इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 25 नवम्बर 2024 को मुल्क की "बसीज फ़ोर्स" के सदस्यों की बड़ी तादाद से अपनी मुलाक़ात में पूरे मुल्क में फैले इस स्वयंसेवी संगठन के इतिहास, रोल और सेवाओं पर रौशनी डाली। (1)
स्पीच इस प्रकार हैः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
भाइयो और बहनो आपका स्वागत है! मैं आप पर उन सभी लोगों पर जो यह स्पीच सुन रहे हैं, दुरूद भेजता हूं। बसीज के बारे में कुछ बातें पेश करुंगा।
मुल्क में वंचित वर्ग पर आधारित स्वयंसेवी बल बसीज का गठन, बेमिसाल है। दुनिया में कहीं भी किसी भी मुल्क में यह संगठन इस रूप में नहीं था। इसे अनोखा संगठन समझा जाता है। मैं इसकी मुख़्तलिफ़ पहलुओं से व्याख्या पेश करुंगा। यह संगठन किसी की देखादेखी क़ायम नहीं किया गया। यह किसी की नक़ल नहीं है। यह हमारे इतिहास और राष्ट्रीय संस्कृति की देन है।
यह हमारी पहली बात है। इसका मतलब यह है कि यह संगठन चूंकि किसी की नक़ल और अनुसरण में गठित नहीं हुआ है इसलिए बाक़ी रहने वाला है। यह संगठन ख़त्म होने वाला नहीं है। चूंकि इसकी जड़ें ख़ुद अपनी हैं इसलिए ठोस और बाक़ी रहने वाला है। यह ख़ुद इस क़ौम का संगठन है। यह बसीज का इतिहास और इसकी राष्ट्रीय पहचान है। यह ईरानी संगठन है। यह एक सांस्कृतिक केन्द्र है। बसीज सैन्य संगठन होने के साथ ही सांस्कृतिक और सामाजिक केन्द्र है। आज बसीज से सबसे पहले जो चीज़ मन में आती है वह इसका सैन्य पहलू है, जबकि इसका सैन्य पहलू अपनी सभी अहमियतों के बावजूद इसके सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू से ज़्यादा नहीं है।
इमाम खुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने यह संगठन क़ायम किया। इमाम ख़ुमैनी ने कब यह संगठन क़ायम किया? और वह भी एक बहुत ही ख़तरनाक स्थिति में। यह हमारे इमाम की एक ख़ुसूसियत थी। आप में से ज़्यादातर लोगों ने इमाम ख़ुमैनी का दौर नहीं देखा है। हमारे महान इमाम की एक ख़ुसूसियत यही थी। आप ख़तरों में से अवसर निकाल लिया करते थे। इस मामले में भी यही था।
4 नवम्बर 1979 को अमरीकी जासूसी के अड्डे को यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने अपने कंट्रोल में ले लिया। उस ज़माने की दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त अमरीका ने आँखें दिखानी शुरु दी। धमकियां दी गयीं और पाबंदियां लगायी गयीं। इन धमकियों के दौरान अमरीकी जासूसी अड्डे पर कन्ट्रोल के क़रीब 23 दिन बाद 26 नवम्बर 1979 को बसीज के गठन का आदेश जारी हुआ। ऐसे वक़्त में कि मुल्क में नया नया इंक़ेलाब आया था, अपनी रक्षा का उसके पास कोई संसाधन नहीं था, इस तरह की बड़ी धमकियां दी जा रही थीं, ऐसे हालात में इमाम ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने मुल्क की सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य ज़मीन पर "शजर-ए-तैयबा" का पाकीज़ा पौधा लगाया। वह पाकीज़ा दरख़्त बसीज संगठन था। आपने ख़तरे की हालत में अवसर पैदा किया।
हमने अर्ज़ किया कि सैन्य पहलू, बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक है। अब मैं यह कहता हूं कि बसीज पहले दर्जे में एक मत है, एक विचारधारा है, एक सोच है, वाक़ई यह एक वैचारिक और सांस्कृतिक संगठन है। अब बसीज फ़ौजी काम भी करता है, सामाजिक काम भी करता है, इल्मी कारनामे भी अंजाम देता है लेकिन इसका स्रोत तर्क और विचार है जिससे इसकी बुनियाद रखी गयी है। अगर हम उस तर्क और बुनियाद को जिस पर बसीज टिका हुआ है, दो लफ़्ज़ों में बयान करना चाहें तो यह दो लफ़्ज़ ईमान की ताक़त और आत्मविश्वास का जज़्बा है। दूसरे लफ्ज़ों में आप इसको अल्लाह पर भरोसा और ख़ुद पर भरोसे का नाम दे सकते हैं। यह बसीज के दो स्तंभ हैं। बसीज की बुनियाद अल्लाह पर ईमान और अपने आत्मविश्वास पर रखी गयी है। आज, कल और भविष्य में यह पाकीज़ा पेड़ जितना भी फल दे, वह इन्हीं दो चीज़ों की देन है। अल्लाह पर भरोसा और आत्मविश्वास।
बसीज की ख़ुसूसियतें बहुत ज़्यादा हैं लेकिन उनका स्रोत यही दो बुनियादी तत्व हैं। बसीज में बहादुरी है, रचनात्मकता और काम शुरू करने की हिम्मत है, मामलों को अंजाम देने में तेज़ी है, उसका दृष्टिकोण और विजन बहुत व्यापक है, उसे दुश्मन की पहचान है, अनेक तरह की सरगर्मियों के संबंध में संवेदनशील और होशियार है, लेकिन ये सब कुछ और बसीज की सारी ख़ुसूसियतें, इन्हीं दो ख़ुसूसियतों की देन हैं। अगर हम इन पर विचार करें, समीक्षा करें, जायज़ा लें तो बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी। मैं यहाँ संक्षेप में बयान करुंगा।
जब हम अल्लाह पर यक़ीन की बात करते हैं तो उस यक़ीन का नतीजा अल्लाह के सामने समर्पित होना और राज़ी रहना है। अल्लाह पर भरोसा है। अल्लाह के वादे पर यक़ीन है। अल्लाह पर यक़ीन का मतलब यह है। पहले तो यह कि हम अल्लाह के सामने पूरी तरह समर्पित हैं और दूसरे यह कि हमारा भरोसा उसकी मदद पर है। हमें उसकी मदद की उम्मीद है और तीसरे यह कि अल्लाह ने हमसे जो वादा किया है हम उस पर यक़ीन रखते हैं। जैसे उसका यह वादा है कि "अगर अल्लाह की मदद करो तो वह तुम्हारी नुसरत करेगा।" (2) (सूरए मोहम्मद आयत-7) यह अल्लाह पर यक़ीन की बात है।
आत्मविश्वास के बारे में यह अर्ज़ करना है कि अपने आप पर भरोसा और आत्मविश्वास के नतीजे में सलाहियतें सामने आती हैं। हमें अपनी सलाहियतों का ज्ञान होता है। ज़्यादातर हम अपनी सलाहियतों की ओर से ग़ाफ़िल होते हैं। वैचारिक, आंतरिक और आत्मिक सलाहियतें तो दूर की बात है, यहाँ तक कि हमें अपनी शारीरिक सलाहियत का भी इल्म नहीं होता।
आत्मविश्वास हमारा ध्यान अपनी सलाहियतों की ओर ले जाता है। इसके बाद हम उन सलाहियतों की क़द्र करते हैं ताकि हम उन सलाहियतों से काम लें। इसकी बहुत सी मिसालें हैं लेकिन इस वक़्त मैं इस बहस में नहीं जाउंगा।
लेकिन अल्लाह पर यक़ीन के संबंध में अर्ज़ करुंगा कि यह बात, बसीजी और एक संगठन की हैसियत से ख़ुद बसीज के भीतर उसी वक़्त से मौजूद है जबसे इस संगठन को बनाया गया और यह वजूद में आया।
यह हक़ीक़त कि अल्लाह का वादा है, इंसान की आँखों के सामने ज़ाहिर होती है। एक जगह क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता हैः "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं और ख़ुदा दाना और कामों को ठीक करने वाला है।" (3) (सूरए फ़तह, आयत-4)
एक और जगह पर अल्लाह फ़रमाता हैः "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं और ख़ुदा को कभी शिकस्त नहीं दी जा सकती और वह सारे मामलों को ठीक करने वाला है।" (4) (सूरए फ़तह, आयत-7) ‘अज़ीज़’ यानी वह जो हावी रहता है, उस पर कोई हावी नहीं हो सकता। यह अज़ीज़ के मानी हैं। "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं;" सृष्टि के ये सभी बेशुमार तत्व, अल्लाह के लशकर हैं। अगर हम अल्लाह के बंदे हों तो यह लशकर हमारी मदद कर सकता है। यह लशकर हमारी मदद को आ सकता है। यह अल्लाह की परम्परा है और यह प्रकृत्ति का तरीक़ा है। अलबत्ता इस लशकर की कमान हमारे अख़्तियार में नहीं है कि हम जब भी चाहें अल्लाह के इस लशकर से काम लें। इस लशकर का कमांडर अल्लाह है। अलबत्ता ख़ास हालात में और निर्धारित शर्तों के साथ, जब हम ख़ुद तैयार हों तो इस लशकर को हमारे अख़्तियार में दे देता है। यह कुरआन की बात है। यह क़ुरआन की साफ़ व सीधी इबारत