बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए जो पूरी सृष्टि का मालिक है। सलाम और दुरूद हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनके पाक वंश ख़ास तौर पर इंसानियत को मुक्ति दिलाने वाले अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

मुझे बहुत ख़ुशी है कि इस साल भी यह मुलाक़ात अंजाम पाई, अल्लाह का शुक्र है। पिछले साल (कोरोना वायरस की महामारी के कारण) यह मौक़ा हमें नहीं मिल सका था। पिछले बरसों में हम हर साल  साइन्टिस्ट व प्रतिभाशाली लोगों के (एलीट) ग्रुप से मुलाक़ात करते थे। आज की बैठक भी बहुत अच्छी रही। यानी दोस्तों, हमारे प्यारों, लड़कों और लड़कियों ने जो बातें यहाँ बयान कीं,  वाक़ई बड़ी फ़ायदेमंद बातें थीं। इन बातों की पुष्टि, इनकी गहराई,  और बारीकियों के बारे में राय क़ायम करना अलग मसला है। लेकिन आप लोगों ने जो चीज़ें कही हैं, उनमें ज़्यादा ग़ौर करना चाहिए लेकिन इस वक़्त मैंने जो बातें यहाँ सुनीं हैं, वह मेरे लिए फ़ायदेमंद थीं। उन दोस्तों का बहुत शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने ज़हमत की और यहाँ अपनी बातें पेश कीं। मैं आप के बारे में, असाधारण प्रतिभा के लोगों के (एलिट) ग्रुप के बारे में कुछ बातें और कुछ बिन्दु पेश करुंगा। अगर वक़्त रहा तो अपनी गुफ़तुगू के आख़िर में नॉलेज बेस्ड कंपनियों के बारे में भी कुछ बयान करूंगा।

पहली बात यह है कि मेरे प्यारो! असाधारण क़ाबिलियत अल्लाह की नेमत है, अल्लाह की तरफ़ से एक तोहफ़ा है। अल्लाह की नेमत का शुक्र अदा करना चाहिए। आपके मन में जो बात सबसे पहले आनी चाहिए वह यह हो कि इस नेमत का शुक्र अदा करें। “और अल्लाह की नेमत का शुक्र अदा करो अगर तुम सिर्फ़ उसी की इबादत करते हो”(2) नहल सूरे में है। पवित्र क़ुरआन में कई जगहों पर भी अल्लाह का शुक्र अदा करने का हुक्म आया है। यह एक हमेशा बाक़ी रहने वाला फ़र्ज़ है। शुक्र के तरीक़े के बारे में बाद में बताउंगा। तो यह हुआ पहला बिन्दु। असाधारण क़ाबिलियत की नेमत पर शुक्र अदा करने के बारे में सोचें। अल्लाह के तोहफ़े का शुक्र अदा कीजिए।

दूसरी बात जो असाधारण प्रतिभा के लोगों के ग्रुप को ‘एलिट’ बनाती है वह सिर्फ़ मानसिक क्षमता नहीं है। बहुत से लोगों के पास प्रतिभा है, मानसिक क्षमता है, लेकिन यह बर्बाद हो जाती है। बाहर आ ही नहीं पाती या उससे कोई सही और उचित फ़ायदा हो ही नहीं पाता और वह इंसान एलिट में तब्दील नहीं हो पाता। जो चीज़ एलिट को एलिट बनाती है वह मानसिक क़ाबिलियित व क्षमता के अलावा इस सच्चाई और इस नेमत की क़द्र को समझना है। इसकी क़द्र, समझनी चाहिए और इस की बुनियाद पर काम और कोशिश होनी चाहिए। अगर क़ाबिलियत व क्षमता वाला इंसान, अपने दिमाग़ से काम न ले, इस क्षमता से फ़ायदा न उठाए, सुस्ती, बेहाली, लापरवाही और ग़फ़लत में पड़ा रहे तो निश्चित तौर पर वह एलिट नहीं बनेगा। एलिट वह है जो क़द्र समझता है, क़ाबिलियत की क़द्र जानता है, उसे इस्तेमाल करता है और बड़े हौसले के साथ ज़हमत उठा कर, संघर्ष करके अपने आपको एलिट में बदल देता है। यह क़द्र करना  सबसे पहले ख़ुद उसकी ज़िम्मेदारी है, फिर आस-पास के लोगों की ज़िम्मेदारी है। आस-पास वाले यानी सरकारी अधिकारियों, किसी वक़्त माँ-बाप, किसी वक़्त में टीचर या प्रोफ़ेसर; उन्हें इसकी क़द्र करनी चाहिए लेकिन अस्ल में क़द्र करना ख़ुद एलिट की ज़िम्मेदारी है।

