इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर भी कह चुके हैं कि शहीद क़ासिम सुलैमानी की बात में बड़ा असर होता था, वह सामने वाले को क़ायल कर देते थे।

किसी के अंदर दूसरों को क़ायल करने की सलाहियत तब पैदा होती है जब उसके दिमाग़ में हालात का नक़्शा पूरी तरह से स्पष्ट हो। यानी जब तब किसी के मन में किसी परिस्थिति का नक़्शा साफ़ नहीं होगा, वह दूसरों को क़ायल नहीं कर सकता। दूसरे यह कि उसके बयान की बुनियादें तर्कसंगत होनी चाहिएं। ठोस और मज़बूत बुनियादें होनी चाहिएं। अगर नज़रिये की बुनियाद मज़बूत, पुख़्ता व ठोस होगी, सोच और अमल में कोई टकराव नहीं होगा, तभी दूसरों को क़ायल व संतुष्ट करना मुमकिन होगा।

वह जाते थे और बहुत से लोगों से बातचीत करते थे। घटने वाली घटनाओं की ताज़ा स्थिति तफ़सील के साथ पेश कर देते थे, व्याख्या करते थे और कहते थे कि इन वजहों से, इन बुनियादों पर यह काम अंजाम देना ज़रूरी है। वह निजी बातों और राजनैतिक रूझान पर ध्यान नहीं देते थे। उनमें सच्चाई थी वह  राजनैतिक हथकंडों से दूर रहते थे जिसका यह असर था कि जब वह किसी से बात करते थे तो उसके मन में कभी यह ख़्याल नहीं आता था कि जनरल क़ासिम सुलैमानी कह कुछ रहे हैं और उनके मन में कोई और बात है। उनकी सच्चाई और साफ़ अंदाज़ में बातचीत की वजह से लोग क़ायल व संतुष्ट हो जाते थे।

कभी कभी जब वह सीरिया के बड़े कमांडरों और अधिकारियों से बात करते थे तो जंग के मैदान के बारे में उनकी जानकारी बहुत ज़्यादा और बिल्कुल सही होती थी, इसकी वजह से ज़ाहिर है कि सही हल पेश किया जा सकता है और दूसरों को संतुष्ट किया जा सकता है। कुल मिलाकर यह कि एक ओर जंग के मैदान में हमेशा मौजूद रहना, ज़मीनी हालात से सीधा संपर्क और पूरी जानकारी तो दूसरी ओर दूरदृष्टि, ये चीज़ें उनके भीतर ख़ास महारत पैदा कर देती थीं।