बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

मैं आप सभी लोगों को ख़ुश आमदीद कहता हूं। यह मुलाक़ात वाक़ई बहुत अच्छी और अलग अंदाज़ की है। इस बैठक में हमें मुसलमानों के एक ख़ास हिस्से के बीच इन्टरनेशनल कोआपरेशन और ताल-मेल की झलक नज़र आ रही है।

अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली एक अहम सेन्टर है, एक बड़ा फोरम है। यह फोरम, अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से जुड़ा है और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम को, इस्लामी दुनिया में जिस अज़मत और अक़ीदत की नज़र से देखा जाता है उसकी मिसाल नहीं मिलती। यानी इस्लामी दुनिया में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम जैसी हस्तियां नहीं मिल सकतीं जिन्हें पूरी इस्लामी दुनिया में सब की नज़रों में इस तरह से सम्मान और मक़बूलियत हासिल हो। यह महानता व अज़मत, यह रूहानी जलाल व शान व शौकत स्वाभाविक तौर पर इस फोरम और सेन्टर में भी नज़र आती है जो अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के नाम पर बना है। इस नाम की वजह से यह फोरम अहम हो जाता है, महान हो जाता है और इसी लिए इस महानता और अज़मत से फ़ायदा उठाना चाहिए। टाइटल और नाम तो ज़रिया हैं, वजह हैं, नतीजे तक पहुंचना अहम है, नतीजा क्या है? नतीजा यह है कि इस सेन्टर और इस इदारे को पूरी दुनिया के सारे मुसलमानों की तवज्जो का मरकज़ और सीख हासिल करने की जगह होना चाहिए। आप का आर्ट यह है कि इस अहम फोरम यानी अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली को ऐसा सेन्टर बना दीजिए  जहां से पूरी इस्लामी दुनिया के लोग बहुत कुछ सीखें और जहां से इस्लामी दुनिया के लोगों के शौक़ से भरे दिलों और रूहों की प्यास बुझ सके।

इसी सिलसिले में मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं। सब से पहली बात तो यह है कि इस असेंबली के मेंबरों के कांधों पर बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। इमाम अलैहिस्सलाम की यह हदीस कि “हमारे लिए ज़ीनत और शोभा बनो”(2) हम सब के लिए है, हम सब को ख़्याल रखना चाहिए लेकिन आप लोगों के सिलसिले में इस चीज़ की ताकीद और ज़्यादा है। आप के मिशन की अहमियत की वजह से यह “हमारे लिए ज़ीनत बनो“ की हदीस इस असेंबली और इसके मेंबरों और इसमें काम करने वालों के लिए ज़्यादा ख़ास है। अब अगर हम इस पर अमल करना चाहें तो हमारे लिए ज़रूरी है कि हम इस असेंबली को अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तालीमात को फैलाने का सेन्टर बना दें।  यह बहुत अहत बात है कि अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तालीमात ज़िदंगी के किसी एक हिस्से तक सीमित नहीं, जो भी अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों तो देखेगा इस बात को तसलीम करेगा कि अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तालीमात हर चीज़ और हर मौज़ू को अपने अंदर समेटे हैं। अल्लाह, तौहीद, इरफ़ान, रूहानियत, अख़लाक़ निजी ज़िम्मेदारियां, घरेलू ज़िम्मेदारियां, सोशल ज़िम्मदारियां यहां तक कि मुल्क चलाने और सिविलाइज़ेशन तक की ज़िम्मेदारियां, सब कुछ अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों में मौजूद है।

आज इस्लामी समाज को इन सब की ज़रूरत है। आप जिस इस्लामी मुल्क पर भी नज़र डालेंगे आप यह देखेंगे कि उसे इस क़िस्म की रूहानी तालीमात की ज़रूरत है, उसे इसी तरह इल्म से जुड़ी चीज़ों की ज़रूरत होती है, चाहे निजी ज़िंदगी हो या छोटी सतह पर समाजों की ज़िंदगी या फिर सियासी और सिविलाइज़ेशन की सतह पर बड़े समाजों की ज़िंदगी हो, हरेक को इन तालीमात की ज़रूरत है। आज इस्लामी दुनिया को इसकी ज़रूरत है। आज इस्लामी दुनिया को अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की इन तालीमात की सख़्त ज़रूरत है लेकिन इस्लामी दुनिया में इसकी जगह ख़ाली है इन तालीमात की कमी है। आप सही तरीक़े से और तवज्जो के साथ प्लानिंग करके और इस्लामी दुनिया की सतह पर गंभीरता के साथ कोशिश करके, लॉजिकल और असरदार तरीक़ों की मदद से जो आजकल बहुत ज़्यादा हैं, अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तालीमात को अलग अलग समाजों में फैला सकते हैं, वहां के पढ़े लिखे लोगों तक और आम लोगों तक भी। यह एक बात है। यह एक बड़ी ज़िम्मेदारी है जो मेरी नज़र में इस असेंबली के कांधों पर है।

