09/12/2022
इमाम हसन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि शबे जुमा थी। मेरी वालेदा मुसल्ले पर खड़ी हुईं और पूरी रात सुबह तक इबादत करती रहीं। वालेदा रात की शुरुआत से सुबह तक इबादत, दुआ और मुनाजातें करती रहीं। इमाम हसन फ़रमाते हैं कि मैंने सुना की वो मुसलसल मोमेनीन और मोमेनात के लिए दुआ करती रहीं, लोगों के लिए दुआ करती रहीं, इस्लामी दुनिया के मसलों के लिए दुआ करती रहीं। सुबह हुई तो मैंने कहा कि आपने एक दुआ भी अपने लिए नहीं मांगी। शुरू से आख़िर तक पूरी रात दुआएं कीं दूसरों के लिए?! उन्होंने जवाब दिया कि मेरे बेटे पहले पड़ोसी फिर ख़ुद। यह अज़ीम जज़्बा है। इमाम ख़ामेनेई 16 दसिम्बर 1992
07/12/2022
हमारे बस की बात नहीं’ का कल्चर इस्लामी इंक़ेलाब से पहले समाज में मौजूद ग़लत कल्चर था। इंक़ेलाब ने आकर इस सोच को बदला जिसके नतीजे में बांधों, बिजलीघरों, हाईवेज़, तेल और गैस इंडस्ट्री की मशीनों और इंफ़्रास्ट्रक्चर के निर्माण के बहुत सारे काम स्थानीय नौजवान विशेषज्ञों के हाथों अंजाम पाए। इमाम ख़ामेनेई 6 दिसम्बर 2022
06/12/2022
ये लोग प्लानिंग के साथ मैदान में आए हैं। प्लान यह है कि ईरानी क़ौम को अपनी राह पर ले जाएं, ऐसा कुछ करें कि ईरानी क़ौम की सोच ब्रिटेन और अमरीका के सियासतदानों वग़ैरह की तरह हो जाए।दुश्मन की यह कोशिश है कि लोगों के दिल व दिमाग़ पर छा जाए। अगर उन्होंने किसी क़ौम के दिल व दिमाग़ पर क़ब्ज़ा कर लिया तो फिर वह क़ौम अपने मुल्क को अपने हाथों दुश्मन के हवाले कर देगी।इस मक़सद के तहत वह, जवानों के ऐक्टिव दिमाग़ के लिए फ़िक्री कन्टेन्ट बनाना शुरू कर देता है। ये सब झूठ, हक़ीक़त के बरख़िलाफ़ ये बातें, ये सब गुमराह करने वाली बातें, ये सब इल्ज़ाम, ये सब इसी लिए है। इमाम ख़ामेनेई 2 नवम्बर 2022 26 नवम्बर 2022
03/12/2022
इफ़्तेख़ार सिर्फ़ यह नहीं है कि हमारा क़ौमी तराना पढ़ा जाए। बेशक यह इफ़्तेख़ार है लेकिन इससे बड़ा इफ़्तेख़ार यह है कि मिसाल के तौर पर एक चैम्पियन ख़ातून चैम्पियन्ज़ के पोडियम पर चादर के साथ आकर खड़ी हो। यह इस लहराते क़ौमी परचम से भी ज़्यादा अहम है। यह मुसलमान ईरानी ख़ातून के मज़बूत जज़्बे का आईना है। इमाम ख़ामेनेई 2 जनवरी 2016
01/12/2022
मैं उम्मीद करता हूं कि हमारे समाज की बच्चियां और महिलाएं हज़रत ज़ैनब की शख़्सियत में मौजूद आइडियल पर ग़ौर करें और अपनी शख़्सियत के लिए उसी को पैमाना बनाएं। बाक़ी चीज़ें तो हाशिए की हैं। इमाम ख़ामेनेई 16 जून 2005
25/11/2022
यह जो बात मैं अर्ज़ कर रहा हूं सभी इस बर ध्यान दें, दुश्मन प्लानिंग के साथ मैदान में आया है। ‎नौजवान समझ लें, वो प्रोग्राम के साथ मैदान में उतरे हैं। उनका प्रोग्राम यह है कि ईरानी क़ौम को ‎अपनी साज़िश में शामिल कर लें, ऐसा कुछ करें कि ईरानी क़ौम का अक़ीदा, ब्रिटेन और अमरीका ‎वग़ैरह के नेताओं जैसा हो जाए, यह साज़िश है। ‎ इमाम ख़ामेनेई 2 नवम्बर 2022
22/11/2022
इस्लामी जुम्हूरिया ईरान से वेस्ट और इम्पेरियल ताक़तों को तकलीफ़ यह है कि इस्लामी जुम्हूरिया लगातार आगे बढ़ रही है। इस तरक़्क़ी को सारी दुनिया देख रही है और मान रही है। यह चीज़ पश्चिम के लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त हो गई है। इमाम ख़ामेनेई 19/11/2022
