पश्चिमी पूंजीवाद किस तरह अफ़्रीक़ा महाद्वीप में पारिवारिक सिस्टम को तबाह करने और वहाँ अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगा है। इस बारे में एक लेख पेश है।
सेनेगल में नवजात की पैदाइश के 7 दिन बाद, उस परिवार के रिश्तेदार और क़ौम वाले माँ और नवजात को देखने के लिए 'गांता' नामी जश्न में इकट्ठा होते हैं। इस यादगार जश्न में जो शादी के जश्न से ज़्यादा शानदार होता है, सब माँ के लिए तोहफ़े लाते हैं। कपड़े, ज़ेवर और लेबास... माँ के लिए ले जाने वाले तोहफ़े होते हैं ताकि बच्चे की पैदाइश से ख़ुशी की यादें जुड़ी रहें। क्योंकि बच्चे को वे अल्लाह का तोहफ़ा और उसकी कृपा मानते हैं। नाइजीरिया के बहुत से गांवों में भी नवजात की पैदाइश की ख़बर पर, पूरा गांव जश्न मनाता है और वह दिन गांव के लिए यादगार होता है। यह मीठी और इस जैसी यादें अफ़्रीक़ा के बहुत से जवानों के मन में बैठ जाती हैं लेकिन अफ़्रीक़ी माँओं और परिवारों की जो छवि हमारे मन में है उसका बड़ा हिस्सा पश्चिमी अधिकारियों की बातों और मीडिया से दुनिया को भेजा गया है। कठिनाई, भूख, पीड़ा और उथल-पुथल।
2012 से पश्चिम के विकसित देशों ने अफ़्रीक़ा में "परिवार और आबादी की प्लानिंग" के लिए बहुत ही व्यापक और ख़र्चीला प्रोग्राम शुरू कर दिया। इस प्रोग्राम का आग़ाज़, अफ़्रीक़ा की मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी से हुआ था। मीडिया के विस्तार के ज़माने में इस महाद्वीप के लोगों की जीवन शैली और पारिवारिक परंपरा में सीधे तौर पर हस्तक्षेप करने के लिए ऐसे प्रभावी प्रोपैगंडे और इमेज बनाने की ज़रूरत है जो पश्चिमी जनमत और अफ़्रीक़ी विद्वानों को प्रभावित कर दे और प्रतिक्रिया की संभावना को ख़त्म कर दे।
भूख, ग़रीब और बड़ी आबादी
सन 2000 के बाद से दक्षिणी अफ़्रीक़ा के देशों की छवि इस तरह दर्शाने की कोशिश की गयी कि मानो इन देशों में ज़िंदगी के सभी रूप संकटमयी हैं। इस तरह की छवि बनाने की कोशिश, हालिया दशकों में उनकी आबादी में बहुत ज़्यादा वृद्धि पर केन्द्रित रही है। सन 2000 से 2017 तक अफ़्रीक़ा की आबादी 58 फ़ीसदी बढ़ी है और इसी तरह सालाना आबादी की वृद्धि दर 2.5 फ़ीसदी रही है। आबादी में यह वृद्धि कि जिसके पीछे अफ़्रीक़ा महाद्वीप के आर्थिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास का योगदान रहा है, कुछ चुनौतियां भी अपने साथ लायी है। आबादी में यह वृद्धि अभी भी अफ़्रीक़ा के आर्थिक विकास से मेल नहीं खाती और सहारा अफ़्रीक़ा के दक्षिणी देश अभी भी अच्छी आर्थिक स्थिति से दूर हैं। अफ़्रीक़ा की स्थानीय संस्कृति ने भी ख़ुद को इन चुनौतियों के मुताबिक़ ढाल लिया है। बच्चों की ज़्यादा तादाद के बावजूद अफ़्रीक़ा के बड़े परिवार माँओं और नवजातों के संबंध में बहुत ही अच्छा रोल अदा करते हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य की ढांचागत सुविधाओं के उचित न होने की वजह से इन मुल्कों में गर्भवती माँओं की मृत्यु दर बहुच ऊंची है और इस क्षेत्र में नवजात की मृत्यु दर भी ज़्यादा है।
