अगर हम समझ सकें तो इस दिन (अरफ़ा के दिन) दोपहर बाद का वक़्त, जन्नती वक़्त है। इतनी अज़मतों की मालिक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी शख़्सियत, अपना आधा दिन यूंही इस दुआ में नहीं बिता सकती है। इस दुआ के अर्थों पर ध्यान देने की ज़रूर कोशिश कीजिए, ध्यान दीजिए कि दुआ में क्या कहा जा रहा है। न यह कि बैठ कर सोचते रहिए-इनमें ग़ौर फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है-जब आप बात कर रहे हैं तो यह मन में रहे कि आप किसी से बात कर रहे हैं और उस बात के अर्थ को समझिए कि वह क्या है। अरफ़ा के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की दुआ, इमाम हुसैन की दुआए अरफ़ा की व्याख्या की तरह है। मानो इस बेटे नें अपने पिता के शब्दों के नीचे एक हाशिया, एक व्याख्या दुआ की ज़बान में लिखी है। दोनों का अलग अलग ही मज़ा है।
इमाम ख़ामेनेई
26 मई 1993
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने शीयों का बहुत बड़ा और मज़बूत पोशीदा नेटवर्क तैयार करने के लिए हर मुमकिन शरई ज़रिए का इस्तेमाल किया। 16 सितम्बर 1988यही चीज़ कि आप कुछ लोगों को अपने वकील और नायब के तौर पर नियुक्त कर देते थे जो आपकी तबलीग़ और तालीमात की तरवीज का मिशन अंजाम दें। यह इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के पोशीदा नेटवर्क का हिस्सा था जिसका आग़ाज़ इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम से पहले ही हो चुका था मगर आपके दौर में इस काम में नई शिद्दत और रफ़तार पैदा हुई क्योंकि यह बड़े जोखिम का काम था।
इमाम ख़ामेनेई
31 जुलाई 1987
अमरीकी हुकूमत पहले दिन से इस इंक़ेलाब के साथ तल्ख़ी और बदसुलूकी से पेश आई। फ़ार्स खाड़ी में अमरीकी अफ़सर ने जलपोत से फ़ायर किए गए मिसाइल से हमारे यात्री विमान को मार गिराया। तक़रीबन 300 यात्री मारे गए। इस घटना पर उस अफ़सर को सज़ा देने के बजाए अमरीकी राष्ट्रपति ने इनाम से नवाज़ा! हमारी क़ौम इन चीज़ों को कभी भूल सकती है?
इमाम ख़ामेनेई
21 मार्च 2009
यूरोप और अमरीका में ह्यूमन राइट्स के झूठे दावेदार जिन्होंने यूक्रेन के मसले में आसमान सर पर उठा लिया, फ़िलिस्तीन में होने वाले संगीन अपराधों पर ख़ामोश हैं। मज़लूम का बचाव नहीं करते बल्कि ख़ूंख़ार भेड़िए का साथ दे रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
29 अप्रैल 2022
बेहतरीन ख़ानदान वाले, ख़ूबरू, ताक़तवर और दिलनशीं व्यक्तित्व के हज़ारों नौजवान हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पांव की धूल के बराबर भी नहीं हैं। हज़ारों आला ख़ानदान की ख़ूबसूरत लड़कियां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के क़दमों की धूल के बराबर भी नहीं हैं। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी थीं जो इस्लामी दुनिया के सरदार और हाकिम थे। हज़रत अली भी इस्लाम के सबसे बड़े सिपहसालार थे। अब ज़रा देखिए कि उनकी शादी किस अंदाज़ से हुई? मेहर क्या था? दहेज क्या था? हर काम अल्लाह का नाम लेकर और उसके ज़िक्र के साथ। यह हमारे लिए आदर्श है।
इमाम ख़ामेनेई
6 मई 1996
यह अरब व ग़ैर अरब हुकूमतें जिन्होंने ज़ायोनियों से हाथ मिलाया, उन्हें गले लगाया, उनके साथ मीटिंगें कीं, कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगी। नुक़सान के अलावा उन्हें कुछ मिलने वाला नहीं है। पहली चीज़ तो यह कि ख़ुद उनके अवाम ख़िलाफ़ हैं। इसके अलावा ज़ायोनी सरकार उनका ख़ून चूस रही है, उनका शोषण कर रही है। यह समझ नहीं रही हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