अलबत्ता यह बात एलिट के बारे में है, देश के बड़े मामलों के बारे में भी ऐसा ही है। हमारा देश मानसिक क़ाबिलियत की नज़र से दुनिया में अवसत सतह से ऊपर है।  यह दावा नहीं बल्कि यह एक पुख़्ता हक़ीक़त है।  मतलब यह है कि हमारी क़ौम स्वाभाविक तौर पर एलिट है। यह हमेशा से रहा है और आज भी है, अलबत्ता अतीत में ज़्यादा था कि साम्राज्यवादी ताक़तों की साफ़्ट वॉर का एक अहम हिस्सा हमारी क़ौम या किसी दूसरी प्रतिभाशाली क़ौम को उसकी क्षमता की ओर से बेख़बर रखना है, उसे उस क़ाबिलियत के बारे में अंधेरे में रखना है या उसकी ऐसी दुर्गत कर देना है कि वह ख़ुद अपनी क्षमता का इंकार करने लगे, “तुम नहीं कर सकते, तुम नहीं कर सकते, तुम नहीं कर सकते” इतनी बार दोहराते हैं कि उस क़ौम को पूरा यक़ीन हो जाता है कि वाक़ई वह नहीं कर सकती और वह ख़ुद कहने लगती है कि हमारे बस की बात नहीं। यह उन करतूतों में से एक है जो प्रचलित थीं। देशों में दाख़िल होते ही साम्राज्यवादी ताक़तों ने जो हरकत सबसे पहले की उनमें से एक यही थी। अफ़्रीक़ा में महान सभ्यताएं मौजूद थीं, अफ़्रीक़ा के एक हिस्से में, पश्चिमी अफ़्रीक़ा में और दूसरीं जगहों पर, जो पूरी तरह तबाह हो गयीं, ख़त्म हो गयीं। नेहरू (3) अपनी किताब “Glimpses of World History” में कहते हैं कि भारत में अंग्रेज़ों के पहुंचने से पहले, भारत अपने आंतरिक उद्योगों की नज़र से, तत्कालीन उद्योगों यानी उन्नसवीं सदी के आग़ाज़ के उद्योगों की नज़र से आत्मनिर्भर देश था; जब अंग्रेज़ वहाँ पहुंचे, पहले ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश हुकूमत।  तो उन्होंने हालात ऐसे बना दिए कि भारतीय महसूस करते थे कि ब्रिटिश और विदेशी चीज़ों के बिना ज़िंदगी गुज़ारना मुमकिन ही नहीं है। यानी एक क़ौम की क़ाबिलियत का इंकार। ख़ुद हमारे देश में भी ऐसा ही है।  हम इस्लामी क्रांति से पहले 200 साल से ज़्यादा मुद्दत तक इस मुसीबत का शिकार रहे हैं। आप ने सुना ही होगा कि जब तेल के राष्ट्रीयकरण की बात सामने आयी और कहा गया कि ईरानियों के पास तेल है, वह ख़ुद ही अपने तेल का प्रबंधन संभाल सकते हैं। वग़ैरह वग़ैरह तो सलतनती शासन का प्रधान मंत्री, इस सोच की आलोचना करते हुए कहता था कि ईरानी जाकर मिट्टी का लोटा बनाएं! (4) मिट्टी के लोटे आपने नहीं देखे हैं। यह लोहे के पतरे से भी नहीं बल्कि सिर्फ़ मिट्टी से बनाया जाता था। पुराने ज़माने में, जब हम बच्चे थे, तो मिट्टी के लोटे होते थे। वह कहता था कि ईरानी जाकर मिट्टी के लोटे बनाएं! यानी एक क़ौम को इस हद तक गिरा देते हैं।

जब कोई क़ौम अपनी क़ाबिलियत की ओर से ग़ाफ़िल हो जाती है तो उस क़ौम को लूटना आसान हो जाता है। देखिए, ग़फ़लत और लूट-मार एक दूसरे के पूरक हैं।  ग़फ़लत, लूटमार की पृष्ठिभूमि और लूट-मार, ग़फ़लत को बढ़ाने वाली है।  ग़फ़लत और लूट-मार में चोली दामन का साथ है। इसकी मिसाल वे देश हैं जिन पर साम्राज्यवाद का सीधे तौर पर क़ब्ज़ा था, हमारे देश की तरह वे देश भी इसी मिसाल के दायरे में आएंगे जो सीधे तौर पर साम्राज्य की कॉलोनी नहीं थे। यही वजह है कि वह चाहते हैं कि हम ग़फ़लत में रहें। ग़फ़लत का विषय बहुत ही दिलचस्प है। पवित्र क़ुरआन में साफ़ तौर पर इस विषय को बयान किया गया है। इस बारे में जंग के मौक़े पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ सलातुल ख़ौफ़ (रखी गई है कि) कुफ़्फ़ार इस ताक में हैं कि तुम अपने हथियारों और अपने सामान की तरफ़ से ज़रा भी ग़ाफ़िल हो तो वह तुम पर अचानक टूट पड़ें।(5) दुश्मन चाहता है कि आप अपने हथियारों और सामान की तरफ़ से ग़ाफ़िल हो जाएं। ड्रोन, मीज़ाइल और इसी तरह की चीज़ों को आप देख रहे हैं कि किस तरह इन दिनों दुनिया में एक बुनियादी व अहम मुद्दे के तौर पर पेश किया जा रहा है। दुश्मन चाहता है कि आप इन चीज़ों की ओर से गफ़लत बरतें,  इस क़ाबिलियत को नज़रअंदाज़ कर दें ताकि वह आसानी से आप पर हमला कर सके। यह इस मामले से जुड़ी हुई बात है, ख़ैर मीज़ाइल का विषय हमें एलिट्स के मुद्दे से दूर न कर दे।

