काशान प्रांत के शहीदों पर कान्फ़्रेंस के आयोजकों ने 27 जनवरी 2025 को रहबरे इंक़ेलाब से मुलाक़ात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए काशान की बेहद अहम ख़ासियतों का ज़िक्र किया और कुछ हिदायात दीं। (1)
स्पीचः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
अज़ीज़ भाइयो और बहनो! आप सबका स्वागत है, ख़ास तौर पर शहीदों के सम्मानीय घर वालों का और ख़ास तौर पर शहीदों की माओं का और महान महिला (2) का जो चार शहीदों की माँ हैं। जनाब मंसूरी साहब (3) के तो बरसों से दीदार नहीं हुए थे, मैं उन्हें उनकी स्टूडेंट्स लाइफ़ के ज़माने से जानता हूं, जब यह (शाही सरकार के ख़िलाफ़) संघर्ष कर रहे थे।
काशान एक मशहूर शहर है। हमारे ज़माने में जो कुछ हुआ है उससे हटकर, जिसकी ओर मैं इशारा करुंगा, पूरे इतिहास में भी काशान सचमुच बहुत अहम रहा है। यह शहर, विद्वानों, शायरों, धर्मगुरूओं, गणितज्ञों, मुजाहिदों और कलाकारों का शहर है। यहां महान हस्तियां पैदा हुयी हैं और यह एक अजीब अनूठा शहर है। यही क़ालीन जो काशान में बुना जाता है, कला के लेहाज़ से एक बहुत क़ीमती नमूना है, हम अपने पैरों के नीचे पड़े हुए और मामूली समझे जाने वाले इन कला के नमूनों की क़द्र नहीं करते। काशान से ऐसी कई मशहूर हस्तियां ज़ाहिर हुयीं हैं जिन्हें आप लोग जानते और पहचानते हैं और वह मशहूर हैं और उनके नाम इतिहास में दर्ज हैं।
हमारे दौर से क़रीब, यानी क़रीब क़रीब हमारे दौर में ऐसी हस्तियां हैं जिन्होंने साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष किया, यह चीज़ आंतरिक सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष से हटकर है, जिनमें मरहूम आयतुल्लाह काशानी के सम्मानीय पिता मरहूम आक़ा सैयद मुस्तफ़ा काशानी भी शामिल हैं जो नजफ़ के बड़े धर्मगुरूओं में से एक थे। जब दूसरे विश्व युद्ध के अंत पर अंग्रेज़ आए और हक़ीक़त में क्षेत्र को कुछ योरोपीय मुल्कों ने अपने बीच बांट लिया था और ईरान की ओर आए तो यह धर्मगुरू मरहूम आक़ा सैयद मोहम्मद काज़िम यज़्दी के फ़तवे की बिना पर नजफ़ से अहवाज़ के इलाक़े में और दक्षिणी इराक़, पश्चिमी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी ईरान के इलाक़े में आए और उन्होंने आमने सामने से जंग की, मरहूम आक़ा सैयद मुस्तफ़ा काशानी ने भी और उनके बेटे मरहूम आक़ा सैयद अबुल क़ासिम काशानी ने भी जो हमारे दरमियान आयतुल्लाह काशानी के नाम से मशहूर हैं, संघर्ष किया, फिर उनका संघर्ष जारी रहा। यह अहम बात है कि एक इंसान, एक अहम शख़्सियत अपनी ज़िंदगी को मुंहज़ोरी, ज़ुल्म और चढ़ाई के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए समर्पित कर दे, यह एक क़ौम के लिए बहुत ही मूल्यवान है, इसकी क़द्र करनी चाहिए। कुछ लोग कुछ राजनैतिक मतभेद रखने की वजह से मरहूम आयतुल्लाह काशानी पर एतेराज़ करते हैं, उनका ध्यान इस बात की ओर नहीं है कि यह मर्द वह है जिसने दसियों साल तक पूरी बहादुरी के साथ अंग्रेज़ों से लोहा लिया।
