न्यायपालिका दिवस के अवसर पर न्यायपालिका प्रमुख और वरिष्ठ अधिकारियों ने रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। 22 जून 2024 की इस मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने न्यायपालिका की अहमियत ज़िम्मेदारियों, सुधार और कार्यशैली के बारे में बात की। (1)
रहबरे इंक़ेलाब की तक़रीर
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
आप सब का बहुत स्वागत है प्यारे भाइयो और न्यायपालिका के सम्मानीय अधिकारियो! आप लोग मुल्क की बहुत बड़ी और बहुत अहम ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। मैं आप सब को ईदे ग़दीर की मुबारकबाद देता हूँ। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दिन भी जो आज है, आप सब को मुबारक हो। हम यहां इस मौक़े पर न्यायपालिका के अहम शहीदों, शहीद बहिश्ती और दूसरे शहीदों, ख़ास तौर पर हालिया दिनों में शहीद होने वालों को कि जिनमें मरहूम इब्राहीम रईसी रिज़वानुल्लाह अलैह का न्यायपालिका के पदों पर अच्छा रिकार्ड रहा है, और अपने इन सभी प्यारे शहीदों को याद करते हैं, अल्लाह उनके दर्जे बुलंद करे और उनकी मेहनत का उन्हें सवाब दे। मैं न्यायपालिका में काम करने वालों का चाहे वो बड़े अधिकारी हों, जज हों, चाहे एडमिनिस्ट्रेशन में काम करने वाले हों, उन सब का दिल की गहरायी से शुक्रिया अदा करता हूँ, वो सब मेहनत कर रहे हैं। जैसा कि जनाब मोहसिनी ने फ़रमाया और मुझे भी इसकी जानकारी है, ख़ुदा के शुक्र से न्यायपालिका में अच्छे काम किये जा रहे हैं, आप सब की मेहनतों का बहुत बहुत शुक्रिया। ख़ास तौर पर ख़ुद न्यायपालिका के प्रमुख साहब का शुक्रिया अदा करता हूँ, विभिन्न बैठकों में हम न्यायपालिका में होने वाले कामों के बारे में इनकी ज़बानी बहुत कुछ सुनते रहते हैं, कुछ बातें बताते भी हैं, रिपोर्टें भी हम देखते हैं, बड़ी मेहनत हो रही है, ख़ुदा का शुक्र है अच्छा काम हो रहा है। मोहसिनी साहब की जो ख़ूबियां हैं उनके अलावा यह भी एक बड़ी ख़ूबी है कि वह न्यायपालिका को अच्छी तरह से पहचानते हैं और इस विभाग में लंबे समय से काम करने की वजह से इस विभाग के विभिन्न हिस्सों और ख़ूबियों से भली भांति परिचित हैं जो एक बहुत अच्छी बात है। बहरहाल हम आप सब का शुक्रिया अदा करते हैं।
कुछ बातें, न्यायपालिका के बारे में कहना चाहेंगे। इन्होंने जो रिपोर्ट पेश की वह अच्छी रिपोर्ट थी, जो काम किये गये हैं वह क़ीमती और अच्छे काम हैं। न्यायपालिका में अस्ल काम, सिर्फ़ हमारे मुल्क में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में, न्याय के आधार पर जनता की समस्याओं का समाधान करना है, यह एक काम है, और दूसरा काम, क़ानून के उल्लंघन को रोकना है। न्यायपालिका की बुनियाद यही है। इस लिए आप सब देखते हैं कि हमारे देश में न्यायपालिका को शुरू से ही “न्यायपालिका” और “इंसाफ़ फैलाने वाला विभाग” कहा जाता रहा है। न्यायपालिका में अस्ल मुद्दा, “इंसाफ” का है, यह काम की बुनियाद है। सब से पहले सारा ध्यान जनता के मध्य होने वाले विवादों और उन पर होने वाले ज़ुल्म के सिलसिले में इंसाफ़ पर होना चाहिए। यही जो उन्होंने ढेर सारे केसेज़ की बात की है तो इससे ज़ाहिर है कि इतने लोगों के साथ ज़्यादती हुई है, तो फिर इन सब मामलों में इंसाफ़ पर बहुत ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।
