औरतों और बच्चों को क़त्ल करना फ़तह नहीं है
ग़ज़ा जंग से अगरचे इस इलाक़े के लोगों को बहुत ज़्यादा तबाही और नुक़सान का सामना हुआ लेकिन इसका नतीजा ज़ायोनी शासन की कल्पना के बिल्कुल ख़िलाफ़ रेज़िस्टेंस के हित में आया। जंग में कामयाबी सिर्फ़ मरने वालों की तादाद या तबाही के स्तर से आंकी नहीं जाती, बल्कि हर जंग का अंतिम लक्ष्य स्ट्रैटेजिक उपलब्धियों तक पहुंच होता है। ज़ायोनी शासन इस जंग में अपने घोषित लक्ष्य को न सिर्फ़ यह कि हासिल नहीं कर पाया, बल्कि बहुत से मैदानों में उसे ऐसी हार हुयी है जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं है।
इस लेख में फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस के मुक़ाबले में ज़ायोनी शासन की हार की 14 मुख्य दलीलें पेश की जा रही हैं।
1 अपने घोषित लक्ष्य तक पहुंचने में ज़ायोनी शासन का नाकाम रहनाः
नेतनयाहू ने ग़ज़ा जंग के लिए 3 मुख्य लक्ष्य घोषित किए थेः हमास का अंत, क़ैदियों की रिहाई और ज़ायोनी शासन के लिए स्थायी सुरक्षा क़ायम करना। लेकिन 15 महीनों के व्यापक हमलों के बाद, न सिर्फ़ यह कि हमास ख़त्म नहीं हुआ, बल्कि वह क्षेत्र के समीकरणों में ज़्यादा ताक़तवर खिलाड़ी बन गया क्योंकि वह, रेज़िस्टेंस और ग़ज़ा के अवाम के सब्र के सहारे दुनिया के स्वतंत्रता आंदोलनों में सबसे ऊपर पहुंच गया है। इस्राईल सैन्य आप्रेशनों के ज़रिए क़ैदियों को रिहा नहीं करा पाया और अंततः संघर्ष विराम और समझौते करने पर मजबूर हुआ। फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा इलाक़ों में सुरक्षा भी नहीं लौटी, बल्कि ज़ायोनियों को अब सबसे ज़्यादा रेज़िस्टेंस के मीज़ाइल हमलों और कार्यवाहियों का डर सता रहा है।
2 सैन्य डिटरेन्स का ख़त्म होनाः
अपराधी ज़ायोनी शासन क्षेत्र में अपने सैन्य वर्चस्व पर हमेशा ज़ोर देता था लेकिन इस जंग ने दिखा दिया कि यह डिटरेन्स यहाँ तक कि हमास जैसे छोटे गिरोह के सामने कोई हैसियत नहीं रखती। बड़े पैमाने पर हमले भी रेजिस्टेंस को नहीं रोक पाए यहाँ तक कि महीनों की जंग के बाद भी, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ इसी तरह सैन्य कार्यवाहियां अंजाम देने की सलाहियत रखती हैं। क़ाबिज़ शासन का इस हार की भरपाई न कर पाना यह दर्शाता है कि अब क्षेत्र में कोई भी देश इस शासन की सैन्य ताक़त से नहीं डरता।
3 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग पड़ना और होलोकास्ट के प्रोपैगंडे का ध्वस्त हो जानाः
ग़ज़ा में इस्राईल के बड़े पैमाने पर अपराध के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में प्रदर्शन फूट पड़े। आम लोगों के नरसंहार की तस्वीरों और वीडियोज़ के सामने आने से, ज़ायोनी शासन की हैसियत एक युद्ध अपराधी शासन की हो गयी। अहम बिंदु यह है कि इन अपराधों ने होलोकास्ट पर भी सवालिया निशान लगा दिया, क्योंकि जो शासन ख़ुद को एक बड़े जातीय सफ़ाए की बलि बताता है, अब खुल्लम खुल्ला ग़ज़ा में जातीय सफ़ाया कर रहा है। इस विरोधाभास की वजह से दुनिया भर में इस्राईल का सपोर्ट बहुत तेज़ी से कम हो गया है।
4 इस्राईल के सरग़नाओं की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा और उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही का ख़तराः
