इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 22 जवनरी 2025 को निजी सेक्टर में सरगर्म उद्योगपतियों और प्रभावी लोगों से मुलाक़ात में निजी क्षेत्र की निर्णायक अहमियत पर प्रकाश डाला। साथ ही ग़ज़ा जंग और इस्लामी गणराज्य ईरान से संबंधित कुछ बिन्दु पेश किए। (1)
स्पीच इस प्रकार हैः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
हमारी आज की यह सभा बहुत उपयोगी और लाभदायक रही। इस सभा का एक भाग किए गए कामों, पेश किए गए आविष्कारों और कामयाबियों के बारे में है जो आशाजनक है। मेरी नज़र में मायूसी के इस माहौल में हमें यह बातें सुनने की ज़रूरत है जो हमारे दुश्मन ख़ास लक्ष्यों के साथ, मुल्क के ख़ास वातावरण में, जैसे नौजवानों के बीच और युनिवर्सिटियों के माहौल में, पैदा कर रहे हैं, ऐसे हालात में यह बातें और रिपोर्टें आगे बढ़ने और विकास के संबंध में आशाजनक और नई रूह डालने की तरह हैं और दूसरा हिस्सा गिले शिकवों का है जो आप जैसे लोगों से हमने अनेक बार सुने हैं और हमारा फ़र्ज़ यह है कि गिले शिकवों को सुने और उन्हें दूर करें।
पहले हिस्से के संबंध में, यानी जो अच्छी ख़बरें दी गयीं और विकास की जो रिपोर्ट पेश की गयी है, उसके संबंध में मेरे विचार में प्रचारिक काम करने की ज़रूरत है। जिन तरक़्क़ियों की आपने यहां रिपोर्ट पेश की है और हमने सुनी है, क्या उनके बारे में हमारे नौजवानों को पता है? हमारे, यूनिवर्सिटियों के छात्रों को मालूम है? जो लोग मुल्क में कुछ करना चाहते हैं, प्रभाव डालना चाहते हैं और अपने भीतर उसकी क्षमता महसूस करते हैं, क्या वे इस बात को जानते हैं कि कुछ साल पहले फ़ुलां छोटे से शहर में एक छोटा सा कारख़ाना लगाया गया था जिसने थोड़ी मुद्दत में इतनी तरक़्क़ी की कि दसियों गुना बड़ा हो गया। क्या लोग यह जानते हैं? जो तरक़्क़ी हुयी है और जो उमंगें पूरी हुयी हैं, उनके दिखाने (उनके बारे में लोगों को अवगत कराने) के संबंध में कोताही कर रहे हैं, इस सिलसिले में प्रचारिक काम की ज़रूरत है। यह एक अलग विषय है, इस बारे में हमें सोच विचार और चर्चा करने की ज़रूरत है, सोचने की ज़रूरत है। गिले शिकवों के बारे में भी कुछ बातें अर्ज़ करुंगा।
आज यह मुलाक़ात, आपसे हमारी पांचवीं मुलाक़ात है, जो इन कुछ बरसों में हमने पूंजीपतियों और उद्यमियों से की हैं। 2019 में हमने यह सिलसिला शुरू किया, फिर 2020, 2022, 2024 और अब 2025 में यह मुलाक़ात हो रही है। आपमें से बहुत लोग ऐसे हैं जो पिछली बैठकों में भाग ले चुके थे।
सन 2018 में जब पाबंदियां अपने चरम पर थीं और पाबंदियों के साथ दबाव वग़ैरह की धमकियां बढ़ गयी थीं, हमने ये सभा की थी ताकि जिन लोगों ने हिम्मत की है और प्रोडक्शन बढ़ाने और विकास का बीड़ा उठाया है, उनका शुक्रिया अदा करें और उनसे कहें कि आप आर्थिक जंग में फ़्रंटलाइन के कमांडर हैं। सन 2018 में हमने यह नाम दिया और जो साथी उस सभा में थे, उनसे हमने कहा था कि आप आर्थिक जंग के फ़्रंटलाइन के कमांडर हैं।(2) आज हमारी सबसे बड़ी जंग, आर्थिक जंग है। हमने कहा कि प्रोडक्शन और विकास पर ध्यान दिया जाए। हर साल उस बैठक में हमने देखा, हमें मालूम हुआ, सिर्फ़ रिपोर्ट नहीं मिली बल्कि हमें अलग से भी सूचनाएं मिलीं कि निजी क्षेत्र की रचनात्मकता बढ़ी है। यह सेक्टर मज़बूत हुआ है। पहले हमें निजी सेक्टर को मैदान में लाने की चिंता थी, आज हम देख रहे हैं कि निजी सेक्टर ने ज़मीनी स्तर पर अनुभव हासिल किए हैं कि जिनके मद्देनज़र पैदावार और पूंजीनिवेश बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि पिछले 5 बरस में हमने तरक़्क़ी की है।