असाधारण प्रतिभा और एलिट्स के बारे में अगली बात, एलिट्स में ज़िम्मेदारी के एहसास के बारे में है। एलिट की स्थिति के बारे में देश की सरकारी मिशिनरी की अहम ज़िम्मेदारियां है, इस बात में कोई शक नहीं और हमें उम्मीद है कि देश के अधिकारी, ख़ुद हम और दूसरे लोग अपनी इस ज़िम्मेदारी पर बेहतरीन ढंग से अमल करेंगे, लेकिन ख़ुद एलिट और नौजवान एलिट भी देश के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में अपनी ज़िम्मेदारी महसूस करे और कभी कभी ज़रूरी है कि असाधारण प्रतिभा रखने वाला  शख़्स कठिनाइयां भी बर्दाश्त करे।  यह बहुत ही अहम नैतिक बिन्दुओं में से एक है जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सोच अच्छी नहीं हैं कि हर चीज़ तैयार रहे और अपनी जगह पर मौजूद हो तब एलिट काम करेगा। कभी आपको रुकावटों से लड़ना भी होगा और यह बात, कुछ दोस्तों ने बयान भी की। अलबत्ता बेरुख़ी भी दिखाई देती है, देश के प्रशासन और विभिन्न विभागों में कभी कभी एलिट्स के संबंध में बेरुख़ी नज़र आती है।  इसे हम जानतें हैं, हमें ख़बर है लेकिन यह चीज़ असाधारण प्रतिभा के शख़्स को अपना रास्ता, अपनी जद्दोजेहद और अपनी कोशिश जारी रखने से न रोके, उसे निराश नहीं होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं “जनाब! हम फ़लां विभाग में गए, फ़लां यूनिवर्सिटी में गए, हमारे साथ ऐसा रवैया अपनाया गया।” ये चीज़ें एलिट्स को निराश न करें, उसे ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए, कोशिश करे, संघर्ष करे। यह वही शुक्र है जिसका मैने ज़िक्र किया। असाधारण प्रतिभा की नेमत का एक शुक्र यही है। शुक्र अदा करना चाहिए; शुक्रिया अदा करने का व्यवहारिक तरीक़ा यही है कि वह कोशिश करे, सरगर्मी जारी रखे। शुक्र का एक दूसरा हिस्सा यहा है कि वह इस बात पर ध्यान रखे कि असाधारण प्रतिभा की यह नेमत अल्लाह ने उसे दी है तो उससे जो भी नतीजा निकलता है वह अल्लाह के इरादे और उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ होना चाहिए। यह बहुत अहम है, इससे एलिट्स की कोशिश को दिशा मिलती है।

एलिट्स के बारे में एक और बिन्दु यह है कि वैज्ञानिक लेहाज़ से असाधारण प्रतिभा वाले शख़्स को -इस वक़्त हमारी बात ऐसे ही लोगों के बारे में हो रही है- देश में ज्ञान-विज्ञान के लिए जिस क्षितिज और जैसे भविष्य का ख़ाका बनाया गया है, उस पर गहरी नज़र व ध्यान रखना चाहिए। हमने कहा कि हमें इस तरह आगे बढ़ना चाहिए कि एक मुनासिब मुद्दत में – कुछ साल पहले (6) मैंने कहा था कि 50 साल बाद- ईरान को दुनिया में ज्ञान विज्ञान का केन्द्र समझा जाने लगे।  मतलब यह है कि अगर कुछ लोग आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में खोज करना चाहें तो फ़ारसी सीखने पर मजबूर हों। ऐसा भविष्य बनाना मुमकिन है।  इस पर हैरत मत कीजिए। एक ज़माना दुनिया में ऐसा ही था।  किसी ज़माने में इतिहास के एक दौर में हमारे विद्वान, दुनिया में ज्ञान-विज्ञान की चोटी पर थे।  उनकी किताबों पर दुनिया की सभी यूनिवर्सिटियों में, पश्चिम की यूनिवर्सिटियों में और पूरब की यूनिवर्सिटियों में यानी भारत और चीन वग़ैरह में जहाँ उस वक़्त ज्ञान-विज्ञान का चलन था, ध्यान दिया जाता था, उनका हवाला दिया जाता था, हमें इस क्षितिज को मद्देनज़र रखना चाहिए।