18/11/2022
शहीद और शहादत उन चीज़ों में है जो राष्ट्रीय पहचान को नुमायां मक़ाम पर ले जाती हैं और राष्ट्रीय पहचान को बुलंदी प्रदान करती हैं। अपने जज़्ब़-ए-शहादत की वजह से ईरानी क़ौम दूसरी क़ौमों की निगाहों में ख़ास अज़मत की मालिक बनी। इमाम ख़ामेनेई 17 नवम्बर 2022
13/11/2022
आप अमरीकियों ने 2009 के हंगामों में शामिल दंगाइयों का खुलकर साथ दिया। इससे पहले ओबामा ने मुझे ख़त लिखा था कि हम आप से सहयोग करना चाहते हैं, हम आपके दोस्त हैं। लेकिन जैसे ही 2009 के हंगामे शुरू हुए उन्होंने दंगाइयों का समर्थन शुरू कर दिया। इस उम्मीद पर कि शायद यह दंगे कामयाब हो जाएं और ईरानी क़ौम को घुटने टेकने पर मजबूर कर दें। इमाम ख़ामेनेई 2 नवम्बर 2022
12/11/2022
इमाम ख़ुमैनी ने फ़रमाया कि अगर महिलाएं इस मूवमेंट में साथ न देतीं तो इंक़ेलाब कामयाब न हो पाता। अगर इंक़ेलाब के दौरान औरतों की वफ़ादारी, अलग अलग मैदानों में, जुलूसों में, चुनावों में औरतों की भागीदारी और उनके ज़ज्बात का सहारा न होता तो यक़ीनी तौर पर यह अज़ीम अवामी तहरीक यह शक्ल अख़्तियार न कर पाती और आगे न बढ़ पाती। यह इस्लाम का और इस्लामी सिस्टम का नज़रिया है। इमाम ख़ामेनेई 20 सितम्बर 2000
09/11/2022
हम शहीद सुलैमानी की शहादत हरगिज़ भूलेंगे नहीं। इसे वो याद रखें! इस सिलसिले में हमने एक बात कही है ‎और ‎उस पर क़ायम हैं। मुनासिब वक़्त पर, मुनासिब जगह इंशाअल्लाह उस पर अमल किया जाएगा। ‎ इमाम ख़ामेनेई 2 नवम्बर 2022
09/11/2022
‎शीराज़ में #शाहचेराग़ का वाक़या बहुत बड़ा मुजरेमाना क़दम था। इस मासूम बच्चे का क्या गुनाह था। छह साल का ‎बच्चा जिसने अपने मां बाप और भाई को खो दिया। उस पर ग़म का पहाड़ क्यों गिरा दिया?‎ इमाम ख़ामेनेई 2 नवम्बर 2022
07/11/2022
वतन को बचाने के लिए मोर्चे पर जाने वाले मुजाहेदीन की बीवियां दुखी हुयीं और वे रोईं कि वह ‎क्यों जंग के मैदान में नहीं जा सकतीं, उन्होंने सब्र किया और अपने घरों में बैठी रहीं और मोर्चे के ‎पिछले हिस्से को संभाल लिया, फिर जब वह मुजाहिद शहीद हो गया तो उन्होंने शुक्र अदा किया और ‎अपने शहीद की शहादत पर फ़ख़्र किया! यह वह चीज़ है जिससे किसी तहरीक का शोला मुसलसल ‎जलता रहता है। इमाम ख़ामेनेई 1 जनवरी 1992‎
06/11/2022
कुछ साल पहले तक आधुनिक मिसाइल और ड्रोन की तस्वीरें जब पब्लिश होती थीं तो यह लोग कहते थे कि फ़ोटोशाप से बनाई गई जाली तस्वीरें हैं। आज कह रहे हैं कि ईरानी ड्रोन बड़े ख़तरनाक हैं। यह ईरानी वैज्ञानिकों का कमाल है। इमाम ख़ामेनेई 19 अक्तूबर 2022
29/10/2022
मुझे जब भी कभी शहीदों के घरवालों से मुलाक़ात का शरफ़ हासिल होता है और मैं अक़ीदत से उनसे मुलाक़ात करने जाता हूं तो कुछ माँए कहती हैं कि हम रोते नहीं हैं ताकि दुश्मन हमें कमज़ोर न समझे। इन दिलों में कितनी अज़मत छिपी हुई है!? इमाम ख़ामनेई 31 अगस्त 1999
25/10/2022
