आज अपारथाइड ज़ायोनी सरकार के हाथों हो रहा जातीय सफ़ाया, पिछले दसियों साल से जारी शदीद अत्याचारपूर्ण रवैये के ही क्रम का एक भाग है।
फ़िलिस्तीन समर्थक जागरुक अंतरात्मा रखने वाले अमरीकी युनिवर्सिटी छात्रों के नाम इमाम ख़ामेनेई का ख़त
25 मई 2024
मैं यह ख़त उन जवानों को लिख रहा हूँ जिनकी जीवित अंतरात्मा ने उन्हें ग़ज़ा के मज़लूम बच्चों और औरतों के समर्थन के लिए प्रेरित किया है।
अमरीका के जवानों और स्टूडेंट्स के नाम
इमाम ख़ामेनेई के ख़त का एक भाग
25/05/2024
संयुक्त राज्य अमरीका के अज़ीज़ स्टूडेंट्स! आज आप रेज़िस्टेंस के अज़ीम मोर्चे का एक भाग बन गए हैं। प्रतिरोध का बड़ा मोर्चा आपसे बहुत दूर एक इलाक़े में, आपके आज के इन्हीं जज़्बात और भावनाओं के साथ, बरसों से संघर्ष कर रहा है।
अमरीका के जवानों और स्टूडेंट्स के नाम
इमाम ख़ामेनेई के ख़त का एक भाग
25/05/2024
ह्यूमन राइट्स के लिए गला फाड़ के दुनिया के कानों को बहरा कर देने वाले कहां हैं? इन्हें क्यों नहीं देखते? क्या यह इंसान नहीं हैं? क्या इनके कोई अधिकार नहीं हैं?
इमाम ख़ामेनेई
10 अप्रैल 2024
यक़ीनी तौर पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पाक रौज़े की सेवा अगर उस तरह अंजाम पाए जिस तरह उसे अंजाम पाना चाहिए तो, सबसे बड़े मूल्यों और सबसे बड़े सम्मान में से है और आज यह चीज़ मुमकिन और मौजूद है। मुझे भी इस बात पर फ़ख़्र है कि मैं अमल में न सही नाम ही के लिए सही आप लोगों के समूह में शामिल हूं और मुझे इस पाक रौज़े में सेवा करने का सम्मान हासिल है। यह बात मैं आप लोगों से इसलिए कह रहा हूं कि हमारा दिल भी वहीं है जहाँ रहने का शरफ़ आपको हमेशा हासिल है और क्या क़िसमत है आपकी! हक़ीक़त में मेरे लिए सबसे मीठे लम्हें वो हैं जब मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत का सौभाग्य पाता हूं।
इमाम ख़ामेनेई
8/12/1988
हमें यक़ीन है कि फ़िलिस्तीन के मुसलमान अवाम की जद्दोजेहद और इस्लामी दुनिया की ओर से उनका सपोर्ट जारी रहने से अल्लाह के करम से फ़िलिस्तीन आज़ाद होगा और बैतुल मुक़द्दस, मस्जिदुल अक़सा और इस सरज़मीन के दूसरे पवित्र स्थल इस्लामी दुनिया की आग़ोश में वापस आ जाएंगे, इंशाअल्लाह। और अल्लाह तो हर काम पर पूर्ण सामर्थ्य रखता है।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 2001
अगर बड़ी ताक़तों का बस चले तो वो समुद्र को भी अपने नाम लिखवा लें और दूसरों का रास्ता रोक दें। इंसानियत से संबंधित आम मामलों को अपने एकाधिकार में लेना बड़ी ताक़तों के स्वभाव में है, अमरीका का स्वभाव है। आपने उसे तोड़ दिया। आपके काम (ईरानी नौसेना के फ़्लोटिला का दुनिया का चक्कर लगाने के मिशन) का एक स्पष्ट नतीजा यह था कि आपने दिखा दिया कि महासागरों पर सबका हक़ है और यह जो कहा जाता है कि "हम नौसैनिक जहाज़ को फ़ुलां खाड़ी से गुज़रने नहीं देंगे" सिर्फ़ बड़बोलापन है।
इमाम ख़ामेनेई
06/08/2023
(ईरानी नौसेना के फ़्लोटिला की दुनिया का चक्कर लगाकर कामयाब वापसी पर तक़रीर)
