इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 30 जनवरी 2024 को कारख़ानों के मालिकों और व्यवसियों से मुलाक़ात में आर्थिक विकास में प्राइवेट सेक्टर के योगदान के महत्व के बारे में बात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने प्राइवेट सेक्टर और सरकार को इसी संदर्भ में कुछ निर्देश दिए।
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल पर।
मैं उन सब लोगों का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने यहां पर हमारे और दूसरे लोगों के लिए फ़ायदेमंद बातें बयान की हैं। कल हमने जो एग्ज़िबिशन (2) देखी वह बहुत ज़्यादा हौसला बढ़ाने वाली और अच्छी प्रदर्शनी थी। मेरे ख़्याल से हम कल की इस एग्ज़िबिशन को अपने मुल्क की साइंस व टेक्नालॉजी के मैदान की ताक़त व तरक़्क़ी की प्रदर्शनी के तौर पर पेश कर सकते हैं। बस मुझे इस बात का अफ़सोस है कि इस तरह की तरक़्क़ी की जानकारी जनता तक नहीं पहुंचायी गयी और मुझे यक़ीन है कि मुल्क के अक्सर लोगों को, इन कोशिशों के बारे में, इन कामयाबियों के बारे में, और हमारे एक्स्पर्ट्स के हाथों से किये जाने वाले इन अविष्कारों के बारे में जानकारी नहीं है। कल मुझे कई एलीट नौजवानों से मिलने का मौक़ा मिला, मतलब उनकी बात चीत के अंदाज़ पर मैंने ध्यान दिया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि सच में वो सही अर्थों में प्रतिभावान हैं। आज भी सौभाग्य से जिन लोगों ने तक़रीर की उनमें से कुछ नौजवान थे और वह सब ख़ुदा के शुक्र से एलीट्स हैं। मेरे ख़्याल में यह शुक्र का मौक़ा है और हमें ख़ुदा का शुक्र अदा करना चाहिए। यह सारी नेमतें ख़ुदा की तरफ़ से हैः “तुम्हारे पास जो भी नेमत है वह अल्लाह की तरफ़ से है”। (3) यह सब अल्लाह की नेमतें हैं, अल्लाह की तरफ़ से दी जानी वाली तौफ़ीक़ है, जो आप को, मुल्क को और ज़ाहिर सी बात है मुल्क के अधिकारियों को मिली है इसकी क़द्र की जानी चाहिए और उसके हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए।
यहां पर जो हम से कुछ मांगें की गयी हैं उनमें से कुछ को मैंने यहां नोट किया है ताकि सरकार में हमारे साथी, हमारे आफ़िस के अधिकारियों के साथ मिल कर एक कमेटी बनाएं और इस की पैरवी करें। कई मल्टी डायमेंशनल इंडस्ट्रियल काम्पलेक्स की जो बात कही गयी है वह अहम है, बजट का मुद्दा और बाद में जो मीडियम और छोटी कंपनियों के लिए सुझाव दिये गये वह सब सही बातें हैं और अहम मुद्दे हैं कि जिनकी पैरवी की जानी चाहिए, खेती बाड़ी के लिए जो माडर्न सिंचाई की बात की गयी उससे भी पानी की बचत भी होगी, फ़सल ज़्यादा होगी और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। यह वो चीज़ें हैं जो हमारे लिए बहुत अहम हैं, यह वो चीज़ें हैं जो हमारे लिए ज़रूरी हैं। मैं सरकार में अपने साथियों से मांग करता हूं कि वे इन सब मुद्दों की पैरवी करें, यानि इन मुद्दों के लिए सच में कमेटी बनाएं, बैठ कर सोच विचार करें और ख़ुद इन लोगों से सुझाव मांगे और काम करें, आगे बढ़ें। यहां मैं कुछ बातें भी करना