उनके एक शहीद दोस्त के नवासे का ऑप्रेशन होने वाला था, शहीद अस्पताल पहुंच गए और जब तक ऑप्रेशन पूरा नहीं हो गया, वे वहीं मौजूद रहे। उस बच्चे की मां ने कहा कि जनाब ऑप्रेशन पूरा हो गया, अब आप चले जाइये, जाकर अपने काम निपटाइये। उन्होंने कहाः नहीं, तुम्हारे पिता यानी इस बच्चे के नाना मेरी जगह जा कर शहीद हुए हैं, अब मैं उनकी जगह यहां खड़ा रहूंगा। वे तब तक वहां खड़े रहे जब तक बच्चा होश में नहीं आया। जब उन्हें पूरा इत्मेनान हो गया तब वे वहां से गए।
शहीद सुलैमानी डिफ़ेंस के मैदान को गहराई से समझने वाले जांबाज़ कमांडर थे लेकिन इसके साथ ही धार्मिक नियमों के पूरी तरह पाबंद थे।
इमाम ख़ामेनेई
8 जनवरी 2020
वह इल्म जो हम चाहते हैं उसके साथ रूह की पाकीज़गी भी ज़रूरी है। इसलिए कि अगर पाकीज़गी न होगी तो इल्म भटक जाएगा। इल्म एक ज़रिया है, एक हथियार है। यह हथियार अगर किसी बुरे स्वभाव, बुरी सोच वाले दुष्ट और क़ातिल व्यक्ति के हाथ लग जाए तो वह केवल त्रास्दी खड़ी करेगा।
इमाम ख़ामेनेई
6 अक्तूबर 2010
ईरानी महिलाएं, युद्ध के मोर्चों पर ईरानी सिपाहियों की मदद करती थीं।
खाना तैयार करना, मेडिकल केयर, अलग अलग तरह की मदद और वर्दियां धोना, उनकी सेवाओं में शामिल था। जब यह ऐलान हुआ कि कुछ वर्दियां रासायनिक तत्वों से दूषित हो सकती हैं, तब सैनिक वर्दियों की कमी की वजह से और यह न मालूम होने की वजह से कि कौन सी वर्दियां दूषित हैं? इन औरतों ने स्वेच्छा से और बलिदान की भावना के साथ इन वर्दियों को धोना जारी रखा।
बरसों बाद, उन कैमिकल तत्वों के प्रभाव सामने आए जिनके चलते उनमें से कई महिलाओं की शहादत हो गई।
ख़ानदाने रसूल के अनमोल मोती फ़ातेमा ज़हरा, सिद्दीक़ए ताहेरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत। “75 दिन वाली रिवायत” के मुताबिक़ ये दिन हज़रत फ़ातेमा की शहादत के दिन हैं। इन दिनों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दिल टूटा हुआ है, सीना ग़म और दर्द से भरा हुआ है। मगर उनके इरादे और हिम्मत व हौसले में कोई कमज़ोरी नहीं है। यह हमारे और आपके लिए सबक़ है।
इमाम ख़ामेनई
24 फ़रवरी 2016
कोशिश कीजिए कि नमाज़ को 'अव्वल वक़्त' पर अदा करें, ध्यान से पढ़े।
मेरे प्यारो! क़ुरआन में दिल लगाइए, उसमें दिलचस्पी पैदा कीजिए। क़ुरआन की तिलावत रोज़ाना कीजिए, चाहे चंद आयतें ही पढ़ लीजिए!
इमाम ख़ामेनेई
13 दिसम्बर 2016
हज़रत ज़ैनब के शुभ जन्म दिन और नर्स दिवस पर आयतुल्लाह ख़ामेनेई की स्पीचः हज़रत ज़ैनब ने पूरी दुनिया को औरत की ताक़त से आगाह किया, पहाड़ को हिला देने वाली मुसीबतों पर हज़रत ज़ैनब का सब्र, हज़रत ज़ैनब ने बयान और अभिव्यक्ति का जेहाद किया।
हमारी सोचने की शक्ति की इतनी बुलंद उड़ान नहीं है, वह हिम्मत और हौसला नहीं है कि हम यह कह सकें कि इस महान हस्ती की जीवनशैली हमारा आदर्श है। हमारी यह हैसियत नहीं। लेकिन बहरहाल हमारे क़दम उसी दिशा में बढ़ें जिस दिशा में हज़रत ज़ैनब के क़दम बढ़े हैं। हमारा मक़सद इस्लाम का गौरव होना चाहिए, इस्लामी समाज की गरिमा होना चाहिए, इंसान की प्रतिष्ठा होना चाहिए।
जंजान के शहीदों की याद मनाने वाली कमेटी के सदस्यों और कुछ शहीदों के घरवालों ने इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से 16 अक्तूबर 2021 को मुलाक़ात की।
ईरान की स्वयंसेवी फ़ोर्स, जिसे बसीज कहा जाता है, वह फ़ोर्स है जो देश की रक्षा से लेकर वैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अवाम की ख़िदमत तक हर मैदान में सक्रिय है। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई 27 नवम्बर 2019 की अपनी एक तक़रीर में कहते हैं कि ‘बसीज’ के दो पहलू हैं। एक फ़ौजी मैदान में संघर्ष का पहलू है। दूसरा साफ़्ट वार के मैदान में जिद्दोजेहद का पहलू है। यह फ़ोर्स हर जगह मौजूद है और और इससे वह हस्तियां जुड़ी हैं जो नौजवानों के लिए आइडियल हैं।
एलिट वह है जो अपनी सलाहियत की क़द्र करता है। ग़फ़लत में डालना साम्राज्यवादी ताक़तों का हथियार। अंग्रेज़ों ने भारत का उद्योग तबाह कर दिया। ग़फ़लत छा जाए तो क़ौम आसानी से लुट जाती है। आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स पर ख़ास ताकीद।
जो चीज़ ग़ैर मामूली सलाहियत वाले लोगों को एलिट बनाती है वह सिर्फ़ मानसिक क्षमता नहीं है। बहुत से लोगों के पास सलाहियत है, मानसिक क्षमता है, लेकिन यह बर्बाद हो जाती है। जो चीज़ एलिट को एलिट बनाती है वह मानसिक क़ाबिलियित के अलावा इस सच्चाई और इस नेमत की क़द्र को समझना है।
शहीद चुने हुए लोग हैं, शहीद वे हैं जिन्हें महान अल्लाह चुनता है, शहादत चोटी है, हम में से बहुत से हैं जो उस चोटी पर पहुंचने की आरज़ू रखते हैं, तो हमें उस चोटी के दामन में रास्ता ढूंढना होगा उस रास्ते पर चलना होगा ताकि चोटी तक पहुंच सकें।
इस्लामी एकता सप्ताह के अवसर पर हुज्जतुल इस्लाम हुसैन महदी हुसैनीः
एकता सप्ताह ने सामराज्वाद के मंसूबों पर पानी फेर दिया। जब क़ुरआन एक है, कलेमा एक है, काबा एक है और नबी एक हैं तो इसी को बुनियाद बनाकर सब को जमा हो जाना चाहिए।
चालीस दिन के आंदोलन से अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम ने उस दौर में तूफ़ान बरपा कर दिया। उस ज़माने में इस आंदोलन ने कूफ़े में तौवाबीन को खड़ा कर दिया, मदीना को बदल कर रख दिया, शाम को उलट दिया। वह हालत हुई कि सुफ़ियानी हुकूमत ही ख़त्म हो गई।
इमाम ख़ामेनई
Oct 13, 2019
चर्चिल ने भारत की त्रासदी और भुखमरी से मरने वालों की तस्वीरें देखकर मज़ाक़ उड़ाते हुए कहाः अगर यह तस्वीरें सही हैं, तो गांधी अभी तक क्यों नहीं मरा?
गांधी ने एक मुट्ठी नमक उठाया और कहाः इस नमक के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के मुक़ाबले में खड़ा हूं, आओ ताक़त पर सत्य की फ़तह के लिए मिलकर संघर्ष करें।
आयतुल्लाह ख़ामेनईः हाल ही में -कुछ महीने पहले- मुझे उस तुर्कमन (सुन्नी) महिला के परिवार का पत्र मिला जो मिना की घटना में शहीद हो गई थीं, उनके परिवार ने लिखा कि वह शायद इसी सफ़र में या इससे पहले वाले सफ़र में, मक्का गईं और वहां उन्होंने किसी को गवाह बनाया कि वह मेरी तरफ़ से हज कर रही हैं।
कर्बला की सरज़मीन पर भाई हुसैन की लाश के पास पहुंच कर हज़रत ज़ैनब ने पैग़म्बरे इस्लाम से दर्द भरे लहजे में कहा यह आपका हुसैन है जो ख़ून में लथपथ ज़मीन पर पड़ा है।
मुबाहेला वह मौक़ा है जब पैग़म्बरे इस्लाम अपने सबसे चहेते लोगों को मैदान में लेकर आते हैं। यही सूरत मुहर्रम में अमली शक्ल में पेश आई। यानी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी हक़ीक़त बयान करने और पूरे इतिहास में हक़ को ज़ाहिर करने के लिए अपने प्यारों को मैदान में ले आते हैं।
इमाम ख़ामेनई
Dec 13, 2009
अल्लामा अमीनी मरहूम ने ग़दीर की रिवायत को 110 सहाबियों के हवाले से बयान किया है।... इसके अलावा ख़ुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बहसें भी बहुत अहम हैं। जैसे सिफ़्फीन में अमीरुल मोमेनीन अपने असहाब के सामने ख़ुतबा देते हैं और ग़दीर की घटना बयान करते हैं।
ग़दीर के दिन ख़लीफ़ा मंसूब करने की घटना उसूल के निर्धारण की घटना है, क़ायदे के निर्धारण की घटना है। इस्लाम में एक उसूल तय पाया। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी उम्र के आख़िरी महीनों में, इस उसूल को पेश किया। वह उसूल क्या है? इमामत का उसूल, विलायत का उसूल। इंसानी समाज में प्राचीन समय से हुकूमतें थीं। इंसान ने अनेक तरह के शासन का अनुभव किया है। इस्लाम इस तरह की सरकार को, इस तरह के ताक़त के मकरज़ को नहीं मानता, इमामत को मानता है। यह इस्लाम का नियम व दस्तूर है। ग़दीर की घटना इसी को बयान करती है।
आपका मन हज़रत अली के इश्क़ में डूबा हुआ है। अल्लाह उन पर अपनी कृपा की बारिश करे। यही शौक़, यही इश्क़, यही प्रेम और ध्यान इन्शा अल्लाह हमें उस सिम्त ले जाने का ज़रिया बने जो हमारे मौला के मद्देनज़र है।
इन्शा अल्लाह ख़ुदा वंदे आलम इस बड़ी ईद और मौला हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज़िक्र की बर्कत से आपके दिल को हमेशा अपने करम से और अपनी शांति से रौशन रखे और यह तौफ़ीक़ दे कि इस मौक़े और इस जैसे दूसरे अवसरों से हम इन्शा अल्लाह सही अर्थ में फ़ैज़ हासिल कर सकें।