हैः "हाँ अगर सब्र करो और परहेज़गारी अख़्तियार करो और वह इसी जोश व ख़रोश के साथ तुम पर हमला करें तो अल्लाह पाँच हज़ार अलामत वाले फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा।" (5)(सूरए आले इमरान, आयत-125) अगर आप में भीतर से तैयारी पायी जाए तो अल्लाह के फ़रिश्ते भी आपकी मदद के लिए आ सकते हैं। हमने मदद देखी हैं। पाकीज़ा डिफ़ेंस में देखी और इससे पहले भी और उसके बाद भी देखी हैं। राजनैतिक मैदान में भी देखी और फ़ौजी मैदान में भी देखी हैं। इल्मी मैदान में भी देखी हैं अल्लाह की मदद। अल्लाह की मदद को कब देखा जा सकता है? उस वक़्त जब आप कोई काम करते हैं और समझते हैं कि यह काम नामुमकिन है, वहाँ यह मदद सामने आती है। हमने अर्ज़ किया कि बसीजी में भी और बसीज संगठन में भी, हर बसीजी में आत्मविश्वास, अपनी वैचारिक, आत्मिक और शारीरिक क्षमताओं और सलाहियतों की पहचान, इच्छाशक्ति, फ़ैसले की क्षमता, अपनी क़द्र और दुश्मन के इरादे के अधीन न रहने की ख़ुसूसियत पायी जाती है।
हमारे वजूद में एक तत्व ऐसा है कि जिसकी ओर से ज़्यादातर वक़्त हम ग़ाफ़िल रहते हैं। वह क्या है? वह फ़ैसला करने की ताक़त और इच्छा शक्ति है। हमारे भीतर इरादा भी है और इच्छा शक्ति भी है। कभी कभी एक इंसान में इच्छा शक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाती है कि वह किसी चीज़ को पैदा कर सकता है, वजूद में ला सकता है। यह ताक़त हमारे भीतर मौजूद होती है, हम इसको नहीं पहचानते। इसकी क़द्र नहीं समझते और इसे मज़बूत नहीं करते। इंसान की भीतरी क्षमता की पहचान एक बसीजी की जिंदगी और बसीजी मत की सबसे नुमायां ख़ुसूसियतों में से है।
दुश्मन के इरादे के अधीन न होने और अपने इरादे को हावी करने की ख़ुसूसियत के लिए आत्मिश्वास की ज़रूरत होती है ताकि आप अपनी ख़ुसूसियतों और सलाहियतों को पहचान सकें। ये सलाहियतें, क़ौमों के ख़िलाफ़ विश्व साम्राज्यवाद की योजनाओं की विरोधी हैं, ठीक उनके विपरीत हैं।
विश्व साम्राज्यवाद, यानी दुनिया पर वर्चस्व जमाने की इच्छुक ताक़तें, जो कौमों पर अपना वर्चस्व जमाना चाहती हैं, उनका मुख्य काम यह है कि वे क़ौमों की क्षमताओं का इंकार करती हैं, उनका अपमान व अनादर करती हैं। इसका ज़िक्र भी क़ुरआन में मौजूद है। फ़िरऔन के बारे में (क़ुरआन मजीद फ़रमाता है) "इस तरह उसने (फ़िरऔन) अपनी क़ौम को अहमक़ बनाया और उन्होंने उसकी इताअत की..."(6) (सूरए ज़ुख़रुफ़, आयत-54) जबकि वह आज की दुनिया के सुलतानों से ज़्यादा शरीफ़ था। अमरीकी सुलतान, योरोप का सुलतान, ये सब सुलतान ही तो हैं, वह इनसे शरीफ़ था। वह सिर्फ़ अपने मुल्क के अवाम के साथ यह काम करता था। ये दूसरे मुल्कों की क़ौमों के साथ यह काम करते हैं। "इस तरह उसने (फ़िरऔन) अपनी क़ौम को अहमक़ बनाया और उन्होंने उसकी इताअत की..." अपनी ही क़ौम को हल्का किया, उसका अपमान किया, अपने ही अवाम को छोटा दिखाया और उनके अधिकारों का इंकार किया। "क्या मिस्र की बादशहात और ये नहरें जो मेरे महल के नीचे बह रही हैं, मेरी नहीं हैं?" (7) (सूरए ज़ुख़रुफ़, आयत-51) नतीजे में लोगों ने देखा कि वह उनसे श्रेष्ठ है इसलिए उसका आज्ञापलन किया।
साम्राज्यवाद की योजना यह है कि वह आपके इतिहास का इंकार करे, आपकी पहचान का इंकार करे, आपकी क्षमताओं का इंकार करे और जब आप अपने तेल को ब्रिटेन के एकाधिकार से निकालकर राष्ट्रीयकरण का क़दम उठाएं तो मुल्क के भीतर उसके एजेंट भाषण दें और लिखें कि "यह कैसी बात है! क्या ईरानी आबादान की रिफ़ाइनरी को चला सकते हैं? ईरानी तो मिट्टी का लोटा भी नहीं बना सकते।" इस तरह वे क़ौमों का अपमान करते हैं। बसीज इस राष्ट्रीय अपमान के विरुद्ध है। वर्चस्ववादी ताक़तें किसी कौम पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए उसकी राष्ट्रीय आस्था में फेरबदल करती हैं। उसके इतिहास में फेरबदल करती हैं, उसकी छवि बिगाड़ती और अपमान करती हैं।