शहीद चमरान एक महान इल्मी हस्ती थे। वह महान आर्टिस्ट भी थे। उन्होंने ख़ुद मुझ से कहा कि मैं फ़ोटोग्राफ़र हूं। इसके बाद वो मैदाने जंग में आ गए, फ़ौजी वर्दी पहनी और फ़ौजी जवान बन गए। लेकिन इस मैदान में उतरने से पहले वो एक बड़े स्कालर थे। इस मैदान (जेहाद) ने उनको आसमानों पर पहुंचा दिया।
इमाम ख़ामेनेई2
7 नवम्बर 2018
ईरान और वेनेज़ोएला के किसी भी देश के साथ इतने क़रीबी रिश्ते नहीं हैं और इस्लामी गणराज्य ईरान ने साबित कर दिया कि दोस्तों को ख़तरे में देखे तो रिस्क लेता है और दोस्तों का हाथ थामता है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
अमरीका से कड़े मुक़ाबले और #वेनेज़ोएला के ख़िलाफ़ बहुआयामी हाइब्रिड जंग में वेनेज़ोएला की सरकार और क़ौम की फ़तह और जनाब मादोरो और वेनेज़ोएला के अवाम का प्रतिरोध क़ीमती है। प्रतिरोध से क़ौम और नेताओं का क़द बढ़ता है। आज वेनेज़ोएला के बारे में अमरीका की निगाह अतीत से अलग है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
अमरीका के सख़्त दबाव और बहुआयामी जंग के मुक़ाबले के ईरान और वेनेज़ोएला के कामयाब अनुभव से साबित हुआ कि उनसे निपटने का रास्ता प्रतिरोध और दृढ़ता ही है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2022
दुनिया की बहुत सी मुसीबतें और मुश्किलें रईसाना ज़िंदगी और दिखावे के कारण हैं। दुनिया की दौलत का बड़ा हिस्सा हर जगह इन चीज़ों पर ख़र्च हो रहा है। #हज आपको सादा जीवन गुज़ारना सिखाता है।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
आज दुनिया में इंसान की मुश्किलों की जड़ क्या है? यही कि उसे मिल जुल कर रहने का तरीक़ा नहीं आता। वे एक दूसरे पर ज़्यादती करते हैं। #हज मिल जुल कर जीना सिखाता है। हज में ऐसे लोग जो एक दूसरे से कोई पहचान नहीं रखते और जिनके कल्चर अलग हैं, एक साथ रहते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
दो साल के फ़ासले से अल्लाह ने हज का दरवाज़ा दोबारा खोला, यह बड़ी ख़ुशख़बरी थी। यह अल्लाह की दावत है जिसने हाजियों के लिए रास्ता खोला। किसी शख़्स की मेहरबानी नहीं, यह आप मोहतरम हाजियों के शौक़ की अल्लाह की बारगाह में क़ुबूलियत का नतीजा है। इंशाअल्लाह आप बेहतरीन हज बजा लाएं।
इमाम ख़ामेनेई
8 जून 2022
इमाम ख़ुमैनी, इंक़ेलाबों के इतिहास के सबसे महान इंक़ेलाब के नेता थे। सबसे महान क्यों? क्योंकि सबसे मशहूर इंक़ेलाबों में फ़्रांस का इंक़ेलाब और सोवियत यूनियन का इंक़ेलाब था और दोनों ही बहुत जल्द अपने रास्ते से भटक गए, उनमें अवाम का कोई किरदार बाक़ी नहीं रहा, उनका इक़ेलाब ख़त्म हो गया।
इमाम ख़ामेनेई
4 जून 2022
हमने और हमारे देश ने कभी भी किसी देश पर हमला नहीं करना चाहा और अब भी नहीं चाहते हैं लेकिन जब हम पर हमला कर दिया गया तो उसके बाद डिफ़ेंस एक ज़रूरी क़दम है जो सभी पर धार्मिक लेहाज़ से भी वाजिब है और अक़्ली लेहाज़ से भी। मैंने भी और सभी अधिकारियों ने भी अब तक बार बार इलाक़े की इन सरकारों से कहा है कि हम आपसे जंग करना नहीं चाहते। हम ऐसे नहीं हैं कि जब हमें ताक़त मिल जाए तो किसी दूसरे देश में ग़ुंडागर्दी से हस्तक्षेप करें। ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम इलाक़े के सबसे ताक़तवर देशों में से एक हैं और इस्लाम की बरकत से, हमारे इस देश और हमारे इस राष्ट्र के पास ऐसी ताक़त है कि बड़ी ताक़तें भी उस पर हमला नहीं कर सकतीं। लेकिन इसी के साथ हम चाहते हैं कि इन सभी इस्लामी देशों के साथ और ख़ास तौर पर उन देशों के साथ जो इलाक़े में हैं, भाई बन कर रहें। हम चाहते हैं कि वो सब एक दूसरे का हाथ थामें।