इस्लाम में, ख़ुदा के शुक्र से आप सब को ख़ुद ही पता है, मालूम है, न्याय बहुत अहम चीज़ है और इस्लामी शिक्षाओं में, क़ुरआने मजीद में, नहजुल बलाग़ा में, रवायतों में, क़ुरआने मजीद की आयतों में इस पर बहुत ज़ोर दिया गया है। जैसे “और अगर फ़ैसला करो तो फिर उनके बीच इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करो”। (2) दूसरी जगह कहा गया हैः “और जब कुछ कहो तो इंसाफ़ से कहो” (3) एक और जगह पर कहा गया हैः “और अल्लाह इंसाफ़ करने का हुक्म देता है”। (4) एक और जगह परः “कह दो कि मेरे परवरदिगार ने मुझे इंसाफ़ करने का हुक्म दिया है”। (5) इसी तरह एक और जगह पर कहा गया हैः “और मुझे तुम्हारे बीच इंसाफ़ करने का हुक्म दिया गया है” (6) एक और जगह हैः “इंसाफ़ क़ायम करने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बनो भले ही वह ख़ुद तुम्हारे या तुम्हारे मां बाप या रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ क्यों न हो”। (7) एक और जगह पर कहा गया हैः “और लोगों की तरफ़ से बुरा भला कहे जाने की वजह से तुम इंसाफ़ करने से दूर न हो जाओ”।(8) और इसी तरह की बहुत सी आयतें हैं। ध्रुव न्याय है, यानी जिस तरह से क़ुरआने मजीद और दूसरे इस्लामी दस्तावेज़ों में न्याय पर ज़ोर दिया गया है उस तरह का ज़ोर बहुत कम विषयों पर दिया गया है। इसका नतीजा यह होना चाहिए कि न्यायपालिका, बहादुरी के साथ न्याय स्थापित करने की कोशिश पर पूरा ध्यान दे। यक़ीनी तौर पर जैसा कि हमने कहा, यह आसान काम नहीं है, इसके लिए साहस की ज़रूरत होती है। इस काम को साहस के साथ किये जाने की ज़रूरत है और बिना किसी संकोच के इंसाफ़ करना चाहिए, निष्पक्ष व न्यायपूर्ण फ़ैसला। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ नबंर 22 में कहा गया हैः मैं इस तरह से काम करूं कि “मेरा दुश्मन मेरे ज़ुल्म से महफ़ूज़ रहे और मेरा दोस्त, लगाव और इच्छाओं के चलते पक्षपात की उम्मीद न रखे”। (9) न्यायपालिका, जजों और अधिकारियों को इस तरह से काम करना चाहिए कि दुश्मन भी ख़ुद को ज़ुल्म से सुरक्षित समझे और दोस्त और रिश्तेदार तरफ़दारी की उम्मीद न रखें। अगर यह हो जाए तो उस दशा में समाज में न्यायिक व मानसिक मनोवैज्ञानिक का माहौल क़ायम हो जाएगा यानी जनता को सुरक्षा का आभास होगा। यह बहुत अहम बात है कि जनता को यह लगे कि न्यायपालिका के होते हुए उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा और अगर किसी ज़ुल्म की शिकायत लेकर वो न्यायपालिका गये तो उनके साथ न्याय किया जाएगा। अस्ल बात यह है, इस तरह के इसांफ़ को स्थापित करने के लिए जो दो तीन बातें मैंने लिख रखी हैं वह बताता हूँ।
सब से पहली बात यह है कि न्यायपालिका को योजना के साथ काम करना चाहिए, प्लान के साथ आगे बढ़ना चाहिए। ख़ुदा के शुक्र से जैसा कि ज़िक्र किया गया, अच्छी योजनाएं बनायी गयी हैं। बदलाव के दस्तावेज़ जो हैं, चाहे वो पहले तैयार किये गये हों या फिर वह दस्तावेज़ जिन पर बाद में पुनर्विचार किया गया और अभी कुछ दिन पहले मैंने सुना कि इस दस्तावेज़ को अपडेट कर दिया गया है, जिन लोगों ने देखा है और जिन्हें जानकारी है, वे बताते हैं। तो दस्तावेज़ अच्छे हैं, लेकिन मुझे चिंता जिस बात की है वह यह है कि यह अच्छे दस्तावेज़, न्यायपालिका की अस्ल ख़ूबियों और मानकों में सुधार न कर पाएं।