इसके कुछ चरण हैं। पहला चरण यह है कि आज हम दुनिया की ज्ञान-विज्ञान की सरहद से अपना फ़ासला ख़त्म करें।  अभी हम इस सरहद से दूर हैं। अलबत्ता हम अपने आंकड़ों में जो अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों पर आधारित हैं, अपनी वैज्ञानिक तरक़्क़ी की सराहना करते हैं, यह तारीफ़ के क़ाबिल है भी और सच में हमने तरक़्क़ी की है, लेकिन अभी दुनिया में ज्ञान-विज्ञान की फ़्रंटलाइन से हमारा फ़ासला ज़्यादा है। 200 साल तक हमें पीछे रोके रखा गया। इस्लामी क्रांति की कामयाबी के बाद कुछ काम अंजाम पाए, क़रीब दो दहाई पहले से कुछ रफ़्तार तेज़ हुयी और हमने अच्छी तरक़्क़ी की है लेकिन अभी फ़ासला ज़्यादा है। पहला चरण यह है कि इस फ़ासले को ख़त्म किया जाए। दूसरा चरण यह है कि हम ज्ञान-विज्ञान की वैश्विक सरहद को पार कर जाएं यानी हम नई वैज्ञानिक सेवा और नई खोज दुनिया के सामने पेश कर सकें। इस बारे में मैं बाद में एक अहम बिन्दु का ज़िक्र करुंगा। अगला चरण यह है कि हम नई इस्लामी सभ्यता के लिए कोशिश करें। यक़ीनी तौर पर किसी भी सभ्यता का बुनियादी स्तंभ ज्ञान है, फ़ायदेमंद ज्ञान।  यह जो हम बार बार कहते हैं ‘नई इस्लामी सभ्यता’(7)  तो निश्चित रूप से इसका एक बुनियादी स्तंभ वैज्ञानिक तरक़्क़ी है, जिसके लिए हमें ख़ुद को तैयार करना चाहिए। एक एलिट की हैसियत से अगर आपकी नज़र इस क्षितिज पर होगी तो फिर निश्चित तौर पर आपकी वैज्ञानिक जद्दोजहेद की दिशा भी सही होगी और यही मुश्किलें जिनके बारे में कभी कभी कहा जाता है -लेख वग़ैरह की बात, जिसका दोस्तों ने ज़िक्र किया है- ये सब ख़त्म हो जाएंगी। यानी सही दिशा तय हो जाएगी और सही तरक़्क़ी हासिल होगी।

और वह बात जिसकी तरफ़ मैंने इशारा करने के लिए कहा, वह वैज्ञानिक इनोवेशन की बात है, यह बहुत अहम है। आज देश में बहुत ज़्यादा वैज्ञानिक काम हो रहे हैं, लेकिन ये सब दूसरों के वैज्ञानिक इनोवेशन की शाखाएं हैं; मिसाल के तौर पर न्यूक्लियर एनर्जी की किसी ने खोज की, आज हम इस पर काम कर रहे हैं। जिस चीज़ की ज़रूरत है और जिसे अंजाम पाना चाहिए वह वैज्ञानिक इनोवेशन है, आपको इनोवेशन पेश करना चाहिए, ज्ञान की उत्पत्ति करना चाहिए जो प्रकृति में किसी ताक़त की खोज से वजूद में आता है। मतलब यह है कि विज्ञान में क्रिएटिविटी का स्रोत यह है कि प्रकृति में किसी छिपी बात, कोई नियम मौजूद है और आज तक उसकी खोज नहीं हुयी है, आप उसकी खोज करते हैं, उसकी बुनियाद पर ज्ञान की उतपत्ति होती है, उसकी बुनियाद पर टेक्नॉलोजी वजूद में आती हैं, आप इसकी कोशिश कीजिए; यानी हमारा नौजवान एलिट क्लास इसकी कोशिश करे। विज्ञान के क्षेत्र में क्रिएटिविटी।

मिसाल के तौर पर ग्रैविटी या गुरुत्वाकर्षण मौजूद था- इसकी पुरानी मिसालें यही सब हैं, पुराने ज़माने से हम यही मिसालें देते आ रहे हैं- किसी ने इसका पता लगाया और इसकी बुनियाद पर बहुत से ज्ञान वजूद में आए। प्रकृति में इलेक्ट्रिसिटी मौजूद थी, कोई पहचानता नहीं था, किसी ने पता लगाया, उसकी बुनियाद पर विज्ञान व टेक्नालोजी का यह विशाल मैदान वजूद में आ गया। या फिर बाद के मैदानों और नए विषयों में, नैनो इसी तरह का काम है, स्टेम सेल्ज़ का विषय भी इसी तरह, परमाणु ऊर्जा का विषय भी इसी तरह। प्रकृति में मौजूद एक सच्चाई की खोज, एक परंपरा की खोज, एक छिपी चीज़ की खोज, अल्लाह की इस प्रकृति और सृष्टि में एक तत्व की खोज से आपके लिए एक वैज्ञानिक बिन्दु स्पष्ट हो जाए, वह बिन्दु हुआ ज्ञान, उसे इकट्ठा करते हैं, वह फैलेगा और फिर टेक्नॉलोगी की शक्ल में सामने आएगा।

