फ़िलिस्तीन और हालिया महीनों में वहाँ होने वाली घटनाएं पूरी दुनिया में मीडिया और अवाम के ख़ास ध्यान का केन्द्र बनी हुयी हैं। एक ओर ग़ज़्ज़ा की लड़ाई और वेस्ट बैंक की घटनाएं घटीं तो दूसरी ओर ज़ायोनी शासन के भीतर विरोध प्रदर्शन और अफ़रातफ़री की लहर देखने को मिली। ये सब चीज़ें और निशानियां फ़िलिस्तीन के राजनैतिक मंच पर हालात में बहुत बड़े बदलाव की निशानदेही करती हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कुछ महीने पहले, फ़िलिस्तीन के राजनैतिक मंच पर घटने वाले वाक़यों की समीक्षा में इन हालात के संबंध में कुछ अहम प्वाइंट्स की ओर इशारा किया है। इस बारे में उनकी समीक्षात्मक नज़र और शैली के तहत पिछले कुछ महीनों के हालात की समीक्षा की जा रही है।
अस्थिरता और नफ़रत के क़ाबिल
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क़ुद्स पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के भीतर मौजूद (राजनैतिक अस्थिरता) और (दो धड़ों में बंटवारे) जैसे बिन्दुओं की समीक्षा की हैः “जहाँ तक ज़ायोनी सरकार की बात है -वह भी हमारी एक दुश्मन है- तो वह अपनी पचहत्तर साल की उम्र में कभी भी आज जैसी ख़ौफ़नाक मुसीबत में गिरफ़्तार नहीं हुयी थी। सबसे पहले राजनैतिक अस्थिरता, चार साल में चार प्रधान मंत्री बदल गए, दलीय गठबंधन बनने से पहले ही टूट जाते हैं, गठबंधन बनाते हैं और थोड़ी ही मुद्दत में वह गठबंधन बिखर जाता है। वे पार्टियां जो पहले बन चुकी हैं या बन रही हैं, धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं, भंग होती जा रही हैं, यानी वह इतना कमज़ोर हो जाती हैं कि टूटने जैसी ही होती हैं। पूरी ज़ायोनी सरकार में गंभीर मतभेद पाया जाता है अगर आप मौजूदा स्थिति को देखें- फ़िलिस्तानियों का मामला अलग है, तो उनके बीच बुरी तरह मतभेद पैदा हो गया है। तेल अबीब और दूसरे शहरों में एक लाख और दो लाख लोगों के प्रदर्शन, इसी बात की निशानी हैं। मुमकिन है वे (ज़ायोनी) किसी जगह दो चार मीज़ाइल मार दे लेकिन वे इस मामले की भरपाई नहीं कर सकता। सही अर्थों में ज़ायोनी सरकार राजनैतिक अस्थिरता में घिरी हुयी है। बताया जाता है कि जल्द ही उन लोगों की तादाद जो इस्राईल से निकल रहे हैं, वे यहूदी जो भाग रहे हैं, उनकी तादाद 20 लाख तक पहुंच जाएगी।”
दूसरी ओर पब्लिक की नज़र में भी ज़ायोनी शासन की छवि ख़राब हो चुकी हैः “इस्राईल जो कुछ कर रहा है, उसके मुक़ाबले में दुनिया में क्या हो रहा है, ख़ुद अमरीका में जुलूस निकल रहे हैं, ब्रिटेन में रैली निकल रही है, यूरोप के लोग ज़ायोनी शासन के प्रमुख की गाड़ी पर हमला कर रहे हैं।”
अवाम के स्तर पर इन हालात का सबसे अहम पहलू यह है कि ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की लहर का दायरा अब इस्लामी जगत से बाहर फैल चुका हैः “इस साल फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा करने वाली हुकूमत यानी इस्राईली हुकूमत के जुर्म और उसके ज़ुल्म का एक हिस्सा दुनिया के सामने आया तो आपने देखा कि क़ुद्स दिवस पर लोगों के जुलूस और प्रदर्शन, सिर्फ़ इस्लामी दुनिया तक सीमित नहीं रह गए थे, यानी इस्लामी जगत के अलावा यूरोप में यहाँ तक कि ख़ुद अमरीका में बहुत से लोगों ने प्रदर्शन किए, फ़िलिस्तीनियों का समर्थन किया... कैसे एक यूरोपीय शख़्स, जिसकी हुकूमत ज़ायोनी हुकूमत की पिट्ठू है, फ़िलिस्तीनी अवाम के समर्थन और ज़ायोनी हुकूमत के ख़िलाफ़ सड़क पर नारे लगाए? यह बात बहुत अहम है।”