पिछले दिन मैंने नुमाइश देखी। अलबत्ता उस नुमाइश में जो कुछ रखा और दिखाया गया, वह मुल्क में मौजूद हक़ीक़त का एक छोटा सा हिस्सा था, लेकिन उसी नुमाइश ने जो मैंने कल देखी, दिखा दिया कि ज़्यादा पाबंदियों की धमकियों के बावजूद जो आप देख रहे हैं, प्राइवेट सेक्टर इतना सक्षम है कि उसने यह तरक़्क़ी की। इस नुमाइश ने तरक़्क़ी को दर्शाया, प्रगति को दर्शाया। हम अल्लाह की इन नेमतों की क़द्र क्यों नहीं करते? मुल्क आगे बढ़ रहा है, तरक़्क़ी कर रहा है। आर्थिक क्षेत्र में निजी सेक्टर मुल्क में तरक़्क़ी और विकास का चिन्ह है। अगर हम साइंस और रिसर्च के मैदान को देखें तो वहाँ यही सच्चाई नज़र आएगी। हम मुल्क के मुख़्तलिफ़ विभागों में यह तरक़्क़ियां देख रहे हैं। अलबत्ता कमियां और मुश्किलें कम नहीं हैं, लेकिन उनका संबंध ख़ुद हमसे है। यहाँ मंत्रीगण मौजूद हैं, जनाब डाक्टर आरिफ़ (3) भी मौजूद हैं, जो हमारे ज़िम्मे है वह मैं कहूंगा।
जो मुल्क पाबंदियों का शिकार है, उसको इसी ढर्रे पर चलना चाहिए और इसी को उसके कामों की बुनियाद होना चाहिए। आज दुनिया में कुछ मुल्क हैं जो बड़ी ताक़तों की पाबंदियों का सामना कर रहे हैं। पाबंदी उनके (पाबंदी लगाने वालों के) दृष्टिकोण से, जिन चीज़ों की उन्होंने पाबंदी लगायी है, वह ज़ाहिर है कि सही रूप में उनके अख़्तियार में है, लेकिन जिस मुल्क पर पाबंदी लगायी जाए उसका फ़र्ज़ यह है कि अपनी भीतरी सलाहियतों पर ज़्यादा ध्यान दे और उनसे फ़ायदा उठाए। मेरा सुझाव यह है कि आएँ और यह नुमाइश देखें। पिछली बार भी हमने कहा था कि अधिकारियों ने अगर नहीं देखी है तो आएं और देखें। अनेक विभागों के प्रमुख आएँ, यह नुमाइश देखें। पिछले साल भी मैंने दर्ख़ास्त की थी, शहीद राष्ट्रपति जनाब रईसी रहमतुल्लाह अलैह, एक दो दिन के बाद आए और उन्होंने यह नुमाइश देखी और जितना वक़्त मैंने इस नुमाइश में गुज़ारा उससे ज़्यादा शायद दुगना वक़्त उन्होंने यहाँ गुज़ारा और मुझसे ज़्यादा ख़ुश हुए। मुझे यक़ीन है कि मुल्क के अधिकारी, तीनों विभाग (कार्यपालिका, विधिपालिका और न्यायपालिका) के प्रमुखों में भी यही कैफ़ियत पैदा होगी।
एक बहुत अच्छी बात जो नुमाइश में भी नज़र आयी और आज की बातों में भी उसका ज़िक्र हुआ और मुझे इससे हटकर भी उसकी जानकारी मिली थी और मुझे मालूम थी, वह यह है कि कुछ मामलों में जो कम नहीं हैं, हम देखते हैं कि निजी क्षेत्र के निवेशक के लिए अपनी व्यक्तिगत आमदनी से ज़्यादा मुल्क की तरक़्क़ी अहमियत रखती है। यह बहुत अहम है। यह बात हमने आज की बातचीत में भी सुनी है। आमदनी और व्यक्तिगत ज़िंदगी में तरक़्क़ी भी उनके मद्देनज़र है, लेकिन उससे ज़्यादा और कई गुना मुल्क की तरक़्क़ी मद्देनज़र है कि मुल्क इन मुश्किलों से बाहर निकल सके।