मेरे अज़ीज़ो! मेरे भाइयो! मेरी बहनो! और मेरे बच्चो! लंबे बरसों तक ख़ास तौर पर क़ाजारी और पहलवी दौर में ईरान का अपमान किया गया। इंक़ेलाब आया तो स्थिति बदल गयी।
पहले विश्व युद्ध के बाद पेरिस में एक कान्फ़्रेंस हुयी जिसमें अनेक मुल्कों ने शिरकत की। यह कान्फ़्रेंस दुनिया की हालत के बारे में फ़ैसले के लिए आयोजित हुयी थी। इस कान्फ़्रेंस में शिरकत करने वाले वे मुल्क थे जिन्होंने पहले विश्व युद्ध में भाग लिया था या उससे उन्हें नुक़सान पहुंचा था। ईरान ने भी एक प्रतिनिधिमंडल उस कान्फ़्रेंस में शिरकत के लिए पेरिस भेजा लेकिन ईरानी प्रतिनिधिमंडल को उस कान्फ़्रेंस में शिरकत की इजाज़त नहीं दी गयी। इस तरह अपमान करते थे। एक दौर में ईरानी क़ौम का इस तरह अपमान किया गया। बसीजी सोच इस घेराबंदी को तोड़ देती है। बसीजी सोच इस बहुत ही ख़तरनाक हथियार को नाकाम बना देती है। बसीजी सोच, आत्मविश्वास देती है। इस सोच से नौजवान अपने वजूद का एहसास करता है। वह महसूस करता है कि उसके भीतर क्षमता है, यह उसका आत्मविश्वास है। अल्लाह पर उसके यक़ीन के बारे में भी मैंने अर्ज़ किया। वह समझता है कि पूरी सृष्टि अल्लाह का लशकर है। "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं।" (8)(सूरए फ़तह, आयत-4) और अगर वह अल्लाह की राह में आगे बढ़ेगा तो यह लशकर उसकी मदद करेगा। आज भी यही है और कल भी यही रहेगा। बेशक यह बसीजी जज़्बा, यह बसीजी क्षमता, यह बसीजी माहौल जो हमारे मुल्क में है और सौभाग्य से कुछ दूसरे मुल्कों में रेज़िस्टेंस मोर्चे के सिपाहियों में भी यह जज़्बा मौजूद है, निश्चित तौर पर यह जज़्बा, अमरीका, पश्चिम, साम्राज्यवाद और क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार की सभी नीतियों पर हावी होगा।
दो तीन बातें बसीज के बारे में। एक बिन्दु यह है कि इमाम ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने इस मुल्क में इंक़ेलाब की कामयाबी से पहले, अपने आंदोलन और संघर्ष के 15 बरस के दौरान बसीजी सोच के लिए हालात को अनुकूल बनाया, इसे वजूद दिया और मज़बूत बनाया। यह ख़ुसूसियतें जो हम बसीजी की बयान करते हैं, उनमें से बहुत सी ऐसी हैं कि बसीज संगठन के बाहर ज़ाहिर होती हैं यहाँ तक कि कुछ ऐसी हैं जो बसीज के आधिकारिक गठन से पहले ही ज़ाहिर हो चुकी थीं। इमाम ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने सन 1963 से 1979 तक, क़रीब 15-16 बरस इस बसीजी जज़्बे, इस आत्म विश्वास, अल्लाह पर यक़ीन, इस आत्मविश्वास, अल्लाह पर इस विश्वास और कामयाबी की इस उम्मीद और उज्जवल भविष्य को ईरानी अवाम को दिखाया और प्रोरित किया और हमारे नौजवानों ने जिनके भीतर क्षमता व सलाहियत थी, इमाम के इस संदेश को समझा। कमज़ोरी पैदा करने वाले उन सभी तत्वों के मुक़ाबले में यह पैग़ाम क़ुबूल किया गया, इसलिए धीरे-धीरे यह आगे बढ़ा, इसने तरक़्क़ी की और विस्तृत हुआ। इसने इंक़ेलाबी रूप अख़्तियार किया और एक ऐसी सरकार का अंत किया जिसको दुनिया की क़रीब सभी ताक़तों का सपोर्ट हासिल था। पहलवी सरकार का अमरीकी सपोर्ट कर रहे थे, योरोप वाले सपोर्ट कर रहे थे, रूस वाले भी सपोर्ट कर रहे थे, सब सपोर्ट कर रहे थे। उसके पास संसाधन भी बहुत थे। इमाम ख़ुमैनी (रमहतुल्लाह अलैह) ने उस सरकार का तख़्ता उलट दिया, उसको जड़ से ख़त्म कर दिया, जबकि अवाम की ओर से एक भी गोली नहीं चलायी गयी।