चाहूंगा। जो सच्चाई में साफ़ तौर पर देख रहा हूं वह यह है कि हमारे देश में बड़े बड़े कारख़ानों ने पिछले बरसों में असाधारण रूप से तरक़्क़ी की है। प्राइवेट सेक्टर में जो यह तरक़्क़ी हुई है, यह जो मैंने बड़े बड़े कारख़ानों की बात की है तो उससे मेरा मतलब प्राइवेट सेक्टर था, वह बहुत अर्थपूर्ण है, इससे यह पता चलता है कि हमारे मुल्क में एक ताक़तवर प्राइवेट सेक्टर मौजूद है और यह बहुत अहम बात है, क्यों? क्योंकि यह तरक़्क़ी, यह काम और जो कुछ हुआ है सब प्रतिबंधों के दौर में हुआ है और इस दौरान, हालांकि कुछ बरसों में हमारी सरकारों की ओर से कम काम हुआ है, 2010 का दशक, तरक़्क़ी के लिहाज़ से हमारे लिए अच्छा नहीं रहा है, लेकिन इसके बावजूद यह सब काम हुए हैं। इससे यह पता चलता है कि मौजूदा हालात में हमारा प्राइवेट सेक्टर हमारे मुल्क को उस पोज़ीशन में पहुंचा सकता है जो सातवीं 5 वर्षीय विकास योजना का मक़सद है यानि मुल्क को 8 फ़ीसद आर्थिक तरक़्क़ी तक पहुंचा दे। यानी यह जो हम देख रहे हैं और जो कुछ हो रहा है उससे सच में हमारे दिल में उम्मीद पैदा होती है कि हमने जितनी तरक़्क़ी सोची है उतनी कर सकते हैं।
एक बुनियादी चीज़ जो मैंने एग्ज़िबिशन और यहां इन लोगों की बातों में देखी वह अविष्कार की बात थी। अविष्कार हर किसी के बस की बात नहीं है,एलीट्स अविष्कार कर सकते हैं और हमारे मुल्क में यह बड़ी दौलत मौजूद है। अब हमारे इलाक़े के कुछ मुल्क यह दावा करते हैं कि मिसाल के तौर पर वह फ़ुलां सन में, दुनिया की फ़ुलां नंबर की अर्थ व्यवस्था बनना चाह रहे हैं! सिर्फ़ पैसे के बल पर दुनिया की रैकिंग में किसी दर्जे पर कोई नहीं पहुंच सकता। उसके लिए श्रम बल चाहिए, आप के यहां काम करने वाले कहां हैं? नहीं हैं। जो चीज़ कठिन राहों पर आगे बढ़ा सकती है और मुल्क को ऊपर ले जा सकती है उसमें सब से पहले एलीट्स और योग्य श्रम बल है, इस लिहाज़ से हमारे पास बड़ी दौलत है। जहां तक मुझे मालूम है और मेरे पास रिपोर्टस हैं उनके आधार पर हमारे आस पास बहुत कम मुल्क हैं जिनके पास हमारे जितनी यह दौलत और नेमत मौजूद हो। हमें यह यक़ीन रखना चाहिए कि हमारे पास जो यह विशाल संभावनाएं हैं मेरा आशय विशाल मानव बल है, वह मुल्क को वर्तमान से कई गुना ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा सकता है और मुल्क के बड़े बड़े मुद्दों में समस्याओं का समाधान तलाश कर सकता है।
मुल्क की कुछ बड़ी समस्याएं हैं जिनके बड़े होने पर हम ध्यान नहीं देते। हमारे मुल्क में पानी का मुद्दा एक बड़ा मसला है। मुल्क में पानी की कमी एक बुनियादी समस्या है। ईंधन का मामला भी ऐसा ही है, हमारे मुल्क में आज सही अर्थों में ईंधन के मामले में समस्याएं हैं। हम तेल पैदा करने वाले मुल्क हैं हमारे पास इतनी मात्रा में तेल मौजूद है तब भी हम पेट्रोल इम्पोर्ट करें? इसका क्या मतलब है? इसका यह अर्थ है कि हम एक बड़े मुद्दे में समस्या से जूझ रहे हैं। बिजली का मुद्दा भी इसी तरह का है। बहुत से मुद्दे हैं जो दर अस्ल मुल्क की बड़ी समस्याओं में शामिल