एलिट्स के संबंध में एक और बिन्दु जिसके बारे में पहले भी इशारा कर चुक हूं, (8) यह है कि देश के वैज्ञानिक हल्क़े का एक लक्ष्य-सिर्फ़ एलिट्स का नहीं, बल्कि सभी वैज्ञानिक हल्क़ों का; अलबत्ता इसकी ज़रूरत एलिट्स के संबंध में ज़्यादा है- यह है देश की मुश्किलों के बारे में सोचें, प्रॉब्लम बेस्ड काम करें; मुश्किल को मद्देनज़र रख कर काम करना अहम है। देश में कुछ बुनियादी मुश्किलें हैं, उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए, उन्हें वैज्ञानिक तरीक़े से हल किया जाना चाहिए। अभी यहीं हमारे साथियों ने उनमें से कुछ मुश्किलों को पेश किया और उनके हल भी बताए। अलबत्ता हमने कहा कि जो हल पेश किए गए हैं उन पर और ग़ौर करने की ज़रूरत है लेकिन देश की सभी मुश्किलों के लिए वैज्ञानिक तरीक़े से हल खोजा जा सकता है और सुकून से मुश्किल को हल किया जा सकता है।

मिसाल के तौर पर आज देश के सामने जो मुश्किलें हैं, उनमें से एक पानी की मुश्किल है, यह बहुत अहम मुद्दा है। देश का विषय है, पानी की मुश्किल है और पानी की मुश्किल निकट भविष्य में, पूरी दुनिया का बहुत अहम मुद्दा बन जाएगा। तो इसके लिए वैज्ञानिक हल निकाला जाना चाहिए। या क्लामेट चेंज की मुश्किल है, बल्कि ट्रैफ़िक की मुश्किल, ट्रैफ़िक की मुश्किल ज़िन्दगी से जुड़ी बड़ी मुश्किल है। आप तेहरान के एक छोर से किसी दूसरे हिस्से की तरफ़ जाते हैं, आपको इन मुश्किलों के साथ एक घंटा, सवा घंटा गाड़ी में बैठना होगा, इस मुश्किल का हल है, वैज्ञानिक तरीक़े से इस मुश्किल का हल ढूंढना होगा। सामाजिक मुश्किलें, नशे की लत की मुश्किल, तलाक़ के केस, फ़ुटपाथ पर रहने की मुश्किल, देहातों से शहर पलायन और देहातों की तबाही की मुश्किल, इन सब मुश्किलों का हल मौजूद है। कभी ऐसा होता है कि कोई अधिकारी हमदर्द व शुभचिंतक नहीं है, वह इन मुश्किलों पर ध्यान नहीं देना  चाहता, इस पर हम बात नहीं कर रहे हैं; लेकिन जब यह माना जाए कि अधिकारी मुश्किल को हल करना चाहते हैं तो इसके लिए वैज्ञानिक हल की कोशिश करनी चाहिए और निश्चित तौर पर इसका हल मौजूद है। या देश में प्रबंधन से जुड़ी मुश्किलें, पैसों या टैक्स की व्यवस्था की मुश्किलें, बैंकों की मुश्किलें, प्रोडक्शन को बढ़ावा देने में रुकावटें कि हमने इस साल कहा ‘रुकावटों का दूर होना’(9) वैज्ञानिक हल मौजूद है; इन्हें विज्ञान के ज़रिए स्पष्ट किया जाना चाहिए- मैं बाद में इसकी तरफ़ भी इशारा करुंगा। और दसियों मुश्किलें; मतलब यह है कि मुश्किलों के हल के बारे में सोचें।

मुझे एक रिपोर्ट दी गयी और कहा गया कि दुनिया के कुछ विकसित देशों में ज़्यादातर यूनिवर्सिटियां ग़ैर सरकारी है, प्राइवेट यूनिवर्सिटियां हैं लेकिन यही ग़ैर सरकारी यूनिवर्सिटियां, सरकारों से बहुत ज़्यादा पैसे लेती हैं; किस तरह? ऐसा नहीं है कि यूहीं जाकर किसी यूनिवर्सिटी को बेतहाशा पैसे दे दें, नहीं, किसी यूनिवर्सिटी के सामने कोई प्रॉब्लम रखते हैं और उससे उसका हल चाहते हैं। वह यूनिवर्सिटी उनकी मुश्किल का जिस हद तक हल पेश कर देती है, उसी की तुलना में उसे सरकार और अधिकारियों से पैसे मिलते हैं। तो यह बहुत अच्छी बात है; यानी वैज्ञानिक कामों और एलिट्स के कामों को प्रॉब्लम बेस्ड बनाना, यह बहुत अहम व ज़रूरी चीज़ है।

मैंने प्रॉब्लम ओरिएंटेड रिसर्च के प्वाइंट्स के संदर्भ में संयोग से आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स के विषय को भी लिखा है। जिसके बारे में आज किसी ने बात भी की; मेरा सुझाव यह है कि उन चीजों में से एक जिन पर बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है वह आर्टिफ़िशल इंटेलीजेन्स का विषय है जिसका दुनिया के भविष्य के प्रबंधन में रोल होगा।

