बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद और उनकी पाक नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करते रहना समाज और हमारे आज और कल के लिए ज़रूरी और फ़ायदेमंद

मैं इस ज़रूरी और बहुत फ़ायदेमंद काम का बहुत शुक्रगुज़ार हूं जिसे आप अज़ीज़ भाइयों और बहनों ने अंजाम दिया और आज़रबाइजान तथा तबरेज़ के शहीदों के नाम और उनकी याद को, जिसे भुलाया नहीं जा सकता, आपने ऊंची सतह पर और ज़्यादा स्पष्ट तौर पर पेश किया, यह बहुत अच्छा और उचित क़दम है। अलबत्ता श्रद्धांजलि पेश करने की पिछली कॉन्फ़्रेंस, जो कई साल पहले आयोजित हुयी थी और इस कॉन्फ़्रेंस के बीच फ़ासला कुछ ज़्यादा हो गया, उचित होगा कि इस तरह के काम और श्रद्धांजलि पेश करने की कॉन्फ़्रेंसें, याद मनाने के प्रोग्राम जल्दी जल्दी दोहराए जाएं, जिस तरह हम हर साल मोहर्रम में करबला के शहीदों की याद मनाते हैं, इस वक़्त मिसाल के तौर पर 1300 साल हो गए हैं और यह काम हर साल दोहराया जाता है लेकिन यह दोहराया जाना, थकाने वाले कामों की श्रेणी में नहीं आता बल्कि समाज और हमारे आज और कल के लिए ज़रूरी तथा फ़ायदेमंद कामों में से है।

ख़ुद पर ध्यान रखना, हर शख़्स, क़ौम और समूह के लिए एक ज़रूरी काम

तबरेज़ और आज़रबाइजान के बारे में तारीफ़ी बातें कम नहीं हैं, हमने भी हर साल आपके साथ अपनी सालाना मुलाक़ात में, मुसलसल इस सिलसिले में बात की है। शहीदों के बारे में आज की इस बैठक में आदरणीय इमामे जुमा और आईआरजीसी के आदरणीय कमांडर ने जो बातें भी कही हैं वो बहुत अच्छी और मुकम्मल थीं, वो सारी सिफ़ारिशें जो हम अर्ज़ करना चाहते हैं और आम तौर पर अर्ज़ करते हैं, उन पर अल्लाह का शुक्र है आप लोगों का ध्यान था और उनमें से बहुत सी बातों पर आपने अमल भी किया है। मैं बस इतना अर्ज़ करुं कि हमारी एक ज़िम्मेदारी यह है कि ख़ुद पर, अपने आप पर ध्यान दें। क़ौम अपनी पहचान न भूले, अगर उसने अपनी पहचान को भुला दिया तो वो नुक़सान उठाएगी, उसे चोट पहुंचेगी, वो बिछड़ जाएगी। अल्लाह उन लोगों के बारे में जो उसकी याद को भुला बैठे हैं, फ़रमाता हैः "वो अल्लाह को भूल गए तो अल्लाह ने उनको अपना आप भुला दिया" (सूरए हश्र, आयत-19) उन्होंने अल्लाह को भुला दिया, अल्लाह ने उन्हें ख़ुद उन्हीं की ओर से ग़ाफ़िल कर दिया और उन्हें उनकी तरफ़ से फ़रामोशी में मुब्तला कर दिया। इससे पता चलता है कि ख़ुद पर ध्यान, अपनी पहचान पर ध्यान, अपनी ख़ुसूसियतों पर ध्यान, हर क़ौम और हर गिरोह के लिए ज़रूरी काम है।

आज़रबाइजान प्रांत, ईरानी क़ौम के बीच एक ख़ास पहचान रखने वाला, बहादुरों और शहीदों का गहवारा