दुनिया में सरकारों के ख़िलाफ़ बग़ावतें होती हैं, ज़्यादातर नाकाम और अस्थायी होती हैं (लेकिन) यहाँ सशस्त्र जंग नहीं हुयी, अवाम दिलो जान से और अपने ईमान के साथ आए, मैदान में उतरे, उन्होंने मैदान पर क़ब्ज़ा किया और अपने प्रतिद्वंद्वी को मैदान से बाहर कर दिया।
इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद, इमाम ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने मुख़्तलिफ़ तरह के वार को रोकने के लिए बसीज की दीवार खड़ी कर दी। पाकीज़ा डिफ़ेंस से पहले भी, पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान भी, पाकीज़ा डिफ़ेंस के बाद भी, सैन्य मैदान में भी, सामाजिक मैदान में भी, इल्मी मैदान में भी, हथियार बनाने के मैदान में भी और अंतर्राष्ट्रीय व राजनैतिक मैदान में भी (बसीज ने बड़े कारनामे अंजाम दिए)
इस बात पर ध्यान दें कि सामाजिक और इल्मी ताक़त, राजनैतिक ताक़त को जन्म देती है। जो क़ौम अपने भीतर अपनी एकता, अपने संकल्प, अपनी दृढ़ता और मैदान में सरगर्म रूप से मौजूद अपनी मैन-पावर दिखाने में कामयाब रहे, अपनी इल्मी और वैज्ञानिक क्षमता साबित कर सके और अपनी सामाजिक क्षमता दिखा सके वह राजनैतिक लेहाज़ से भी ताक़तवर हो जाती है, अंतर्राष्ट्रीय मैदान में ठोस अंदाज़ में बोल सकती है और अपनी बात आगे बढ़ा सकती है। इमाम ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने ये काम अंजाम दिए।
बसीज ने पाकीज़ा डिफ़ेंस में भी रोल अदा किया, मुल्क को सुरक्षित करने और उसकी सुरक्षा को बनाए रखने में भी रोल अदा किया, निर्माण में भी काम किया और इल्मी व वैज्ञानिक कारनामे भी अंजाम दिए।
जिन लोगों ने युरेनियम के 20 फ़ीसदी संवर्धन के मामले में जिसकी मुल्क को ज़रूरत थी, अमरीका की घटिया साज़िश को नाकाम बनाया वे बसीजी थे। शहीद शहरयारी बसीजी थे, हमारे ऐटमी शहीद, मुल्क के बसीजी शिक्षकों में थे। इसकी अपनी तफ़सील है।
हमें न्यूक्लियर मेडिसिन के लिए 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम की ज़रूरत थी। मुल्क को इसकी सख़्त ज़रूरत थी। थोड़ी मात्रा में 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम मौजूद था जिसका पहले इंतेज़ाम किया गया था, वह भी ख़त्म हो रहा था, हमें ख़रीदना था लेकिन किससे? अमरीका से। अमरीकियों ने कहा कि तुम्हारे पास साढ़े तीन फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम जितनी मात्रा में है, हमें दो हम उसके बदले में 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम देंगे। उस वक़्त दुनिया के दो मशहूर राष्ट्रपतियों ने जिनका मैं इस वक़्त नाम नहीं लेना चाहता, हमसे उनके संबंध अच्छे थे, उन्होंने मध्यस्थता की कि यह मामला तय पा जाए। हमारे मुल्क के अधिकारियों ने क़ुबूल कर लिया। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के दूसरे अर्ध में, बातचीत के बीच देखा गया कि अमरीकी धोखा दे रहे हैं, हमने समझ लिया कि वे धोखा दे रहे हैं, उसकी रोकथाम की गयी। ठीक उस वक़्त जब वे समझ रहे थे कि 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम की ज़रूरत की वजह से ईरान झुक जाएगा, मुल्क में हमारे बसीजी ऐटमी वैज्ञानिकों ने 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम तैयार कर लिया! अमरीकियों को यक़ीन नहीं आ रहा था कि यह काम हो सकता है।
