आज हमारी मुश्किल आपस में फूट है जबकि क़ुरआन ने आपस में फूट से मना किया है (हे साहेबाने ईमान! ख़बरदार) उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने तफ़रेक़ा (फूट) फैलाना और (खुली निशानियां आ जाने के बाद भी) इख़्तेलाफ़ किया। इसके बावजूद इस्लामी जगत तफ़रक़े का शिकार है। ठीक है अक़ीदे अलग अलग पाए जाते हैं और मुख़्तलिफ़ मत पाया जाता है, सलीक़ा और पसंद अलग अलग हैं, अच्छा तो हुआ करे... यह शौक़ और पसंद का इख़तेलाफ़ इस बात का कारण न बने कि हम इस्लामी जगत में एकता की अज़ीम नेमत से दूर हो जाएं। आज अगर इस्लामी जगत, जिसकी आबादी क़रीब 2 अरब है और जो दुनिया में भौगोलिक लेहाज़ से सबसे अहम व संवेदनशीन हिस्से में फैला हुआ है, आपस में एकजुट होता तो इस्लामी मुल्कों को कहीं ज़्यादा कल्याण व ख़ुशहाली की नेमत हाथ आती। इमाम ख़ामेनेई 22/4/2023