ग़फ़लत वही चीज़ है जिसके बारे में क़ुरआन में बार बार चेतावनी दी गयी है। काफ़िर क़यामत में इस तरह फ़रयाद करेंगेः “हम पर धिक्कार हो” हम ग़फ़तल में फंसे थे। यह ग़फ़लत बहुत बड़ी बला है इसलिए नमाज़े शब की दुआओं में से एक दुआ में यूं आया हैः ऐ अल्लाह! मैं काहिली, बुढ़ापे, बुज़दिली, कंजूसी, ग़फ़लत और संगदिली से तेरी पनाह मांगता हूं। (काफ़ी, जिल्द-2, पेज-586) तो मालूम हुआ कि ग़फ़लत के ठीक मुक़ाबले में जो प्वाइंट है वह ‘ज़िक्र’ है। क़ुरआन भी ज़िक्र है, आप जितना ज़्यादा क़ुरआन से मानूस होंगे उतना ही ज़्यादा ज़िक्र अंजाम पाएगा। अलबत्ता ‘ज़िक्र’ और ‘मुराक़ेबा’ (अपनी निगरानी) क़रीब एक ही मानी रखते हैं। वही अपनी निगरानी जिस पर आत्मज्ञानी बहुत ज़्यादा ताकीद करते हैं और कहते हैं कि इंसान के ऊंचाई पर जाने की सीढ़ी अपनी निगरानी है, अपने बारे में सावधान रहना है।
इमाम ख़ामेनेई
12/3/2000