ग़ज़ा में पश्चिमी सभ्यता बेनक़ाब हो गई... 30 हज़ार लोग ज़ायोनी सरकार के हाथों मारे जाते हैं, ये लोग अपनी आँखें बंद कर लेते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो! इनमें से कुछ तो मदद भी करते हैं, हथियार देते हैं... यह पश्चिम की लिबरल डेमोक्रेसी है, यह न तो लिबरल हैं और न ही डेमोक्रेट, ये झूठ बोलते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
24/02/2024
ज़ीक़ादा महीने के रविवार के दिन तौबा व इस्तेग़फ़ार के दिन हैं और इस दिन (ज़ीक़ादा महीने के हर रविवार) का विशेष अमल है। महान धर्मगुरू व आत्मज्ञानी अलहाज मीर्ज़ा जवाद आक़ाए मलेकी ने अलमुराक़ेबात में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्होंने अपने साथियों से फ़रमायाः तुम लोगों में कौन कौन तौबा करना चाहता है? सभी ने कहा कि हम तौबा करना चाहते हैं। बज़ाहिर वह ज़ीक़ादा का महीना था। इस रवायत के मुताबिक़, पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि इस महीने में आने वाले हर रविवार को यह नमाज़ पढ़ो।
अरमुराक़ेबात में इस नमाज़ की तफ़सील बयान की गयी है। कुल मिलाकर यह कि ज़ीक़ादा महीने के दिन, जो 'हराम महीनों' में पहला महीना है, बड़े मुबारक और बर्कत वाले दिन व रात हैं, बर्कतों से भरे हुए हैं। इनसे फ़ायदा उठाना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
09/09/2015
नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा
• ग़ुस्ल और वज़ू करे
• दो दो रकत करके चार रकत नमाज़ पढ़े। हर रकत में सूरए हम्द के बाद तीन बार सूरए तौहीद और एक एक बार सूरफ़ फ़लक़ और नास पढ़े।
• सलाम के बाद 70 बार इस्तेग़फ़ार करे। फिर कहेः "ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीयिल अज़ीम" इसके बाद कहे "या अज़ीज़ो या ग़फ़्फ़ारो इग़फ़िर ली ज़ुनूबी व ज़ुनूबा जमीइल मोमेनीना वल मोमेनाते फ़इन्नहू ला यग़फ़ेरुज़्ज़ुनूबा इल्ला अंत"
स्रोतः मरहूम अलहाज मीर्ज़ा जवाद आक़ाए मलिकी की किताब अलमुराक़ेबात
ग़ौर कीजिए कि अमरीकी, इस्राईल का ज़बानी विरोध किए जाने पर क्या कार्यवाही कर रहे हैं?! अमरीकी स्टूडेंट्स के साथ इस तरह का सुलूक किया जा रहा है। यह वाक़या अमली तौर पर यह दिखाता है कि ग़ज़ा में नस्लीय सफ़ाए के बड़े अपराध में अमरीका, ज़ायोनी हुकूमत का शरीके जुर्म है।
इमाम ख़ामेनेई
1/5/2024
छात्रों से पेश आने का अमरीकी सरकार का तरीक़ा अमली तौर पर ग़ज़ा में नस्लीय सफ़ाए के भयानक जुर्म में ज़ायोनी हुकूमत के साथ अमरीका के लिप्त होने का सुबूत है।
इमाम ख़ामेनेई
01/05/2024
ग़ज़ा आज दुनिया का सबसे अहम मुद्दा है। ज़ायोनी और उनके अमरीकी व यूरोपीय समर्थक दुनिया के जनमत के एजेंडे से ग़ज़ा को बाहर निकालने की जितनी भी कोशिशें कर रहे हैं सब व्यर्थ हैं। आप अमरीका और यूरोप की युनिवर्सिटियों की हालत देखिए।
मज़दूरों की अहमियत के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। इस संबंध में सबसे अच्छी बात जो कही जा सकती है वो इस हदीस के मुताबिक़, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि वआलेही वसल्लम ने एक मज़दूर के खुरदुरे हाथों को चूमा। क्या इससे बढ़कर भी कोई फ़ज़ीलत की बात पेश की जा सकती है?