जंग के बाद, ज़ायोनी शासन के सरग़नाओं के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अनेक केस दायर हुए। बहुत से देशों ने इस्राईली राजनेताओं और सैन्य कमांडरों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरफ़्तारी का हुक्म जारी होने का मुतालेबा किया है। यह इस बात का कारण बना है कि बहुत से इस्राईली अधिकारी, मुख़्तलिफ़ देशों में सफ़र करने से डरें, क्योंकि मुमकिन है उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाए। यह चीज़ यहाँ तक कि इस शासन की अपराधी सेना के सैनिकों के ख़िलाफ़, जो दुनिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों के सफ़र पर थे, पेश आयी और इसे इस्राईल की बहुत बड़ी कूटनैतिक हार बताया जा रहा है।
5 सूचना के लेहाज़ से हार और क़ैदियों को छ़ुड़ाने में नाकामीः
इस जंग में इस्राईल की एक बड़ी नाकामी, क़ैदियों को ढूंढ न पाना था। यह शासन बहुत ही एडवांस्ड ख़ुफ़िया उपकरण से संपन्न होने और इस विषय में अमरीका की ख़ुफ़िया एजेंसी से पूरी तरह संपर्क में होने के बावजूद, उस स्थान को किसी तरह चिन्हित नहीं कर पाया जहाँ क़ैदियों को रखा गया था और वह मजबूर हुआ कि उन्हें लौटाने के लिए संघर्ष विराम करे। इस हार ने इस्राईल की ख़ुफ़िया ताक़त के मिथक को तोड़ दिया और यह दर्शा दिया कि वह रेज़िस्टेंस की गोरिल्ला टैक्टिक के सामने बेबस है।
6 रेज़िस्टेंस की आर्थिक स्थिति पर निर्भरता में साम्राज्यवाद को हारः
पश्चिमी सिस्टम की हमेशा यही स्ट्रैटेजिक समझ रही है कि रेज़िस्टेंस आर्थिक स्थिति पर निर्भर होता है इसलिए उसे रेज़िस्टेंस करने वाले राष्ट्र के ख़िलाफ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करे। इस्राईल और उसके सपोर्टर यह सोच रहे थे कि कड़ी आर्थिक नाकाबंदी और ग़ज़ा के अवाम पर भारी दबाव से उन्हें रेज़िस्टेंस से दूर कर देंगे और यह नीति बरसों उन सभी देशों में अपनायी गयी जहाँ रेज़िस्टेंस है; लेकिन इस नीति का साफ़ तौर पर ग़ज़ा में उलटा नतीजा सामने आया। ग़ज़ा के अवाम ने झुकने के बजाए, विगत से ज़्यादा रेज़िस्टेंस दिखाया। आज रेज़िस्टेंस फ़िलिस्तीनी अवाम में पहले से ज़्यादा लोकप्रिय हो गया है जो दर्शाता है कि इस्राईल की आर्थिक दबाव की रणनीति पूरी तरह नाकाम हो गयी है।
7 फ़िलिस्तीन का अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जानाः
इससे पहले फ़िलिस्तीन के विषय को मुख्य रूप से एक क्षेत्रीय और इस्लामी जगत से विशेष मुद्दे के तौर पर देखा जाता था, लेकिन हालिया जंग ने, उसे वैश्विक मुद्दा बना दिया है। पूरी दुनिया में एशिया से योरोप और अमरीका तक, दसियों लाख लोग सड़कों पर निकल आए और इस्राईल के अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी। आज फ़िलिस्तीन एक मानवीय विषय बन चुका है और उसके प्रति सपोर्ट सिर्फ़ मुसलमानों तक सीमित नहीं है।
8 वेस्ट एशिया के लिए ज़ायोनीवाद और अमरीका की क्षेत्रीय योजनाएं छिन्न भिन्नः
इस्राईल और अमरीका ने वेस्ट एशिया के लिए "सेंचुरी डील" और "आईमैक कोरिडोर" जैसी दीर्घकालिक योजनाएं बनायी थीं कि जिनके ज़रिए क्षेत्र में ज़ायोनी शासन के वजूद को मज़बूत किया जा सके और क्षेत्र के देश इस शासन के साथ संबंध बनाने पर मजबूर हो जाएं। लेकिन ग़ज़ा जंग ने इन योजनाओं को छिन्न भिन्न कर दिया। अरब देशों से संबंध सामान्य करने के बजाए, आज इस्राईल इस्लामी जगत में नफ़रत की लहर का सामना कर रहा है।