ऊंची मृत्यु दर के होते हुए भी, अफ़्रीक़ी परिवार ज़्यादा तादाद में बच्चे पैदा करने में रूचि रखते हैं और अफ़्रीक़ा की आबादी भी काफ़ी बढ़ी है। इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि सन 2050 तक अफ़्रीक़ा की कुल आबादी, धरती की कुल आबादी की एक चौथाई होगी। लेकिन यह विषय पश्चिमी राजनेताओं और पूंजीपतियों को बहुत खटक रहा है। "यह एक टाइम बम है...ख़ास तौर पर पर्यावरण की मुश्किलों को देखते हुए, खाद्य पदार्थ बहुत कम हो जाएंगे...यह बहुत बड़ा संकट है।" अफ़्रीक़ा में खाद्य पदार्थ की कमी के बारे में पश्चिम वालों की ओर से यह चिंता जो उनके मीडिया में चर्चा का मुख्य विषय बनी हुयी है, ऐसी स्थिति में जतायी जा रही है कि यह महाद्वीप गोश्त, गन्ना, मक्का और भूमध्य रेखा पर पड़ने वाले देशों में पैदा होने वाले फल वग़ैरह सहित खाद्य पदार्थ का उत्पादन करता है, बस ज़रूरत पूंजीनिवेश और योजना की है। ब्रिटेन के आबादी के मामले के एक माहिर की नज़र में कि ख़ुद जिनके मुल्क में हर वर्ग किलोमीटर में 280 व्यक्ति रहते हैं, अफ़्रीक़ा में बहुत ज़्यादाद तादाद में लोग छोटी सी सरज़मीन पर रहेंगे और यह ऐसी स्थिति है कि सहारा अफ़्रीक़ा के ज्यादातर दक्षिणी देशों में आबादी का घनत्व कम है और सिर्फ़ 2 अफ़्रीक़ी मुल्कों में आबादी का घनत्व कि जिनकी आबादी 1 करोड़ से ज़्यादा है, ब्रिटेन के आबादी के घनत्व से ज़्यादा हैं।
पश्चिमी देश ख़ास तौर पर अमरीकी अधिकारियों ने हालिया बरसों में अफ़्रीक़ा में स्थानीय परिवारों के मानकों की गंभीर आलोचना की है और वे अफ़्रीक़ा में समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा और यौन दुराचार को औपचारिकता देने की कोशिश में रहे हैं। वे सहारा अफ़्रीक़ा के दक्षिणी मुल्कों के लोगों की पारिवारिक ढांचे में गहरी आस्था को न सिर्फ़ यह कि आधिकारिक रूप से नहीं मानते, बल्कि इसे लैंगिक लेहाज़ से अल्पसंख्यकों (गे, लेस्बियन वग़ैरह) पर ज़ुल्म का नाम देते हैं और इस संबंध में अपनी नीतियों को न्याय संगत क़रार देते हैं।
पश्चिम, अफ़्रीक़ा की मदद करेगा!
अफ़्रीक़ा में आबादी और महिलाओं की स्थिति को संकटमय बताने में कामयाबी के बाद पश्चिमी मुल्क, एक ख़ास प्रोग्राम के तहत मैदान में आ गए। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने अफ़्रीक़ा में आबादी पर कंट्रोल के प्रोजेक्ट्स के लिए 5 अरब डालर का पूंजिनिवेश करने की सूचना दी है। इसका मतलब, गर्भ निरोधक दवाओं और वस्तुओ का बड़े पैमाने पर वितरण, अफ्रीक़ी जवानों को यौन विषयों की शिक्षा, अफ़्रीक़ी महिलाओं के लिए गर्भपात में आसानी और अफ़्रीक़ी महिलाओं के लिए अतिरिक्त आज़ादी हासिल करना था। सन 2014 में नाइजीरिया की राजधानी अबूजा में फ़ैमिली प्लानिंग की एक कान्फ़्रेंस में USAID, UNFPA, ब्रिटेन के अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग जैसे बड़े सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और गर्भपात और गर्भ निरोध का प्रचार करने वाली कंपनियों जैसे आईपीपीएफ़ और मैरी स्टॉप्स वग़ैरह ने भाग लिया था। इस कान्फ़्रेंस में तय पाया था कि सन 2020 तक अफ़्रीक़ा की 12 करोड़ से