दूसरी बात यह है कि अहलेबैत के मानने करने वालों को इस बात पर फ़ख़्र है कि सामराज्यवाद और दुनिया पर अपना क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश करने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ सब से असरदार मुहिम उनकी तरफ़ से शुरु हुई। नारे तो बहुत लगाए जाते हैं लेकिन अमली तौर पर जो चीज़ सामने नज़र आती है वह बिल्कुल खुली किताब है और सब के सामने है और वह चीज़, इस्लामी जुम्हूरिया का परचम है। शियों को इस बात पर फ़ख्र है कि वह पूरी दुनिया पर क़ब्ज़े की ख़्वाहिश रखने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ खड़े हुए, ढाल बन गये और सात सिरों वाले अजगर (ड्रैगन) को आगे बढ़ने से रोक दिया जो पूरी दुनिया के मुल्कों और कौम़ों के मामलों में ज़ालेमाना और जाबेराना अंदाज़ में दख़ल देता था। यही वजह है कि आज ख़ुद यह ताक़तें क़ुबूल करती हैं कि उनके बहुत से ख़्वाब इस्लामी जुम्हूरिया की वजह से बिखर गये और ख़त्म हो गये। यह इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत के लिए एक फ़ख़्र की बात है। यह सब कुछ सिर्फ़ मासूम इमामों और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के बयानों की देन है। इन्ही हस्तियों ने हमें क़ुरआने मजीद से सीखने और उस पर ग़ौर करने की सिफ़ारिश की, इसके लिए हमारा हौसला बढ़ाया और यही हस्तियां हैं जिन्होंने क़ुरआने मजीद की तालीम हमें दी, यही लोग थे जिन्होंने अपने तौर तरीक़ों से हमें यह सिखाया कि अमल कैसे किया जाए, यह सिलसिला हज़रत अली अलैहिस्सलाम से लेकर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम तक जारी रहा।

ज़ाहिर सी बात है कि इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत का यह परचम, दर अस्ल इंसाफ़ और रूहानियत का परचम है यानी यहां पर कुछ भी अंधेरे में नहीं है। इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत का परचम वही है जिसे नबियों ने उठा रखा था, जिसे इमामों ने उठाया था। आप लोग बहुत सी ज़ियारतों में,  चाहे इमाम हुसैन की ज़ियारत हो या इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत हो, यह ज़िक्र करते हैं कि यह हस्तियां, नबियों और पैग़म्बरों की वारिस हैं “सलाम हो आप पर ऐ इब्राहीम ख़लीलुल्लाह के वारिस! सलाम हो आप पर ऐ मूसा कलीमुल्लाह के वारिस (3) यह वही परचम है, इमामों का परचम है, नबियों का परचम है और इस परचम पर दो लफ़्ज़ हैं, इन्साफ़ और रूहानियत।