अब या तो राष्ट्रपति के विज्ञान विभाग व टेक्नॉलोजी में या फिर यूनिवर्सिटी में हमें ऐसा काम करना चाहिए कि आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स के मैदान में दुनिया के 10 सबसे आगे देशों में शामिल हो जाएं जिसमें आज हम नहीं हैं। आज वे देश जो आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स के मैदान में सबसे आगे हैं, अमरीका और चीन वग़ैरह को छोड़ कर जो सबसे आगे हैं, कुछ एशियाई देश भी हैं, कुछ यूरोपीय देश भी हैं, लेकिन हम नहीं हैं; अलबत्ता एशियाई देशों की तादाद ज़्यादा है। सबसे ऊपर रैंक में एशियाई देशों की तादाद कम है। हम ऐसा काम करें कि इस मैदान में कम से कम दुनिया के 10 सबसे आगे देशों में शामिल हो जाएं।+++

एलिट्स से जुड़ी एक मुश्किल उनका पलायन है, जिसकी तरफ़ आज किसी ने इशारा किया। कभी ऐसा होता है कि कोई स्टुडेंट अपनी ज़रूरतों की बुनियाद पर, अपनी सोच की बुनियाद पर या फिर घर वालों की वजह से किसी देश में जाकर पढ़ना चाहता है, इसमें कोई बुरी बात नहीं है; मैं बार बार कह चुका हूं कि इसमें कोई रुकावट नहीं है; अस्ल चीज़ यह है कि वह यह बात न भूले कि वह अपने देश का क़र्ज़दार है। पढ़ाई करें और वापस लौट आएं; जो चीज़ बुरी है वह पलायन है। मुझे रिपोर्ट दी गई है, जो आज की नहीं है, काफ़ी वक़्त से यह यह चीज़ मौजूद है कि कुछ यूनिवर्सिटियों में कुछ ऐसे लोग हैं जो एलिट्स को वतन छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं; मैं साफ़ तौर पर कहता हूं कि यह ग़द्दारी है, यह देश से दुश्मनी है, उस नौजवान से भी दोस्ती नहीं है। आज हमारे देश में नौजवान एलिट्स, तरक़्क़ी कर सकते हैं और किसी वक़्त जाकर किसी दूसरे मुल्क से भी फ़ायदा उठा कर लौट सकते हैं, लेकिन एक नौजवान को देश के भविष्य की ओर से निराश करना, उसके हौसले कम करना, उसे अंधकारमय भविष्य दिखाना ताकि वह चला जाए और पलायन कर जाए, इसे मैं वाक़ई ग़द्दारी समझता हूं और इससे निमटा जाना चाहिए।

प्रोडक्शन की रुकावट को दूर करने के मुद्दे पर-जिसके बारे में मैं ज़िक्र करुंगा और यह इस साल का नारा भी है- मैंने जो चीज़ यहाँ नोट की है वह यह है कि प्रोडक्शन की सबसे बड़ी रुकावटें भौतिक, ऑप्रेश्नल और इसी तरह की दूसरी रुकावटों से ज़्यादा सांस्कृतिक रुकावटें हैं; यानी निराशा की भावना, अक्षमता का एहसास, अंधकारमय भविष्य का एहसास, सुस्ती, हौसला न होना, नुक़सानदेह सरगर्मियां, ये वह चीज़ें हैं जो हक़ीक़त में प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के काम में रुकावट हैं। मतलब यह है कि हमारा नौजवान मिसाल के तौर पर एक नॉलेज बेस्ड कंपनी बना सकता है और काम के एक अहम हिस्से को अंजाम दे सकता है, ख़ुद भी पैसे कमा सकता है और देश को भी फ़ायदा पहुंचा सकता है। वह काम, कोशिश और मेहनत वग़ैरह के बजाए फ़ाल्तू के काम में लग जाए, बहुत से लोग कंप्यूटर वग़ैरह में लगे रहते हैं; ज़्यादातर रात से सुबह या सुबह से रात तक उनसे मुमकिन होता है इंटरनेट पर यूं ही, बेकार, बिना किसी मक़सद के घूमते रहते हैं, बग़ैर इसके कि कुछ फ़ायदा हासिल हो। आराम पसंदी, हौसले की कमी, जोखिम न लेगा, ये वे चीज़ें हैं जो पैदावार के रास्ते में अस्ल रुकावट हैं।

जहाँ तक नॉलेज बेस्ड कंपनियों की बात है तो अल्लाह का शुक्र है कि काफ़ी तरक़्क़ी हुयी है, मेरे मन में जो आंकड़े थे वह क़रीब 6 हज़ार थे लेकिन आज डॉक्टर सत्तारी (10) ने कहा कि 7 हज़ार कंपनियां; बहुत अच्छी बात है, अल्लाह का शुक्र यह बहुत  अहम काम है जो अंजाम पाया है, इसे और बढ़ाना चाहिए लेकिन बढ़ाने के नियमों के बारे में शायद मैंने पहले इसी बैठक में कहा था कि नॉलेज बेस्ड होने के नियमों में कड़ाई होनी चाहिए (11); यानी ऐसा न हो कि बड़ी आसानी से हम तादाद बढ़ा दें और काम की क्वालिटी और स्टैंडर्ट पर ध्यान न दें; नॉलेज बेस्ड होने के कुछ नियम व क़ानून हैं, जिनकी पाबंदी होनी चाहिए।