ज़्यादा औरतों और लड़कियों को गर्भ निरोधक दवाएं और गर्भपात के लिए ज़रूरी साधन मुहैया किए जाएंगे। इन्हीं कोशिशों के तहत ऐसी किताबें और डाक्यूमेंट्स तैयार किए गए जो आबादी पर कंट्रोल के लिए पश्चिमी मुल्कों के प्रोग्राम को चित्रित करते थे। इन डाक्टूमेंट्स में साफ़ तौर पर यौन दुराचार की आज़ादी, समलैंगिकता को आधिकारिक तौर पर मान्यता दिए जाने और फ़ैमिली के बारे में अफ़्रीक़ी समाजों की सोच और रवैये को बदलने की ज़रूरत की बात की गयी है। ऐसा लगता है कि अफ़्रीक़ा और अफ़्रीक़ी महिलाओं के लिए पश्चिमी मुल्कों का लंबी मुद्दत और तथाकथित हमदर्दी वाले प्रोग्राम, फ़ैमिली के ढांचे को बदलना, शादी और नस्ल बढ़ाने की ओर से औरतों और लड़कियों की रूचि ख़त्म करना और शादी कर लेने की स्थिति में बच्चे पैदा करने से रोकना है। यह प्रोग्राम अफ़्रीक़ा में आबादी और कल्चर को कंट्रोल करके, अफ़्रीक़ी मुल्कों की स्थिति को बेहतर बनाने के दावे के साथ पेश किया जा रहा है।
कुत्ते की टेढ़ी दुम
इमाम ख़ामेनेई ने 17 दिसम्बर 2024 को पूरे मुल्क के मुख़्तलिफ़ विभागों में काम करने वाली औरतों से मुलाक़ात में अपने ख़ेताब में, औरत के विषय में पूंजीपतियों के हस्तक्षेप की भावना की इन शब्दों में समीक्षा कीः "दुनियी के पूंजीपति, ज़िंदगी के सभी मसलों की तरह औरत के मसले में भी हस्तक्षेप करते हैं। (इस हस्तक्षेप के पीछे) क्या कारण है? कारण राजनैतिक और साम्राज्यवादी हस्तक्षेप है। वे इस तरह इस मसले में शामिल होते हैं कि उनका ज़्यादा हस्तक्षेप, ज़्यादा प्रभाव और उनके प्रभाव का दायरा फैलने की पृष्ठिभूमि तैयार रहे, बहाना बना रहे। वे इस आपराधिक भावना को, दुष्ट भावना को ज़ाहिरी तौर पर एक दार्शनिक स्वरूप में, ज़ाहिरी तौर पर एक आइडियालोजी की आड़ में और ज़ाहिरी तौर पर मानवता प्रेम के नाम पर छिपाते हैं।"
दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीक़ा की औरतों के मसले पर ग़ौर करके भी पश्चिमी पूंजीपतियों के झूठ और उनके इस झूठ को देखा जा सकता है। अफ़्रीक़ा में ब्रिटेन, फ़्रांस और दूसरे पश्चिमी मुल्कों के सदियों पर फैले रक्तरंजित और आपराधिक साम्राज्यवाद के बाद यह महाद्वीप, दूसरे विश्व युद्ध के बाद ताक़त के शून्य का शिकार हो गया। आज़ादी के आंदोलन, नई सरकारों का गठन चाहती थीं और पुराने साम्राज्यवादी, इस महाद्वीप पर एक बार फिर अपने पंजे गाड़ना चाहते थे। सूखा, लंबी जंगें, राजनेताओं में बहुत ज़्यादा भ्रष्टाचार, विदेशी ताक़तों के हस्तक्षेप और इसी तरह दूसरी अनेक वजहों की बिना पर अफ़्रीक़ा उतनी तरक़्क़ी न कर सका जितनी उसे करनी चाहिए थी। इसके बावजूद अफ़्रीक़ी मुल्कों ने काफ़ी राजनैतिक व आर्थिक तरक़्क़ी की है लेकिन इस तरक़्क़ी के पर्याप्त न होने की वजह से पुराने साम्राज्यवादी मुल्क एक बार फिर अफ़्रीक़ा के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के मक़सद से इस महाद्वीप की ओर लौट आए हैं लेकिन इस बार एक अलग रूप में।
