फ़िलिस्तीनियों के सपोर्ट में यमन की कोशिशें लगातार जारी हैं। इस संबंध में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की वेबसाइट KHAMENEI.IR ने तेहरान में यमन के राजदूत जनाब इब्राहीम मोहम्मद अद्दैलमी से बातचीत की है।

इस इंटरव्यू के मुख्य बिंदु संक्षेप में पेश किए जा रहे हैं:

यमन की ओर से फ़िलिस्तीनी अवाम और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज का कई पहलुओं से सपोर्ट

यह सपोर्ट सिर्फ़ जंग के मैदान तक सीमित नहीं है। हम अपने नैतिक, धार्मिक और मानवीय फ़रीज़े के तहत ग़ज़ा के सपोर्ट में उठ खड़े हुए हैं, क्योंकि हम फ़िलिस्तीनी क़ौम के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों के इतने बड़े पैमाने पर भयानक अपराध देखकर हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकते, इसलिए अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन शुरू होने के साथ ही हमारा स्पष्ट स्टैंड, फ़िलिस्तीनियों का सपोर्ट करना है। यमन में फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में होने वाले प्रदर्शन और इसी तरह यहां के राजनैतिक दलों और धड़ों की ओर से जारी होने वाले बयान, यमनी अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों की ओर से अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन के प्रति भरपूर सपोर्ट के साक्ष्य हैं।

यमनी क़ौम ने फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में उठ खड़े होने को अपना फ़रीज़ा समझा

अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन के बाद, जो फ़िलिस्तीन के इस्लामी रेज़िस्टेंस फ़्रंट की बहुत बड़ी कामयाबी थी,  पश्चिमी मुल्कों के खुले, घोषित और असीमित सपोर्ट के साए में ज़ायोनी शासन की ओर से ग़ज़ा पर निर्दयी व बर्बर हमले शुरू हुए। ग़ज़ा में ज़ायोनियों के अपराधों ने फ़िलिस्तीन में इस्लामी जगत के सपूतों के ख़िलाफ़ उनकी साज़िश के स्वरूप को पूरी तरह ज़ाहिर कर दिया। ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के फ़ौजी हमलों और उसके भयानक अपराधों में अब तक दसियों हज़ार फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं। ये जुर्म, बहुत से पश्चिमी मुल्कों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ख़ामोशी बल्कि मदद से और बड़े ही अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि अरब और इस्लामी मुल्कों की भी ख़ामोशी और ज़ायोनी शासन से उनके सहयोग के साए में अंजाम पा रहे हैं। इन हालात में यमनी क़ौम ने फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में उठ खड़े होने को अपना फ़रीज़ा समझा।

अमरीकी और ज़ायोनी प्रोडक्ट्स का बहिष्कार

यमन की संसद और सरकार ने अमरीकी और ज़ायोनी प्रोडक्ट्स के बॉयकाट और यमन में उनके प्रवेश पर पाबंदी के सिलसिले में क़ानून पास किए। इसी तरह अमरीका की उन व्यापारिक कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए जिन्हें पहले यमन के उद्योग व व्यापार मंत्रालय से लाइसेंस दिया गया था। इन कार्यवाहियों के बाद, यमन के लोगों ने एक बड़ा मीडिया कैम्पेन शुरू किया और फ़िलिस्तीनियों की मज़लूमियत को चित्रित करके उनके बलिदान, कारनामों और जीत को सराहा। इन सारी कार्यवाहियों के बाद, यमन के राष्ट्रपति महदी अलमुश्शात ने अंसारुल्लाह आंदोलन के नेता अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अलहूसी के मुबारक निर्देश पर, जिन्होंने हमेशा ही फ़िलिस्तीनी क़ौम के सपोर्ट में खड़े होने पार ताकीद की है, यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में फ़ौजी ऑप्रेशन शुरू करने का हुक्म दिया।

यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की ओर से ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ ऑप्रेशन