यह दस्तावेज़ बहुत अच्छे हैं। अब मैं न्यायपालिका के इन कुछ मुख्य मानकों का उल्लेख करता हूँ कि जिन्हें मैं ख़ुद न्यायपालिका की तरफ़ से भेजी गयी रिपोर्ट के हवाले से बता रहा हूँ। मिसाल के तौर पर मुक़द्दमे की सुनवाई में जो वक़्त लगता है, ज़ाहिर है यह एक मुख्य इंडीकेटर है, सुनवाई का समय कम होना चाहिए।
दूसरी बात निचली अदालत के फ़ैसले को ख़त्म करना है, मैंने बार बार यह बात कही है कि यह जो होता है कि अदालत लगती है, सुनवाई करने वाले जज, केस सुनते हैं और फिर फ़ैसला सुनाते हैं लेकिन उस के ख़िलाफ़ जब अपील दाख़िल होती है तो अदालत निचली अदालत के फ़ैसले को बदल देती है, इससे यह पता चलता है कि निचली अदालत का फ़ैसला, कमज़ोर बुनियादों पर था। इतनी मेहनत की गयी, पैसा, वक़्त श्रम बल सब लगाया गया, लेकिन जो नतीजा निकला वह सही नहीं था। निचली अदालतों के फ़ैसले में बदलाव का सिलसिला कम होना चाहिए, लेकिन नहीं हुआ हालांकि जो दस्तावेज़ तैयार किये गये एजेंडा जो बनाया गया था वह सही था।
या जो रिपोर्टें और शिकायतें जनरल इन्स्पेक्शन आफ़िस तक पहुंचती हैं, उनकी संख्या बढ़ी है, कम नहीं हुई है। यानी इस तरह के मानक हैं। आप को दस्तावेज़ कुछ इस तरह से तैयार करना चाहिए, कुछ इस तरह से उसे लागू करना चाहिए कि इन मानकों में उसका असर साफ़ तौर पर देखा जा सके। अब यह देखना होगा कि समस्या दस्तावेज़ में थी या नहीं। दस्तावेज़ ठीक था, उसे लागू करने की योजना सही नहीं थी, इसका जायज़ा लें। मेरी नज़र में यह अहम कामों में से है जिसके लिए न्यायपालिका प्रमुख को ख़ुद कुछ लोगों को इस बात पर लगाना चाहिए ताकि वो पता लगांए कि समस्या कहां है? क्या समस्या यह है कि दस्तावेज़ को लागू करना मुश्किल है या फिर लागू करने की शैली में समस्या है।
एक और चीज़ जो न्यायपालिका को अपनी सही पोज़ीशन तक पहुंचने से रोकती है वह मुक़द्दमों की भारी संख्या है कि जिसकी वजह से जज पर दबाव रहता है। जजों के फ़ैसलों में कमज़ोरी की एक वजह यह भी है कि जज पर दबाव होता है, समय कम होता है, कभी कभी यह जो महीने के आख़िर में काम की रिपोर्ट भेजी जाती है उसका भी असर होता है, इन सब की वजह से जो फ़ैसले सुनाए जाते हैं वह ठोस और मज़बूत नहीं हो पाते। केस की जो इतनी संख्या है उसके लिए कोई बुनियादी उपाय सोचना पड़ेगा और यह भी आप लोगों का ही काम है।
एक और काम जो मेरी नज़र में न्यायपालिका में ज़रूर किया जाना चाहिए वह जजों के ज्ञान को बढ़ाना है। हमारे यहां न्यायपालिका में ख़ुदा के शुक्र से बेहद पढ़े लिखे जजों की कमी नहीं है लेकिन ज़ाहिर सी बात है कि न्यायपालिका बहुत बड़ी है। सभी जजों के जुडीशियल साइंसेज़ से संबंधित ज्ञान में वृद्धि होनी चाहिए। मैंने सुना है जो जुडीशियल साइंसेज़ एंड एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज़ युनिवर्सिटी है वह इसके लिए काफ़ी लाभदायक है, इससे जितना हो सके फ़ायदा उठाया जाना चाहिए। जुडीशियल साइंसेज़ में अगर अच्छी पकड़ होगी तो फिर बहुत सी समस्याएं कम हो जाएंगी, यानि जुडीशियल साइंसेज़ पर अच्छी पकड़ की वजह से केस की एक तो अच्छी तरह सुनवाई होगी और उसके अलावा इस काम में तेज़ी भी आएगी।
