ऐसी जगहों में से एक जगह जहाँ तक़वे का पता चलना चाहिए, यही है। एक मसला सरकारी ख़ज़ाने के सही इस्तेमाल का है। एक और मसला इच्छाओं के सामने ख़ुद को कंट्रोल करने का है। माल इकट्ठा करना, नैतिक बुराइयां, अमीरों जैसी ऐश व आराम की ज़िन्दगी की इच्छा, ये वो चीज़ें हैं जिनकी ओर से हम, इस्लामी जुम्हूरिया के अधिकारियों को हर वक़्त ख़बरदार रहना चाहिए। “हालांकि तुम उन्हीं लोगों के आवासों में बसते थे जिन्होंने अपने ऊपर ज़ुल्म किया था ...” (सूरए इब्राहीम, आयत-45) यह मसला कि हम भी उन्हीं इमारतों में हैं कि जिनमें (अतीत के) सरकश दौर के अधिकारी रहते थे, हम भी वैसे ही शासन करें और उन्हीं की तरह व्यवहार करें, यह तो कोई बात नहीं हुयी। (ऐसी स्थिति में) हमारे और उनके बीच कोई फ़र्क़ नहीं रह जाएगा, हमारा हुकूमत का तरीक़ा, शैतान के बंदों के तरीक़े, शैतान के अनुयाइयों के हुकूमत के तरीक़े से अलग होना चाहिए। इसलिए जो भी इस्लामी गणराज्य में कोई भी ओहदा रखते हैं, उन्हें जिन चीज़ों को सही मानी में अहमियत देनी चाहिए और तक़वे के लिए ज़रूरी है उनमें से एक यह है कि किसी भी क़िस्म के भोग विलास या अमीरों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारने की फ़िक्र में न रहें, आम लोगों जैसी सादा ज़िन्दगी गुज़ारें, फ़ुजूलख़र्ची और इस तरह की दूसरी आदतों से दूर रहें।

इमाम ख़ामेनेई

14/05/2019