9 रेज़िस्टेंस के सफल आदर्श के तौर पर इस्लाम की पहचानः
इस जंग का एक अहम नतीजा, इस्लाम की विश्व साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष में एकमात्र कामयाब नमूने के तौर पर पहचान होना था। यह तब है जब अरब और पश्चिमी जगत में बहुत से राजनैतिक धड़े ज़ायोनीवाद के सामने झुक गए हैं, लेकिन इस्लामी रेज़िस्टेंस गिरोहों ने दिखा दिया कि ईमान पर भरोसे और अपनी ताक़त पर विश्वास से, सिर से पैर तक हथियारों से लैस दुश्मन के ख़िलाफ़ डटा जा सकता है। इस चीज़ से दुनिया भर में आज़ादी के बहुत से आंदोलनों को प्रेरणा मिली है।
10 पश्चिमी सभ्यता और अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम की साख का गिरनाः
इस्राईल के अपराध को अमरीका और योरोप की ओर से खुले सपोर्ट ने, पश्चिम के दोहरे मापदंड को पहले से ज़्यादा उजागर कर दिया। इस जंग ने दिखा दिया कि पश्चिम के मानवाधिकार के नारे साम्राज्यवाद के राजनैतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक हथकंडे से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। दुनिया में बहुत ज़्यादा लोगों में ख़ास तौर पर पश्चिमी देशों में अपनी सरकारों की नीतियों से विश्वास उठ गया है। यह चीज़ अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की साख पर गहरी चोट थी।
11 फ़िलिस्तीनी जियालों में नई नस्ल का उदयः
जंग के दौरान पश्चिम के अनेक सूत्रों ने हमास में नए संघर्षकर्ताओं के भर्ती होने में तेज़ी आने की ख़बर दी। इस्राईल की सभी नाकामियों के अलावा, ग़ज़ा जंग का एक अहम नतीजा यह हैः फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं की नई नस्ल का जन्म होना जिसने अपनी सरज़मीन पर ज़ायोनी शासन के हाथों जातीय सफ़ाया होते देखा है।
यह वह नस्ल है जिसकी रेज़िस्टेंस के दौरान ट्रेनिंग हुयी और वह परवान चढ़ी है। नई नस्ल, पिछली नस्लों की तुलना में ज़्यादा ताक़तवर, ज़्यादा जागरुक और प्रतिरोधी होगी और यह इस्राईल के भविष्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है।
12 रेज़िस्टेंस से शहीद कमांडरों का ऐतिहासिक हस्तियों में बदल जानाः
ज़ायोनी शासन ने जंग के दौरान रेज़िस्टेंस मोर्चे के कमांडरों की हत्या और मीडिया में उनके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार के ज़रिए जंग के मैदान में अपनी हार को छिपाने और इन हत्याओं को रेज़िस्टेंस के समाप्त होने की तसवीर के तौर पर दर्शाने की कोशिश की लेकिन उसने अपने प्रचार के दौरान यह दिखा दिया कि रेज़िस्टेंस के कमांडर जंग के मोर्चे पर दूसरे संघर्षकर्ताओं के कांधे से कांधा मिलाकर, हमलावर दुश्मन के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे थे। रेज़िस्टेंस के कमांडर उन्हीं तस्वीरों की बदौलत जिन्हें ज़ायोनी शासन ने अपनी कामयाबी के तौर पर जारी किया, रेज़िस्टेंस की आने वाली नस्लों के लिए आदर्श और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के इतिहास में अमर नमूना बन गए।
13 ज़ायोनी शासन की जेलों में बरसों से बंद क़ैदियों की रिहाईः