यह हंगामे मंसूबे के साथ करवाए गए। बाहरी सरकारों को यह महसूस हो रहा है, नज़र आ रहा है कि मुल्क हर पहलू से मज़बूती की तरफ़ बढ़ रहा है और यह उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। वो नहीं चाहतीं कि ऐसा हो। इस तरक़्क़ी को रोकने के लिए उन्होंने यह साज़िश रची थी। इमाम ख़ामेनेई 3 अकतूबर 2022
24/10/2022
कभी यह दुनिया दो बड़ी ताक़तों की मुट्ठी में थी। एक ताक़त अमरीका और दूसरी ताक़त पूर्व सोवियत युनियन। एक मसले पर यह दोनों मुत्तफ़िक़ थे और वह मसला था इस्लामी जुमहूरिया की दुश्मनी। इमाम ख़ुमैनी उनके मुक़ाबले में डट गए। झुकना गवारा न किया। साफ़ कह दियाः "न पूरब न पश्चिम" दुश्मन समझ रहे थे कि यह लक्ष्य पूरा नहीं होगा। सोच रहे थे कि इस पौधे को उखाड़ फेंकेंगे। मगर पौधा आज तनावर दरख़्त बन गया है। इसे उखाड़ फेंकने की बात सोचना उनकी हिमाक़त ही होगी। इमाम ख़ामेनेई 14 अकतूबर 2022
23/10/2022
जिस शियत का मरकज़ और पनाहगाह लंदन है उसे हम नहीं मानते। जिस शियत का वजूद तफ़रक़ा फैलाने और इस्लाम के दुश्मनों के लिए रास्ता साफ़ करने पर टिका है वह शियत नहीं। यह खुली हुई गुमराही है। इमाम ख़ामेनेई 17 अगस्त 2015
16/10/2022
अमरीका ताक़तवर ईरान का विरोधी है, इंडिपेंडेंट ईरान का विरोधी है। उन्हें इस्लामी जुमहूरिया से गहरी दुश्मनी है। इसमें कोई शक ही नहीं लेकिन इस्लामी जुमहूरिया के अलावा ख़ुद ताक़तवर ईरान के भी ख़िलाफ़ हैं, उस ईरान के ख़िलाफ़ हैं जो इंडिपेंडेंट हो। उन्हें पहलवी हुकूमत के दौर का ईरान पसंद है जो दूध देने वाली गाय हो। उनके हुक्म का पाबंद हो। मुल्क का बादशाह हर फ़ैसले के लिए ब्रिटेन और अमरीका के राजदूत की रज़मंदी लेने पर मजबूर हो। इमाम ख़ामेनेई 3 अकतूबर 2022
14/10/2022
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के ज़माने में वक़्त ने उन्हें एक मौक़ा दिया और हज़रत यह काम करने में कामयाब हुए कि समाज में सही इस्लामी मारेफ़त की बुनियादें इतनी मज़बूत हो जाएं कि फिर फेरबदल के ज़रिए उन बुनियादों को हिलाया न जा सके। यह हज़रत इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम का कारनामा था। इमाम ख़ामेनेई 8 नवम्बर 2005
14/10/2022
हालिया हंगामे ख़ुद बख़ुद अंदर से उठने वाली चीज़ नहीं है। प्रचारिक बमबारी, सोच पर असर डालने की कोशिशें, ‎पेट्रोल बम बनाने की ट्रेनिंग देने जैसी हैजान पैदा करने की कोशिशें, यह सारे काम दुश्मन खुलकर अंजाम दे रहा है। ‎ इमाम ख़ामेनेई 12 अकतूबर 2022
12/10/2022
मदीने में इस्लाम की हुक्मरानी का दौर इस्लामी सिस्टम का निचोड़ पेश करने और इंसानी तारीख़ के हर दौर और हर जगह के लिए इस्लाम की हुक्मरानी का नमूना और नज़ीर तैयार करने का ज़माना है। पैग़म्बरे इस्लाम का मक़सद सिर्फ़ मक्के के काफ़िरों से जेहाद करना नहीं था। यह एक आलमी मिशन का मामला था। मक़सद यह था कि इंसान की आज़ादी, बेदारी और ख़ुशक़िस्मती का पैग़ाम हर दिल में उतर जाए। यह मक़सद एक आइडियल सिस्टम की रचना के बग़ैर पूरा नहीं हो सकता था। इमाम ख़ामेनेई 18 मई 2001
11/10/2022
स्पोर्ट्स के मैदान में मिलने वाली जीत और दूसरी कामयाबियों में एक बुनियादी फ़र्क़ है। फ़त्ह एक लम्हे में मिलती ‎है और फ़ौरन सब को मालूम हो जाता है। जिस लम्हा आप जीत हासिल करते हैं दसियों लाख और कभी तो करोड़ों ‎लोग उस जीत को अपनी आंख से देखते हैं। ज़ाहिर है कि यह बहुत अहम कामयाबी है। बहुत अहम है और दूसरी ‎कामयाबियों के विपरीत इसे छिपाना नामुमकिन है। इमाम ख़ामेनेई ‎11 सितम्बर 2022‎
