आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की मदह के सभी पहलुओं के ख़ूबसूरत होने पर ताकीद करते हुए इसे शियों की विरासत और ऐसी कला बताया जो अच्छी आवाज़, अच्छे शेर, मुनासिब धुन और अच्छी बातों से मिलकर वजूद में आती है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने समाज के वैचारिक विकास को शायरों और ख़तीबों की ज़िम्मेदारियों में गिनवाया और कहा कि मदह में इरफ़ान पैदा करने के अलावा जज़्बात को उभारना भी शामिल होता है, अलबत्ता ग़ौर व फ़िक्र के बिना जज़्बात फ़ायदेमंद नहीं है लेकिन शियों के प्रसंगों में आत्मज्ञान पैदा करने की बेनज़ीर ख़ूबी यह है कि इससे सुनने वालों में जज़्बात उभरने के साथ साथ आत्मज्ञान भी बढ़ता है।

उन्होंने बल दिया कि मदह करने वाले की हैसियत से आप देखिए कि आपका मक़ाम कितना ऊंचा है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि मदह की आकर्षक हक़ीक़त से इस्लामी इन्क़ेलाब की सेवा कीजिए। इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने मदह करने वालों पर बल दिया कि वे सरकश, ज़ालिम व साम्राज्यावादी ताक़तों और करप्शन के ख़िलाफ़ माहौल बनाने और मुल्क के नए बदलाव में अपना रोल अदा करें।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शायरों और ख़तीबों का एक और अहम काम कल्चर और माहौल बनाना बताया और कहाः ʺदुश्मन के मुक़ाबले में प्रतिरोध या हमलाʺ, ʺइल्मी तरक़्क़ीʺ, ʺफ़ैमिली गठित करना और बच्चों की पैदाइशʺ, ʺबसीरत पैदा करना और उम्मीद जगानाʺ और ʺजवानों के मन में दुश्मन के नाउम्मीदी पैदा करने के हथकंड़े के ख़िलाफ़ डट जानाʺ उन चीज़ों में शामिल हैं कि जिसके लिए कल्चर बनाने और सुनने वालों के फ़िक्री व अमली मार्गदर्शन की ज़रूरत है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के एक भाग में ईरान में हालिया महीनों में होने वाली घटनाओं में दुश्मन की साज़िश और कैल्कुलेशन की व्याख्या में कहा कि इन घटनाओं में दुश्मन की साज़िश तो मुकम्मल थी लेकिन उसका कैल्कुलेशन ग़लत था जिसकी वजह से उसको शिकस्त हुयी।

उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया कि दुश्मन ने किसी मुल्क को ठप्प करने और उसे तबाह करने के लिए सभी ज़रूरी तत्वों का इस्तेमाल ईरान के ख़िलाफ़ किया। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने उन तत्वों को गिनवाते हुए कहा कि आर्थिक तत्व मौजूद था क्योंकि मुल्क की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी और नहीं है, इस वजह से अवाम की आर्थिक मुश्किल, इस्तेमाल होने वाला एक बैकग्राउंड थी।

इस्लामी इन्क़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने कहा कि सेक्युरिटी तत्व, जासूसी टीमों की पैठ, प्रचार के मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से साम्राज्यवादियों का दुनिया में ईरानोफ़ोबिया का शोर, देश के भीतरी कुछ तत्वों को अपने हमराह करना, जातीय, धार्मिक, सियासी व निजी भावनाओं को भड़काना और बड़े पैमाने पर प्रचार, हंगामा फैलाने के दूसरे तत्व थे, लेकिन इसके बावजूद वे कामयाब नहीं हुए, क्योंकि उनका अंदाज़ा (कैलकुलेशन) ग़लत था।

उन्होंने दुश्मन के ग़लत कैलकुलेशन की मिसाले गिनवाते हुए कहा कि वे सोच रहे थे कि ईरानी क़ौम आर्थिक मुश्किल की वजह से मुल्क को तोड़ने और सिस्टम को गिराने में उनका साथ देगी, वे सोच रहे थे कि गालियों से और बुरा भला कहकर, अपमान करके मुल्क के अधिकारियों को पीछे हटने और मैदान से हटने पर मजबूर कर देंगे, वे सोच रहे थे कि उकसावे और हंगामे के ज़रिए मुल्क के उच्चाधिकारियों में मतभेद पैदा कर देंगे।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आगे कहा कि दुश्मन ये सोच रहे थे कि अमरीका के किसी पिट्ठू के पेट्रो डॉलर से इस्लामी जुम्हूरिया के इरादे पर असरअंदाज़ हो जाएंगे। वे सोच रहे थे कि कुछ ज़मीर फ़रोश तत्वों को विदेश में पनाह की लालच देकर और ईरान के ख़िलाफ़ ज़हरीले प्रोपैगन्डे से हमारी जवान नस्ल को नाउम्मीद कर ले जाएंगे।  वे ग़लतफ़हमी का शिकार थे क्योंकि इस्लामी जुम्हूरिया का इरादा उनकी ताक़त के सभी तत्वों से ज़्यादा ताक़तवर था।  

इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने कहा कि दुश्मन 40 साल से इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ़ मुख़्तलिफ़ हथकंडों से कोशिश कर रहे हैं लेकिन चूंकि उनके कैल्कुलेशन ग़तल थे और हैं इसलिए वे अब तक शिकस्त खाते रहे और  भविष्य में भी शिकस्त खाएंगे।

उन्होंने कहा कि मुल्क में मुख़्तलिफ़ तरह के नज़रिये पाए जाते हैं, लेकिन इस्लाम, सिस्टम और इन्क़ेलाब के बारे में अवाम एकमत है। इसलिए हमें इस एकता व सहमति को ख़त्म नहीं होने देना चाहिए और जातीय व धार्मिक मतभेद तथा एक गुट के ज़रिए दूसरे गुट के जज़्बात भड़काने के अमल में मदद नहीं करनी चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के आख़िर में अहम बातों को समाज में पहुंचाने में तरानों को धार्मिक शायरी व मद्दाही में मिलाने के क़दम की सराहना करते हुए कहा कि इन्क़ेलाब की बरकतें, दिन ब दिन मुल्क के बाहर भी ज़्यादा से ज़्यादा सामने आ रही हैं जिसका एक नमूना 'सलाम फ़रमान्दे' नामी तराने का दूसरे मुल्कों तक फैल जाना और उसे मुख़्तलिफ़ ज़बानों यहाँ तक कि फ़ारसी ज़बान में पढ़ा जाना था और इस तरह की चीज़ें मुल्क की मज़बूती में मददगार हो सकती हैं।

इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में आठ शायरों, ज़ाकिरों और मदह करने वालों ने अपने अपने तरीक़ों से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की फ़ज़ीलत बयान की।