ज़ायोनी शासन अपने क़ैदियों को वापस लेने और युद्ध विराम के समझौते के दौरान, हज़ारों फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को अपनी जेलों से रिहा करने पर मजबूर हुआ। इनमें बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो हमास के सदस्य नहीं थे और उन्हें पिछले बरसों के दौरान फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा इलाक़ों से क़ैदी बनाया गया और उनके घर वाले बरसों से उनकी वापसी का इंतेज़ार कर रहे थे। इन क़ैदियों की हमास की मदद से रिहाई होना, पूरे फ़िलिस्तीनी शहरों में हमास और रेज़िस्टेंस की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने का सबब बना। यह बात भी ज़िक्र की जानी चाहिए कि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस बहुत से बड़े कमांडरों को मिसाल के तौर पर यहया सिनवार को, एक दिन इसी तरह क़ैदियों की अदला बदली के दौरान ज़ायोनियों ने रिहा किया था।
14 उत्तरी ग़ज़ा और दक्षिणी लेबनान में रेज़िस्टेंस करने वाली क़ौम की कामयाबी के साथ वापसीः
ज़ायोनी शासन ग़ज़ा में जंग के दौरान मुख़्तलिफ़ इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने के दौरान ख़ास लक्ष्य के तहत ग़ज़ा की इमारतों और मूल रचनाओं को ख़ास तौर पर उत्तरी इलाक़ों में तबाह करता रहा। जैसा कि ग़ज़ा में मौजूद मानवाधिकार संगठनों के आंकड़े बताते हैं कि इस शासन ने ग़ज़ा में 80 फ़ीसदी से ज़्यादा बिल्डिंगों को पूरी तरह तबाह कर दिया या उन्हें नुक़सान पहुंचाया है। इस शासन का ग़ज़ा में इमारतों को तबाह करने के पीछे मुख्य लक्ष्य फ़िलिस्तीनियों की उत्तरी ग़ज़ा में वापसी को रोकना और ग़ज़ा के भविष्य के संबंध में ज़ायोनियों के दुष्ट लक्ष्यों को हासिल करने की पृष्ठिभूमि तैयार करना था। जबकि दूसरी ओर संघर्ष विराम में रेज़िस्टेंस की सबसे अहम शर्तों में से एक उत्तरी ग़ज़ा के निवासियों की पहले चरण में शांतिपूर्ण ढंग से वापसी थी जो हुयी और उत्तरी ग़ज़ा के निवासियों ने लौटते वक़्त रेज़िस्टेंस के प्रति अपने सपोर्ट का साफ़ तौर पर एलान करके इतिहास रच दिया।
इज़राइल के उत्तरी इलाक़ों में स्थिति अभी भी सामान्य नहीं है और हिज़्बुल्लाह से संघर्ष विराम होने के 2 महीने बाद भी, मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के उत्तरी भागों में रहने वाले अभी भी अपनी कालोनियों में वापस नहीं लौटे हैं और उनमें से बड़ी तादाद ने उत्तर की ओर लौटने से मना कर दिया है। यह तब है जब दक्षिणी लेबनान में रेज़िस्टेंस करने वाली क़ौम ने उन बहुत से इलाक़ों को जिन्हें ज़ायोनी सैनिकों ने वादाख़िलाफ़ी करते हुए ख़ाली नहीं किया था, अपन बड़े हुजूम के ज़रिए ख़ाली करवा लिया और एक बार फिर बड़बोली ज़ायोनी सेना को दुनिया की आँखों के सामने ज़लील किया और अपने अपने गांवों में बस गए।
जंग में कामयाबी, तबाही से आगे की चीज़
जंग में कामयाबी सिर्फ़ मरने वालों की तादाद और तबाही के स्तर पर निर्भर नहीं होती। अस्ल बात यह है कि कौन पक्ष अपने लक्ष्य तक पहुंचा। ग़ज़ा जंग में इस्राईल उन सभी अपराधों और तबाहियों के बावजूद, किसी भी लक्ष्य को हासिल न कर सका। इतिहास बताता है कि कोई भी मुल्क युद्ध अपराध के ज़रिए स्थायी कामयाबी हासिल नहीं कर पाया। युद्ध अपराधी, अंत में इतिहास में बदनाम होंगे और यह वही अंजाम है जो ज़ायोनी शासन के इंतेज़ार में है।