एक और काम जो ज़रूरी है वह, बहरहाल ख़ुदा का शुक्र है कि न्यायपालिका के जजों और वहां काम करने वालों में कि जिनकी तादाद बहुत बड़ी है, बड़ा विभाग है, और बहुत ही अच्छे अधिकारी और जज उसमें काम करते हैं, ऐसे लोग भी हैं जो सच में जेहादी स्तर पर काम करते हैं, तो जो लोग जेहादी स्तर पर काम करते हैं उनके हाथ मज़बूत किये जाने चाहिए। बहरहाल मेरी नज़र में सार यह है कि कुद इस तरह से काम किया जाना चाहिए कि जनमत, न्यायपालिका को न्याय का घर समझे, न्याय का केन्द्र जाने और न्यायपालिका में बिना किसी लाग लपेट के इंसाफ़ किया जाए यानी मुद्दा यह है। यक़ीनी तौर पर इस अस्ल मुद्दे के अलावा जो दूसरे काम किये जाते हैं वह भी क़ीमती हैं, जिन कामों का ज़िक्र किया गया वह सब अहम हैं लेकिन अस्ल काम यह है कि अदालत में सुनवाई, न्याय के साथ की जाए, न्यायालय में सुनवाई का नतीजा इंसाफ़ हो, वह इंसाफ़ जिसके बारे में सब को यह लगे कि यह इंसाफ़ है। यहां तक कि वह भी यही समझे जिसके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया गया हो। यक़ीनी तौर पर वह नाराज़ होगा, हो सकता है कि फ़ैसले पर एतेराज़ भी करे लेकिन अपने दिल में यह ज़रूर महसूस करेगा कि न्याय किया गया है।
एक और नसीहत जो है वह मैं पहले भी कर चुका हूँ (10) और वह यह कि उन मामलों की सुनवाई में तेज़ी की जाए जिनमें किसी को हिरासत में लिया गया हो या जेल में डाला गया हो। कभी कभी हमारे कार्यालय के जनसंपर्क विभाग में ऐसी रिपोर्टें पहुंचती हैं जिनसे चिंता हो जाती है, कोई जेल में है, उसका केस अदालत में चल रहा है, लेकिन उसके मामले की सुनवाई में वह तेज़ी कहीं नज़र नहीं आती। ज़ाहिर सी बात है कि यह व्यक्ति जो जेल में है वह परेशान है, इस लिए उसका मामला जल्दी साफ़ होना चाहिए। यह बहुत ही अहम बात है। या कुछ लोग ऐसे होते हैं जेल में जिनकी समस्या का समाधान ही नहीं हो सकता, किसी को किसी लेन देन के की वजह से जेल में डाल दिया गया है और चूंकि जेल में होने की वजह से वह अपना बक़ाया चुकता नहीं कर सकता इस लिए उस पर क़र्ज़ का बोझ हर दिन बढ़ता जाता है और इसी बुनियाद पर उसकी क़ैद की अवधि भी बढ़ती जाती है। इस तरह के कुछ लोगों की यह हालत हो जाती है कि उसे पूरी उम्र जेल में ही बितानी पड़ सकती है और क़र्ज़ अदा भी नहीं हो पाता, इस तरह की समस्या का कोई हल तलाश करना चाहिए। कभी मैंने न्यायपालिका से कहा था कि आप लोग यहां तक कि ख़ुम्स व ज़कात जैसी शरई रक़म को इस्तेमाल करके इस तरह के क़र्ज़ उतार सकती है, मैं शरई रक़म में से “सह्मे इमाम” को ख़र्च करने के मामले में बहुत सख़्त हूँ। यानी अगर कोई मस्जिद वग़ैरा बनाना चाहता है तो मैं “सह्मे इमाम” को उसे बनाने के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देता लेकिन मेरा यह मानना है कि इस रक़म को इस तरह के मामलों में इस्तेमाल किया जा सकता है, समस्या का निवारण होना चाहिए, इसका कोई समाधान निकलना चाहिए।