अफ़्रीक़ा की बढ़ती हुयी आबादी इस महाद्वीप की आर्थिक तरक़्क़ी के लिए एक बेमिसाल अवसर हो सकती है। जवान नस्ल की आबादी में वृद्धि किसी मुल्क के लिए ताक़त, ताज़ा जोश व जज़्बे, इनोवेशन और बेमिसाल क्षमताओं का उपहार साथ लाता है लेकिन इस स्थिति में मुल्क के संसाधनों को लूटने के लिए विदेशी साम्राज्यवादियों और पूंजीपतियों का हाथ बांधना बहुत ज़रूरी है।
पश्चिमी मुल्क, उनके मानवता प्रेमी संगठन और दुनिया के बड़े पूंजीपति अगर सचमुच अवाम की मदद और इस महाद्वीप में अपने काले अतीत की भरपाई करने का इरादा रखते तो उन्हें अपने पैसे अफ़्रीक़ा में शिक्षा के क्षेत्र में, मूल ढांचों के विकास में, हेल्थ सिस्टम को बेहतर बनाने, विशेषज्ञों की ट्रेनिंग और राजनैतिक स्थिरता में मदद पर ख़र्च करने चाहिए थे लेकिन ऐसा लगता है कि सच्चाई कुछ और ही है।
जब अफ़्रीक़ी महिलाएं मुख़्तलिफ़ सर्वे और समीक्षाओं में, ज़्यादा बच्चों की पैदाइश के सिलसिले में अपनी पसंद की बात करती हैं और अफ़्रीक़ी फ़ैमिली हर बच्चे की पैदाइश को अल्लाह की नेमत समझती है तब ये मुल्क और पूंजीपति गर्भ रोधक दवाएं और साधन के वितरण की बात करते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि बहुत से योरोपीय मुल्कों में क्षेत्रफल के लेहाज़ से आबादी का अनुपात, अफ़्रीक़ा से ज़्यादा है और अफ़्रीक़ा में खेती और उद्योग के फलने फूलने की संभावना, योरोप से कहीं ज़्यादा है तब भी पश्चिम वाले, अफ़्रीक़ा में बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के बजाए आबादी को कम करने की बात करते हैं। जब आंकड़े यह बताते हैं कि सुरक्षित गर्भधारण तक पहुंच न होना, अफ़्रीक़ा में माँ बनने वाली औरतों की मौत की वजह का दसवां हिस्सा भी नहीं है और वे ज़्यादातर हाई ब्लड प्रेशर, पैदाइश के वक़्त ज़्यादा ख़ून बह जाने और प्रसव से संबंधित जानकारी के अभाव से मरती हैं, तब भी पश्चिम वाले गर्भपात को अफ़्रीक़ी महिलाओं की जान की रक्षा के मार्ग के तौर पर पेश करने की कोशिश करते हैं और जब अफ़्रीक़ी लोग और महिलाएं पारिवारिक और धार्मिक कल्चर से अपनी रूचि का इज़हार करती हैं तो पश्चिमी राजनेता, बहुत ज़्यादा प्रोपैगंडा करके और मदद बंद करने की धमकी (1) देकर इन मुल्कों में यौन दुराचार को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं।
नीयत ज़ाहिर है। पश्चिम नहीं चाहता कि अफ़्रीक़ा एक विकसित, घनी आबादी वाले और ताक़तवर महाद्वीप का रूप ले। पश्चिम यह लक्ष्य, अफ़्रीक़ा में माँ और बीवी के रोल को बिगाड़कर और फ़ैमिली की इकाई को तितर-बितर करके हासिल करना चाहता है। फ़ैमिली की इकाई, सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्ववादियों के मुक़ाबले में रेज़िस्टेंस का मुख्य केन्द्र है। अकेला और अलग थलग रहने वाला इंसान, आसानी से पश्चिमी पूंजीवाद का ग़ुलाम बनाने वाले मिशन की ज़द में आ जाता है और फ़ैमिली, ग़ुलाम बनाने वाले इस मिशन से निपटने में समाजों और धर्मों का सबसे प्रभावी हथियार है। यही वजह है कि अफ़्रीक़ी मांओं और बीवियों के रोल पर, पश्चिम के बड़े पूंजीपति इस तरह तीव्र प्रहार कर रहे हैं।
(1) Ekeocha, Obianuju, Target Africa: Ideological Neocolonialism in the Twenty-First Century, IGNATIUS PRESS. 24.