इमाम ख़ामेनेई
21/04/2024
"सच्चा वादा ऑप्रेशन" में ईरानी राष्ट्र के इरादे और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की ताक़त के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़ाहिर होने से ज़ायोनी ग़ुस्से में हैं।
इमाम ख़ामेनेई
21/04/2024
ज़ायोनी जब जंग के मैदान में उतरे तो पहले ही दिन उन्होंने अपनी पहली हार की भरपाई के लिए कुछ लक्ष्यों का एलान किया था ... लेकिन वो अपने किसी भी लक्ष्य को हासिल न कर सके ... उन्होंने प्रतिरोध को और ख़ास तौर पर हमास को निर्बल बनाने और ख़त्म करने की कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहे।
इमाम ख़ामेनेई
03/04/2024
अल्लाह सेअच्छी उम्मीद रखिए, उस पर भरोसा कीजिए और जान लीजिए कि मोमिनों की रक्षा करना अल्लाह का निश्चित व अटल वादा है
सुप्रीम कमांडर इमाम ख़ामेनेई
21/04/2024
जब वो हमारे काउंसलेट पर हमला करते हैं तो ये ऐसा ही है जैसे हमारे मुल्क पर हमला कर दिया है। ये दुनिया में आम समझ है। दुष्ट हुकूमत ने इस मामले में ग़लती की है। उसे सज़ा मिलनी चाहिए और सज़ा मिलेगी।
इमाम ख़ामेनेई
10/04/2024
अफ़सोसनाक है कि फ़िलिस्तीन के मसले में इस्लामी हुकूमतें ज़ायोनी सरकार की मदद कर रही हैं। ज़ायोनी जब किसी देश में क़दम रखते हैं तो मच्छर की तरह उस देश का ख़ून चूसते हैं, अपने स्वार्थ के लिए। इमाम ख़ामेनेई 10 अप्रैल 2024
पश्चिम के महिला अधिकार के झूठे दावे को
ज़ायोनियों के अपराध भुलाए नहीं जा सकेंगे यहाँ तक कि ज़ायोनी शासन के तबाह हो जाने के बाद भी। लेखक किताबों में लिखेंगे कि इन लोगों ने कुछ हफ़्तों में हज़ारों बच्चों और औरतों को मार डाला।
इमाम ख़ामेनेई
09/01/2024
जो शिकस्त 7 अक्तूबर को हुई उसकी भरपाई नहीं हो सकती। वो हुकूमत जो सटीक इंटैलीजेंस पर निर्भर है और दावा करती है कि परिंदा पर भी मारे तो उसकी नज़र से पोशीदा नहीं रहता, सीमित संसाधनों वाले एक रेज़िस्टेंस संगठन से शिकस्त खा गई।
इमाम ख़ामेनेई
3 अप्रैल 2024
पश्चिमी सभ्यता ने अपनी धूर्तता, पाखंड और झूठ को ज़ाहिर कर दिया। जब तीन या चार महीने में ज़ायोनी शासन के हाथों 30000 लोग मारे जाते हैं तो वो अपनी आँखें बंद कर लेते हैं मानो कुछ हुआ ही न हो।
इमाम ख़ामेनेई
24/02/2024
हमें उम्मीद है कि हमारे आज के नौजवान वह दिन देखेंगे जब क़ुद्स शरीफ़ मुसलमानों के हाथों में हो और इस्लामी दुनिया इस्राईल के ख़ात्मे का जश्न मनाए।
इमाम ख़ामेनेई
3 अप्रैल 2024
पैग़म्बरे इस्लाम की निगाह में हक़ की कसौटी हज़रत अली हैं। सुन्नी और शिया रावियों ने नक़्ल किया हैः “अली हक़ के साथ और हक़ अली के साथ है, वह उधर घूमता है जिस तरफ़ वो घूमते हैं।” अगर आपको हक़ की तलाश है तो देखिए कि अली कहां खड़े हैं, क्या कर रहे हैं, उनकी उंगली का इशारा किस तरफ़ है।
इमाम ख़ामेनेई
26 जून 2010
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की पूरी ज़िंदगी सरापा ख़ालिस जेहाद है। बचपन में इस्लाम लाने से लेकर 63 साल की उम्र में शहादत तक ज़िंदगी का एक भी लम्हा ख़ालिस जेहाद से ख़ाली नहीं। इस्लाम के इतिहास में इतनी सेवाएं करने वाली कोई और हस्ती नहीं है। इमाम ख़ामेनेई 20 मई 1987