प्रतिरोध अपने चरम पर और पतन की ओर बढ़ते इस्राईल के क़दम
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पिछले कुछ महीनों के दौरान जिस सबसे अहम बिन्दु की ओर इशारा किया है उसका संबंध (इस्राईल के कमज़ोर होने और उसके पतन) से है। यह पतन (प्रतिरोध) का नतीजा और प्रतिरोध के नज़रिये के प्रैक्टिकल होने तथा प्रतिरोध के मोर्चे की कार्यवाही का नतीजा हैः “अलबत्ता आज अलहम्दो लिल्लाह हम क़ाबिज़ हुकूमत के धीरे-धीरे पतन को देख रहे हैं... ऐसा क्यों हुआ? मैं आपसे अर्ज़ करता हूं कि यह फ़िलिस्तीनी अवाम के प्रतिरोध की बरकत से है। फ़िलिस्तीनी अवाम के भीतर से प्रतिरोध, इस कामयाबी का अस्ली सबब है।... इस वक़्त ज़ायोनी हुकूमत की जो ख़राब हालत है- इस वक़्त ज़ायोनी हुकूमत की हालत वाक़ई बहुत ख़राब है- वह फ़िलिस्तीनी जवानों के प्रतिरोध की वजह से है।”
फ़िलिस्तीन में इस्लामी प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त इस तरह दिन ब दिन बढ़ रही है किः “फ़िलिस्तीनी संगठनों की ताक़त, अतीत की तुलना में, यह नहीं कहना चाहिए कि कई गुना, बल्कि शायद दसियों गुना बढ़ चुकी है। हम तक एक रिपोर्ट पहुंची कि फ़िलिस्तीनियों ने ज़ायोनी शासन के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में 24 घंटे में 27 ऑप्रेशन किए, पूरे फ़िलिस्तीन में, बैतुल मुक़द्दस में, वेस्ट बैंक के इलाक़े में, 1948 के इलाक़ों में वो हर जगह काम कर रहे हैं। वह ओस्लो वाला फ़िलिस्तीन -आपको याद ही होगा कि यासिर अरफ़ात और दूसरों ने ओस्लो समझौते में फ़िलिस्तीन की कैसी रुसवाई करायी- अरीनुल उसूद तक पहुंच चुका है, उसूद यानी शेरों का फ़िलिस्तीन! इतना ज़्यादा फ़र्क़ आ चुका है। फ़िलिस्तीनी इस तरह से आगे बढ़े हैं।... प्रतिरोध का मोर्चा अलहम्दोलिल्लाह मज़बूत बनता जा रहा है।”
आज ज़मीनी स्तर पर ज़ायोनी अपनी (डिटेरन्स ताक़त) खो चुके हैं: “आज ज़ायोनी हुकूमत की डिटेरन्स ताक़त ख़त्म हो चुकी है, यह वही चीज़ है जिसके बारे में दसियों साल पहले, शायद क़रीब 60 साल पहले, ज़ायोनी हुकूमत के मुख्य संस्थापकों में से एक और इस हुकूमत के प्रधान मंत्री बिन गोरियन ने चेतावनी दी थी। उसने कहा था कि जब भी हमारी डिटेरन्स ताक़त ख़त्म हो जाएगी, हमारी हुकूमत बिखर जाएगी। इस वक़्त उसकी डिटेरन्स ताक़त ख़त्म हो चुकी है या अंत के क़रीब है। वे ख़ुद भी जानते हैं, वे ख़ुद भी समझते हैं कि बिखराव और अंत क़रीब है, अगर कोई ख़ास घटना न घटी। यह प्रतिरोध की बरकत की वजह से है, यह इस वजह से है कि फ़िलिस्तीनी जवान अपने दुश्मन की डिटेरन्स ताक़त को लगातार कमज़ोर करने में, कम करने, ख़त्म करने में कामयाब हुआ है।”
ज़मीनी सच्चाई प्रतिरोध के मोर्चे के ताक़तवर होने और ज़ायोनी शासन के दिन ब दिन पतन को स्पष्ट कर रही हैः “उस वक़्त फ़िलिस्तीनी, हाथ में पत्थर लेकर लड़ते थे, उनके पास कोई दूसरी चीज़ नहीं थी। अब आप उन हालात की आज के फ़िलिस्तीन से तुलना कीजिए, चाहे वह ग़ज़्ज़ा के हालात हों या जो कुछ वेस्ट बैंक में हो रहा है, क्या उनकी तुलना की जा सकती है?”