हैं और इन मामलों में जो कमियां हैं उनसे मुल्क को बहुत सी परेशानियों का सामना है और इससे बहुत से बड़े बड़े काम नहीं हो पाते। हमारा प्राइवेट सेक्टर इस सिलसिले में सही अर्थों में हमारी मदद कर सकता है। जैसा कि आप लोगों ने अभी सुना। यह कि प्राइवेट सेक्टर आगे बढ़े और मिसाल के तौर पर एक काम्पलेक्स में 1800 मेगावॉट सौर उर्जा पैदा करे। जी यह बहुत अच्छी चीज़ है। प्राइवेट सेक्टर से कोई आगे बढ़ता है, ख़ुद ही निवेश करता है, 1800 मेगावॉट बिजली पैदा करता है, यह मुल्क के लिए बहुत अहम बात है। अगर हम इन लोगों का हौसला बढ़ाएं, अगर हम इन लोगों की मदद करें, अगर सही योजना बनायी जाए, तो यक़ीनी तौर पर प्राइवेट सेक्टर इन बड़ी बड़ी योजनाओं में, सुझाव भी दे सकता है और काम करके भी दिखा सकता है। यह हमारी बात मुल्क के ओहदेदारों से और आप सब से भी है जो आर्थिक क्षेत्रों में काम करते हैं।
अब भागीदारी का मैदान बहुत बड़ा है, आप लोगों ने यहां पर कुछ चीज़ों के बारे में सुना है, मैनें भी कल प्रदर्शनी में कुछ ज़्यादा चीज़ें देखी हैं। यहां पर जो आप लोग हैं आप सब अलग अलग मैदानों में काम करते हैं, अगर आप सब में हरेक एक बात कहे तो पता चल जाएगा कि भागीदारी का मैदान कितना बड़ा है। आप लोग बड़ी बड़ी इंडस्ट्री जैसे तेल, जैसे गैस, जैसे स्टील से लेकर मिसाल के तौर पर हैंडीक्राफ़्ट तक इन सभी बड़े मैदानों में जनता की भागीदारी की संभावना है, जनता का पैसा, जनता की सोच, जनता के मज़बूत हाथ और जनता के सक्रिय एलीट्स और पहल करने वाले आगे बढ़ कर काम कर सकते हैं जिसके नतीजे में मुल्क में रोज़गार बढ़ेगा, ग़रीबी कम होगी। लेहाज़ा, यह बड़े बड़े मैदान मौजूद हैं, बस ज़रूरत इस बात की है कि सरकारी मशीनरी, ज़िम्मेदारी का एहसास करे इसी तरह इंडस्ट्री के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को भी ज़िम्मेदारी समझना होगी। दोनों पक्षों लिए यह ज़रूरी है कि वह अपनी अपनी ज़िम्मेदारी समझें यानि दोनों तरफ़ से ज़िम्मेदारी का एहसास हो।
मैंने सरकार की ज़िम्मेदारियों के बारे में जो बातें कहने के लिए नोट की हैं, अस्ल में मैं पहले इस बारे में पूरे ब्योरे के साथ बात कर चुका हूं, वह कारोबार का माहौल बेहतर बनाना है। सब से अहम बात यह है कि सरकार को चाहिए कि वह रुकावटें दूर करे। मैंने पिछले साल इसी बैठक में (4) कुछ चीज़ों का ज़िक्र कारोबार के मैदान में रुकावटों के तौर पर किया था, इस साल जब मैंने इस एक्ज़िबेशन में आर्थिक मैदान में काम करन वालों से बात की, मेरे ख़्याल में कल यहां लगभग 40 स्टाल मौजूद थे, तो उनमें से बहुत से लोगों को शिकायतें थीं और मैंने ग़ौर किया तो उनकी शिकायतें उन्ही मुद्दों के बारे में थीं जिनके बारे में मैं पहले चेतावनी दे चुका हूं! तो इससे पता चलता है कि उन सिफ़ारिशों पर अमल नहीं किया गया, उन पर अमल होना चाहिए, सरकारी ओहदेदारों से आग्रह के साथ यह मेरी मांग है कि इस पर काम करें। यक़ीनी तौर पर सरकार की तरफ़ से मदद ज़रूरी है, सरकार की तरफ़ से निगरानी भी ज़रूरी है। कुछ नियम हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए, निगरानी कौन करेगा? सरकार। इस बुनियाद पर सरकार की तरफ़ से निगरानी को किसी भी दशा में अनदेखा नहीं किया जा सकता, लेकिन निगरानी और दख़ल देने में फ़र्क़ होता है। मैंने कल सुना कि कुछ कंपनियों में जहां सरकार और प्राइवेट सेक्टर भागीदार हैं, सरकार का शेयर ज़्यादा न होने के बावजूद मैनेजमेंट, सरकार के हाथ में है, मेरी नज़र में इसका कोई तुक नहीं है। उसी क़ानूनी तरीक़े के हिसाब से काम किया जाना चाहिए, मैनेजमेंट, ख़ुद जनता के हाथों में ख़ुद शेयर होल्डरों के हाथों में सौंप देना चाहिए, बस निगरानी सरकार करे। इन पिछले बरसों में, धारा 44 की पालीसियों का नोटीफ़िकेशन जारी करने के बाद (5) मैंने आग्रह किया, पैरवी की, बहुत से नियमों से दूर काम देखे, जो निगरानी न होने की वजह से किये गये। बुरे काम किये गये, ग़लत काम किये गये, मुल्क के फ़ारेन करेंसी रिज़र्व को और इसी तरह देश की करंसी को नुक़सान पहुंचाया गया, ख़ुद इन विभागों को भी नुक़सान पहुंचा और इसके नतीजे में जनता को चोट पहुंची, कुछ लोगों ने ग़लत फ़ायदा उठाया। सरकार की तरफ़ से निगरानी ज़रूरी है, यक़ीनी है, यह होना चाहिए। इस बुनियाद पर हमारे हिसाब से जो चीज़ नहीं होनी चाहिए वह सरकार की तरफ़ से दख़ल है वर्ना, निगरानी को तो हम ज़रूरी समझते हैं।
यह जो बाधाओं के बारे में मैंने कहा है कि उन्हें ख़त्म किया जाना चाहिए तो उनमें से कुछ तो ख़ुद सरकार के अदंर हैं, यानि हमारे यहां मामले अपने ही हाथ में रखने का जो रिवाज है उसकी वजह से, इसे सरकार ख़ुद हल करे। अब यहां पर कहा गया कि मिसाल के तौर पर तेल इंडस्ट्री के बारे में कुछ करने के लिए अगर लाइसेंस चाहिए तो उसके लिए 3 साल तक बात चीत ज़रूरी है! इन्सान की समझ में यह तर्क नहीं आता कि 3 साल क्यों ज़रूरी हैं। कोई बाहर की कंपनी आती है, आप उसके साथ बैठे और कुछ ही महीनों में एक कांट्रैक्ट तैयार कर लिया, काम ख़त्म हो गया, आख़िर क्यों मुल्क की किसी कंपनी को जो इतने अहम तेल के मैदान में, वह भी जो बड़ी सतह पर काम करना चाहती हो, तेल निकालना, या तेल के कुंओं को ज़िंदा करना और दूसरे काम करना चाहती है तो इसके लिए उस कंपनी के साथ कांट्रैक्ट करने में इतना वक़्त लगता है? यह हमारे लिए एक सवाल है। या फ़ैसला करने के विभिन्न विभाग, या विभिन्न विभागों के बीच विरोधाभास। कुछ दिन पहले, खदान के मैदान में काम करने वालों की तरफ़ से मुझ से शिकायत की गयी कि मिसाल के तौर पर खनन और पर्यावरण विभाग के बीच, किसी एक काम के बारे में मतभेद पैदा हो जाता है, तो अब इस मतभेद का समाधान होना चाहिए न! खदानों का मैदान बहुत अहम मैदान है, एक ज़माने में एक अधिकारी से यह बात हो रही थी कि खदानों का विभाग, सच में हमारे मुल्क में तेल के विभाग की जगह ले सकता है, तो ज़ाहिर है कि खदानों का महत्व हमारे मुल्क के लिए कितना ज़्यादा है। हम अगर देश की खदानों पर ध्यान दें, दुनिया में दुर्लभ और बहुत कम मिलने वाली खदानें हमारे मुल्क में मौजूद हैं, अगर उन पर ध्यान दिया