इन पिछली सदियों में इंसानियत का कारवां विभिन्न रास्तों, कठिन और सख़्त वादियों से गुज़रा है, उसे विभिन्न बाधाओं और कठिनाइयों का सामना हुआ है, वह घायल जिस्म और लहूलहान क़दमों के साथ इन रास्तों पर चला है कि किसी तरह ख़ुद को शाहराह पर पहुंचा दे। ये शाहराह वही इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के ज़माने की शाहराह है। ज़ुहूर का ज़माना ही अस्ल में इंसान के एक नए सफ़र के आग़ाज़ का बिंदु है। अगर महदवीयत का अक़ीदा न हो तो इसका मतलब ये होगा कि अल्लाह के पैग़म्बरों की सभी कोशिशें, हक़ की दावत, पैग़म्बरों का भेजा जाना, ये बड़ी बड़ी मुसीतबतें बर्दाश्त करना सब का सब बेफ़ायदा था, बेकार था। इस लिए महदवीयत का अक़ीदा एक बुनियादी मामला है। अल्लाह की सबसे बुनियादी तालीमात का हिस्सा है। यही वजह है कि सभी इब्राहीमी धर्मों में, जहां तक हमें सूचना है, बुनियादी दर्जा रखने वाले इस अक़ीदे का वुजूद है और वही हक़ीक़त में महदवीयत का अक़ीदा है। अलबत्ता इस अक़ीदे के रूप अलग अलग हैं और उनमें फेर-बदल हो चुका है, उनमें स्पष्ट रूप से इस अक़ीदे को बयान नहीं किया गया है।

इमाम ख़ामेनेई

9/7/2011