इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विश्व साम्राज्यवाद के ख़िलाफ संघर्ष के राष्ट्रीय दिवस के उलपलक्ष्य में, स्टूडेंट्स और 12 दिवसीय जंग के शहीदों के कुछ परिवार वालों से, सोमवार 3 नवम्बर 2025 की सुबह तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान के साथ सहयोग में रूचि पर आधारित कुछ अमरीकियों के बयानों की ओर इशारा करते हुए कहाः ईरान के साथ सहयोग और मलऊन ज़ायोनी शासन को अमरीका की मदद और सहयोग एक साथ मुमकिन नहीं है।
उन्होंने दुनिया के जनमत के निकट ज़ायोनी शासन के घृणित हो जाने के बावजूद इस शासन को अमरीका की ओर से जारी लगातार मदद और सपोर्ट के साथ ईरान से सहयोग की पेशकश को निरर्थक और अस्वीकार्य बताया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहाः अगर अमरीका ज़ायोनी शासन का सपोर्ट करना पूरी तरह छोड़ दे, क्षेत्र से अपनी सैन्य छावनियों को ख़त्म कर दे, हस्तक्षेप करना छोड़ दे, उस वक़्त इस मसले की समीक्षा की जा सकती है। अलबत्ता यह अभी होने वाला नहीं है, निकट भविष्य में भी नहीं होने वाला है।
उन्होंने इसी प्रकार ईरानी क़ौम से अमरीका की दुश्मनी के इतिहास और 4 नवम्बर 1979 को तेहरान में अमरीका के जासूसी के अड्डे पर कंट्रोल की घटना के आयामों के बयान में कहाः जवान नस्ल के हाथों अमरीका के दूतावास पर कंट्रोल के वाक़ए की इतिहास के पहलू से समीक्षा करनी चाहिए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इतिहास की नज़र से 4 नवम्बर 1979 की घटना और अमरीकी दूतावास को कंट्रोल में लेने के जवान नस्ल के बहादुरी भरे क़दम को राष्ट्रीय गौरव और सफलता दिवस बताया और कहाः ईरान के इतिहास में कामयाबियों और नाकामियों दोनों के दिन हैं, इन दोनों को राष्ट्रीय स्मृति में बाक़ी रहना चाहिए।
उन्होंने इस बड़े वाक़ए की पहचान के आयामों के उल्लेख में कहाः दूतावास पर कंट्रोल के वाक़ए ने, संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार के अस्ली चेहरे और इस्लामी इंक़ेलाब की प्रवृत्ति और उसकी अस्ली पहचान को रौशन कर दिया।
उन्होंने क़ुरआन मजीद में "इस्तेकबार" शब्द का अर्थ ख़ुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझना बताया और कहाः कभी कोई सरकार जैसे ब्रिटिश सरकार किसी दौर में और आज अमरीका अपना हक़ समझता है कि क़ौमों के मूल हितों पर डाका डाल कर उनके लिए फ़ैसला ले या किसी मुल्क में जहाँ मज़बूत सरकार नहीं है और अवाम भी होशियार नहीं हैं, अपने लिए सैन्य छावनी बनाए, या क़ौमों के तेल और संसाधनों को लूटे, यह वही इस्तेकबार है जिसके हम दुश्मन हैं और जिसके ख़िलाफ़ नारे लगाते हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ब्रिटेन और उसके घटकों के मुसद्दिक़ की सरकार को गिराने की साज़िश और ब्रिटेन की दुष्टता से मुक्ति के लिए अमरीका मे मदद मांगने की उनकी सतही सोच और ग़फ़लत का ज़िक्र करते हुए कहाः अमरीकी, मुसद्दिक़ के सामने मुस्कुराए लेकिन पीछे से ब्रिटेन के साथ मिलकर सैन्य विद्रोह कराया और राष्ट्रीय सरकार को गिराकर, फ़रार हो चुके शाह को ईरान वापस लौटाया।
उन्होंने, अमरीकी सिनेट में पास हुए प्रस्ताव को, अमरीका से इस्लामी इंक़ेलाब के टकराव का वाक़या बताया और मोहम्मद रज़ा को अमरीका में पनाह दिए जाने से ईरानी जनमत का आक्रोश फूट पड़ने की ओर इशारा किया और कहाः ईरानी क़ौम को महसूस हुआ कि अमरीकी 19 अगस्त 1953 के सैन्य विद्रोह को फिर से दोहराने और उसे दोबारा ईरान वापस भेजने की पृष्ठिभूमि तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए वे क्रोध में सड़कों पर निकल आए और जनता के विरोध प्रदर्शन का एक भाग, अमरीकी दूतावास पर स्टूडेंट्स के कंट्रोल के रूप में ज़ाहिर हुआ।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बताया कि पहले स्टूडेंट्स का इरादा दो तीन दिन दूतावास में मौजूद रहने और दुनिया को ईरानी अवाम के आक्रोश से सूचित कराने का था, लेकिन स्टूडेंट्स को दूतावास में ऐसे दस्तावेज़ हाथ लगे जिनसे पता चला कि अस्ल बात कल्पना से परे थी और अमरीकी दूतावास इस्लामी इंक़ेलाब को मिटाने के लिए साज़िश का केन्द्र बना हुआ था।