जाए, वहां से खनिज निकाला जाए, उन पर काम हो, तो इससे मुल्क को दौलत मिलेगी और मुल्क की तरक़्क़ी में मदद मिलेगी। अब आप मिसाल के तौर पर यह सोचें कि कोई खदान के मैदान में काम करना चाहता है, एक जगह से उसकी राह में रुकावट पैदा हो जाती है, तो इसे सरकार के अंदर हल किया जाना चाहिए, यानि कुछ बाधाएं और समस्याएं, कुछ सरकार से ताल्लुक़ रखती हैं तो उन्हें सरकार को ही हल करना चाहिए, राष्ट्रपति के ज़रिए या फिर कैबिनेट में सलाह मशविरे के ज़रिए, मैनेजमेंट और उप राष्ट्रपति के हाथों इन समस्याओं को हल किया जाना चाहिए।
कुछ रुकावटें सरकार के बाहर से ताल्लुक़ रखती हैं, जैसे जूडिशरी से, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ से या इस तरह के दूसरे विभागों से संबंध रखती हैं कि जिनकी वजह से टकराव होता है। मेरे ख़्याल में देश की तीनों पालिकाओं के प्रमुखों के लिए बैठक का जो इंतेज़ाम किया गया है और जिसमें उन्हें अधिकार दिये गये हैं और उसकी बुनियाद पर वह बड़े बड़े फ़ैसले कर सकते हैं और बहुत से काम कर सकते हैं, उसमें वो इन मुद्दों को पेश करें और उसे हल करें। अब अगर हल न हुआ तब रहबरे इंक़ेलाब को उसकी जानकारी दें और उसका समाधान तलाश करें, समस्याओं और टकराव को ख़त्म करें, रास्ता खोल दें। यह यक़ीनी तौर पर सरकार की ज़िम्मेदारियों में से है।
निजी सेक्टर भी जैसा कि मैंने ज़िक्र किया, उसे सच में अपनी ज़िम्मेदारियों को पहचानना चाहिए। अनुशासन, ज़रूरी नियमों का पालन और सही तौर पर काम के नियमों का पालन करना, उनकी अस्ल ज़िम्मेदारियां हैं, प्राइवेट सेक्टर को हर हाल में इन का ख़्याल रखना चाहिए, सरकार को भी निगरानी करना चाहिए।
यह जिन साहब ने फ़ाइनेंस के बारे में बात की (6) उनकी बातें ज़्यादा मेरे दिमाग़ में घूम रही हैं। मैंने नोट किया है कि हम लिक्विडिटी ग्रोथ पर भरोसा करते हैं जिसका मतलब यह है कि लिक्विडिटी ग्रोथ रुकना चाहिए, जैसा कि इसकी कोशिश की गयी है और उसका थोड़ा बहुत असर भी हुआ है और लिक्विडिटी ग्रोथ कम हुई है। हमारे मुल्क की एक समस्या, लिक्विडिटी ग्रोथ है। ज़ाहिर सी बात है जब हम इस सिलसिले में लिक्विडिटी को कम करने की नीति अपनाते हैं तो फिर बैंकों की तरफ़ से व्यवसाय करने वालों को जो आर्थिक सुविधा दी जाती है वह कम हो जाती है तो सवाल यह है कि हम क्या करें कि इन छोटे और मीडियम साइज़ के कारखानों को नुक़सान न पहुंचे जिनके हाथ में अस्ल काम होता है यानि सब से ज़्यादा काम छोटे और मीडियम साइज़ के कारख़ानों में होता है। इसका कुछ इंतेज़ाम करना ज़रूरी है, यह एक ज़रूरी काम है जो यक़ीनी तौर पर सेंट्रल बैंक की ज़िम्मेदारी है, कुछ इस तरह से मैनेज करना चाहिए कि यह न हो कि यह जो थोड़ी बहुत रक़म बैंकों की तरफ़ से कारखानों को दी जानी हो वह सरकारी कंपनियां ले जाएं या फिर ख़ास कंपनियां वह रक़म उठा ले जाएं जिनके लोग ज़्यादा चालाक हैं, ज़्यादा असर वाले हैं, ज़्यादा जान पहचान वाले हैं, यह नहीं होना चाहिए। इसका कुछ इंतेज़ाम करना ज़रूरी है, यानि न्याय का ख़्याल रखना सही अर्थों में यहां ज़रूरी है।