आप ग़ौर करें ज़ाहिर सी बात है कि जब आप इन्साफ़ और रूहानियत का परचम उठाएंगे तो स्वाभाविक रूप से उन लोगों की तरफ़ से रिएक्शन होगा जो धौंस व धांधली में यक़ीन रखते हैं और बस दुनियावी चीज़ों के बारे में ही सोचते हैं क्योंकि यह चीज़ इंसाफ़ और रूहानियत के बिल्कुल उलट और दूसरी तरफ़ है। कुछ लोग हम से कहते हैं कि “आप ने अपनी उस बात से, उस काम से, उस फ़ैसले से ज़बरदस्ती की दुश्मनी मोल ले ली।“ जी नहीं! हम ने इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत का परचम लहरा कर दुश्मनी मोल ली, हमने अल्लाह के अहकाम को पेश करके उन्हें अपना दुश्मन बना लिया। जब आप इंसाफ की बात करते हैं तो ज़ुल्म और धौंस-धांधली पर टिकी साम्राज्यवादी दुनिया आप के ख़िलाफ़ खड़ी हो जाएगी। जब आप रूहानियत की बात करेंगें तो हर चीज़ को रूपये पैसे में तौलने वाले और इसी दुनिया को सब कुछ समझने वाले लोग आप के ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे, यह एक स्वाभाविक चीज़ है। इस बुनियाद पर, इस्लामी जुम्हूरिया के मिशन के ख़िलाफ़ साम्राज्यवादी ताक़तों की जंग और कोशिशें एक फ़ितरी चीज़ है और यह उनकी मजबूरी है। आज साम्राज्यवादी ताक़तों का सरग़ना, अमरीका है, और कुछ नहीं है। इस बात से सब को अमरीका के सिलसिले में अपनी ज़िम्मेदारी का पता चल जाना चाहिए। आज हमारा सक्रिय दुश्मन और दुश्मनों का सरग़ना, अमरीका है। यह एक बात थी।

हमारी इस दूसरी बात को पूरा करने वाली एक और बात भी है और वह यह है  कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने सब को यह सिखाया कि वह इस्लामी समाजों के बीच खींची गयी लकीरों को बे रंग बना दें, अलग करने वाली बस एक ही लकीर है। उस लकीर के एक तरफ़ इस्लाम व ईमान है और दूसरी तरफ़ कुफ़्र व साम्राज्यवाद है, यह इमाम ख़ुमैनी ने हम सब को सिखाया है। इमाम ख़ुमैनी ने हमें जिन लकीरों को मिटाने की तालीम दी है वह, कम्युनल लकीरें हैं, क़ौम परस्ती की लकीरें हैं, नस्ल और पार्टी और धड़े और इस तरह की लकीरें है, उन्होंने इन सब लकीरों को भूल जाने और मिटा देने को कहा है। बांटने वाली एक ही लकीर है और वह इस्लाम, इस्लामी हुकूमत, इस्लाम की सियासी शक्ल और अमरीका की अगुवाई में साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच खींची गयी है। इस लकीर को स्पष्ट रहना चाहिए। इमाम ख़ुमैनी ने पहले दिन से ही इस लकीर को बहुत स्पष्ट रूप में खींचा है, इस्लामी इन्क़ेलाब के शुरु से नहीं बल्कि इस्लामी इन्क़ेलाब के लिए मुहिम शुरु होते ही यानी जब इमाम ख़ुमैनी ने यह मिशन शुरु किया मतलब इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी से 15 बरस पहले से। इमाम ख़ुमैनी का यह काम, क़ुरआने मजीद की आयत की बुनियाद पर था। “तुम्हारे लिए इब्राहीम में नेक नमूना था और जो लोग उनके साथ थे उनमें भी जब उन्होंने अपनी क़ौम वालों से कहा कि हम तुम से बराअत का एलान करते हैं और उन सब चीज़ों से  जिनकी  अल्लाह को छोड़ कर तुम पूजा करते हो, हम तुम्हें झूठा कहते हैं और हमारे और तुम्हारे बीच दुश्मनी और नफ़रत है हमेशा के लिए यहां तक कि तुम एक अल्लाह पर ईमान ले आओ। (4) क़ुरआने मजीद की इस आयत की बुनियाद पर इमाम ख़ुमैनी ने यह फ़ैसला किया था लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मज़हब और राय में जो भी हमारे ख़िलाफ़ है, हम उससे दुश्मनी और नफ़रत करते हैं, जी नहीं। सूरए मुमतहना की ही एक दूसरी आयत में कहा गया है कि “अल्लाह तुम लोगों को उन लोगों के साथ नेकी करने से नहीं रोकता जिन लोगों ने दीन के मामले में तुम से जंग नहीं की और न ही तुम्हें अपने घरों से निकाला है।“ (5) इसके बाद कहा गया है कि “अल्लाह तुम्हें उन लोगों के साथ अच्छा बनने से रोकता है जिन्होंने दीन के लिए तुम से जंग की और तुम्हें अपने घरों से निकाल दिया।“ (6) इस तरह पता चलता है कि इमाम ख़ुमैनी की सिफ़ारिश और उनके काम की बुनियाद, क़ुरआने मजीद की आयत है और यह मोतबर है। एक अलग करने वाली लकीर और बांटने वाली ख़ाई जो है वह इस्लामी दुनिया और कुफ़्र व  साम्राज्यवाद की दुनिया के बीच है। बाक़ी सारी लकीरों को हल्का करना चाहिए, उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए, सुन्नी, शिया, ईरान, फ़ुलां मुल्क, अरब ग़ैर अरब, रंग, नस्ल, यह-वह और इस तरह की सारी चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया जाना चाहिए।