07/10/2022
मैं साफ़ लफ़्ज़ों में कहता हूं कि यह हालिया फ़सादात और हिंसा अमरीका और जाली ज़ायोनी सरकार की साज़िश थी और उनके ख़रीदे हुए लोगों और विदेशों में रहने वाले कुछ ग़द्दार ईरानियों ने उनकी मदद की। इमाम ख़ामेनेई 3 अक्तूबर 2022
05/10/2022
हमने रवायतों में देखा और पढ़ा है कि मासूम इमामों की ज़िंदगी अल्लाह की राह में जेहाद की तस्वीर है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम से लेकर ग्यारहवें इमाम, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम तक जेहाद का अंदाज़ एक है। यह एक सिलसिला है जो शुरू से आख़िर तक लगातार कोशिश और जिद्दोजेहद का सिलसिला है। यह वक़्त की हुकूमत के ख़िलाफ़ और हुकूमत से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ लड़ाई और संघर्ष है। इमाम ख़ामेनेई किताब, हमरज़्माने हुसैन अलैहिस्सलाम، पेज 349
05/10/2022
यह तीन इमाम यानी इमाम मुहम्मद तक़ी अलजवाद, इमाम अली नक़ी अलहादी और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम मदीना से इराक़ लाए गए, तीनों इराक़े में ही रहे और इराक़ में ही उन्हें शहीद और दफ़्न कर दिया गया। तीनों को जवानी में क़त्ल किया गया। इसकी वजह यह थी कि इन तीनों इमामों के ज़माने में शियों का नेटवर्क अपनी ताक़त के उरूज पर पहुंच गया था। इमाम ख़ामेनेई किताब, हमरज़्माने हुसैन अलैहिस्सलाम पेज, 349
27/09/2022
हम सब को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से यह सबक़ मिला है कि ऐ मुसलमानो! जेहाद से हरगिज़ न थको, कभी ग़ाफ़िल न हो क्योंकि दुश्मन जाग रहा है और अलग अलग शक्लों, अलग अलग भेस में, अलग अलग मेक-अप में सामने आता है। गहरी नज़र रखो, दुश्मन को पहचानो और दुश्मन से लड़ने का तरीक़ा सीखो! इमाम ख़ामेनेई 24 नवम्बर 1984
27/09/2022
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वली-अहद का ओहदा क़ुबूल करके वह क़दम उठाया जो सन 40 हिजरी में अहलेबैत की ख़ेलाफ़त का दौर ख़त्म होने के बाद से लेकर पूरी ख़ेलाफ़त की तारीख़ में बेनज़ीर है। वह क़दम था पूरी इस्लामी दुनिया की सतह पर शिया अक़ीद-ए-इमामत का एलान, तक़ैया के पर्दे को चाक करके शिया अक़ीदे को सारे मुसलमानों तक पहुंचाना। इमाम ख़ामेनेई 9 अगस्त 1984
26/09/2022
पैग़म्बर की नज़र में इंसान की नजात का तरीक़ा यह नहीं था कि आप एक एक व्यक्ति की इस्लाह करें। नहीं, पहले दिन से पैग़म्बरे इस्लाम का तरीक़ा यह रहा कि इस तरह का समाज बनाया जाए जिसमें लोग मुत्तहिद रहें और उसमें इस्लामी मूल्यों के मुताबिक़ परवान चढ़ें और इस्लाम के मद्देनज़र बुलंदी तक पहुंचें। इमाम ख़ामेनेई 1 नवम्बर 1986
26/09/2022
पैग़म्बर की जंग और जेहाद सिर्फ़ तलवार की लड़ाई तक सीमित नहीं है बल्कि यह आम लड़ाई है। इसमें वैचारिक लड़ाई भी है, सियासी लड़ाई भी है, प्रचारिक लड़ाई भी है और फ़ौजी लड़ाई भी है। बेशक हिजरत से पहले पैग़म्बर ने मक्के में जो जेहाद अंजाम दिया वह बद्र व ओहोद, ख़ैबर व ख़ंदक़ और दूसरी जंगों के ख़तरों से कम ख़तरनाक नहीं था। इमाम ख़ामेनेई 1 नवम्बर 1986