अमीरुल मोमेनीन ने हुकूमत क़ुबूल करने के लम्हे से मेहराबे इबादत में सर पर तलवार लगने तक एक दिन और एक लम्हा ऐसा नहीं गुज़ारा जिसमें आप उस हक़ और हक़ीक़त का मुतालबा करने से पीछे हटे हों जिसके लिए इस्लाम आया। न कोई रियायत, न तकल्लुफ़, न लेहाज़, न ख़ौफ़, न कमज़ोरी कुछ भी उनके आड़े नहीं आया।
इमाम ख़ामेनेई
28 जुलाई 2007
शबे क़द्र वह मौक़ा है जिसमें हम अपने दिलों को अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के अज़ीम मरतबे से परिचित कराएं और सबक़ लें। माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत और इस महीने में नेक बंदों की ज़िम्मेदारियों के बारे में जो कुछ ज़बान पर आता है और बयान किया जा सकता है अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम उसका मुकम्मल नमूना और उन विशेषताओं का उदाहरण हैं।
इमाम ख़ामेनेई
19 सितम्बर 2008
फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस के जवानों ने पैग़ाम दिया जो हमारे कानों तक भी पहुंचा कि हमारे बारे में फ़िक्रमंद होने की ज़रूरत नहीं है। हमारे लगभग 90 प्रतिशत संसाधन और क्षमताएं सुरक्षित हैं।
इमाम ख़ामेनेई
12 मार्च 2024
ज़ायोनी हुकूमत केवल अपनी सुरक्षा के मसले में ही संकट का शिकार नहीं बल्कि संकट से बाहर निकलने के मसले में भी संकट में घिरी है। दलदल में फंसी है, बाहर नहीं निकल सकती। अगर ग़ज़ा से निकल जाए तो उसकी हार है और न निकले तब भी उसकी हार है।
इमाम ख़ामेनेई
20 मार्च 2024
आज तक ज़ायोनी (अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन में) मिलने वाली हार की रुस्वाई और दबाव से उबर नहीं पाए हैं। हाँ, वो अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन कहाँ? ग़ज़ा के मरीज़ों के अस्पताल पर, ग़ज़ा के स्कूलों पर और ग़ज़ा के अवाम के सिरों पर (बमबारी करके) जो कहीं जा नहीं सकते। ताक़त के इस प्रदर्शन की कोई हैसियत नहीं है।
इमाम ख़ामेनेई
22 नवम्बर 2023
हज़रत ख़दीजा शुरू से इस्लाम पर ईमान लाईं। उन्होंने अपनी सारी दौलत दावते इस्लाम और इस्लाम के प्रचार पर ख़र्च कर दी। अगर हज़रत ख़दीजा की मदद न होती तो शायद इस्लाम के सफ़र और इस्लाम के प्रचार में बड़ी रुकावट पेश आती। बाद में रसूले ख़ुदा और दूसरे मुसलमानों के साथ शेअब-ए-अबू तालिब में जाकर रहीं और वहीं उन्होंने आख़िरी सांस ली।
इमाम ख़ामेनेई
27 जून 1986
आज़ ग़ज़ा में जो कुछ हो रहा है वह दोनों तरफ़ से चरम पर है। ज़ायोनी और पश्चिमी सभ्यता का अपराध और बर्बरता भी और मसले का दूसरा पहलू भी, अवाम का बेमिसाल सब्र और प्रतिरोध और हमास और फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस के जेहाद की ताक़त भी।
इमाम ख़ामेनेई
12 मार्च 2024
रमज़ान मुबारक का चाँद 29 शाबान (10 मार्च) को नज़र नहीं आया, सोमवार को 30 शाबान है, और मंगलवार 12 मार्च को रमज़ान मुबारक 1445 हिजरी क़मरी का पहला दिन होगा।