अलबत्ता हमारे देश में बड़े उद्योग नॉलेज बेस्ड नहीं है, यह बड़ा ऐब है। कुछ लोगों ने जो प्रतिभाशाली लगते हैं, मुझसे कहा कि यह छोटी नॉलेज बेस्ड कंपनियां असर डाल सकती हैं और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री वग़ैरा जैसे उद्योगों को भी नॉलेज बेस्ड कर सकती है; अगर यह काम मुमकिन हो तो ज़रूर अंजाम दिया जाना चाहिए।

नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तरक़्क़ी और उनके पैर जमाने के लिए ज़रूरी शर्त यह है कि हम उनके प्रोडक्ट्स का देश के भीतर चलन आम करें- दूसरे देशों और इम्पोर्ट के बारे में बाद में बात करुंगा- और उनकी तैयार की हुयी चीज़ें ख़ुद देश में इस्तेमाल हो; इसका रास्ता यह है कि जो चीज़ कंपनी तैयार कर रही है, उसे इम्पोर्ट न किया जाए। फिर कुछ लोग घरेलू इस्तेमाल की चीज़ों की तरह हंगामा न मचाएं कि आप ने क्यूं कहा मिसाल के तौर पर फ़लां देश की घरेलू इस्तेमाल की चीज़ें इम्पोर्ट न की जाएं; नही, देश की कंपनियों की तरक़्क़ी और उन्हें मज़बूत बनाने के लिए ज़रूरी है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हों, इसके लिए हमें इन कंपनियों के लिए देश के भीतर बाज़ार तैयार करना होगा। देशी बाज़ार, कोई छोटा बाज़ार नहीं है; इस बाज़ार को देश के प्रोडक्ट्स के अख़्तियार में दिया जाना चाहिए; ख़ास तौर पर सरकारें और बड़े बड़े विभाग जो उनके सबसे बड़े ग्राहक हैं। सरकारें जो उद्योगों, औद्योगिक प्रोडक्टस वग़ैरह की सबसे बड़ी उपभोक्ता हैं, इन चीज़ों को उन नॉलेज बेस्ड कंपनियों से लें और देश के प्रोडक्टस को इस्तेमाल करें ताकि इम्पोर्ट की वजह से उनकी कमर न टूट जाए। अलबत्ता जब हम कहते हैं कि इम्पोर्ट को रोका जाए तो हक़ीक़त में देशी कारख़ाने और देशी कंपनियों की मदद के लिए बोल रहे होते हैं; इन देशी कंपनियों की भी कुछ ज़िम्मेदारियां हैं, वह भी क़ीमतें बढ़ाती न रहें, क्वालिटी न गिराएं कि जो सिफ़ारिश की गयी है वह पूरी तरह से बेफ़ायदा हो जाए।

इस आधार पर एक मुद्दा देशी बाज़ारों का है, दूसरा मुद्दा एक्सपोर्ट का है; अगर एक्सपोर्ट नहीं होगा तो तरक़्क़ी वैसी नहीं होगी, जैसी होनी चाहिए। एक्सपोर्ट के संबंध में भी ख़ुद वे कंपनियां काम कर सकती हैं और उनसे ज़्यादा सरकारें काम कर सकती हैं; विदेश मंत्रालय, उद्योग व व्यापार मंत्रालय और दूसरे सरकारी विभाग इस संबंध में मदद कर सकते और विदेशी मंडियां तलाश कर सकते हैं। रेडियो और टीवी विभाग भी मदद कर सकता है, कुछ देश हैं जो ईरान को बहुत अच्छी तरह जानते हैं लेकिन अगर कहा जाए कि वे ईरान के दो प्रोडक्ट्स का नाम बताएं तो वे नहीं बता सकते। रेडियो ऐन्ड टेलिविजन विभाग विदेशी सेवा में इन प्रोडक्ट्स का प्रचार करे। इसलिए यह भी एक अहम मुद्दा था।

एक और मुद्दा जो मुझे डॉक्टर सत्तारी के हवाले से बताया गया कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में नॉलेज बेस्ज कंपनियों का हिस्सा 1 फ़ीसद से कम है; यह बहुत कम है। घरेलू प्रोडक्ट्स से इस हिस्सेदारी को ज़रूर बढ़ाया जाना चाहिए। तीन साल में, चार साल में कम से कम 5 फ़ीसदी तक पहुंच जाना जाहिए; इस काम का संकल्प लीजिए कि इंशाअल्लाह यह काम अंजाम पाए। उम्मीद है कि पूरी सृष्टि का मालिक आप सबकी मदद करेगा। (अज़ान का वक़्त होने वाला है और मैं अपनी बातें ख़त्म करता हूं।)

उम्मीद है अल्लाह आप सबको कामयाब करे। भविष्य आपका है; यह जान लीजिए। यह देश आपका है; आप हैं जो इस देश का भविष्य बनाएंगे, देश के कल के प्रबंधक आप हैं। ख़ुद को तैयार कीजिए और देश को तैयार कीजिए; आप कर सकते हैं। नौजवान एलिट्स से फ़ायदा उठाने के लिए मैं अधिकारियों और मंत्रियों को नसीहत करता हूं, मैंने पिछली सरकार को भी बहुत ताकीद की थी। और वह एकदम बेअसर भी नहीं रही थी - इस सरकार को भी मैं यही ताकीद करता हूं कि प्रबंधन के विभिन्न मैदानों में, अवसत और निचले स्तर के प्रशासनिक पदों के लिए जवानों को भर्ती करें, यही बात एक दोस्त ने भी यहाँ पर कही- यहाँ तक कि उच्चस्तरीय प्रबंधन में भी नौजवानों से फ़ायदा उठाया जाए। मैं ताकीद कर रहा हूं और इंशाअल्लाह यह काम व्यवहारिक शक्ल लेगा लेकिन आप भी ख़ुद को तैयार कीजिए, अपनी जगह ढूंढिए; ख़ुद पता कीजिए कि देश की तरक़्क़ी में क्या योगदान दे सकते हैं। यहां पर आपकी असाधारण प्रतिभा सामने आनी चाहिए कि आप यह तय कीजिए कि आपकी पोज़ीशन कहाँ होनी चाहिए; उसी पोज़ीशन पर पहुंच जाइये और कोशिश कीजिए, काम कीजिए।

उम्मीद है सृष्टि का मालिक आप सबकी रक्षा करेगा, आप देश और क़ौम की आँखों की रौशनी, क़ौम के प्रिय सपूत हैं; इंशाअल्लाह अल्लाह आपको इस देश के लिए बाक़ी रखे। इंशाअल्लाह हमारे प्रिय शहीदों की पाक आत्मा और इमाम ख़ुमैनी की पाक आत्मा हमसे राज़ी रहे और आप सब और हम भी वक़्त के इमाम हज़रत इमाम महदी की, उन पर हमारी जानें फ़िदा हों, पाक दुआओं में शामिल रहें।

अल्लाह की रहमत और बर्कत हो आप सब पर।

  1. इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में विज्ञान व टेक्नॉलोगी के मामलों में राष्ट्रपति के सहायक जनाब सोर्ना सत्तारी ने एक रिपोर्ट पेश की। इसी तरह अच्छे एलिट्स ने भी अपने नज़रिये व विचार पेश किए।
  2. नहल सूरा, आयत 114, और अल्लाह की नेमत का शुक्र अदा करो अगर तुम सिर्फ़ उसकी इबादत करते हो।
  3. भारत के पहले प्रधान मंत्री और इस देश की आज़ादी के आंदोलन के लीडरों में से एक, जवाहर लाल नेहरू
  4. पहलवी शासन के तत्कालीन प्रधामंत्री फ़ील्ड मार्शल हाज अली रज़्म आरा ने, जो जुलाई 1950 में इस पद पर पहुंचा था, सांसदों के साथ बहुत ही तानाशाही वाला रवैया अपनाते हुए तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण की उनकी मांग के जवाब में, अपने तेल से भंडारों के प्रबंधन में ईरानी क़ौम में क़ाबिलियत न होने को साबित करने के लिए चिल्लाकर कहा थाः “जो क़ौम मिट्टी का लोटा बनाने की क़ाबिलियत नहीं रखती वह तेल उद्योग को कैसे चला सकती है?”
  5. निसा सूरा, आयत 102, कुफ़्फ़ार इस ताक में हैं कि तुम अपने हथियारों और अपने साज़ो सामान की तरफ़ से ज़रा बेख़बर हो तो वह तुम पर अचानक टूट पड़ें।
  6. सहित, पूरे देश के कुछ स्टूडेंट्स और एलिट्स से मुलाक़ात में की गयी तक़रीर, 25 सितंबर 2005
  7. सहित, इस्लामी क्रांति की कामयाबी की चालीसवीं सालगिरह के मौक़े पर क़ौम के नाम संदेश, 11 फ़रवरी 2019
  8. सहित, यूनिवर्सिटियों के कुछ प्रोफ़ेसरों, एलिट्स और रिसर्च स्कॉलर्ज़ से मुलाक़ात में की गयी तक़रीर, 10 जून 2018
  9. सन 1400 हिजरी शम्ती के नारे, प्रोडक्शन, ‘समर्थन और रुकावटों का हटना’ की तरफ़ इशार
  10. विज्ञान और टेक्नॉलोजी के मामले में राष्ट्रपति के सहायक

सहित, असाधारण क़ाबिलियत वाले कुछ लोग और एलिट्स से मुलाक़ात में की गयी तक़रीर, 18 अक्तूबर 2017