आज़रबाइजान की इस पहचान पर, जिसने उसे ख़ास मक़ाम प्रदान किया है, पूरा ध्यान देना चाहिए। सही मानी में, जिस इलाक़े को हम आज़रबाइजान कहते हैं, वो ईरानी क़ौम के बीच ख़ास पहचान रखता है। आज़रबाइजान बहादुरों और शहीदों का गहवारा है। यह चीज़ पाकीज़ा डिफ़ेन्स से मख़सूस नहीं है, पहले से ही ऐसा रहा है, अब भी ऐसा ही है। जहाँ तक इस्लामी इंक़ेलाब की बात है, अगर हम हिसाब करना चाहें, इंक़ेलाब से पहले यानी इमाम ख़ुमैनी और ईरानी क़ौम के आंदोलन के आग़ाज़ से, आज़रबाइजान में शहादत का रोल और इरादा शुरू हो चुका था जो अब तक है। पाकीज़ा डिफ़ेन्स में आज़रबाइजान के इलाक़े के लोग शहीद हुए हैं, अलबत्ता इन क़ुरबानियों का चरम बिन्दु और आज़रबाइजान के इस उच्च मूल्य के प्रदर्शन का चरम बिन्दु, पाकीज़ा डिफ़ेन्स था और यही शख़्सियतें जिनका जनाब ने नाम लियाः शहीद आक़ा महदी बाकेरी, शहीद हमीद बाकेरी, शहीद तजल्लाई, शहीद याग़चियान यही नुमायां लोग थे जो शहीद हुए, उनमें से बहुत से नुमायां लोग आज भी अल्लाह की कृपा से ज़िन्दा हैं यानी शहादत की इच्छा और बलिदान की यह ख़ूबी, थोपी गई जंग और पाकीज़ा डिफ़ेन्स के ज़माने से मख़सूस नहीं है बल्कि इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से पहले से लेकर आज तक जारी रही है। इस शहर के दो इमामे जुमा शहीद हुए हैं (3) यानी पूरे मुल्क में शहीद होने वाले पाँच  इमामे जुमा में से, जो धर्मगुरुओं को गौरव प्रदान करते हैं, (4) दो इमामे जुमा तबरेज़ शहर के हैं। ये बातें अहम हैं, ये बड़ी नुमायां ख़ुसूसियतें हैं।

 

समाज में शहीदों की नैतिक ख़ुसूसियतों को अपनाकर उनकी याद को ज़िन्दा रखने पर ताकीद

जो बात मैं नसीहत और सिफ़ारिश के तौर पर कहना चाहता हूं वो यह है कि पहले तो शहीदों के ख़ून की गर्मी को कम न होने दीजिए, यानी शहीदों की याद सिर्फ़ उनके वाक़यों को बयान करना नहीं है, इसके मानी ये हैं कि वो तक़वा, वो बलिदान, वो बहादुरी और वह वजूद का क़ीमती गौहर जो शहीद बाकेरी जैसे लोगों को मैदान में खींच लाता है, उसे बयान किया जाए, पहुंचाया जाए ताकि वो नई नस्ल को आइडियल दे। हमारे जवान को आइडियल की ज़रूरत है और सबसे अच्छे आइडियल ये हैं। कुछ क़ौमें, जिनके हाथ इस लेहाज़ से बिल्कुल ख़ाली हैं या बड़ी हद तक ख़ाली हैं, वो आइडियल बनाती हैं, बिना वजूद के आइडियल गढ़ती हैं। हमारे सामने तो ये आइडियल मौजूद हैं। शहीद बाकेरी को सिर्फ़ जंग के मैदान में नहीं देखना चाहिए, मोर्चे के पीछे भी देखना चाहिए, तबरेज़ यूनिवर्सिटी में भी देखना चाहिए, उनकी इंक़ेलाब से पहले की सरगर्मियों को भी देखना चाहिए, उस जज़्बे को भी देखना चाहिए। मैं इंक़ेलाब से पहले मशहद में शहीद जनाब महदी बाकेरी से मिला था, जोशीले, समझदार, दिलचस्पी लेने वाले, घटनाओं की समीक्षा करने की सलाहियत रखने वाले। यही बातें सबब बनीं कि बाद में वो जंग में, पाकीज़ा डिफ़ेन्स के मैदान में इस तरह से निखरे, उभरकर सामने आए और दिलों को अपनी ओर खींचा और अब भी आकर्षित कर रहे हैं। ये जज़्बा लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। हम अगर कोई फ़िल्म बनाते हैं, कोई कविता लिखते हैं, कोई किताब लिखते हैं, यादगार वाक़यों को इकट्ठा करते हैं और उनका प्रचार व प्रसार करते हैं तो हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि ये जज़्बा दूसरों तक पहुंचे, यह सार्थक जज़्बा है। यह पहली बात हुयी कि शहीदों के ख़ून की गर्मी को कम न होने दीजिए, जैसा कि मैंने शुरू में कहा कि शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी की तरह, यानी जिस तरह हर साल मोहर्रम में होता है, जब आशूरा का दिन आता है तो मानो आप सन 61 हिजरी के आशूरा को अपने सामने देखते हैं, वाक़ए आँखों के सामने आ जाते हैं, सुनने वालों की नज़रों के सामने हस्तियां साक्षात रूप ले लेती हैं, यही चीज़ पाकीज़ा डिफ़ेन्स और उन 10000 शहीदों के बारे में भी होनी चाहिए जिनकी तरफ़ आपने इशारा किया।

 

शहीदों के हालात व वाक़यात को लिखने और उसे सुरक्षित करने के लिए उनके घरवालों और दोस्तों से मदद

दूसरी बात यह है कि शहीदों के घरवालों को न भूलिए। अफ़सोस कि बहुत से माँ-बाप इस दुनिया से गुज़र चुके हैं, अपने शहीदों से जा मिले हैं, अब जो लोग हैं चाहे वो शहीदों की बीवियां हों या उनके माँ-बाप हों, उनकी यादों को, उनकी बातों को संकलित कीजिए। इसी तरह शहीदों के दोस्तों से भी, मिसाल के तौर पर जंग के दौरान शहीद बाकेरी के बहुत से साथी जिनमें से कुछ अल्लाह की कृपा से इस वक़्त ज़िन्दा हैं, सेहतमंद हैं, तैयार हैं, उन्होंने जंग के मैदान में उनकी ज़िन्दगी की छोटी से छोटी बात भी देखी है। बहादुरी सिर्फ़ जंग करना नहीं है, बहादुरी अपने मन पर कंट्रोल में, बहादुरी बात करने में, बहादुरी बात न करने में, बहादुरी क़दम उठाने में और क़दम न उठाने में भी होती है, ये सारी चीज़ें अहम हैं। ऐसे लोग हैं जिन्होंने उन्हें क़रीब से देखा है, पहचाना है, ऐसे लोगों से मदद ली जाए, उनसे इंटरव्यू लिया जाए, बात की जाए, शहीदों के हालात, वास्तविक दस्तावेज़ के तौर पर रेकॉर्ड हों और पहचाने जाएं। ये दूसरी बात हुयी। 

शहीदों के उत्थान की राहों की पहचान ज़रूरी

एक और बात यह है कि जब शहीदों की बात की जाए तो उन चीज़ों को भी पहचनवाया जाए जिनसे उनके उत्थान का रास्ता समतल हुआ। मिसाल के तौर पर लोग या वो लोग जिन्होंने शुरूआत में चिंगारियों को वजूद दिया, जैसे शहीद क़ाज़ी तबातबाई ने इंक़ेलाब के मामलों में, मिसाल के तौर पर 18 फ़रवरी सन 1978 को वही थे जिन्होंने पहली चिंगारी पैदा की, सबसे पहले क़दम उठाया, लोगों को अपने मकान और अपनी मस्जिद में आने की दावत दी और उस दिन की बाक़ी बातें; मतलब यह कि वो चीज़ें साफ़ हों जिनसे रास्ता समतल हुआ। क़ुम के वाक़ए के बाद सबसे पहला क़दम फ़ुलां और फ़ुलां शहर में नहीं बल्कि तबरेज़ शहर में उठाया गया, इसकी वजह क्या है? यहाँ के लोगों की क्या ख़ुसूसियत है कि वो इस तरह के जवानों को परवान चढ़ाते हैं, इस तरह परवरिश करते हैं, इस तरह शहीदों का बलिदान पेश करते हैं? ये चीज़ें बहुत अहम हैं, यानी क़ौमी पहचान, राष्ट्रीय पहचान और धार्मिक पहचान। मैंने एक बार इन्हीं आज़रबाइजानी भाइयों और बहनों की सभा में कहा था (5) कि जब मरहूम सत्तार ख़ान ने संविधान क्रांति में और उस दौरान जो क़दम उठाए थे, उस वक़्त उनकी जेब में नजफ़ के धर्मगुरूओं की तहरीर मौजूद थी, यानी उन्होंने नजफ़ के धर्मगुरुओं से फ़तवा पूछा था, सवाल पूछा था और उन्होंने भी जवाब दिया था, वो इस नीयत से आगे बढ़ रहे थे, ये बहुत अहम है। आगे बढ़ने की वजह क्या है? प्रेरणा देने वाला तत्व क्या है? ये स्पष्ट होना चाहिए, इससे उसका पता चलता है। अगर ये काम हो गया तो फिर क़दम बढ़ते रहेंगे।