मैंने कई साल पहले यहीं पर कहा है (9) युरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया में सबसे मुश्किल चरण 20 फ़ीसदी तक पहुंचना है। उसके बाद के चरण बहुत आसान हैं। ऐसे वक़्त में कि दुश्मन हमें धोखा दे रहा था, हमारे बसीजियों ने, हमारे बसीजी नौजवानों ने और हमारे बसीजी वैज्ञानिकों ने मुल्क के अंदर इस कठिन प्रक्रिया को अंजाम दे दिया, 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम तैयार कर लिया और हमें उनकी (पश्चिम) ज़रूरत नहीं पड़ी। बसीजियों ने इन मैदानों में काम किया है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में बसीज ने सरगर्म रोल अदा किया। इसलिए बसीज ने सैन्य मामलों में भी, सामाजिक, इल्मी और वैज्ञानिक मैदान में भी और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मैदान में भी अहम रोल अदा किया और उपयोगी और सक्षम रहा है।
मैंने अर्ज़ किया कि इनमें से बहुत से कारनामे ख़ुद बसीज संगठन के अंदर अंजाम नहीं दिए गए हैं। बल्कि इस संगठन से बाहर अंजाम पाए हैं लेकिन हमारे लिए जो चीज़ अहम है वह बसीजी भावना, बसीजी मत और बसीजी संस्कृति है। कोशिश करें कि इसको हाथ से न जाने दें। आप बसीजी, आज मुल्क में जहाँ भी हैं, कारख़ाने में हैं, यूनिवर्सिटी में हैं, धार्मिक केन्द्र में हैं, वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में हैं, जंग के मैदान में हैं, जहाँ भी हैं, यह जज़्बा, काम के लिए हमेशा तैयार रहना, घटनाओं के संबंध में यह जो संवेदनशीलता है उसको हाथ से न निकलने दें। हमेशा तैयार रहें। यह पहला बिन्दु है।
दूसरा बिंदु यह है कि आज की दुनिया में मुख़्तलिफ़ मुल्कों में बहुत से नौजवान हैं जो मानसिक तौर पर अपने सामने सारे रास्ते बंद पाते हैं, वे अपने वजूद को बेकार समझते हैं। नौजवान है लेकिन उसका कोई मक़सद व लक्ष्य नहीं है। खोखलेपन का एहसास करता है। अलबत्ता बहुत से मोटी खाल के हैं। लेकिन कुछ नाज़ुक हैं, संवेदनशील हैं, खोखलेपन की भावना में जकड़े हुए हैं, ख़ुदकुशी ज़्यादा होती है। आप सुनते हैं और आंकड़ों में पढ़ते हैं कि दुनिया में ख़ुदकुशी बढ़ गयी है। इसकी वजह यही है। नौजवान मानसिक संकीर्णता महसूस करते हैं। खोखलापन महसूस करते हैं। मुख़्तलिफ़ तरह की मुश्किलों और रुकावटों के मुक़ाबले में ख़ुद को अक्षम समझते हैं और यही अक्षमता की भावना उन्हें खोखलेपन की ओर ले जाती है। बसीजी सोच सारे बंद रास्ते खोल देती है। बसीजी सोच की एक ख़ुसूसियत यही बंद रास्ते खोलने की संस्कृति है जो नौजवानों में रास्ते बंद होने का एहसास नहीं पैदा होने देती। क्यों? इसलिए कि हमने जो परिभाषा की है उसके मुताबिक़, उसके अंदर आत्मविश्वास होता है, अपनी सलाहियतों पर उसको भरोसा होता है और जानता है कि अगर हिम्मत करे तो कर सकता है। दूसरे वह वर्चस्ववादियों की मांगों और इच्छाओं से प्रभावित नहीं होता। बसीजी ऐसा ही होता है।
इस वक़्त देखें कि मुख़्तलिफ़ मामलों में अमरीका, ज़ायोनी सरकार और दूसरों के प्रोपैगंडों से कैसा हंगामा मचा हुआ है। इस स्थिति को देखकर बसीजी नौजवान के होंठों पर व्यंगात्मक मुस्कुराहट आती है और वह इस हुल्लड़ हंगामे को कोई अहमियत नहीं देता। इसलिए प्रभावित भी नहीं होता।
तीसरे बसीजी नौजवान के सामने मक़सद और लक्ष्य होता है। वह बिना मक़सद वाला और लक्ष्यहीन नहीं है और अपने लक्ष्य पर यक़ीन रखता है। बसीजी नौजवान का लक्ष्य इस्लामी समाज है। उसके बाद इस्लामी सभ्यता है। वह उसकी ओर बढ़ रहा है। बसीजी नौजवान का मक़सद न्याय व इंसाफ़ क़ायम करना है। वह समझता है कि यह काम कर सकता है और इस राह में आगे बढ़ता है।