यही वजह है कि आप सब ने देखा कि इन्क़ेलाब की कामयाबी की शुरुआत से ही हमारे मुल्क में फ़िलिस्तीन का मुद्दा उठाया गया। फ़िलिस्तीन के मामले को खुल कर सामने लाया गया। मैं किसी की मिसाल नहीं लाना चाहता लेकिन हम ने देखा है कि इस्लामी दुनिया में कुछ लोगों ने इस्लाम के नाम पर मिशन शुरु किया, इन्क़ेलाब लाए, लेकिन न सिर्फ़ यह कि उन्होंने ख़बीस ज़ायोनियों का मुक़ाबला नहीं कया बल्कि उनसे दोस्ती भी कर ली और इसका ख़मियाज़ा भी उन्हें फ़ौरन भुगतना पड़ा। इस्लामी जुम्हूरिया ने यह ग़लती नहीं की, इमाम ख़ुमैनी ने यह ग़लती नहीं की। इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी के शुरु में ही यहीं पर ज़ायोनी हुकूमत की एंबेसी कही जाने वाली इमारत को, उनसे ले लिया गया और उसे फ़िलिस्तीनियों के हवाले कर दिया गया। इमाम ख़ुमैनी अपने पूरे वजूद के साथ फ़िलिस्तीन के लिए खड़े हुए। इमाम ख़ुमैनी के लिए लेबनान में जेहाद करने वाले शिया हिज़्बुल्लाह और फ़िलिस्तीन में जेहाद करने वाले किसी भी गिरोह के बीच कोई फ़र्क़ नहीं था यानी वह दोनों को इस्लामी की राह में जेहाद करने वाला समझते थे। जो भी जितना इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत से, हमारे कामों से, हमारे अमल से, हमारे नज़रिये से क़रीब है यक़ीनन वह हमसे ज़्यादा क़रीब होगा। यह बहुत अहम बात है। इसकी वजह से ईरान और पूरी इस्लामी दुनिया की क़ौमों के बीच ऐसी नज़दीकी पैदा हो गयी है जिसकी मिसाल नहीं मिलती, इसे आज देखा जा सकता है। आज इस्लामी दुनिया के पूरब में, इस्लामी दुनिया के पश्चिम में एशिया के आख़िरी सिरे से, अफ़्रीका के बीच तक, क़ौमें, ईरानी क़ौम को पसंद करती हैं, हुकूमतों की बात नहीं हो रही है, उनकी हालत दूसरी है, क़ौमों की और वहां के अवाम की बात हो रही है। यह इस लिए है क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ने इन लकीरों को मिटाने की बात की है।

आज भी इस्लामी जुम्हूरिया, इमाम ख़ुमैनी की इसी पॉलिटिकल इंजीनियरिंग के तहत है। इमाम ख़ुमैनी ने यह राह, इस्लामी हुकूमत के लिए बनायी और आज भी हम उसी राह पर चल रहे हैं और इन्शाअल्लाह आगे भी चलते रहेंगे। इमाम ख़ुमैनी के नज़रिये की बुनियाद यह आयत है “काफ़िरों के बारे में सख़्त और आपस में एक दूसरे के लिए नर्म दिल“। (7) हम ने कभी किसी मुल्क से नहीं कहा कि वह हमारे पॉलिटिकल सिस्टम और मॉडल की पैरवी करे, जी नहीं, हमने यह बात कभी  किसी मुल्क से न कही है और न ही कहेंगे। हमारा कहना यह है कि इस्लामी उसूलों के मुताबिक़ काम करें जिसे उसी आयत में बयान किया गया है जिसकी तिलावत मैंने की है और इसी तरह सूरए फ़त्ह की “काफ़िरों के बारे में सख़्त और आपस में एक दूसरे के लिए नर्म दिल“ वाली आयत इसी तरह की है। यह इस्लामी उसूल हैं। हम इन्शाअल्लाह आगे भी दूरी पैदा करने की कोशिशों के सामने खड़े होंग जैसा कि अब तक डटे हुए हैं।

