मुल्क भर से आए हुए हज़ारों स्वयंसेवियों ने सोमवार 25 नवम्बर 2024 को तेहरान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की। जोश व श्रद्धा से भरे इस प्रोग्राम के माहौल, लोगों के जज़्बात और दूसरी अहम बातों के बारे में एक रिपोर्ट पेश है।
लेखकः मोहसिन बाक़ेरीपूर
26 नवम्बर 1979 का दिन, स्वयंसेवी फ़ोर्स 'बसीज' और 2 करोड़ लोगों की फ़ौज के गठन के लिए इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के ