अगर मुमकिन हो तो यह फ़रमाएं कि हमारे कल्चर में किताब का क्या रुतबा है? किताब कल्चर को बेहतर बनाने में क्या मदद कर सकती है?

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेईः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

पहली बात तो यह कि मुझे बड़ी ख़ुशी है कि इस साल भी किताब मेले में आने का मौक़ा मिला। यह किताब मेला यानी किताबों की नुमाइश जो हर साल लगती है, यह एक अज़ीम पब्लिक सेमिनार है जिस पर कल्चरल पहलू हावी है और यह बहुत ख़ुशी की बात है जो इस नुमाइश में आने का शौक़ बढ़ाती है। पहली बात तो यहाँ आने वालों की भीड़ है, जो नज़र भी आ रही है और मुझे जो आंकड़े दिए गए हैं, उनसे भी पता चलता है कि इन कुछ दिनों में आने वालों की तादाद ज़्यादा थी, बहुत अच्छी थी। किताबों की ख़रीदारी भी बहुत अच्छी थी। फिर मैंने ख़ुद जिन स्टालों को देखा, कुछ स्टालों को मैंने नज़दीक से देखा है, महसूस करता हूं कि किताबों की छपाई का काम, कुछ प्रतिकूल हालात के बावजूद, आगे बढ़ रहा है। प्रतिकूल हालात मैं जो कह रहा हूं, इसमें सबसे अहम काग़ज़ का महंगा होना है और कभी कभी काग़ज़ की क्वालिटी अच्छी नहीं होती।

आज आदरणीय कल्चरल मंत्री ने मुझे बताया कि अच्छे काग़ज़ के प्रोडक्शन के सिलसिले में अच्छा काम शुरू हुआ है। मैंने कुछ साल पहले इस बात की ताकीद की थी, लेकिन उस पर काम शुरू नहीं किया गया, अब अलहम्दो लिल्लाह शुरू कर दिया गया है। उम्मीद है कि इससे मदद मिलेगी। वाक़ई इन क़ीमतों पर किताबों को ख़रीदना बहुत मुश्किल है, क़ीमतें गिरेंगी और काग़ज़ सस्ता होने और मुल्क के भीतर तैयार होने वाले अच्छे काग़ज़ के आने के बाद हालात बेहतर होंगे। बहरहाल प्रतिकूल हालात हैं लेकिन इसके बावजूद नज़र आ रहा है कि तादाद के लेहाज़ से भी किताबों की तादाद बढ़ी है यानी मिसाल के तौर पर फ़र्ज़ करें कि पिछले साल जो किताबें छपी हैं, उनकी तादाद इंक़ेलाब से पहले के कई बर्सों में छपने वाली किताबों से बहुत ज़्यादा है। यह बहुत अहम बात है।

इतनी ज़्यादा आर्थिक समस्याएं और दूसरी मुश्किलें हैं, लेकिन इसके बावजूद तादाद के लेहाज़ से किताबों की छपाई बढ़ी है। अलबत्ता छपने वाली किताबों की तादाद ज़्यादा नहीं है, बल्कि कुछ की तादाद कम है लेकिन एडिशन की तादाद बढ़ी है, कुछ किताबें दस बार, पंद्रह बार, बीस बार और कुछ तीस बार छप चुकी हैं।

एक किताब के बारे में मुझे यहीं बताया, पता नहीं कौन सी किताब थी, बताया कि क़रीब 200 बार छप चुकी है। अगर हर बार 1000 प्रतियां भी छपीं तब भी अच्छी तादाद है। इसलिए यह अच्छी अलामत है।

किताब का विषय बहुत अहम है। मुल्क का कल्चर बनाने के लिए हमेशा किताब की ज़रूरत होती है। अगरचे आज बहुत से दूसरे साधन भी आ गए हैं, जैसे सोशल मीडिया वग़ैरह है, लेकिन किताब अब भी अपनी जगह बहुत अहम और आला दर्जा रखती है।

सभी साहित्यिक, प्रचारिक और कला की सरगर्मियों, जैसे थियेटर, सिनेमा यहाँ तक कि चित्रकारी, ऑडियो और वीडियो प्रोडक्ट तैयार करने के लिए भी किताब की ज़रूरत होती है। यानी प्रचारिक तथा कला से संबंधित अच्छा काम वही कर सकता है जिसका किताब से संबंध हो। इसलिए अगरचे मैं हमेशा, सभी लोगों ख़ास तौर पर नौजवानों से किताब पढ़ने की सिफ़ारिश करता हूं, लेकिन आज जो लोग रेडियो और टीवी के लिए प्रोग्राम तैयार करते हैं, या मैग्ज़ीन के लिए काम करते हैं, जो लोग आर्ट और किसी भी शक्ल में ऑडियो और वीडियो आर्ट से जुड़े हुए हैं, उनके लिए मेरी ताकीद है कि किताब ज़्यादा पढ़ें। अलहम्दो लिल्लाह आज सभी विषयों पर किताबें मौजूद हैं और ये किताबें मुल्क के भीतर लिखी जा रही हैं।