मेरी बातों का मूल बिंदु यह है। आज भी हम उसी बिंदु पर बल देना चाहते हैं कि मुल्क की कार्यपालिका, वह सिस्टम जो फ़ैसला करता है, निजी क्षेत्र की मदद करे। यह ज़रूरी है। उसकी मदद होनी चाहिए। सबसे बड़ी मदद यह है कि उनके रास्ते से रुकावटें हटा दे, रुकावटें दूर करे। यह अफ़सोस की बात है कि देखा जाता है कि कुछ मामलों में सरकारी और निरीक्षक विभाग, स्पीड ब्रेकर बन जाते हैं। यानी कंपनी की तरक़्क़ी में मदद करने के बजाए, रुकावटें खड़ी करते हैं जो उसकी तरक़्क़ी में विघ्न डालती है।
एक विषय, इम्पोर्ट का है जिसका कुछ लोगों ने ज़िक्र किया है। जनाब डाक्टर आरिफ़, सम्मानीय उद्योग, खदान और वाणिज्य मंत्री (4) सम्मानीय मंत्रियों से बात करें। शर्मिंदगी होती है कि इन्हीं लोगों में से एक ने बताया है कि (समान वस्तु का) इम्पोर्ट वित्तीय लेहाज़ से, कारख़ाने में तैयार होने वाली वस्तुओं से क़रीब 40 फ़ीसदी ज़्यादा महंगा है। यह ईरानी उद्यमियों, ईरानी कारख़ानों और पूंजीपतियों के लिए प्रतिस्पर्धी है। सचमुच शर्मिंदगी होती है! जब ईरानी उत्पाद मुल्क की मुश्किलों को दूर कर सकते हैं तो हम इस बात की इजाज़त क्यों दें कि ईरानी पूंजीपतियों की कमर तोड़ने की क़ीमत पर विदेशी पूंजीपति फ़ायदा उठाएं और आगे बढ़ें? यह मुल्क को नुक़सान पहुंचाना है। यह मामूली बात नहीं है। इसको देखा जाए। मैं जिस बात की ताकीद करता हूं वह यह है कि सरकारी विभाग मदद करें, रुकावटें दूर करें। कभी कभी क़ानून रुकावट बनता है। क़ानून में सुधार करें। कुछ सरकारी नियम रुकावट बनते हैं, उन्हें बदलें। अलबत्ता मैं यह नहीं कहूंगा कि ग़लत काम करने वालों के साथ नर्मी की जाए। कुछ लोग हैं जो निवेशक की हैसियत से, रोज़गार पैदा करने के नाम पर, मैदान में आते हैं लेकिन हक़ीक़त में वे निवेशक नहीं होते, वे ग़लत फ़ायदा उठाना चाहते हैं जिसको किफ़ायदी रेट पर विदेशी मूद्रा देने के मामले में देखा गया है, बहुत ज़्यादा ग़लत फ़ायदा उठाया गया। मैं इन मामलों को नज़रअंदाज़ करने की बात नहीं करता। निगरानी बढ़ायी जाए लेकिन मदद भी बढ़ाई जाए। जो सचमुच काम कर रहे हैं उनकी मदद की जाए, उनके रास्ते की रुकावटें दूर की जाएं।
रुकावटें दूर करने की उपयोगिता में से एक संविधान की दफ़ा 44 के तहत बयान की गयी नीतियों को लागू करना है। जब हमने कुछ साल पहले, दफ़ा 44 के तहत मूल नीतियों का एलान किया (5) तो सभी ने यानी सभी अधिकारी और जानकार लोगों ने जो हमसे संपर्क में थे, (इसकी) पुष्टि की। कुछ लोगों ने अख़बारों और मैग्ज़ीन में, कुछ लोगों ने (इलेक्ट्रानिक) मीडिया में पुष्टि की और कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि यह मुल्क की आर्थिक मुश्किलों के हल का रास्ता है, इससे गिरहें खुलेंगी। लेकिन अफ़सोस कि संबंधित अधिकारियों ने इन नीतियों पर अमल नहीं किया। अब भी इसी मुश्किल में घिरे हुए हैं। दफ़ा 44 पर आधारित नीतियों पर अमल होना चाहिए। मेरी नज़र में 2020 के दशक में हमारे आर्थिक पिछड़ेपन की एक वजह यह भी थी। वजहें अलग थीं। उनमें से एक यही थी कि इन नीतियों पर अमल नहीं किया गया। हम बार बार ताकीद किया करते थे लेकिन ध्यान नहीं दिया गया।