एक दूसरी बात यह भी है कि जब हम एक तरफ़ इतनी बड़ी इस्लामी दुनिया और दूसरी तरफ़ साम्राज्यवाद और दुनिया पर हुकूमत की चाह रखने वाली ताक़तों के बीच मौजूद लकीर को गहरा करते हैं, जिसके बारे में मैं अभी कुछ बात करुंगा, तो ज़ाहिर सी बात है कि इस पर रिएक्शन आएगा, इन ताक़तों के लिए भी यह बर्दाश्त करना सख़्त है। साम्राज्री ताक़तों को यह आदत है कि जब वह ग़ुंडागर्दी करें तो कोई उनका विरोध न करे। पिछले सौ बरसों से दूसरी क़ौमों पर हमला करने और ज़ोर ज़बरदस्ती और ताक़त की ज़बान इस्तेमाल करने की आदी यह दुनिया अब देख रही है कि एक क़ौम, दुनिया की इतनी अहम जगह पर, इतने अहम इलाक़े में, सीना तान कर खड़ी हो गयी है और अपने रवैये से, अपनी बातों से, उसके सामने डट जाने के लिए मुसलमानों का हौसला बढ़ा रही है, साम्राज्यवाद के सामने खड़े होने का उनमें जज़्बा जगाती है तो ज़ाहिर सी बात है कि यह उनके लिए क़ाबिले क़ुबूल नहीं है। तो फिर वह दुश्मनी पर उतर आते हैं, उन्हें यह बहुत खलता है। दुनिया के बहुत से मुल्कों में जब इस्लामी जुम्हूरिया के हाथों उनकी साज़िशें नाकाम हो जाती हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें इस पर ग़ुस्सा आता है, इन साज़िशों की एक मिसाल दाइश है। दाइश को तो अमरीका ने बनाया था, ख़ुद उन्होंने यह माना है। तो जब इस्लामी जुम्हूरिया ईरान मैदान में कूद पड़ता है और अपनी पूरी ताक़त से इस साज़िश और प्लानिंग के सामने खड़ा हो जाता है, तो यह उनके लिए बर्दाश्त के क़ाबिल नहीं है, इसी लिए वह रिएक्शन दिखाते हैं। इतने बड़े पैमाने पर ईरानोफ़ोबिया, शिया फ़ोबिया, इस मुल्क में, उस मुल्क में दख़लअंदाज़ी का ईरान पर जो इल्ज़ाम लगाते हैं उसकी वजह, अपनी साज़िशों की नाकामी पर अमरीका की झल्लाहट है। इस लिए आप देख रहे हैं कि उनके बस में जो कुछ है और जितना भी है उसकी मदद से और प्रोपैगंडे के अलग अलग तरीक़े इस्तेमाल करके ईरान से और शियों से दुनिया को डराने की कई तरह की कोशिशें करते हैं। एक बात यह बहुत दोहराते हैं कि ईरान क्यों फ़ुलां मुल्क में दख़ल देता है! जबकि ईरान किसी भी मुल्क में दख़ल नहीं देता।

हमारी पॉलिसी, दूसरे मुल्क़ों पर क़ब्ज़ा और अपना रसूख़ जमाने की कोशिश करने वाली ताक़तों और उनके ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा होना है, उन्हें इसी पर ग़ुस्सा आता है, इस लिए इस्लामी जुम्हूरिया ईरान पर तरह-तरह के इल्ज़ाम लगाती हैं। सब इस बात का ख़्याल रखें कि अमरीका की इस साम्राज्यवादी साज़िश में कहीं उसके मददगार न बन जाएं। आज अमरीकी जो भी कर रहे हैं, हमारी नज़र में यानी हमारे विशलेषण के हिसाब से, वह उनकी कमज़ोरी और बेबसी का नतीजा है। यह जो क़त्ल हो  रहे हैं, अजीब तरह के प्रोपैगंडे किये जा रहे हैं वह इस लिए है क्योंकि वह मजबूर हैं, कुछ कर नहीं पा रहे हैं। अस्ल चीज़ इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की तरक़्क़ी है, अस्ल चीज़ इस्लामी हुकूमत के नारों की गैर मामूली और बड़ी कामयाबी है, अस्ली चीज़ यही है, यही थी और आख़िर तक यही रहेगी, उन्हें मजबूर होकर धीरे-धीरे पीछे हटना ही होगा। यह सच्चाई है और यही होगा। इसके मुक़बले के लिए उन्हें कुछ न कुछ तो करना होता है। इस लिए वह हस्तियों के क़त्ल, प्रोपैगंडे और इस तरह की चीज़ों का सहारा लेते हैं। घटिया लोगों को इस्लामी दुनिया की नूरानी हस्तियों को बुरा-भला कहने पर तैयार करते हैं।