रज़ाशाह के ज़माने में जब सारी सांसें सीनों में घुटी हुयी थीं, मरहूम काशानी ने संघर्ष किया, उन्होंने उस वक़्त संघर्ष किया। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने, एक बार हमारे साथ एक ख़ास बैठक में कहा था कि मैंने किसी को भी आक़ाए काशानी जैसा बहादुर नहीं देखा। ग़ौर कीजिए! यह बात कौन कह रहा है? इमाम ख़ुमैनी, जो ख़ुद बहादुरी के प्रतीक हैं। यह बात मैंने ख़ुद उनसे सुनी है, दरमियान में कोई तीसरा बयान करने वाला नहीं है, उन्होंने कहा कि मैंने किसी को भी आक़ाए काशानी जितना बहादुर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने मरहूम आक़ाए काशानी की बहादुरी के तीन वाक़ए बताए जिन्हें मैं (वक़्त की कमी की वजह से) बयान नहीं कर रहा हूं। तो वह इस तरह के थे। उस ऐतिहासिक जगह पर, हम वहाँ गए हैं, वह क़ैदख़ाना हमने देखा है जहाँ आक़ाए काशानी को रखा गया था। वह काल कोठरी जिसमें आक़ाए काशानी को कुछ मुद्दत के लिए क़ैद रखा गया था, हमने देखा है। वहाँ एक वाक़ेया भी बताया गया कि उस कोठरी में जिसमें सही तरीक़े से बैठना भी कठिन था, सरकारी कारिंदा उनके पास जाता है और उन्हें समझाने की कोशिश करता है। आक़ाए काशानी उसे एक ऐसा जवाब देते हैं जो इस मर्द के साहस, बहादुरी, बेबाकी और मज़बूत दिल की इंतेहा को बताता है और इस राह में मौजूद दूसरे लोग भी इसी तरह के थे। नुमायां हस्तियां।
काशान सचमुच मुख़्तलिफ़ पहलुओं से अहम है। एक संघर्ष का विषय है, एक इल्म और कला का विषय है, एक अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से तवस्सुल का विषय है, हमारी जवानी में काशान में मजलिसें मशहूर थीं, जहाँ भी काशान के लोग होते हैं वे तवस्सुल और मजलिसों का आयोजन करते हैं और इसी तरह की दूसरी बातें।
ख़ैर, पाकीज़ा डिफ़ेंस के अहम इम्तेहान और उसके बाद कुछ दूसरे वाक़यों में काशान वालों ने अच्छा योगदान दिया, अपने अच्छे अतीत को दोहराया और दिखा दिया कि इस इलाक़े में एक मुसलसल ऐतिहासिक प्रवृत्ति और मेज़ाज है जो अतीत में भी और आज भी उन ख़ुसूसियतों वाले इंसानों की परवरिश करता है। इसीलिए आपके यहाँ नुमायां शहीद हैं, उज्जवल अतीत वाले शहीद हैं, संघर्ष के आग़ाज़ के दिनों के शहीद हैं और यह चीज़ ईरान के दूसरे शहरों में कम ही दिखाई देती है। आपके यहां जंग के मैदान के शहीद हैं, आपका असाधारण और बेमिसाल सपोर्ट सिस्टम है जिससे इंसान सचमुच प्रभावित होता है। फ़र्ज़ कीजिए कुछ महिलाएं बैठकर एक क़ीमती क़ालीन बुनती हैं और फिर उसे लाकर जंग के मोर्चे को पेश कर देती हैं, मैंने कहीं पर पढ़ा है कि जिन लोगों ने उस क़ालीन को उसे लाने वाली महिला से लिया था, कहा था कि उसे उसकी अस्ल क़ीमत पर नहीं बेच सकते बल्कि हमें उसे उसकी रूहानी क़ीमत पर