25/09/2022
पैग़म्बर ने बड़ी सख़्तियां बर्दाश्त कीं। हज़रत अली ने बड़े दुख उठाए, दूसरे इमामों ने भी ज़ुल्म का सामना किया लेकिन इमाम हसन जैसी हालत किसी की न थी। यहीं से इमाम हसन अलैहिस्सलाम की अज़मत का पता चलता है। क्योंकि दूसरे इमामों को दुश्मनों ने तकलीफ़ें पहुंचाईं और दोस्तों ने ज़ख़्मों पर मरहम रखा मगर इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ यह स्थिति नहीं थी। आपके बिल्कुल क़रीबी व्यक्ति ने आपको मुख़ातिब करके कहा ऐ मोमिनों के लिए रुस्वाई! इमाम ख़ामेनेई 28 जुलाई 1980
24/09/2022
यह उन्हें बर्दाश्त न था कि एक क़ौम अमरीका से और उस ज़माने में दुनिया पर छायी फ़ौजी, सियासी और आर्थिक ताक़त से न डरे। लेहाज़ा वे ईरान से बदला लेने की कोशिश में थे। बग़ावत, तबस हवाई हमला, जातियों को भड़काने जैसी हरकतें कीं, कुछ हाथ न आया तो एक पड़ोसी के ज़रिए जंग थोप दी। इमाम ख़ामेनेई 21/09/2022
24/09/2022
ब्रितानी शिया और अमरीकी सुन्नी में कोई फ़र्क़ नहीं। दोनों ही क़ैंची के दो फल हैं। साम्राज्यवाद चाहता है कि इस्लामी दुनिया में इख़तेलाफ़ की लकीरों को गहरा करे शिया-सुन्नी जंग के ज़रिए, अरब व ग़ैर अरब जंग के ज़रिए, कभी शिया-शिया जंग और कभी सुन्नी-सुन्नी जंग के ज़रिए। जबकि अस्ली और बुनियादी फ़ासला एक ही है और वह इस्लामी दुनिया और कुफ़्र व साम्राज्यवाद की दुनिया के बीच का फ़ासला है। बाक़ी सारे मतभेदों को कम करने की ज़रूरत है। इमाम ख़ामेनेई 3 सितम्बर 2022 और 17 दिसम्बर 2016
19/09/2022
अरबईन मार्च इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ऊंचा परचम है।  इमाम ख़ामेनेई 17/09/2022
19/09/2022
आपके पासबाने हरम शहीदों की क़ुरबानी जो इस दौर में मुल्क से बाहर जाकर शहीद हुए, दर हक़ीक़त उन लोगों की क़ुरबानियों जैसी है जिन्होंने अपनी जानें देकर इमाम हुसैन की क़ब्र की हिफ़ाज़त की। जाकर क़ुरबानियां देने का यही अमल था कि जो अरबईन के दो करोड़ पैदल ज़ायरीन के नतीजे तक पहुंचा। अगर उस वक़्त इन लोगों ने क़ुरबानियां न दी होतीं तो आज इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का इश्क़ इस अंदाज़ से सारी दुनिया पर न छा जाता। आप देखते हैं कि अरबईन मार्च में अलग अलग मुल्कों से फ़ार्स तुर्क, उर्दू ज़बान बोलने वाले, यूरोपीय मुल्कों यहां तक कि अमरीका से लोग इसमें शिरकत करते हैं। यह कारनामा किसने अंजाम दिया। इसका पहला संगे बुनियाद और बुनियादी काम उन्हीं लोगों के हाथों अंजाम पाया जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए अपनी जान की भी क़ुरबानी दी।  इमाम ख़ामेनेई  12/10/2018
17/09/2022
अरबईन का अज़ीम प्रोग्राम एक ग़ैर मामूली वाक़या है। हम अपने दिलो दिमाग़ में इमाम हुसैन की याद ताज़ा करते हैं। ख़ुलूस व अक़ीदत से भरा दुरूद व सलाम उस अज़ीम हस्ती और शहीदों की पाकीज़ा ख़ाक को हदिया करते हैं और अर्ज़ करते हैं,  ऐ बादे सबा ऐ दूर पड़े लोगों के पैग़ाम पहुंचाने वाली! हमारे आंसुओं को उन हस्तियों की पाकीज़ा ख़ाक तक पहुंचा दे।  इमाम ख़ामेनेई  4 अकतूबर 2018