क़ौमों और उनके शासकों का घमंड हमेशा उनके पतन और पिछड़ जाने की वजह बना है। किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि "मैंने किया"। अल्लाह तआला क़ुरआने मजीद में बड़े सख़्त और मज़ाक़ उड़ाने वाले स्वर में कहता है कि क़ारून ने कहा: "मुझे तो यह मेरे अपने इल्म की वजह से मिला है।" (सूरए क़सस, आयत 78) मैं अपनी क़ाबिलियत और क्षमता से इस मुक़ाम तक पहुंचा हूँ! अल्लाह तआला ने उसे पाताल की गहराइयों में पहुँचा दिया।

हमें कोशिश करनी चाहिए, हमें संघर्ष करना चाहिए। कोई भी क़ौम संघर्ष के बिना, प्रयास के बिना, नए बदलाव के बिना, नए विचारों के बिना और विकास के विभिन्न चरणों से गुज़रे बिना किसी स्थान पर नहीं पहुंच सकती। यह सही है लेकिन बरकत अल्लाह देता है, तौफ़ीक़ अल्लाह देता है।

इमाम ख़ामेनेई

28 जून, 2005