जहाँ तक 8% आर्थिक वृद्धि दर की बात है तो अल्लाह के शुक्र से इस क्षेत्र के कई विशेषज्ञों से मुझे सूचना मिली, उन्होंने कई महीनों तक कई स्पेशलिटी वर्किंग ग्रुप्स में काम किया, क्षमताओं की पहचान की, योग्यताओं की पहचान की, निवेश योजनाओं को परिभाषित किया, समस्याओं के समाधानों को भी निर्धारित किया। सरकारी अधिकारियों को पूरी गंभीरता से इस पर काम करना चाहिए। ये काम हो चुके हैं, इन वर्किंग ग्रुप्स ने बैठ कर इस पर काम किया, कोशिश की और समस्याओं का समाधान खोज निकाला लेकिन उन्हें लागू करना और उन्हें व्यवहारिक बनाना अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है ताकि वे इंशा अल्लाह आठ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर को सुनिश्चित बना सकें। यह न कहें कि यह नहीं हो सकता, इसे एक असंभव काम पर निर्भर न बनाएं कि इसके लिए इतनी मात्रा में विदेशी निवेश की ज़रूरत है! स्पष्ट है कि ऐसे दृष्टिकोण से यह लक्ष्य हासिल नहीं होगा। जिन लोगों ने बैठकर इस मामले पर काम किया, उन्होंने इस 8% की वृद्धि दर को किसी असंभव काम पर निर्भर नहीं किया। वे जो प्रस्ताव दे रहे हैं वे ऐसी चीजें हैं जो देश के अंदर की जा सकती हैं, बस मदद की ज़रूरत है, सरकार को मदद करनी चाहिए। मेरे ख़याल में यह पूरी तरह संभव है। हाँ, 8% आर्थिक वृद्धि दर कोई चमत्कार नहीं करेगी और एक साल में कोई अहम घटना नहीं होगी, उच्च विकास जारी रहना चाहिए, इसके राजस्व और उत्पादों का न्यायपूर्ण वितरण होना चाहिए ताकि वह देश की स्थिति में बदलाव लाए और लोगों को यह महसूस हो सके और समझ में आए कि यह काम हुआ है।
हमारे पास जो साधन और क्षमताएं हैं, उनमें से एक ब्रिक्स वग़ैरा जैसे संगठनों में हमारी यही हालिया उपस्थिति है, इससे अधिकतम फ़ायदा उठाना चाहिए। इस काम के लिए देश की कूटनीति के अधिकारियों का मैदान में आना भी ज़रूरी है, उन्हें मैदान में उतरना चाहिए, मदद करनी चाहिए। यह देश के लिए एक बड़ा अवसर है। ख़ास तौर पर ब्रिक्स का वित्तीय सिस्टम, ब्रिक्स के वित्तीय सिस्टम के लिए, सदस्य देशों की जिन मुद्राओं में लेन-देन करने की योजना है, अगर कोशिश हो तो निश्चित तौर पर बड़ी मदद मिलेगी। आज हमारी एक मुश्किल डॉलर पर निर्भरता है, इस बात को वे देश समझ गए हैं। अलबत्ता इस वित्तीय कोष के कुछ सदस्य राजनैतिक कारणों से व्यवहारिक रूप से इस मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं। इस काम के लिए कूटनैतिक कोशिश होनी चाहिए, उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए ताकि यह काम पूरा हो सके। देश के अंदर, सम्मानीय राष्ट्रपति(7) ने भी यही कहा है और इस विचार को आगे बढ़ा रहे हैं, मैं भी पूरी तरह से समर्थन करता हूँ कि कोशिश करें कि व्यापारिक लेन-देन से जहाँ तक संभव हो, डॉलर को ख़त्म कर दें, यह एक बड़ा काम है, यह एक अहम काम है, आर्थिक लड़ाई में यह एक बहुत ही ठोस और निर्णायक क़दम है। बेशक इससे प्रतिक्रिया सामने आएगी लेकिन अगर आप यह काम कर सकें तो आपके हाथ अधिक मज़बूत हैं। और करेंसी एलोकेशन में रिज़र्व बैंक अन्य मुद्राओं के लिए भी रास्ता खोले।