इमाम ख़ुमैनी
25/7/1982
इस्लामी गणराज्य #ईरान पाबंदियों के बावजूद अनेक मैदानों में अच्छी प्रगति करने में सफल रहा। अगर पाबंदियां न होतीं तो यह प्रगति भी हासिल न होती। क्योंकि पाबंदियों की वजह से हमने अपनी अंदरूनी क्षमताओं का सहारा लिया।
इमाम ख़ामेनेई
30 मई 2022
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम दौरे बनी उमैया के आख़िरी हिस्से में सूचना संचार के विशाल नेटवर्क का नेतृत्व कर रहे थे जिसका काम आल-ए-अली (अली अलैहिस्सलाम के वंशजों) की इमामत की तबलीग़ और इमामत के विषय की दुरुस्त तसवीर पेश करना था।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 1979
ईरान की इस्लामी जुमहूरियत ने दुनिया को कंट्रोल करने के विस्तारवादी सिस्टम के मंसूबों पर पानी फेर दिया। वर्चस्ववादी सिस्टम का अर्थ है कि कुछ विस्तारवादी देश हों और कुछ शोषण के शिकार। ईरान की इस्लामी जुमहूरियत ने इस क्रम को उलट पलट दिया। इसीलिए उस पर टूट पड़े हैं।
इमाम ख़ामेनेई
25 मई 2022
ज़ायोनी सरकार की सांसें उखड़ रही हैं लेकिन इसके बावजूद उसके अपराधों का सिलसिला जारी है और अपने हथियारों से मज़लूमों पर हमले कर रही है। औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों सब को क़त्ल कर रही है।
इमाम ख़ामेनेई
29 अप्रैल 2022
जो नौजवान, इस्लाम की ख़िदमत की नीयत से पूरी रात जागता है, ख़ुद को ख़तरों में डालता है, संघर्ष करता है, उसके अमल की क़द्र व क़ीमत का अंदाज़ा हम नहीं लगा सकते कि कितनी है, उसका इनाम क्या है! क्या अल्लाह के अलावा किसी के बस की बात है कि उस अमल का बदला दे सके? क्या दुनिया और उसकी चमक-दमक, उस इंसान का इनाम हो सकती है जो अल्लाह के लिए उठ खड़ा हुआ है और जिसने अल्लाह के लिए ख़ुद को ख़तरे में डाला है? आप अल्लाह के लिए उठ खड़े हुए, आपने अल्लाह के लिए जेहाद किया और इन शा अल्लाह आख़िर तक अल्लाह के लिए जेहाद करते रहेंगे और इस आंदोलन को अल्लाह के लिए ही विजयी बनाएंगे। ये इलाही जज़्बा आपको, जीत के साहिल तक पहुँचाएगा।
इमाम ख़ुमैनी
17 सितम्बर 1979
फ़िलिस्तीन पर अवैध क़ब्ज़े के पूरे 70 साल के समय में ज़ायोनियों ने एक इंच ज़मीन भी बात-चीत के नतीजे में नहीं छोड़ी है। वार्ता की हैसियत क्या है? ज़ायोनी सिर्फ़ प्रतिरोध के नतीजे में पीछे हटे। पहली घटना, दक्षिणी लेबनान से पीछे हटने और फ़रार की थी। फ़िलिस्तीनियों को याद रखना चाहिए, फ़िलिस्तीनी जेहाद में शामिल संगठन याद रखें! कभी इस झांसे में न आएं कि ग़ज़्ज़ा की आज़ादी, बात-चीत के नतीजे में हुई है। बिल्कुल नहीं! वार्ता से ग़ज़्ज़ा को आज़ादी नहीं मिली। बात-चीत से कोई भी इलाक़ा आज़ाद नहीं हुआ और कभी भी इससे कोई इलाक़ा आज़ाद होने वाला नहीं है। ग़ज़्ज़ा को जिस चीज़ ने आज़ादी दिलाई, वह फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का प्रतिरोध था। ज़ायोनी पीछे हटने पर मजबूर हो गए।
इमाम ख़ामेनेई
19 अगस्त 2006
हमारे और आपके कुछ पड़ोसी देशों के नेताओं का ज़ायोनी शासन के अधिकारियों के साथ उठना-बैठना है और वे साथ में बैठ कर कॉफ़ी पीते हैं। लेकिन इन्हीं मुल्कों के अवाम क़ुद्स दिवस पर सड़कों को अपनी भारी तादाद और ज़ायोनी विरोधी नारों से भर देते हैं। यही आज इलाक़े की सच्चाई है।