बेचना होगा। वह जाकर उस क़ालीन को बहुत महंगे दामों बेचते हैं और सिर्फ़ इस एक क़ालीन से कई डिवीजनों की असाधारण मदद होती है! इस तरह के दूसरे बहुत से अहम काम अंजाम पाए हैं। तो उन सबसे काशान के अवाम की क़द्र व क़ीमत का प्रतिबिंबन होता है। आप शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करना चाहते हैं, ये बातें जो इन साहब ने बयान कीं, सभी अच्छे और ज़रूरी काम हैं, कलात्मक काम हैं, किताबें लिखना, डायरी लिखना और जो दूसरी चीज़ें हैं, ये सभी ज़रूरी काम हैं, अच्छे काम हैं।
मैंने शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों के प्रबंधकों से मुलाक़ात में कुछ सिफ़ारिशें की हैं जिन्हें या तो आपने सुना है या आप उन्हें सुन सकते हैं, मैं उन्हें दोहराना नहीं चाहता। सिर्फ़ एक बात अर्ज़ करना चाहता हूं और वह यह है कि इन शहीदों की कला सिर्फ़ यह नहीं थी कि वे अपनी जान हथेली पर लेकर जंग के मैदान में पहुंच गए थे, ख़तरे के मौक़े पर बहुत से लोग, अलबत्ता महान लोग यह काम करते हैं। जब धर्म पर, मुल्क पर, क़ौम पर या किसी मुल्क के सम्मान पर कोई ख़तरा मंडराने लगता है तो कुछ लोग अपनी जान हथेली पर रखकर उस ख़तरे से निपटने के लिए निकल पड़ते हैं। यहाँ एक बात अहम है और वह यह है कि इंसान उस काम के साथ कुछ आदतें और रवैये देखता है जो व्याख्या किए जाने के लायक़ है, यानी वह रवैया क़ौमों तक पहुंचाने के लायक़ है। मिसाल के तौर पर बलिदान, वह जवान जो जंग के मोर्चे पर गया है उसके पास फ़र्ज़ कीजिए कोई क़ीमती चीज़ है, उसके साथी को उसकी ज़रूरत है, वह बिना कुछ सोचे हुए वह चीज़ उसे दे देता है, बलिदान से काम लेता है। इबादत, एक नौजवान लड़का जो अभी अभी बालिग़ हुआ है और अभी उसके कर्मपत्र में ज़्यादा गुनाह भी नहीं हैं, अल्लाह के सामने इतना रोता और गिड़गिड़ाता है, इतना तवस्सुल करता है, इतनी तौबा करता है, इतना इस्तेग़फ़ार करता है कि इंसान हैरत में पड़ जाता है, मतलब यह है कि हम जैसी उम्र के लोगों में इस तरह की हालत पैदा होना, इस तरह से फ़रियाद करना, अल्लाह की ओर इस तरह से ध्यान करना बहुत मुश्किल है, बल्कि उस नौजवान के साफ़ और पाकीज़ा दिल से जो कुछ निकलता है वह हमारे लिए मुमकिन नहीं है। या फ़र्ज़ कीजिए कि यह लोग इस्लामी गणराज्य के पाकीज़ा सिस्टम के नारों का जो सम्मान करते थे, जैसा कि इन साहब ने बताया कि वह शहीद अपनी बच्ची को नसीहत कर रहे थे कि वह बच्चे को जो पहली चीज़ सिखाएं वह इंक़ेलाब से संबंधित, इस्लाम से संबंधित कोई नारा हो।
