मैं मसऊद को कोरिडोर तक छोड़ने जाया करती थी। कार को आंगन से बाहर निकाला, घर में पलटे ताकि खाने का टिफ़िन मुझसे लें। कार का दरवाज़ा और आंगन का दरवाज़ा खुला था। टिफ़िन लिया और निकल गए। दरवाज़े पर पहुंच कर मुझे देखा और ख़ुदा हाफ़िज़ कहा। जैसे ही आंगन का दरवाज़ा बंद किया बम का धमाका हुआ। उस लम्हे मैं समझी की ज़रूर ज़लज़ला आया है क्योंकि खिड़की के शीशे टूट कर मेरे सिर पर गिर पड़े थे। मेरी बेटी कमरे से रोते हुए निकली और पूछने लगी कि क्या हुआ? मेरी पथराई आँखें दरवाज़े पर टिकी थीं। तेज़ धमाके की वजह से दरवाज़ा भी उखड़ गया था। मैंने कार से धुआं निकलते देखा। सिर्फ़ बेटी से इतना कहा ‘तुम्हारे बाबा!’, मेरी कल्पना में भी नहीं था कि बम धमाका होगा। घबराकर दौड़ी। देखा कि कार में बैठे हैं और हाथ स्टेयरिंग पर और उनका माथा दोनों हाथों के बीच सजदे की हालत में था। पीठ की तरफ़ से कुछ नहीं हुआ था। कई बार आवाज़ दी, मसऊद, मसऊद!...” यह उनकी बीवी का आँखों देखा हाल है।

मसऊद अली मुहम्मदी 23 मार्च 1961 को तेहरान के क़रीब एक गांव में पैदा हुए। वह बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली व बुद्धिमान थे। वह रोज़ाना कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। इसके साथ ही अपने घरवालों की मदद का भी ख़्याल रखते थे और अपने पिता के साथ खेती के काम में हाथ बटाते थे। लोगों से झुककर व मुस्कुरा कर मिलना और हंसमुख स्वभाव उनकी ख़ूबी थी। इन सब चीज़ों ने उन्हें एक पसंदीदा शख़्सियत बना दिया था।   

फ़िज़िक्स में ग्रेजुएशन किया और पोस्ट ग्रेजुएशन के इंट्रेन्स के कंप्टीशन में बैठे और सनअती शरीफ़ यूनिवर्सिटी में उन्हें दाख़िला मिल गया। उसी वक़्त विदेश से स्कॉलरशिप से पढ़ाई की पेशकश मिली। उनकी बीवी चाहती थीं कि वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाएं, उनका मानना था कि वहाँ ज़्यादा तरक़्क़ी का चांस है, लेकिन वह तैयार नहीं हुए। वह कहते थेः “मैंने पता किया है, यहां जिन उस्तादों के साथ मैं काम करना चाहता हूं वह किसी तरह वहाँ के उस्तादों से कम नहीं हैं। तो फिर किसलिए बाहर पढ़ने जाऊं?” वह उन वैज्ञानिकों में थे जिन्होंने अपनी पूरी शिक्षा ईरान में, देश के संसाधनों पर भरोसा करते हुए हासिल की थी।

यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के अलावा उनके बहुत से लेख देश व विदेश की प्रतिष्ठित मैगज़ीनों में छप चुके थे। कभी भी ख़ुद को दूसरे से ऊंचा नहीं समझते थे। बहुत ज़्यादा विनम्रता थी। अगर परिवार में कोई उन्हें डॉक्टर कह कर पुकारता तो कहते थेः “डॉक्टर नहीं! डॉक्टर काम की जगह पर हूँ, यहां मैं बस मसऊद हूँ।”

उनकी बीवी कहती हैं कि शिक्षा के बाद वह थ्योरिटिकल फ़िज़िक्स सेंटर में काम करने लगे। उस सेंटर में एक बाग़बान थे जिनका नाम अली आक़ा था। एक दिन डॉक्टर अली मुहम्मदी घर आए तो मैंने देखा कि उनकी कार में अखरोट बिखरे पड़े हैं। मैंने उनसे पूछा कि ये अख़रोट कहाँ से आए, इस तरह फैले हुए क्यों हैं? उन्होंने बताया कि सेंटर से घर लौटते वक़्त अली आक़ा ने कार का शीशा नीचे करने के लिए कहा। मैंने ऐसा ही किया तो अली आक़ा ने ये अख़रोट कार में डाल दिए और कहा कि आपके लिए हैं। आप हमारे लिए दूसरों से बहुत अलग हैं। मसऊद ने उनसे कहा था, नहीं, मैं भी दूसरों की तरह हूं। अली आक़ा ने जवाब में कहा था कि यहाँ सिर्फ़ आप ऐसे डॉक्टर हैं कि मेरे सलाम करने से पहले आप मुझे सलाम करते हैं। वह बड़ों की बहुत इज़्ज़त करते थे। अगर किसी डॉक्टर को बुरा बर्ताव करते हुए देख लेते तो उनसे व्यवहार बदलने के लिए कहते थे।