सीरिया के राष्ट्रपति से मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर इमाम ख़ामेनेई
08/05/2022
ज़ायोनी सरकार की सांसें उखड़ रही हैं लेकिन इसके बावजूद उसके अपराधों का सिलसिला जारी है और अपने हथियारों से मज़लूमों पर हमले कर रही है। औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों सब को क़त्ल कर रही है।
इमाम ख़ामेनेई
29 अप्रैल 2022
मज़दूर के सिलसिले में पूंजीवादी व्यवस्था की नज़र शोषण पर आधारित है। उनके नज़दीक मज़दूर दौलत कमाने का औज़ार है। पूंजीवादी व्यवस्था की यह सोच है और वे अपनी इस सोच को छिपाते भी नहीं। आर्थिक विषयों की उनकी किताबें आप देखिए तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे।
इमाम ख़ामेनेई
8 मई 2022
अंतर्राष्ट्रीय जंग में सीरिया को फ़तह दिलाने में कई कारण प्रभावी रहे। एक अहम वजह ख़ुद आप (जनाब बश्शार असद) का बुलंद हौसला था। इंशाअल्लाह आप इसी जज़्बे के साथ, जंग की तबाही के बाद पुनरनिर्माण का काम पूरा कीजिए क्योंकि अभी आपको बहुत बड़े काम अंजाम देने हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 मई 2022
हम चाहते हैं कि अपने अज़ीज़ श्रमिकों का शुक्रिया अदा करें और पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण करते हुए आप के हाथ चूमें और हमारी इच्छा है कि समाज में काम और मेहनत की अहमियत ज़ाहिर हो।
इमाम ख़ामेनेई
8 मई 2022
ख़ानदान और परिवार की बहस में बार बार महिला की भूमिका का ज़िक्र आता है। इसकी वजह भी ज़ाहिर है। घर के अंदर औरत की पोज़ीशन केन्द्रीय हैसियत रखती है। समाज को उसकी अहमियत का एहसास होना चाहिए। घरेलू महिलाओं के कामों की अहमियत का जायज़ा लिया जाना चाहिए। कुछ महिलाएं हैं जो बाहर जाकर नौकरी वग़ैरा कर सकती थीं। कुछ उच्च शिक्षा के लिए जा सकती थीं। कुछ के पास तो उच्च शिक्षा भी थी लेकिन उन्होंने कहा कि हमें बच्चों की परवरिश करनी है, तरबियत करनी है इसलिए हम काम के लिए नहीं निकले। इस तरह की महिलाओं की क़द्र की जानी चाहिए। यहां सज्जनों ने यह भी कहा कि इन महिलाओं का बीमा होना चाहिए। बेशक होना चाहिए। उनकी माली ज़रूरतें पूरी की जानी चाहिए, उनका बीमा और दूसरी ज़रूरतें पूरी होनी चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
4 जनवरी 2012
रमज़ान के महीने को इबादतों, रोज़ेदारी, दुआ, मुनाजात, इलतेजा और विनती की हालत में गुज़ारना और फिर ईदुल फ़ित्र के वातावरण में क़दम रखना एक मोमिन इंसान के लिए वास्तविक ईद है। यह ईद दुनिया के भौतिक उत्सवों जैसी नहीं है। यह अल्लाह की रहमत व बख़शिश की ईद है।
इमाम ख़ामेनेई
4 नवम्बर 2022
आज ईदे फ़ित्र है। अल्लाह से ईदी लेने का दिन है। वह दिन है कि जब ईदे फ़ित्र की नमाज़ के क़ुनूत में दसियों लाख भावुक दिलों ने अल्लाह से दुआ की है कि वही नेकियां जो उसने अपने सबसे महान बंदों को प्रदान की हैं, उन्हें भी प्रदान करे और जिन बुराइयों से उसने तारीख़ के सबसे श्रेष्ठ इंसानों को दूर रखा है, उनसे उन्हें भी दूर रखे।
इमाम ख़ामेनेई
26 नवम्बर 2003
हमारे नौजवानों ने इस महीने में जो नूर हासिल किया है इन्शाअल्लाह, वह उसकी हिफ़ाज़त करें। इस ख़ज़ाने को पूरी ज़िदंगी या कम से कम एक साल तक अगली ईद तक और अगले रमज़ान तक संभाल कर रखें। क़ुरआने मजीद से लगाव, अल्लाह की याद , उसके ज़िक्र को, अल्लाह की पसंद के मैदानों में काम इन सब को हमें संभाल कर रखना चाहिए।