बसीजी नौजवान मौत से नहीं डरता। आप देखें कि पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान आते थे, रोते थे, गिड़गिड़ाते थे कि मोर्चे पर जाने की इजाज़त दे दी जाए। उनकी उम्र कम होती थी। इजाज़त नहीं मिलती थी। रोते थे गिड़गिड़ाते थे। यह यही कोई 35 साल पहले और 40 साल पहले की बात है। कुछ साल पहले पाकीज़ा रौज़ों की रक्षा के मामले में भी यही स्थिति थी। पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान कितने नौजवान ख़त लिखते थे। कुछ मुलाक़ात करते थे कि जनाब मुझे जाने की इजाज़त दे दें। इजाज़त नहीं मिलती थी तो किसी ऐसे गिरोह में शामिल होने की कोशिश करते थे जिसको इजाज़त मिल चुकी होती थी। आपने ये बातें सुनी हैं और पढ़ी हैं। उनके हालात पढ़े हैं और जानते हैं। बसीजी मौत से नहीं डरता। आख़िरी मंज़िल शहादत है। वह शहादत पर विश्वास रखता है। उसका अक़ीदा है कि अगर इस राह में दुनिया से गया तो सबसे ऊंचे आध्यात्मिक दर्जे तक पहुंच जाएगा। इसलिए उसके सामने रास्ता खुला हुआ है। वह अपने सामने रास्ते बंद नहीं पाता। ऐसा इंसान अपने सामने रास्ते बंद नहीं पाता। यही वजह है कि ईरान का बसीजी यह यक़ीन रखता है कि ज़ायोनी शासन एक दिन ख़त्म होगा।
एक और बिंदु यह है कि मुल्क में बसीज को दिन ब दिन मज़बूत करना चाहिए। बसीज को मज़बूत करने की ज़रूरत है। बसीज का परचम अवाम के अधिकारों का परचम है। सत्य की रक्षा का परचम है। यह परचम हमेशा लहराते रहना चाहिए। इसके लिए मदद ज़रूरी है, इसे मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। किस तरह मज़बूत किया जाए? इसकी गहराई और क्वालिटी के लेहाज़ से इसे विस्तृत किया जाए। इसकी क्वालिटी ऊपर लायी जाए। इसमें गहराई पैदा करें। ताकि बसीजी नौजावन के मन में बसीजी कल्चर अपनी जगह बना सके। उसकी क्वालिटी भी ऊपर लानी चाहिए। मामलों को सतही नज़र से न देखा जाए। इसके लिए किताब की ज़रूरत है। अध्ययन की ज़रूरत है। डिबेट की ज़रूरत है। रिसर्च हल्क़ों की ज़रूरत है। ये काम अंजाम दिए जाएं।
बसीज को मज़ूबत बनाने का एक पहलू यह है कि बसीज, कार्यपालिका के सक्रिय अंग की हैसियत से हर जगह मौजूद और काम के लिए तैयार रहे। फ़ौजी संगठन में, इल्मी संगठन में, जनसेवा के क्षेत्र में, शिक्षा व ट्रेनिंग के क्षेत्र में, प्रचार और वास्तविकता बयान करने के क्षेत्र में, रोज़गार के अवसर पैदा करने के क्षेत्र में, यह जो नुमाइश मुझे दिखाई गयी है, इसमें बहुत से काम बसीज के हैं। इंशाअल्लाह पूरी ताक़त के साथ इसी तरह जारी रहें। अतीत में भी यही स्थिति थी, अतीत में काफ़ी बरसों से बसीज ने सरकारों की मदद की है। सरकार के सक्रिय अंग की हैसियत से काम किए हैं। कुछ सरकारों ने इसकी क़द्रदानी की और कुछ ने नहीं। बसीज की मदद ली लेकिन उसका शुक्रिया नहीं अदा किया।
राजनीति के मैदान में भी (ऐसा ही है) इस मैदान में भी बसीज को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। बसीज को मालूम होना चाहिए कि इस इलाक़े के मुल्कों के लिए अमरीका की योजना दो तरह की है, या ज़ुल्म या अराजकता और अंग्रेज़ों के बक़ौल या तानाशाही या अराजकता। अमरीका ने इस इलाक़े के लिए इन्हीं दो रास्तों को मद्देनज़र रखा है। जिस मुल्क पर अमरीकियों की निगाह है, या उसमें तानाशाही सरकार होनी चाहिए ताकि उसके साथ उनके सौदे अंजाम पा सकें, जो वे चाहें वह उसके लिए सहमति दे और उनके सामने झुकी रहे और अगर यह न हो सके तो फिर उस मुल्क में अराजकता होनी चाहिए, लोगों की ज़िंदगी कठिन कर दी जाए। बसीज को इन दोनों से मुक़ाबला करना चाहिए। तानाशाही और निरंकुशता लाने की कोशिशों का भी मुक़ाबला करे और अराजकता तथा बलवे का भी।
मुल्क में इन दोनों में से कोई एक बात भी हो तो समझ लें कि दुश्मन काम कर रहा है। बसीज को उसके मुक़ाबले पर डट जाना चाहिए। यह बसीज से संबंधित मामले थे जो अर्ज़ किए गए, बसीज के संबंध में बातें बहुत हैं। फ़िलहाल इतना ही।
कुछ बिंदु इलाक़े के हालात के बारे में भी अर्ज़ करुंगा। लेबनान, फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा के मसलों के तअल्लुक़ से, जो कुछ हो रहा है वह आप देख रहे और सुन रहे हैं, ख़बरें आपके सामने हैं, आपको इल्म है, मैं दो बिन्दु अर्ज़ करुंगा।