एक और सिफ़ारिश जो मैं करना चाहता हूँ वह यह है कि मैंने सुना है कि कुछ सम्मानीय जज, अपने फ़ैसलों में मानवाधिकार के पश्चिमी आधारों का रेफ़रेंस देते हैं! यह ग़लत है। वह सही बुनियाद नहीं है, अब पहली बात तो यह कि वो लोग ख़ुद भी इन बुनियादों पर अमल नहीं करते उसे छोड़ दें। इसका खुला सुबूत आज पूरी दुनिया के सामने है कि पश्चिम ख़ुद मानवाधिकार के अपने सिद्धांतों पर अमल नहीं करता। लेकिन बात यह है कि वह उसूल व बुनियाद ख़ुद भी ग़लत हैं, हमारा जज, अपने फ़ैसले में मुल्क के क़ानूनों के अलावा किसी और उसूल या सिद्धांत को बुनियाद नहीं बना सकता, मुल्क के क़ानून के हिसाब से काम होना चाहिए।
आख़िरी सिफ़ारिश इन दौरों के बारे में है जो न्यायपालिका प्रमुख करते हैं (11) यह सिलसिला जारी रहना चाहिए और यह लाभदायक और ज़रूरी काम है, यह इस बात का सुबूत है कि न्यायपालिका जनता से जुड़ी है, फ़ील्ड में ख़ुद जाने से कमियों का पता चलता है, यह सब बहुत अहम चीज़ें हैं, बस इस बात पर ध्यान देना चाहिए जो इस क़िस्म के दौरों से हाथ आती है, जन संपर्क के दौरान जो नतीजा हाथ आता है उस पर काम होना चाहिए और उस काम को पूरा किया जाना चाहिए। मिसाल के तौर पर जब न्यायपालिका के प्रमुख कस्टम्ज़ का दौरा करते हैं या किसी भी अन्य विभाग का, तो जनता को उम्मीद हो जाती है कि अब तो न्यायपालिक प्रमुख आ गये हैं, अब वह कमी को तलाश करके उसे दूर कर देंगे और समस्या ख़त्म हो जाएगी। लोगों को इस तरह की उम्मीद हो जाती है। अब अगर वह कमी दूर न हुई तो यह आशा, निराशा में बदल जाती है और पहले से भी ज़्यादा बुरा हाल हो जाता है। यानी जो मुद्दे सामने आएं उन पर काम होना चाहिए और यक़ीनी तौर इंशाअल्लाह इस पर काम होगा। यह तो न्यायपालिका के बारे में हमारी कुछ बातें थीं।
एक बात चुनाव के बारे में भी कहता चलूं। जी ख़ुदा के शुक्र से टीवी पर इस बारे में अच्छा काम हो रहा है और टीवी के ज़रिए जनता को विभिन्न उम्मीदवारों के रुख़ और नज़रिये से अवगत कराया जा रहा है। मेरी सिफ़ारिश यह है कि राष्ट्रपति पद के यह उम्मीदवार जो टीवी पर एक दूसरे से बहस करते हैं या यह लोग जो जनता के बीच जो बयान देते हैं, जो बातें करते हैं वह इस तरह न हों कि अपने प्रतिस्पर्धी को हराने के लिए ऐसी बात बोल दी जिससे दुश्मन ख़ुश हो जाए, दुश्मन को जो पसंद है वह बात न की जाए, यह बहुत अहम बात है। हो सकता है कि कुछ ऐसी बातें की जाएं, कुछ बातें हों जिनसे इस्लामी जुम्हूरिया का दुश्मन ख़ुश हो, यह सही नहीं है। जो बातें की जाएं वह ऐसी हों कि मुल्क के, राष्ट्र के, जनता के दुश्मनों को ख़ुशी न हो। हम यह मानते हैं कि यह सभी उम्मीदवार ईरान से, इस्लामी जम्हूरिया से मुहब्बत करते हैं, हम यही तो मानते हैं, वह इस व्यवस्था और हमारे देश के प्रमुख बनना चाहते हैं, जनता के लिए काम करना चाहते हैं। इस लिए उन्हें ऐसी बात करना चाहिए जिससे दुश्मन ख़ुश न हो।
अल्लाह से दुआ है कि वह हमारी न्यायपालिका को उस जगह पर उस पोज़ीशन से हर दिन ज़्यादा क़रीब करेगा जिसका ज़िक्र न्यायपालिका प्रमुख ने किया है और फिर उस पोज़ीशन पर पहुंच भी जाएगी, इंशाअल्लाह, अल्लाह मदद करेगा और इस बात की तौफ़ीक़ देगा कि हमारे मुल्क के सभी मामले अल्लाह की मर्ज़ी के हिसाब से आगे बढ़ेंगे। दुआ है कि शहीदों की पाकीज़ा रूह आप सब से ख़ुश रहे, महान इमाम ख़ुमैनी की रूह हमसे ख़ुश रहे और आप सब को अल्लाह ज़्यादा से ज़्यादा तौफ़ीक़ दे।
वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू