इस्लामी क्रान्ति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार 10 मई 2025 की सुबह मज़दूर सप्ताह के अवसर पर हज़ारों श्रमिकों और मज़दूरों से मुलाक़ात में काम और श्रम के मुद्दों को देश के भविष्य से जुड़ा हुआ बताया और काम को मानव जीवन के प्रबंधन और जारी रहने का मुख्य स्तंभ क़रार दिया। उन्होंने इसी तरह ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराधों की ओर इशारा किया और आशा व्यक्त की कि मोमिन राष्ट्र, ज़ायोनी शासन पर फ़िलिस्तीन की विजय को अपनी आँखों से देखेंगे।
क्रांति के नेता ने फ़िलिस्तीन मुद्दे को भुलाने के लिए अपनाई गई शत्रुतापूर्ण नीतियों की तरफ़ इशारा किया और कहा कि मुस्लिम राष्ट्रों को कभी भी जनमत को फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा के मुद्दे और ज़ायोनी शासन के अपराधों को विभिन्न अफ़वाहों और तुच्छ और निरर्थक बातों के माध्यम से भुला दिए जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
उन्होंने ज़ायोनी सरकार और उसके समर्थकों के खिलाफ़ दुनिया के डटकर खड़े होने को ज़रूरी बताया और कहा कि अमरीका सही अर्थ में ज़ायोनी सरकार का समर्थन कर रहा है और कभी-कभी राजनीति की दुनिया में ऐसी बातें कही जाती हैं जिनसे कुछ और ही मतलब निकल सकता है लेकिन सच्चाई यह है कि फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा के मज़लूम लोग न केवल ज़ायोनी सरकार का सामना कर रहे हैं, बल्कि अमरीका और ब्रिटेन का भी सामना कर रहे हैं और ये देश अपराधों, हत्याओं और नरसंहारों को रोकने के बजाय हथियार और अन्य संसाधन भेजकर अपराधियों को मज़बूती प्रदान कर रहे हैं और उन्हें समर्थन दे रहे हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस बात पर बल देते हुए कि कुछ वक़्ती नारों, बयानों और घटनाओं के कारण फ़िलिस्तीन के मुद्दे को भुलाया नहीं जाना चाहिए, कहा कि अल्लाह की मदद से फ़िलिस्तीन, ज़ायोनीयों पर विजयी होगा और बातिल मोर्चे का यह कुछ दिन का राज समाप्त हो जाएगा। इसी तरह सीरिया में ये लोग जो कुछ कर रहे हैं, वह इनकी ताक़त का नहीं बल्कि इनकी कमज़ोरी का संकेत है और इससे वे और कमज़ोर ही होंगे।
उन्होंने आशा जताई कि ईरानी राष्ट्र और मोमिन राष्ट्र एक दिन अपनी आंखों से फ़िलिस्तीन की भूमि के हड़पने वालों पर फ़िलिस्तीन की जीत देखेंगे।
इस्लामी क्रान्ति के नेता ने अपने संबोधन के दूसरे भाग में श्रम और श्रमिक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रिय श्रमिकों को अपना मूल्य समझना चाहिए क्योंकि लूटपाट, मुफ़्त ख़ोरी और दूसरों के माल पर डाका डालने से दूर रहकर हलाल रोज़ी रोटी कमाना और इसी तरह अपनी मेहनत से समाज की ज़रूरतों को पूरा करना, इंसानी दृष्टि से श्रमिक की दो मूल्यवान विशेषताएं हैं जिन्हें ईश्वर की नज़र में नेकी माना जाता है।
उन्होंने काम के महत्व को समझाते हुए कहा कि काम मानव जीवन और उसकी निरंतरता का मुख्य आधार है और इसके बिना जीवन पंगु हो जाता है। इसलिए, यद्यपि ज्ञान और पूंजी काम पूरा करने में अहम और प्रभावी हैं लेकिन श्रमिक के बिना कोई भी काम आगे नहीं बढ़ता और यह मज़दूर ही है जो पूंजी में जान फूंकता है।
जारी हिजरी शमसी वर्ष को "उत्पादन के लिए निवेश" के रूप में नामित करने की तरफ़ इशारा करते हुए, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि वित्तीय निवेश, श्रमिक के दृढ़ संकल्प और क्षमता के बिना कोई परिणाम नहीं देता है और यही कारण है कि इस्लामी गणराज्य का बुरा चाहने वालों समेत समाज के दुश्मन, क्रांति की शुरुआत से ही इस्लामी गणराज्य में काम के माहौल से श्रमिक वर्ग को दूर करने और उसे विरोध करने के लिए लुभाने की कोशिश करते रहे हैं।
उन्होंने इस्लामी क्रांति के आरंभ में उत्पादन रोकने की कम्युनिस्टों की कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे इरादे आज भी मौजूद हैं लेकिन तब भी और आज भी, हमारे श्रमिक उनके ख़िलाफ़ डटे हुए हैं और उनके मुंह पर ज़ोरदार मुक्का मारा है।
इस्लामी क्रान्ति के नेता ने इस बात पर बल दिया कि श्रमिक जैसी अहम पूंजी की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न क्षेत्र अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करें। उन्होंने श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा के बारे में कहा कि श्रमिक को पता होना चाहिए कि उसका काम सुरक्षित रहेगा ताकि वह अपने जीवन की योजना बना सके और संतुष्ट हो सके कि उसके काम का जारी रहना दूसरों की इच्छा पर निर्भर नहीं है।
काम के माहौल की संस्कृति की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि मार्क्सवादी दर्शन में काम और जीवन का वातावरण एक दूसरे के विरोधी और शत्रु वातावरण हैं और श्रमिक को कारख़ाना मालिक का दुश्मन होना चाहिए। इस ग़लत सोच के कारण उन्होंने लम्बे समय से ख़ुद को भी और दुनिया को भी भ्रमित किया। लेकिन इस्लाम काम और जीवन के माहौल को एकता, सहयोग और परस्पर समर्थन का माहौल मानता है। इसलिए काम के वातावरण में दोनों पक्षों को अपनाइयत के साथ काम की प्रगति में मदद करनी चाहिए।