रमज़ान के महीने में दिल नर्म हो जाता है, रूह पर चमक आ जाती है और जब यह मुबारक महीना ख़त्म हो जाता है तो नए साल की शुरुआत का दिन ईदे फ़ित्र का दिन आता है। यानी वह दिन जब इंसान रमज़ान के महीने की बरकतों की मदद से सत्य के रास्ते पर सफ़र करे और ग़लत रास्तों से बचे।
इमाम ख़ामेनेई
2 मार्च 1995
ज़ायोनी हुकूमत सियासी और फ़ौजी मैदानों में एक दूसरे से जुड़ी मुश्किलों के जाल में फंसी हाथ पैर मार रही है। हुकूमत चलाने वाला पिछला जल्लाद, सैफ़ुलक़ुद्स आप्रेशन के बाद कूड़ेदान में गया, उसकी जगह लेने वाले ओहदेदार भी हर वक़्त किसी नए आप्रेशन के डर में जी रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
29 अप्रैल 2022
रोज़ेदार मोमिन इंसान शबे क़द्र से नए साल का आग़ाज़ करता है। शबे क़द्र में अल्लाह के फ़रिश्तों की तरफ़ से एक साल के लिए उसकी तक़दीर लिखी जाती है। इंसान एक नए साल में, नए चरण में और दर हक़ीक़त एक नई ज़िंदगी में और नए जन्म में प्रवेश करता है। ईदे फ़ित्र की नमाज़ एक तरह से रमज़ान के महीने में प्राप्त होने वाली अल्लाह की नेमतों का शुक्रिया है।
इमाम ख़ामेनेई
20 सितम्बर 2009
रमज़ान की अलविदाई दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि तूने शुक्र करने की बात शुक्र करने वालों के दिलों में डाली है। तूने अपनी हम्द करने वालों को इनाम दिया जबकि हम्द की बात भी तूने ही उन के दिल में डाली।
ज़ायोनी शासन के विपरीत इस्लामिक रेज़िस्टेंस फ़्रंट की ताक़त में लगातार इज़ाफ़ा रौशन मुस्तक़बिल की ख़ुशख़बरी दे रहा है। सामरिक और रक्षा ताक़त में इज़ाफ़ा, उपयोगी हथियार बनाने में आत्मनिर्भरता, मुजाहिदीन में आत्म विश्वास, नौजवानों में दिन ब दिन बढ़ती जागरूकता, पूरे फिलिस्तीन और उस से बाहर प्रतिरोध का फैलता दायरा, मस्जिदुल अक़्सा की रक्षा में मुसलमानों का हालिया आंदोलन, अटल सच्चाई है।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
रमज़ान की अलविदाई दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) कहते हैं कि तूने इस दरवाज़े को खोला है हमारे लिए ताकि हम उससे गुज़र कर तेरी रहमत की तरफ़ बढ़ें और तेरी रहमतों और बख़्शिश से फ़ायदा उठाएं। यह दरवाज़ा तौबा का दरवाज़ा है। ख़ुदा की मग़फेरत की तरफ़ एक खिड़की है। अगर ख़ुदा अपने बंदों के लिए तौबा का दरवाज़ा नहीं खोलता तो हम गुनहगारों की हालत बहुत ख़राब होती।
पूरी दुनिया के मुस्लिम भाईयों और बहनों को सलाम! इस्लामी दुनिया के सभी नौजवानों को सलाम! सलाम हो, फ़िलिस्तीन के बहादुर और ग़ैरतमंद नौजवानों पर! सलाम हो #फ़िलिस्तीन के अवाम पर!
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
ज़ायोनी दुश्मन हर साल पिछले साल की तुलना में ज़्यादा कमज़ोर हुआ है। उसकी फ़ौज जो ख़ुद को नाक़ाबिले शिकस्त बताती थी, आज लेबनान में 33 दिन और ग़ज़्ज़ा में 22 दिन और 8 दिन की जंगों में शिकस्त खाकर एक ऐसी फ़ौज बन कर रह गई है जो कभी कामयाबी का मुंह नहीं देख सकती।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई सन 2021
परवरदिगार! रमज़ान की रातें गुज़र गयीं, रमज़ान के दिन बीत गये और हमें यह भी नहीं मालूम कि इन गुज़र जाने वाली रातों और बीत जाने वाले दिनों में हम अपने वजूद को तेरी रहमतों से सजा पाए या नहीं। "अगर अब तक तक हम तुझे खुश करने में कामयाब नहीं हुए तो हमारी गुज़ारिश है कि अब हम से राज़ी हो जा।"