
2 मानसिक स्वास्थ्य के ख़िलाफ़ समीक्षा पेश करने वाले
इस गिरोह का मुख्य काम, समाज के मानसिक स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाना है; वे "लोगों के मन में बेचैनी और डर पैदा करते हैं।" (27/10/2024)
'मुर्जिफ़' यानी वह शख़्स जो अपनी बातों से, अपनी अफ़वाहों से, अपने स्टैंड से, अपने बयानों से आम माहौल को तनावपूर्ण बना देता है। (08/05/1987)
ये "ऐसे लोग हैं जो माहौल को तनावपूर्ण और अस्त व्यस्त बना देते हैं, चाहते हैं ये सब काम न हों, चाहतें हैं मुल्क का विकास न हो, चाहते हैं मुल्क के योजनाकार और अधिकारी सफल न हों।" (12/6/2003) यह गिरोह "ऐसे लोगों का है जो समाज के मानसिक स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाते हैं, अफ़वाह फैलाते हैं; कुछ लोग द्वेष में मुख़्तलिफ़ विषयों की ग़लत समीक्षा पेश करते हैं।" (27/10/2024) ये लोग हमेशा अपनी समीक्षाओं से लोगों को डराते हैंः "जनाब डरिए; अमरीका से मुक़ाबला क्या मज़ाक़ की बात है? आपकी हालत ख़राब कर देगा! उनकी फ़ौजी जंगें, ये पाबंदियां, यह उनकी प्रचारिक व राजनैतिक सरगर्मियां..." "मुर्जेफ़ून" यही लोग हैं। (10/10/2012)
3 विदेशी दुश्मन के लिए पांचवा स्तंभ (ग़द्दार)
विदेशी दुश्मन और "क़ौमों और मुल्कों के दुश्मन जो मुल्कों पर ललचायी नज़र रखते हैं, सिर्फ़ हथियारों या सिर्फ़ हार्ड वार के साथ मैदान में नहीं आते, साफ़्ट वार के साथ मैदान में आते हैं। साफ़्ट वार का एक हथकंडा, समाज को मानसिक लेहाज़ से परेशान करना है।" (27/10/2024)
मूल रूप से "इस्लामी गणराज्य के राजनैतिक विरोधी और ईरानी राष्ट्र और क्षेत्र की क़ौमों के इस अज़ीम आंदोलन के विरोधी धड़ों की कोशिश…उथल पुथल पैदा करना है, सामाजिक लेहाज़ से भी और मानसिक लेहाज़ से भी; यानी लोगों के मन को बेचैन करना, चिंतित करना और डराना, जैसा कि आज दुनिया में मीडिया साम्राज्य की मूल नीति यही है।" (28/05/2003) 'मुर्जेफ़ून' गिरोह अपनी विशेष शख़्सियत की वजह से बड़ी आसानी से दुश्मन की इस नीति में फंसकर दुश्मन की इन लक्ष्यों में मदद करते हैं; इसलिए "जो शख़्स भी मुल्क में इल्ज़ाम लगाने के माहौल और सिस्टम के ख़िलाफ़ मानसिक युद्ध को बढ़ावा दे, वह अमरीका का पिट्ठू है और उसने अमरीका के लिए काम किया है; चाहे वह अमरीका से पैसा ले, चाहे फ़्री का नौकर हो।" (12/06/2003)
मिसाल के तौर पर पाकीज़ा डिफ़ेन्स और थोपी गयी जंग के दौरान, इस बात की अनेक रिपोर्टें थीं कि ग़द्दार किराए के टट्टू, जिनके दिल में एक क्षण के लिए भी इस्लाम, इस्लामी गणराज्य, इस्लामी इंक़ेलाब, इमाम ख़ुमैनी, क़ुरबानी देने वाले इंसानों और धर्मगुरूओं के लिए जगह नहीं है, मनोबल गिराने और झूठी ख़बरें फैलाने में लगे हुए हैं। (10/10/1980) इसी बुनियाद पर क़ुरआन मजीद चेतावनी देता है कि ""अगर पांचवा स्तंभ और दुश्मन का किराए का टट्टू और जासूस इस संवेदनशील समय में विध्वंसक गतिविधियों और नुक़सान पहुंचाने से बाज़ नहीं आता तो जान ले कि आदेश देने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी; लोग ऐसे तत्वों को पूरी ताक़त से कुचल देंगे। (10/10/1980)
4 शहर में उपद्रव फैलाने वाले
'मुर्जेफ़ून' गिरोह 'मुनाफ़िक़' और 'मानसिक रोगियों' के साथ मिलकर समाज में उपद्रव फैलाने की कोशिश में है। क़ुरआन मजीद, इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से फ़रमाता है कि "अगर मुनाफ़िक़ और वे लोग जो मानसिक रोगी हैं और शहर में उपद्रव फैलाने वाले लोग बाज़ न आए तो हम आपको उनके ख़िलाफ़ हरकत में ले आएंगे। अल्लाह इन दो ख़तरनाक गिरोहों मुनाफ़िक़ों और मानसिक रोगियों को ''मदीने में अफ़वाह फैलाने वालों' की क़तार में रखता है; यानी इस्लामी समाज में उपद्रव व बलवा पैदा करने वाले। (13/3/1981) इस गिरोह के बारे में इस दौर में भी हुक्म स्पष्ट हैः "हमारे दौर में, जो लोग उपद्रव और बलवा कर रहे हैं या उसकी पृष्ठिभूमि बना रहे हैं, वे इस आयत में वर्णित सज़ा के दायरे में आते हैं।" (13/3/1981)