मसऊद वैज्ञानिक काम के मैथड को बहुत अच्छी तरह जानते थे। कभी भी सवाल करने में हिचकिचाते नहीं थे। हमेशा अपने इल्मी लेवल को बढ़ाने की कोशिश में रहते थे। उन्हें फ़िज़िक्स के साथ साथ दर्शनशास्त्र और कॉज़्मॉलोजी का भी ज्ञान था।

ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के तत्कालीन प्रमुख फ़रीदून अब्बासी उनके बारे में बताते हैः “कभी मेरे कमरे में स्टूडेंट्स बैठ कर आपस में बहस करते थे, वह बैठते और सवाल करते थे। यहीं पर उनकी डॉक्टर रेज़ाई नेजाद से पहचान हुयी, उनसे बड़ी अच्छी बहस करते थे और कभी कभी उनकी बातों से असहमति जताते थे।”

उन्हें फ़िज़िक्स में मेक्निक्स का अच्छा ज्ञान था, इसी वजह से वह यूरेनियम एन्रिचमेंट की स्टडीज़ के दौरान सेन्ट्रीफ़्यूज की डिज़ाइन में बहुत ऐक्टिव व प्रभावी रहे।

अली मोहम्मदी इस बात पर ख़ुश थे कि वह टीचर थे। वह ऐसे स्टूडेंट्स को ट्रेन्ड करना चाहते थे जो देश को आगे ले जाएं। उनकी बीवी कहती हैः “दो तीन साल फ़िज़िक्स के ओलंपियाड में भाग लेने वाले बच्चों को पढ़ाया, फिर छोड़ दिया।” मैंने पूछाः “आपने ऐसा क्यों किया?” उन्होंने कहाः “हम बेहतरीन स्टूडेंट्स को इकट्ठा करते हैं और फिर उन्हें बड़े गर्व से अमरीका के हवाले कर देते हैं। वह यहाँ से जाते हैं अमरीका को आगे बढ़ाते हैं और हम ख़ाली हाथ हो जाते हैं। हमें इन्हें इस तरह ट्रेन करने से पहले, नैतिकता की नज़र से ट्रेन करना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि अगर उनकी सलाहियत में निखार आया है तो उसी टैक्स के पैसे से जो आम लोगों से लिए गए हैं और जो सहूलियतें उन्हें मिलीं, वह इस देश नें उन्हें मुहैया करायीं, उन्हें यह बात महसूस होनी चाहिए।” इसी वजह से उन्होंने फ़िज़िक्स ओलंपियाड की ईरानी टीम से सहयोग ख़त्म कर दिया था।

पश्चिम एशिया में Synchrotron-Light for Experimental Science and Applications (SESAME) (1) को लाइट के सोते की हैसियत से पहचाना जाता है। यह ऐसा ऐक्सेलरेटर है जो रफ़्तार के नतीजे में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग पैदा कर सकता है। यह प्रोजेक्ट जॉर्डन की राजधानी अम्मान में चल रहा है और ईरान, साइप्रस, बहरैन, मिस्र वग़ैरह इसके मेंबर हैं। इस प्रोजेक्ट में डॉक्टर अली मोहम्मदी और डॉक्टर शहरयारी ईरान के प्रतिनिधि थे। डॉक्टर मोहम्मदी ने जॉर्डन के अपने आख़िरी सफ़र में इस प्रोजेक्ट को जल्द अंजाम तक पहुंचाने का वादा किया था। वह इस कोशिश में थे कि इस क्षेत्र की ज़रूरी महारत हासिल करके, काम का एक हिस्सा देश में शुरू करें। उनकी हत्या, उनकी कोशिशों के पूरा होने में रुकावट बन गयी।

शहीद अली मोहम्मदी की हत्या के दो दिन बाद, ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट ने लिखा कि ईरान के परमाणु वैज्ञानिक व यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर का इस्राईली हल्क़ों में जाना पहचाना नाम था। उन्होंने इस बात को माना है कि वैज्ञानिकों का क़त्ल ईरान के परमाणु प्रोग्राम और उससे संबंधित वार्ता में पश्चिम की इंटैलीजेन्स एजेंसियों की जंग का एक हिस्सा है। डॉक्टर मसऊद अली मोहम्मदी हालांकि ईरान की सबसे बड़ी न्यूक्लियर हस्ती नहीं थे लेकिन राष्ट्रीय साहस, स्वाधीनता और आत्मविश्वास की नज़र से नंबर वन थे। ऐसे शख़्स थे कि अगर किसी काम की ठान लेते तो कोई चीज़ उनके इरादे को रोक नहीं पाती यहाँ तक कि उसे अंजाम तक पहुंचा कर दम लेते। वह 12 जनवरी 2010 को ऑफ़िस जाने के लिए घर से निकले ही थे कि घर के सामने एक कायरता भरे बम धमाके में शहीद हो गए।

 

 (1) Synchrotron-Light for Experimental Science and Applications in the Middle East