प्राइवेट सेक्टर की समस्याओं के बारे में मेरे पास बहुत सी बातें हैं जो मैंने पिछले वर्षों में कही हैं और मैं उन्हें दोहराना नहीं चाहता। अहम बात यह है कि सरकारी विभाग, निजी क्षेत्र की मदद करें। निजी क्षेत्र को महसूस होना चाहिए कि उसे सरकारी सहायता हासिल है, उसे महसूस होना चाहिए कि उसके काम में बाधा नहीं डाली जाएगी और उसका काम सहज और आसान तरीक़े से होगा। कल इस प्रदर्शनी में एक साहब ने मुझसे कहा कि पिछले साल मैंने आपको बताया था कि फ़ुलां काम का लाइसेंस देने के लिए हमें मिसाल के तौर पर तीन साल से लटकाए हुए हैं। उन्होंने यह बात मुझसे पिछले साल कही थी, अगले दिन, आज ही की तरह, मैं यहां भाषण दे रहा था, मैंने वही बात उठाई। मैंने कहा कि क्यों आप इस मामले को तीन साल अटकाते हैं? जो काम दस दिन या ज़्यादा से ज़्यादा एक महीने में हो सकता है, उसे तीन साल तक क्यों टाला जा रहा है? इसे हल करके ख़त्म कीजिए। इन साहब ने कल कहा: "पिछले साल के तीन साल, इस साल चार साल हो गए हैं!" मतलब यह कि उन लोगों ने पिछले एक साल में भी वह काम नहीं किया है। इसका समाधान किया ही जाना चाहिए। ऐसे तो नहीं चल सकता। मैं शर्मिंदा हो गया। इनका समाधान करना चाहिए। बातें तो बहुत हैं, हम बात करते हैं, कहते हैं, दोहराते हैं, ज़ोर देते हैं, लेकिन हमें अमल करना चाहिए, बेशक जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे काम किए हैं ...(8) ईमान तो ज़रूरी है ही लेकिन उसके साथ अच्छे कर्म भी ज़रूरी हैं। यह आयत परलोक, संसार, दीन व शरीयत के स्थानों के बारे में है लेकिन जीवन के कामों में भी ऐसा ही है। किसी हक़ीक़त पर विश्वास ज़रूरी है, यानी आपको इस पर यक़ीन करना होगा कि प्राइवेट सेक्टर की मदद की जानी चाहिए, यह ज़रूरी है और इस यक़ीन के बिना काम आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन यह यक़ीन ही काफ़ी नहीं है, इसके साथ, भले कर्म भी होने चाहिए, ईमान और भले कर्म। तो आज की इस बैठक के बारे में ये हमारी कुछ बातें थीं।
ग़ज़ा के बारे में एक बात अर्ज़ करूं। हमने कहा था कि रेज़िस्टेंस ज़िंदा है और ज़िंदा रहेगा।(9) ग़ज़ा जीत गया और रेज़िस्टेंस ने दिखा दिया कि वह ज़िंदा रहेगा। जो कुछ दुनिया की नज़रों के सामने हो रहा है वह अफ़साने जैसा है। सच में अगर हम इतिहास में पढ़ते तो हमें शक होता और हम यक़ीन नहीं कर पाते कि अमरीका जैसी विशाल जंगी मशीन, ज़ायोनी शासन जैसी एक ख़ूंख़ार ज़ालिम सरकार की मदद को आए यह सरकार इतनी बर्बर और बेरहम हो कि 15,000 बच्चों को क़रीब एक साल और कुछ महीने में क़त्ल करने में संकोच न करे। वह ताक़त भी इंसानी मान्यताओं की ओर से इतनी बेपरवाह हो कि इस निर्दयी सरकार को बंकर बस्टर बम दे ताकि वह उन बच्चों के घरों और उन उस्पतालों पर जिनमें वे भर्ती हैं, बम गिराए। अगर यह बात इतिहास में होती तो निश्चित तौर पर हमें यक़ीन नहीं आता और हम कहते कि ज़रूर इस मामले में कहीं कोई गड़बड़ हुई होगी।