उनकी एक और साज़िश है जिसकी तरफ़ से बहुत होशियार रहने की ज़रूरत है। वह साज़िश यह है कि साम्राज्यवाद, इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए खींची गयी इस लकीर को बदलना चाहता है। यानी इस्लामी दुनिया के बीच खिंची लकीरों को, शिया-सुन्नी, अरब-ग़ैर अरब, कभी शिया-शिया, कभी सुन्नी-सुन्नी को लड़ा कर गहरा करना चाहता है जिसकी मिसालें आज आप बहुत से मुल्कों में देख रहे हैं। एक सुन्नी धड़े की दूसरे सुन्नी धड़े से जंग, एक शिया धड़े की दूसरे शिया धड़े से लड़ाई! यह साम्राज्यवादी ताक़तों की साज़िश है। यह अमरीका की साज़िश है, यह उनकी तरफ़ से उकसाए जाने का नतीजा है और उनकी प्लानिंग है जो तैयार की गयी है, होशियार रहने की ज़रूरत है, यह शैतान की ख़्वाहिश है। इमाम ख़ुमैनी ने कहा कि अमरीका बड़ा शैतान है (8) और क़ुरआने मजीद का कहना है कि “शैतान तो बस शराब और जुए से तुम लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करता है।“ (9) बात सिर्फ़ शराब और जुए की नहीं। अस्ली बात यह है कि शैतान तुम्हारे बीच दुश्मनी पैदा करना चाहता है, इस काम का एक ज़रिया शराब और जुआ है, अगर वह दूसरी चीज़ों की मदद से भी दुश्मनी और नफ़रत पैदा कर पाएगा तो यह काम करेगा, यह फ़ितरी बात है। तो अस्ल बात यह है कि “शैतान तुम लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करना चाहता है।“ अब आप जहां भी दुश्मनी और नफ़रत देखें, वहां शैतानी हाथ तलाश करें। इससे बचने का क्या रास्ता है? यह एक अलग सब्जेक्ट है, हर जगह के लिए अलग-अलग उपाय है। इसके लिए सोचना होगा, तरीक़ा तलाश करना होगा। दुश्मन की शैतानी पॉलीसियों की तरफ़ से होशियार रहना चाहिए।

हम अहलेबैत के मानने वालों को आपसी मेल-मिलाप और यूनिटी के मैदान में सब से आगे रहना चाहिए। पहले दिन से ही हमने कहा कि अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली बनाने का मतलब, ग़ैर शिया लोगों से दुश्मनी और मुक़ाबला करना नहीं है, इस बात का सब को पता होना चाहिए। आप देख ही रहे हैं कि शुरु से ही इस्लामी जुमहूरिया ईरान ने जो लोग शिया नहीं हैं लेकिन एक सही रुख़ अपनाए हुए हैं, एक सही राह पर आगे बढ़ रहे हैं, उनका साथ दिया है। इस्लामी दुनिया में कौन है जो ग़ज़्ज़ा के लोगों की फ़िलिस्तीनियों की, ईरानियों जितनी मदद करता है? जो मुल्क उनके मसलक वाले हैं उन्होंने इसका सौवां हिस्सा भी उनकी मदद नहीं की है, बल्कि कभी-कभी तो नुक़सान भी पहुंचाया है, चोट भी लगायी है।