 

पाकीज़ा डिफ़ेन्स के प्रभावी व दुर्लभ वाक़यों को ईरानी क़ौम की याददाश्त में बाक़ी रखने की ज़रूरत

31 आशूरा डिविजन का रोल तो स्पष्ट है, ऐसी शख़्सियतें थी जिन्होंने वाक़ई अपनी चमक बिखेरी, मैं सेकेन्ड टैक्टिकल एयरबेस (6) के रोल की ओर इशारा करना चाहूंगाः जंग के बिल्कुल आग़ाज़ के दिनों में हमारे फ़ाइटर जेट्स के उस बड़े कारनामे ने, जिन्होंने सेकेन्ड एयरबेस और दूसरी हवाई छावनियों से, थर्ड (7) और फ़ोर्थ एयरबेस (8) से उड़ान भरी थी और वो बड़ा कारनामा अंजाम दिया था, जंग के पहले ही हफ़्ते में ये काम कर दिया था और मैंने उसी वक़्त संसद में जाकर, सांसदों को उसकी तफ़सील बताई थी। ये वो चीज़ें हैं जो बहुत अहम व ध्यान योग्य हैं और इंशाअल्लाह इन्हें दिलों में बाक़ी रहना चाहिए। ईरानी क़ौम की इतिहास की याद्दाश्त में रेकार्ड रहना चाहिए, मतलब यह कि सबसे अहम काम यह है कि इन अहम वाक़यों को, उन प्रभावी, दुर्लभ और कुछ मौक़ों पर बेमिसाल वाक़यों को ईरानी क़ौम की इतिहास की याद्दाश्त में महफ़ूज़ रहना चाहिए और हमारे जवानों तथा बच्चों को उनके बारे में मालूम होना चाहिए। अलबत्ता अब तक हमने किसी हद तक लापरवाही दिखाई है और हमारे बहुत से जवान, हमारे बहुत से बच्चे, नुमायां शख़्सियतों को नहीं पहचानते और बहुत से अहम वाक़यों का इल्म नहीं रखते, हमें इन चीज़ों को रेडियो और टीवी विभाग और इसी तरह प्रचार करने वाले दूसरे सरकारी विभागों में भी और उन साधनों के ज़रिए भी जो आम लोगों के पास और उनकी पहुंच में हैं, प्रकाशित व प्रसारित करना चाहिए।

मेरी दुआ है कि अल्लाह आप सभी को तौफ़ीक़ अता करे और आप इस बड़े काम को अंजाम तक पहुंचाएं और इंशाअल्लाह भविष्य में, श्रद्धांजलि की इन कान्फ़्रेंसों और बैठकों के बीच का वो फ़ासला जो आज और पिछली कॉन्फ़्रेंस के बीच का है, और कम हो।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

(1)       इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में पूर्वी आज़रबाइजान में वलीए फ़क़ीह (वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व) के प्रतिनिधि और तबरेज़ के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम सैय्यद मोहम्मद अली आले हाशिम और पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत में सिपाहे आशूरा के कमांडर व कान्फ़्रेंस के सचिव ब्रिगेडियर जनरल असग़र अब्बास क़ुलीज़ादे ने रिपोर्टें पेश कीं।

(2)       सूरए हश्र, आयत-19, वो अल्लाह को भूल गए तो अल्लाह ने उनको अपना आप भुला दिया।

(3)       शहीद आयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई और शहीद आयतुल्लाह सैय्यद असदुल्लाह मदनी।

(4)       शहीद आयतुल्लाह मोहम्मद सदूक़ी, शहीद आयतुल्लाह अताउल्लाह अशरफ़ी इस्फ़हानी, शहीद आयतुल्लाह सैय्यद अब्दुल हुसैन दस्तग़ैब, शहीद आयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई और शहीद आयतुल्लाह सैय्यद असदुल्लाह मदनी

(5)       पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत के अवाम से ख़ेताब (16/2/2013)

(6)       शहीद फ़कूरी सेकेन्ड एयरबेस, तबरेज़

(7)       शहीद नूजे थर्ड एयरबेस, हमेदान

(8)       शहीद वहदती फ़ोर्थ एयरबेस, देज़फ़ूल