इन चीज़ों को बाक़ी रखना चाहिए, इन चीज़ों को दर्ज करना चाहिए, इन चीज़ों को दिखाना चाहिए। यह चीज़ किसी गली या सड़क का नाम शहीद के नाम पर रखने से हासिल नहीं होगी। यह चीज़ एक कलाकृति से मुमकिन होगी, यह जज़्बे और यह अख़लाक़ी ख़ुसूसियतें सिर्फ़ कला के कामों से ही दूसरों तक पहुंचायी जा सकती हैं। आप किसी फ़िल्म में या मिसाल के तौर पर किसी अच्छे शेर में या अच्छी पेंटिंग में बलिदान दिखा सकते हैं, अल्लाह के सामने बलिदान को दिखा सकते हैं, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने को दिखा सकते हैं, या उसकी ग़ैरत को दिखा सकते हैं। यह चीज़ें क़ौम के काम आती हैं। यह चीज़ें एक क़ौम की निश्चित ज़रूरत है। हम मिंबरों से लोगों को बताते हैं, अल्लाह से डरने और परहेज़गारी के बारे में बताते हैं, तवस्सुल, तौबा और इस्तेग़फ़ार के बारे में बात करते हैं लेकिन ये बातें हैं, यह ज़बान से कहना है, कहने और अमल करने में बहुत अंतर है। वह अमल करता है, आप वह अमल लोगों को दिखाइये, बताइये कि वह अमल में इस तरह आगे बढ़ा था, उसका रवैया इस तरह का था।
एक चीज़ जो मेरी नज़र में बहुत अहम है और जिसे अमल में, कलाकृति में दिखाया जाना चाहिए, वह यही सब्र है जिसका प्रदर्शन शहीदों की माँओँ ने किया है। यह कोई मामूली बात नहीं है कि कोई एक नौजवान की, एक बेटे की परवरिश करे, ख़ूने दिल के साथ, बड़ी ज़हमतों के साथ उसे परवान चढ़ाए, जवानी तक पहुंचाए और फिर उसे अल्लाह की राह में दे दे, एक दो, तीन, चार बेटे। यह वह चीज़ें हैं जो ज़बान से तो बहुत आसानी से कही जा सकती हैं लेकिन अमल में, हक़ीक़त में इन्हें बयान नहीं किया जा सकता और उसकी अहमियत बयान नहीं की जा सकती। फिर भी उस महिला के सब्र को दिखाया जा सकता है, उस महिला के शुक्र को दिखाया जा सकता है, उसने उस अहम व बड़े वाक़ए में जिस धैर्य का परिचय दिया, उसे दिखाया जा सकता है, यह चीज़ें सबक़ बन जाती हैं, यह चीज़ें आपको दिखानी चाहिएं। उन्हें किस तरह दिखाया जा सकता है? सिर्फ़ कला के ज़रिए।
बेहम्दिल्लाह, आप काशान वाले, कला के लेहाज़ से भी समृद्ध हैं, आपके यहाँ ऐसे कलाकार मौजूद हैं जो अहम काम कर सकते हैं। इंशाअल्लाह आप यह काम कीजिए और आगे बढ़िए। काशान के अज़ीज़ अवाम तक मुझ नाचीज़ का सलाम पहुंचाइये। हम काशान को लंबे समय से हमेशा, चाहे उसके ओलमा की वजह से, चाहे उसके शहीदों की वजह से, चाहे उसकी कलाकृतियों की वजह से एक अहम इलाक़े के तौर पर जानते हैं और देखा है। हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह आप लोग हमेशा कामयाब रहेंगे और अल्लाह के निकट आपका मर्तबा बुलंद होगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत और बर्कत हो।
1 इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में काशान में वलीए फ़क़ीह के प्रतिनिधि, इस शहर के जुमे के इमाम और इस कान्फ़्रेंस के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन सैयद सईद हुसैनी और काशान में बसीज के कमांडर और कान्फ़्रेंस के सेक्रेटरी करनल करीम अकबरी क़ुम्सरी ने कुछ बातें बयान कीं।
2 शहीद मोहिसन, जवाद, अली अस्ग़र और मोहम्मद रज़ा बारफ़ुरूश की माँ, मोहतरमा कुबरा हुसैनज़ादे
3 आईआरजीसी के पहले कमांडर जनाब जवाद मंसूरी