एक मसला यह है और एक मसला ट्रांसलेशन का है। अतीत में जो हमारी नौजवानी का दौर था, ज़्यादातर किताबें ऐसी थीं जिनका अनुवाद हुआ था, यानी ज़्यादातर विदेशी किताबों का अनुवाद छपता था। आज नज़र आ रहा है कि मुल्क के भीतर मौजूद किताबों का बड़ा हिस्सा मुल्क के भीतर लिखी व संकलित की जाने वाली किताबों पर आधारित है। इनका ट्रांसलेशन होना चाहिए।

यानी मैं विदेशी किताबों का ट्रांसलेशन होने के ख़िलाफ़ नहीं हूं, लेकिन अच्छी किताबें होनी चाहिए। उनकी जो दिशा व रुख़ है वह सही होना चाहिए, गुमराह करने वाला नहीं होना चाहिए। लेकिन मुल्क के भीतर लिखी जाने वाली किताबों का ग़ैर मुल्की ज़बानों में अनुवाद होने पर भी ताकीद होनी चाहिए और अनुवादक जिस ज़बान में अनुवाद करे, जितना मुमकिन हो वह उसकी मातृभाषा हो। मिसाल के तौर पर अगर किसी फ़ारसी किताब का अनुवाद अरबी में करना चाहें तो यह अनुवाद एक अरब को जिसकी मातृभाषा अरबी हो, करना चाहिए और अंग्रेज़ी में उसको अनुवाद करना चाहिए जिसकी मातृभाषा अंग्रेज़ी हो। इसी तरह दूसरी ज़बान में भी अनुवादक होना चाहिए जिसकी वह मातृभाषा हो।

अलग अलग उम्र के बच्चों की किताब के सिलसिले में भी ताकीद करना चाहता हूं। ख़ुशी की बात है कि मैंने कुछ स्टालों में देखा कि इस क्षेत्र में काम हुआ है, फिर भी मेरी ताकीद है कि अलग अलग एज ग्रुप के बच्चों के लिए जहाँ तक मुमकिन हो किताबें तैयार करें और इस सिलसिले में हमें ग़ैरों की किताबों की ज़रूरत न पड़े। ताकि हम इंशाअल्लाह अपनी दिशा और अपने मक़सद के साथ किताबें अपने बच्चों को दे सकें। यह भी एक मसला है।

छपाई का मसला भी अहम मसलों में शामिल है। यहाँ कुछ साथियों ने बातचीत के दौरान मुझे प्रकाशन के संबंध में अच्छी सूचना दी है। फिर भी मेरी ताकीद है कि चूंकि किताबों की स्टडी बहुत हद तक छपाई पर निर्भर है, इसलिए लिखने का अंदाज़ अच्छा और आसान होना चाहिए।

बहरहाल यह मेला बहुत अच्छा है। अलहम्दो लिल्लाह आज हम ने यहाँ जो कुछ घंटे गुज़ारे, इससे दिली ख़ुशी मिली, यहाँ बहुत अच्छी चीज़ें देखने को मिलती हैं, नुमाइश में साहस, अच्छे नौजवानों की अच्छी सलाहियत और अलहम्दो लिल्लाह प्रेरणा देने वाले तत्व देखने को मिले।

पत्रकारः शुक्रिया! जनाबे आली से मेरा एक और सवाल यह था कि आपने फ़रमाया कि सुबह 8:30 से 11: 30 तक किताब मेले का मुआयना किया, किताबें और उनको को पढ़ने में आपकी दिलचस्पी की वजह क्या है और किस तरह की किताबें ख़ास तौर पर पढ़ते हैं, कैसी किताबें आपको पसंद हैं और नौजवानों के लिए किस तरह की किताबों को पढ़ने की सिफ़ारिश करेंगे?

मैं हर तरह की किताबें पढ़ता हूं। अब यह कि यह कहाँ से शुरू हुआ, इसकी एक तारीख़ है। यह कोई ख़ास बात नहीं है। लेकिन हाँ मैं हर तरह की किताबें पढ़ता हूं। किताब ज़्यादा पढ़ता हूं, कला और आर्ट की किताबें पढ़ता हूं, साइंटिफ़िक किताबें पढ़ता हूं, नावेल पढ़ता हूं, ख़ास तौर पर डायरियां, पाकीज़ा डिफ़ेंस और अहले बैत के रौज़ों की रक्षा के शहीदों से संबंधित किताबें जो छपती हैं, ये बहुत अहम किताबें हैं। ये एक तरह से किताब लिखने की नई क़िस्म है जिसने अलहम्दो लिल्लाह अच्छा रवाज पा लिया है और इस मैदान में औरतें ज़्यादा सरगर्म हैं। बहुत सी महिला लेखक, अच्छा लिख रही हैं, मैं उनकी किताबें ज़्यादा पढ़ता हूं।

आईआरआईबी पत्रकारः बहुत शुक्रिया, आपने मेहरबानी की।

14/5/2023