'मुर्जेफ़ून' गिरोह की मदद किए जाने का ख़तरा
यह बात भी क़ाबिले ज़िक्र है कि कभी कभी आम लोग न चाहते हुए ' मुर्जेफ़ून' गिरोह की मदद करते हैं। अफ़सोस की बात है कि समाज में कुछ लोग बिना सोचे समझे जो कुछ उनके मन में आता है, साइबर स्पेस पर प्रसारित कर देते हैं हालांकि "हर चीज़ को जो कुछ भी किसी शख़्स के दिमाग़ में आए, उसे साइबर स्पेस पर नहीं डालना चाहिए, आप देखिए कि उसका असर क्या है, देखिए लोगों पर, लोगों की सोच पर, लोगों के जज़्बात पर उसका क्या असर होता है।"
(27/10/2024) ये लोग दूसरों की बातों और समीक्षाओं को, उनके असर को समझे बिना दोबारा प्रसारित कर के समाज की मानसिक सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाते हैं।
दूसरी ओर समाज में टीकाकार, योजनाकार और फ़ैसला लेने वाले भी इस बात की ओर ध्यान दें कि किस तरह मुमकिन है कि साइबर स्पेस में एक ग़लत समीक्षा, एक ग़लत ख़बर, किसी घटना के बारे में ग़लत सोच, लोगों में बेचैनी पैदा कर सकती है, उन्हें संदेह में डाल सकती है, उन्हें भयभीत कर सकती है। ये वे चीज़ें हैं जो समाज की मानसिक सुरक्षा को ख़त्म कर देती हैं।"(27/10/2024) कुल मिलाकर यह कि यह आयत राजनैतिक समीक्षा में एक अहम उसूल की ओर इशारा करती है और वह यह है कि हर वह समीक्षा जिसके नतीजे में समाज में डर, बेचैनी और निराशा पैदा हो, निश्चित तौर पर ग़लत समीक्षा है। "कुछ लोग अपनी ख़बर से, अपनी टिप्पणी से, घटनाओं के संबंध में अपनी समीक्षा से लोगों में शक पैदा कर देते हैं, डर पैदा कर देते हैं, यह चीज़ अल्लाह की नज़र में अस्वीकार्य है।" (27/10/2024)
'मुर्जेफ़ून' गिरोह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए दो तरह के कुतर्क का सहारा लेते हैंः 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' और 'समझदारी'; यह ऐसी स्थिति में है कि "आज़ादी जनमत के मार्गदर्शन के लिए है, वैचारिक विकास के लिए है, समाज की तरक़्क़ी के लिए है।" (08/05/1987) 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' की सीमा है। "एक सीमा समाज में आम स्तर पर तनाव है। क़ुरआन में, …आम स्तर पर तनाव फैलाने के लिए अभिव्यक्त की आज़ादी नहीं है। (यह आयत) स्पष्ट दलील है।" (08/05/1987)
दूसरी ओर 'समझदारी' डर और निराशा की भावना के साथ जो मुर्जेफ़ून धड़े की ख़ुसूसियत है, समन्वित नहीं है; इसलिए "डरपोक लोगों को 'समझदारी' की बात करने का अधिकार नहीं है। डरना, फ़रार करना और मैदान को ख़ाली छोड़ देना, 'समझदारी' नहीं है, बल्कि यह वही डर, फ़रार और इस तरह की चीज़ है; 'समझदारी' का मतलब होता है सही हिसाब किताब।" (12/10/2020) यह ऐसी हालत में है कि क़ुरआन मजीद, पैग़म्बर इस्लाम से कहता हैः"अगर अफ़वाह फैलाने वाले बाज़ न आए, ये तनाव पैदा करने वाले, वे लोग जो समाज को उसके स्वास्थय, सुकून और शांति की स्थिति वंचित कर देना चाहते हैं, हम आपको उनके ख़िलाफ़ प्रेरित करेंगे; यानी आपको उनकी जान के पीछे लगा देंगे ताकि आप लोगों की ओर से बदला लें। आपको नियुक्त करेंगे कि आप इनका पीछा कीजिए और दंडित कीजिए। मानसिक सुरक्षा का विषय इतना अहम है।" (27/10/2024) इसलिए "सही समय पर ज़रूरी तरीक़े से 'मदीने में अफ़वाह फैलाने वालों' को दंडित किया जाए ताकि बड़ी मुश्किल से मिली यह सुरक्षा और यह एकता हाथ से चली न जाए।" (13/03/1981)