पहला बिंदु यह है कि लोगों के घरों पर बमबारी कामयाबी नहीं है। मूर्ख यह न समझें कि चूंकि लोगों के घरों पर बमबारी कर रहे हैं, चूंकि अस्पतालों पर बमबारी कर रहे हैं, चूंकि लोगों के मजमे पर बमबारी कर रहे हैं, इसलिए कामयाब हो गए। जी नहीं, दुनिया में कोई भी इसको कामयाबी नहीं समझता। यह कामयाबी नहीं है। दुश्मन ग़ज़ा में कामयाब नहीं हुआ है, दुश्मन लेबनान में कामयाब नहीं हुआ है। जो काम उन्होंने किए हैं वह कामयाबी नहीं है, युद्ध अपराध हैं। गिरफ़्तारी का आदेश जारी हुआ है (10) लेकिन यह काफ़ी नहीं है नेतनयाहू को फांसी मिलनी चाहिए। पेशवराना अपराधी ज़ायोनी अधिकारियों के ख़िलाफ़ फांसी का हुक्म जारी होना चाहिए। यह पहला बिंदु।
दूसरा बिंदु यह है कि लेबनान, फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराध का जो नतीजा वह चाहते हैं उसके विपरीत हो रहा है। यानी इन अपराधों की वजह से रेज़िस्टेंस बढ़ रहा है और रेज़िस्टेंस तीव्र से तीव्र होता जा रहा है। यह भी एक बुनियादी उसूल है। इसके विपरीत नहीं हो सकता। ग़ैरतमंद फ़िलिस्तीनी नौजवान, ग़ैरतमंद लेबनानी नौजवान देख रहा है कि अगर संघर्ष के मैदान में हो तो ख़तरा है, संघर्ष के मैदान में न हो तो भी ख़तरा है। डाक्टर है, नर्स है, मरीज़ है, मज़दूर है, व्यापारी है लेकिन मौत का ख़तरा, बमबारी का ख़तरा, दुश्मन की ओर से और भी ख़तरे हैं। उसके सामने कोई और रास्ता बचा नहीं है। वह कहता है कि जाकर संघर्ष करूं। इसलिए कि वे मजबूर कर रहे हैं। ये मूर्ख ख़ुद ही अपनी हरकतों से रेज़िस्टेंस मोर्चे को विस्तृत कर रहे हैं, रेज़िस्टेंस की तीव्रता बढ़ा रहे हैं। यह एक अटल नतीजा है इसके विपरीत नहीं हो सकता। मैं आज कहता हूं कि आज रेज़िस्टेंस मोर्चा जितना विस्तृत है कल उससे कई गुना ज़्यादा विस्तृत होगा।
पालने वाले तुझे मोहम्मद और आले मोहम्मद का वास्ता, सभी नेक बंदों की चाहता (इमाम महदी अलैहिस्सलाम) को जल्द से जल्द भेज दे।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।
1 इस मौक़े पर पहले ब्रिगेडियर रज़ा सुलैमानी (बसीज मुस्तज़अफ़ीन के कमांडर) ने एक रिपोर्ट पेश की।
2 सूरए मोहम्मद, आयत-7 "अगर अल्लाह की मदद करो तो वह तुम्हारी नुसरत करेगा।"
3 सूरए फ़तह, आयत नंबर-4 का एक हिस्सा, "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं और ख़ुदा दाना और कामों को ठीक करने वाला है।"
4 (सूरए फ़तह, आयत-7) "और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं और ख़ुदा को कभी शिकस्त नहीं दी जा सकती और वह मामलों को ठीक करने वाला है।"
5 (सूरए आले इमरान, आयत-125) "हाँ अगर सब्र करो और परहेज़गारी अख़्तियार करो और वह इसी जोश व ख़रोश के साथ तुम पर हमला करें तो अल्लाह पाँच हज़ार अलामत वाले फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा।"
6 सूरए ज़ुख़रुफ़, आयत-54
7 (सूरए ज़ुख़रुफ़, आयत-5) "...क्या मिस्र की बादशहात और ये नहरें जो मेरे महल के नीचे बह रही हैं, मेरी नहीं हैं?"
8 (सूरए फ़तह, आयत-4 का एक हिस्सा)"...और ज़मीन व आसमान के फ़ौजी ख़ुदा के हैं।"
9 नवम्बर 2015 में यूनिवर्सिटियों, रिसर्च सेंटरों और साइंस टेक्नालोजी पार्क के प्रमुखों से मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का ख़ेताब
10 अंतर्राष्ट्रीय फ़ौजदारी अदालत ने महीनों विलंब से आख़िरकार 21 नवम्बर 2024 को ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और पूर्व युद्ध मंत्री योआफ़ गैलेंट की गिरफ़्तारी का हुक्म जारी किया। यह हुक्म ग़ज़ा में युद्ध अपराध करने पर जारी किया गया।