उन्होंने दुनिया में दूतावासों के सामान्य कामों की ओर इशारा करते हुए कहाः अमरीकी दूतावास का मसला सूचनाएं इकट्ठा करना नहीं था बल्कि साज़िश रूम बनाकर शाही शासन के बचे खुचे तत्वों और फ़ौज के कुछ लोगों और दूसरों को संगठित कर, इस्लामी इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ विद्रोह कराना था, इस चीज़ को स्टूडेंट्स समझ गए और उन्होंने दूतावास को अपने कंट्रोल में बाक़ी रखा।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने दूतावास पर कंट्रोल के वाक़ए की ईरान-अमरीका के बीच विवाद का आरंभिक बिंदु क़रार देने की सोच को ग़लत क़रार देते हुए कहाः अमरीका के साथ हमारी मुश्किल 19 अगस्त 1953 के वाक़ए से शुरू हुयी न कि 4 नवम्बर 1979 के वाक़ए से। इसके अलावा दूतावास पर कंट्रोल इस्लामी इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ बड़ी साज़िश और ख़तरे का पता चलने का कारण बना, स्टूडेंट्स इस अहम काम को अंजाम देकर और दस्तावेज़ों के टुकड़ों को एक साथ रखकर उस साज़िश के स्वभाव का पर्दाफ़ाश कर सके।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ अनेक साज़िशों और दुश्मनियों का मुख्य कारण, अमरीका के गले से नर्म निवाले का बाहर निकल जाना और ईरान के संसाधनों से अमरीका का वर्चस्व का ख़त्म हो जाना था। उन्होंने कहाः वे आसानी से ईरान का पीछा छोड़ने वाले नहीं थे इसलिए उन्होंने शुरू से ही न सिर्फ़ इस्लामी गणराज्य बल्कि ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ घटिया हरकतें शुरू कर दीं।
उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब के बाद के बरसों तक ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ अमरीका की लगातार जारी दुश्मनी को, महान इमाम ख़ुमैनी के उस कथन का सुबूत बताया जिसमें उन्होंने कहा था कि "आपको जितनी भड़ास निकालनी है अमरीका पर निकालिए।"
इसी परिप्रेक्ष्य में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहाः अमरीकियों की दुश्मनी सिर्फ़ ज़बानी नहीं थी बल्कि ईरानी क़ौम के हितों को नुक़सान पहुंचाने के लिए उनसे जो कुछ बन पड़ा उन्होंने किया, जैसे पाबंदियां, साज़िश, इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों की मदद, ईरान पर हमले के लिए सद्दाम को उकसाना और उसकी मदद करना, 300 यात्रियों के साथ यात्री विमान को मार गिराना, प्रचारिक जंग और सीधे तौर पर हमला, क्योंकि अमरीका की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति इस्लामी इंक़ेलाब की स्वाधीनता पर आधारित प्रवृत्ति से मेल नहीं खाती और अमरीका-इस्लामी गणराज्य के बीच मतभेद सामयिक और टैक्टिकल नहीं है बल्कि बुनियादी मतभेद है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कुछ लोगों के बयान को जो "अमरीका मुर्दाबाद" के नारे को ईरानी क़ौम से अमरीका की दुश्मनी की वजह समझते हैं, इतिहास को उलटा दिखाने की कोशिश बताया और कहाः यह नारा इतनी बड़ी बात नहीं है कि उसकी वजह से अमरीका इस तरह ईरानी क़ौम से टकराए, इस्लामी गणराज्य से अमरीका के टकराने की वजह, बुनियादी और हितों का टकराव है।
उन्होंने कुछ लोगों के इस सवाल पर कि "हम अमरीका के सामने नहीं झुके लेकिन क्या हमेशा ऐसा रहेगा कि हमारे उससे संबंध नहीं होंगे" कहाः अमरीका की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति, समर्पण से कम पर तैयार नहीं होती, सभी अमरीकी राष्ट्रपतियों की यही इच्छा थी लेकिन ज़बान से नहीं कहते थे लेकिन मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति ने ज़बान से ज़ाहिर कर दिया और हक़ीक़त में उसने अमरीका के अस्ली चेहरे को ज़ाहिर कर दिया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरानी क़ौम से, उसकी सलाहियत के उच्च स्तर, संपत्ति, वैचारिक और आध्यात्मिक इतिहास और प्रतिभाशाली और उत्साहित जवानों के होते हुए, समर्पण की अपेक्षा को निरर्थक बताया और कहाः दीर्घकाल के लिए तो अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता लेकिन सब लोग जान लें कि इस वक़्त बहुत सी मुश्किलों का हल ताक़तवर बनने में है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के नाम का ज़िक्र करते हुए, जवान नस्ल से इन जगमगाती चोटियों को व्यवहारिक रूप में नमूना बनाने की नसीहत की और कहाः अपने आस पास के लोगों को भी इन हस्तियों की ओर ध्यान देने और उनके व्यवहार से सबक़ लेने के लिए प्रेरित कीजिए।