यमनी फ़ोर्सेज़ ने अपना ऑप्रेशन बंदरगाहों को मीज़ाइल और ड्रोन से निशाना बनाकर शुरू किया। इसके बाद यह तय पाया कि ज़ायोनी शसान के समुद्री जहाज़ों को मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन की तरफ़ जाने से रोकने के लिए फ़ौजी ऑप्रेशन शुरू किया जाए। ग़ज़ा के अवाम के ख़िलाफ़ हमले और उनकी नाकाबंदी जारी थी और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकते थे। ऐसी स्थिति में जब फ़िलिस्तीन में हमारे भाई, हर तरह की खाने पीने की चीज़ों और दवाओं तक से वंचित हैं, हम ज़ायोनी शासन तक वस्तुओं और चीज़ों की सप्लाई की इजाज़त नहीं दे सकते।

हमारा मानना है कि हमने जो फ़ैसले किए हैं उनके ज़रिए हम सऊदी अरब के जद्दा शहर में इस्लामी सहयोग संगठन की कॉन्फ़्रेंस में मंज़ूर किए गए फ़ैसलों पर अमल कर रहे हैं। इस कॉन्फ़्रेंस में मंज़ूर किए गए फ़ैसलों में ग़ज़ा की नाकाबंदी ख़त्म किए जाने और इस इलाक़े में खाने की चीज़ों और दवाएं भेजे जाने पर बल दिया गया है, इसलिए हमारे ख़याल में ज़ायोनी शासन पर यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ का दबाव, इस शासन को आख़िरकार ग़ज़ा में मानवीय मदद भेजे जाने की इजाज़त देने पर मजबूर कर देगा। यह काम, यमन के ऑप्रेशन के बाद शुरू हो गया और आपने देखा कि चाहे आंशिक तौर पर ही सही, करम अबू सालिम और रफ़ह पास से ग़ज़ा तक कुछ मानवीय मदद भेजने की इजाज़त दी गयी।

इस्राईली समुद्री जहाज़ों पर यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के हमले

यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने एक और क़दम उठाया और वो उन समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाने का था जो ज़ायोनी शासन की ओर जा रहे थे। इस बार अतिग्रहित फ़िलिस्तीन की ओर बढ़ने वाले न सिर्फ़ इस्राईल के समुद्री जहाज़ों को बल्कि इस्राईल की ओर जाने वाले सभी समुद्री जहाज़, यमनी फ़ोर्सेज़ के निशाने पर आ गए। यमनी फ़ौज की ओर से ज़ायोनी शासन की आर्थिक नाकाबंदी में तेज़ी और अतिग्रहित इलाक़ों तक इस्राईली और ग़ैर इस्राईली कंपनियों के प्रोडक्ट्स की सप्लाई पर रोक की वजह से अमरीकी दुश्मन ने एक मनहूस अलायंस बनाने का फ़ैसला किया। रेड सी में काम करने वाला कोई भी मुल्क इस अलायंस में शामिल नहीं हुआ।

ज़ायोनी हितों के ख़िलाफ़ फ़ौजी ऑप्रेशन का दूसरा चरण शुरू करने की वजह

पहले फ़ौजी चरण की कुछ मुद्दत के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इस्राईली समुद्री जहाज़ों की नाकाबंदी काफ़ी नहीं है। इसकी वजह यह है कि हमने देखा कि इस्राईल ने अपने लिए ज़रूरी चीज़ों और प्रोडक्ट्स को लाने के लिए दूसरी कंपनियों का सहारा लिया ताकि यमन की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की कार्यवाहियों को नाकाम बना सके। इसलिए हमें इस चाल को नाकाम बनाने के लिए कोई फ़ैसला करना था। यही वजह थी कि हमने फ़ैसला किया कि हम हर उस समुद्री जहाज़ को निशाना बनाएंगे जो अतिग्रहित फ़िलिस्तीन की ओर जा रहा होगा, क्योंकि उन जहाज़ों पर निश्चित तौर पर ज़ायोनियों के लिए चीज़ें या फ़ौजी साज़ो सामान लदा होगा।