एक और बात कहता चलूं। जब मुक़ाबले और साज़िशों को नाकाम बनाने की बात होती है तो यह सवाल पूछा जाता है कि क्या हम यह कर सकते हैं? क्या हम उनका मुक़ाबला कर सकते हैं? मेरा जवाब यह है कि बिल्कुल, यक़ीनन, सौ फ़ीसदी हम मुक़ाबला कर सकते हैं। साम्राज्यवाद को रोकने और फिर उसे पीछे धकेलने के लिए इस्लामी दुनिया में सलाहियतें बहुत ज़्यादा हैं, साफ़्ट पावर के लिहाज़ से भी और हार्ड पावर के लिहाज़ से भी। यानी सॉफ्ट पावर और हार्ड पावर दोनों से लिहाज़ से इस्लामी दुनिया में ताक़त है। हमारी सॉफ्ट पावर, हमारा अक़ीदा है। दुनिया के बारे में हमारा नज़रिया उम्मीद पर आधारित है, तारीख़ और तारीख़ के सफ़र के बारे में हमारी नज़र, पूरी तरह से साफ़ है, उम्मीद से भरी है। हम एक बहुत बड़ी ताक़त से जुड़े हैं कि जो हमें ऊर्जा देती है, हमें उम्मीद देती है। हम तो अल्लाह पर भरोसा करने वाले लोग हैं, जिन लोगों को ख़ुदा पर भरोसा नहीं होता, उनके पास यह सहारा भी नहीं होता, वे नाउम्मीद हो जाते हैं, उन पर मायूसी छा जाती है, उनकी ताक़त ख़त्म हो जाती है, वे बीच राह में रुक जाते हैं। शोर बहुत मचाते हैं लेकिन अंदर से वे खोखले होते हैं। आज वेस्ट, नज़रियात और थ्योरी व आइडियालॉजी के लिहाज़ से बंद गली में पहुंच चुका है, इस दुनिया के बहुत से मामले उनकी समझ से बाहर हैं, उनकी वजह उनकी समझ में नहीं आती, आज की दुनिया के बहुत से मामले, उनके लिबरल डेमोक्रेटिक नज़रिये में फिट नहीं बैठते। लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है, हमारे पास हर मामले का हल मौजूद है। इन्सान का रोल, इन्सान के इरादे का रोल, अल्लाह पर भरोसे का रोल, तारीख़ का रोल, इमाम महदी अलैहिस्सलाम का अक़ीदा और इस्लाम का रौशन मुस्तक़बिल, बहुत सी चीज़ें हमारे लिए बिल्कुल साफ़ हैं, लेकिन उनके लिए नहीं, उनके सामने अंधेरा है, उनके हाथ ख़ाली हैं, यह तो इस्लामी दुनिया के सॉफ़्ट पॉवर की बात हुई।

इस्लामी दुनिया के हार्ड पॉवर की जहां तक बात है तो सही है कि उन्होंने बरसों इस्लामी दुनिया के रिसोर्सेज़ और क़ुदरती संपदाओं को ख़ूब इस्तेमाल किया, शोषण और दूसरे तरीक़ों से ख़ुद को मज़बूत कर लिया, लेकिन इस्लामी दुनिया में तरक़्क़ी के लिए अब भी बहुत कुछ है, बड़ा रक़बा, ग़ैर मामूली रिसोर्सेज़ जिन पर आज के इन्सान की ज़िंदगी टिकी हुई है। आज आप दुनिया में तेल व गैस के विषय को देख रहे हैं कि यह कितना अहम है, ज़ाहिर सी बात है यह इस्लामी दुनिया की दौलत है, इस्लामी दुनिया इन चीज़ों को बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल कर सकती है।

पुराने दौर में भी हमारे पास यह सब कुछ था। पहले, साम्राज्यवाद और नये साम्राज्यवाद के दौर में, यह सारी नेमतें थीं लेकिन जो चीज़ नहीं थी वह पक्का इरादा था, जो चीज़ नहीं थी, वह दुश्मन की पहचान थी। हमारी क़ौम, साम्राज्यवाद के दौर में दुश्मन को नहीं पहचानती थी, दुश्मन से मुक़ाबले के लिए उसके पास ठोस इरादा नहीं था, इमाम ख़ुमैनी की तरह, उन्हें रास्ता दिखाने वाला कोई रहनुमा उनके पास नहीं था, इसी लिए वह कुछ नहीं कर पाए। आज ख़ुदा के शुक्र से यह सब कुछ मौजूद है, क़ौमों में ज़रूरी ठोस और पक्का इरादा भी है। क़ौमें अब तैयार हैं, बुद्धिजीवी और अहम शख़्सियतें भी तैयार हैं। यक़ीनी तौर पर कुछ कमज़ोरियां नज़र आती हैं लेकिन यह कमज़ोरियां हमारी, लापरवाही और कमी की वजह से हैं। यह जो मैं कहता हूं कि वर्ल्ड असेंबली पर भारी ज़िम्मेदारी है, तो अस्ल में इस मैदान में जिन इदारों को काम करना चाहिए उनमें से एक आप लोगों का इदारा भी है और दूसरे बहुत से इदारे, बेशक हमारी इस्लामी हुकूमत पर सब से ज़्यादा और बड़ी ज़िम्मेदारी है। अगर कहीं कोई कमी है तो वह हमारी वजह से है, वर्ना आज गुंजाइश बहुत है, इस्लामी मुल्कों की अहम शख़्सियतें तैयार हैं, सच में तैयार हैं, समाज के लोग भी। इस्लामी दुनिया के सामने ज़िन्दा मिसाल ईरान की इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत है।

इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत एक ज़मीनी सच्चाई है जो सामने मौजूद है सिर्फ़ वादा नहीं है कि हम यह काम करेंगे! नहीं वह हुकूमत है जो बन चुकी है और मेरी नज़र में तो इस्लामी हुकूमती सिस्टम के वुजूद में आने से ज़्यादा अहम, उसका बाक़ी रहना है। इतनी दुश्मनी और दुश्मनों के सामने इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत खड़ी रही, बची रही, यह हमले, यह तरह-तरह से चोट पहुंचाना, सब्र का इम्तेहान लेना, यह सब कुछ बर्दाश्त कर ले गयी, खड़ी रह गयी, बाक़ी रह गयी और ज़्यादा मज़बूत बन सकी। आज इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत, तीस चालीस साल पहले वाली नहीं है, आज ख़ुदा के शुक्र से वह छोटा सा पौधा एक मज़बूत पेड़ में बदल चुका है, यह एक मॉडल है, आइडियल है। वैसे हमने कहा कि यह जो हम कहते हैं कि इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत, मॉडल है तो उसका मतलब यह नहीं होता कि सारे इस्लामी मुल्कों में ईरान की इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत की तरह का पॉलिटिकल सिस्टम लाया जाए, नहीं! सियासी ढांचा बदल सकता है। ख़ुद हमने भी अपने सियासी ढांचे को एक वक़्त में बदला है, शुरु से आज तक कई बदलाव आए इस लिए दूसरे मुल्कों में हो सकता है कि अलग तरह का सियासी ढांचा हो। अस्ल चीज़ उसूल है, बुनियाद है, वह उसूल जिन्हें इमाम ख़ुमैनी ने बयान किया है अस्ल चीज़, “काफ़िरों से सख़्त और आपस में रहम दिल” है अस्ल चीज़, “ मोमिन को अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए“ (10) है। अस्ल चीज़ें यह सब हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

बहरहाल अल्लाह की मदद से इस्लाम का मुस्तक़बिल रौशन है, हम इस्लामी दुनिया के मुस्तक़बिल को बहुत अच्छा समझते हैं, दुनिया भर के शिया बहुत बड़ा रोल अदा कर सकते हैं और आप अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली के तौर पर बहुत ज़्यादा रोल अदा कर सकते हैं। मैं ख़ुदा से आप सब की कामयाबी की दुआ करता हूं। आप सब को एक बार फिर ख़ुश आमदीद कहता हूं और मुबारकबाद देता हूं। ख़ुदा करे आप सब को कामयाबी मिले, अल्लाह की मदद मिले और आप यह काम अच्छी तरह से कर सकें और इस सफ़र में यहां आप अच्छा वक़्त गुज़ारें।  

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

 

  1. इस मुलाक़ात के शुरु में कि जो अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली की सातवीं कान्फ्रेंस के आख़िरी दिन हुई, असेंबली के सेक्रेटरी जनरल हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन रज़ा रमज़ानी ने रिपोर्ट पेश की।
  2. आमाली सदूक़, पेज 400
  3. कामिलुज़्ज़ियारात, पेज 206
  4. सूरए मुमतहना, आयत नंबर 4
  5. सूरए मुमतहना, आयत नंबर 8
  6. सूरए मुमतहना, आयत नंबर 9
  7. सूरए फ़त्ह, आयत 29
  8. सहीफ़ए इमाम ख़ुमैनी, जिल्द 16, पेज 154
  9. सूरए मायदा, आयत 91
  10. सूरए आले इमरान, आयत 122