अगर इन्शाअल्लाह इसका ख़्याल रखा जाएगा, तो मेरी नज़र में आर्थिक क्षेत्र में तरक़्क़ी के लिए हमारे यहां गुंजाइश बहुत ज़्यादा है, सही अर्थों में, हमारे यहां गुंजाइश बहुत ज़्यादा है। हमारा मुल्क सच में मालदार मुल्क है, हमारे पास क़ुदरती दौलत भी है, मानव संसाधन की दौलत भी है और सरकार व जनता के बीच संबंध भी मज़बूत हैं। सरकार को मदद करना चाहिए। सरकार की तरफ़ से एक मदद की जा सकती है वह एक्सपोर्ट और विदेशी बाज़ार के सिलसिले में है। दुनिया की अहम कंपनियां और बड़े बड़े व्यापारिक संगठन जो काम करते हैं यह सब सरकार की मदद से होता है, सरकारें उनकी मदद करती हैं, रास्ता खोलती हैं, अगर कोई समस्या पैदा हो जाती है, चाहे क़ानूनी समस्या हो चाहे आर्थिक समस्या हो, उनकी मदद की जाती है। सरकार को जो काम करने चाहिएं उनमें से एक यही है यानि आर्थिक कूटनीति वह संयुक्त ज़िम्मेदारी है जिसका एक हिस्सा प्राइवेट सेक्टर से ताल्लुक़ रखता है और एक हिस्सा, देश की सरकार की विदेश नीतियों के विभागों से संबंध रखता है इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
बहरहाल, जिन हालात में इस वक़्त प्राइवेट सेक्टर आगे बढ़ रहा है मैं उससे ख़ुश हूं, और ज़्यादा मेहनत की जानी चाहिए और निजी सेक्टर, निवेशक और रोज़गार पैदा करने वाले लोग हमारे मुल्क के भविष्य के लिए, देश में आर्थिक तरक़्क़ी के लिए सच में अपना रोल अदा करें और इन्शाअल्लाह मुल्क की आर्थिक स्थिति को बेहतर बना दें।
हमारे मुल्क में यक़ीनी तौर पर विदेशी समस्याएं हैं, प्रतिबंध लगा है, तरह तरह से शत्रुता की जाती है, लेकिन यही सब चीज़ें हमारे लिए अवसर हो सकती हैं। कल वहां प्रदर्शन में एक साहब थे, उन्होंने मुझ से कहा कि हम पर प्रतिबंध लगाया गया, तो हम अपने पैंरों पर खड़े होने में कामयाब हो गये, हमें धमकियां दी गयी तो हम अपने देश को सुरक्षित बनाने में सफल हो गये। यह बिल्कुल सही बात है, हालांकि प्रतिबंध, गहरी चोट है और यक़ीनी तौर पर उससे समस्याएं पैदा होती हैं लेकिन इसे एक अवसर के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा कि हमारे देश ने, हमारे नौजवानों ने, हमारी जनता ने, हमारे मुल्क के व्यवसायियों ने कहीं कहीं इसे अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया है और हमने तरक़्क़ी की है। अगर हमें हथियार बेचे जाते तो हथियार बनाने के मैदान में आज हम जहां पहुंचे हैं वहां नहीं होते। अगर हमें अंतरिक्ष में सैटेलाइटों से एक एक करके अलग न करते और हमें उससे वंचित न करते तो आज मिसाल के तौर पर हम “सुरैया सैटेलाइट” को अंतरिक्ष में नहीं भेजते, यानि हमें इसकी ज़रूरत ही न होती क्योंकि वहां यह चीज़ होती लेकिन वह प्रतिबंध इस बात की वजह बने कि हम यह सब काम करने के क़ाबिल बन गये। इन्शाअल्लाह हम इन अवसरों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने में कामयाब होंगे। अल्लाह आप सब को कामयाब करे। मैं आप सब के लिए दुआ करुंगा।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू