22/04/2024
इक़बाल अगर आज ज़िंदा होते तो वो एक ऐसी क़ौम को अपनी आँखों के सामने पाते जो अपने क़दमों पर खड़ी है; क़ौम परस्ती, राष्ट्रवाद और ग़ैर ज़रूरी वतनपरस्ती की चहारदीवारी में ख़ुद को क़ैद नहीं करती और इक़बाल की ऐसी ही दूसरी आरज़ूएं जो उनकी क़ीमती किताबों में हर जगह मौजूद हैं, उनको वो क़ौम यहाँ नज़र आती।
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