 

अपने फ़ैसले की क़ीमत ख़ुशी से अदा कर रहे हैं

अगरचे ज़ायोनी समुद्री जहाज़ों या इस्राईल की ओर जाने वाले समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाने का हमारा फ़ैसला, हमारे फ़रीज़े की भावना के तहत था लेकिन हम यह भी जानते थे कि हमें इस फ़ैसले की क़ीमत भी चुकानी पड़ेगी और हम अपने इस फ़ैसले की क़ीमत ख़ुशी से अदा कर रहे हैं। हमने फ़िलिस्तीन की रक्षा और अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन के सपोर्ट को, "आप अकेले नहीं हैं" नारे के साथ शुरू किया है। हमने फ़ैसला किया है कि फ़िलिस्तीनियों की मुसीबतें अब और जारी नहीं रहेंगी। हमने फ़ैसला किया है कि हम उनके साथ रहेंगे और उनके कांधे से कांधा मिलाकर मैदान में उतरेंगे।

 

ग़ज़ा के सिलसिले में इस्लामी मुल्कों का फ़रीज़ा

मुसलमान क़ौमों के कंधों पर बड़ी भारी ज़िम्मेदारी है जिसे उन्हें पूरा करना ही होगा क्योंकि उनकी ओर से पीछे हटना और उदासीनता किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। इसकी वजह यह है कि क़ौमों के पास जो संसाधन हैं, वो बहुत ज़्यादा और विविधतापूर्ण हैं। मिसाल के तौर पर अमरीकी और ज़ायोनी चीज़ों का बॉयकाट, प्रदर्शन और रैलियां और इसी तरह अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में जो कुछ हो रहा है उस पर ग़म व ग़ुस्से का इज़हार, उन क़दमों में शामिल हैं जो क़ौमें अपनी सरकारों पर दबाव डालने के लिए उठा सकती हैं।

ज़ायोनी शासन की जीवन की नसों को काट देने पर आयतुल्लाह ख़ामेनेई की ताकीद का मतलब

जब इमाम ख़ामेनेई ज़ायोनी शासन की जीवन की नसों को काटने पर बल देते हैं तो वो पूरी तरह से केन्द्रीय बिन्दु पर उंगली रखते हैं, इस मानी में कि वो इशारा करते हैं कि मुसलमान क़ौमों और इस्लामी व अरब मुल्कों के पीछे हटने, उदासीनता दिखाने और इसी तरह उनकी ओर से अपनी ज़िम्मेदारियों को अदा न किये जाने के नतीजे में फ़िलिस्तीनी क़ौम के ख़िलाफ़ ज़ायोनी हमलों का सिलसिला लंबा खिंचेगा। बहरहाल इस मुबारक जंग में मुख़्तलिफ़ मोर्चे, अपने फ़रीज़े पर अमल के लिए सरगर्म हो गए और वो अपनी पूरी ताक़त के साथ इस जंग में शरीक हैं।

अहम सवाल

एक सवाल पूछना चाहता हूं और वो यह है कि दूसरे लोग कहाँ हैं? और वो क्यों अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल नहीं करते? हमारा मानना है कि यमन, लेबनान, इराक़, सीरिया और इन सब की पीठ पर इस्लामी गणराज्य ईरान का मोर्चा, मोर्चों के पूर्ण समन्वय के नारे के साथ फ़िलिस्तीन के सपोर्ट में बहुत सारे काम कर रहा है ताकि फ़िलिस्तीन, ज़ायोनी दुश्मन के मुक़ाबेल में अकेला न रहे। मैं पूरे यक़ीन से कहता हूं कि रेज़िस्टेंस के मोर्चे के मुख़्तलिफ़ हिस्सों और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज ने ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ बहुत से क़दम उठाए हैं और वो इस शासन के लक्ष्यों के ख़िलाफ़ डट गए हैं।