इसलिए “ज़ायोनी दुश्मन पीछे हटने और रिएक्शन की पोज़ीशन में है और इन हालात से पता चलता है कि फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधक गुटों और जेहादे इस्लामी ने रास्ते को सही तरीक़े से पहचान लिया है और वे पूरी समझदारी के साथ इस रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।” हक़ीक़त में “आज अल्लाह की कृपा से फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधकर्ता गुटों और जेहादे इस्लामी की ताक़त और साख दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और हालिया 5 दिन की जंग में ज़ायोनी सरकार की हार, इस बात को सही सिद्ध करती है।”
अस्ल बिन्दु
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ताक़त के संतुलन के प्रतिरोध के मोर्चे के हित में झुकने और क़ुद्स को आज़ाद कराने के मसले में जिस सबसे अहम प्वाइंट पर बल देते हैं वह (वेस्ट बैंक के हथियारों से लैस होने) और नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ प्रतिरोध में इस इलाक़े के सरगर्म रोल का विषय हैः “वेस्ट बैंक में प्रतिरोधक गुटों की दिन ब दिन बढ़ती ताक़त ज़ायोनी दुश्मन को धूल चटाने की अस्ल कुंजी है और इस राह पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।” वेस्ट बैंक के हथियारों से लैस होने की मुख्य स्ट्रैटिजी और उसका ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के मोर्चे की सरगर्मी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना ऐसा विषय था जिसे कई साल पहले इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पेश किया और उसे व्यवहारिक बनाने पर बल दिया थाः “ वेस्ट बैंक के इलाक़े को भी ग़ज़्ज़ा पट्टी की तरह हथियारों से लैस होना चाहिए।” और अब इस्लामी प्रतिरोध के मोर्चे के ज़रिए ग़ज़्ज़ा के प्रतिरोध के वेस्ट बैंक के विद्रोह और प्रतिरोध से जुड़ जाने से, समीकरण का रुख़ क़ुद्स की आज़ादी की तरफ़ हो गया हैः “आपने ग़ज़्ज़ा के संघर्ष को वेस्ट बैंक से जोड़ कर और रेज़िस्टेंस की दूसरी फोर्सेज़ ने इस्लामी जेहाद संगठन का समर्थन करके, दुष्ट व धोखेबाज़ दुश्मन के सामने फ़िलिस्तीनी क़ौम के संगठित जेहाद का प्रदर्शन करने में कामयाबी हासिल की है। पूरी फ़िलिस्तीनी सरजमीं के सभी मुजाहिद संगठन, इस एकता व एकजुटता को बनाए रखने की पूरी कोशिश करें। क़ाबिज़ दुश्मन कमज़ोरी की ओर और फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस मज़बूती की ओर बढ़ रहा है। “अल्लाह की ताक़त व क़ुव्वत के बिना कोई ताक़त व क़ुव्वत नहीं।”
और ये सब (इस्लाम की ओर रुझान) की बरकत से हैः “फ़िलिस्तीन के भीतर जिद्दो जेहद के चरम पर होने की वजह क्या है? इस्लाम की ओर रुझान। हमने इससे पहले का ज़माना भी तो देखा ही है, उस वक़्त जब फ़िलिस्तीनी गिरोहों में इस्लामी रुझान की बात ही नहीं थी -कुछ लोग कम्यूनिस्ट थे, कुछ कम्यूनिस्ट तो नहीं थे लेकिन इस्लामी भी नहीं थे- तब ये कामयाबियां भी नहीं थीं। जबसे फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं में इस्लामी रुझान पैदा हुआ और जबसे यह रुझान आज तक दिन ब दिन बढ़ता गया, फ़िलिस्तीनियों की जिद्दो जेहद इस तरह आगे बढ़ी। तो कामयाबी और फ़तह की अस्ली वजह इस्लाम है।”
शिकस्त का मुमकिन होना
आज फ़िलिस्तीन के इक्वेशन की हक़ीक़त यह है कि “ इस वक़्त ज़ायोनी सरकार के हालात 70 साल के पहले हालात की तुलना में बदल चुके हैं और ज़ायोनी अधिकारी अगर इस सरकार के 80 साल पूरे न कर पाने के सिलसिले में चिंतित हैं, तो उन्हें इसका हक़ है।” और यह विषय बता रहा है कि “ठीक है कि दुश्मन की इंटेलिजेन्स मज़बूत है, उसके अंदाज़े लगाने और कैल्कुलेशन करने वाले विभाग मज़बूत हैं, उसकी फ़ोर्सेज़ अच्छी हैं, पैसे तो उसके पास ज़्यादा हैं ही, ये सब अपनी जगह ठीक है, लेकिन इस बात का पूरा इमकान है कि इंसान उसके अंदाज़ों को ग़लत साबित कर दे, उसे हार का मज़ा चखा दें। अगर हम समझदारी से आगे बढ़ें और काम को यूं ही नहीं छोड़ दें बल्कि उसे आगे बढ़ाते रहें तो वह दुश्मन की सभी कोशिशों और चालों को नाकाम बना देगा।... तो ये सारी चीज़ें ऐसी सच्चाई की ओर इशारा करती हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और इनसे दुश्मन के पराजित होने और उसके अंदाज़ों के भी नाकाम होने को समझा जाना चाहिए।”