आज यह घटना हमारी आँखों के सामने हुई है। यानी अमरीका ने अपने सारे साधन ज़ायोनी शासन को दिए और अगर वह न देता तो ज़ायोनी सरकार शुरू के कुछ हफ़्ते में ही घुटने टेक देती। उन्होंने 1 साल और 3 महीने में जितना मुमकिन था अपराध किए, अस्पताल, मस्जिद, चर्च, घर, बाज़ार, सार्वजनिक स्थल जहाँ भी उनके लिए मुमकिन हुआ बमबारी की। कहाँ? ये सारे अपराध ग़ज़ा जैसे ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े पर हुए, ग़ज़ा जैसे ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े पर हुए। उनसे जितना हो सका, उन्होंने अपराध किए। उन्होंने एक लक्ष्य भी तै किया था। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि यह बात इस सरकार के प्रमुख ने कही, ज़ायोनी सरकार के प्रमुख ने, अभागे कलमुंहे ने।(10) उसने कहा कि हम हमास को ख़त्म करना चाहते हैं और उसे ख़त्म होना ही होगा। उन्होंने युद्ध के बाद ग़ज़ा के संचालन की योजना तक बना ली थी, उन्हें इस हद तक यक़ीन था। अब वही ज़ालिम व निर्दयी ज़ायोनी सरकार, उसी हमास के साथ जिसे वह ख़त्म करना चाहती थी, वार्ता की मेज़ पर बैठी है और युद्ध विराम पर अमल के लिए उसकी शर्तें मान चुकी है। जो हो रहा है, वह यह है। यह जो हम कहते हैं कि रेज़िस्टेंस ज़िंदा है, उसका मतलब यह है। यह जो हम कहते हैं कि और अगर (मक्के के) ये काफ़िर तुमसे लड़ते तो ज़रुर पीठ फेर कर भाग जाते, फिर वे अपने लिए कोई संरक्षक और सहायक न पाते।(11) उसका मतलब यह है। और ये सिर्फ़ उस ज़माने से विशेष नहीं है क्योंकि उसके बाद क़ुरआन कहता है। यही अल्लाह की परंपरा है जो पहले से चली आ रही है और तुम अल्लाह की परंपरा में कभी कोई बदलाव न पाओगे।(12) यह अल्लाह की सुन्नत या परंपरा है, इन्हें जीतना ही था और ये जीते। जहाँ भी अल्लाह के अच्छे बंदों की तरफ़ से प्रतिरोध होगा, वहाँ जीत निश्चित है। वहम और भ्रम के शिकार उस शख़्स ने कहा कि ईरान कमज़ोर हो गया है, यह तो भविष्य बताएगा कि कौन कमज़ोर हुआ है। सद्दाम ने भी इसी ख़याल से कि ईरान कमज़ोर हो गया है, हमला किया था। रीगन ने भी इसी ख़याल से कि ईरान कमज़ोर हो गया है, सद्दाम शासन की उतनी ज़्यादा मदद की। वह भी और दसियों दूसरे ख़याली पुलाव पकाने वाले भी नरक पहुँच गए और इस्लामी सरकार दिन ब दिन आगे बढ़ती गई। मैं आपसे कहता हूँ कि यह अनुभव इस बार भी दोहराया जाएगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।
1. इस मुलाक़ात की शुरुआत में निजी सेक्टर के कुछ उद्यमयों और आर्थिक कार्यकर्ताओं ने अपने विचार पेश किए।
2. उद्यमियों, इंटरप्रिनियोर्ज़ और आर्थिक कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात में ख़ेताब (19/11/2019)
3. श्री डॉक्टर मुहम्मद रज़ा आरिफ़ (उपराष्ट्रपति)
4. श्री सैय्यद मुहम्मद अताबक (उद्योग, खदान एवं व्यापार मंत्री)
5. इस्लामी गणराज्य ईरान के संविधान की धारा 44 की जनरल पॉलिसियों का नोटिफ़िकेशन (1/3/2005)
6. ब्रिक्स एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसके सदस्य विश्व के शक्तिशाली और उभरते आर्थिक देश हैं।
7. डॉक्टर मसूद पेज़िशकियान
8. सूरए बक़रह, आयत 277
9. क़ुम के अवाम के 9 जनवरी 1978 के तारीख़ी आंदोलन की बरसी पर ख़ेताब (8/1/2025)
10. बेनयामिन नेतनयाहू (ज़ायोनी प्रधानमंत्री)
11. सूरए फ़त्ह, आयत 22
12. सूरए फ़त्ह, आयत 23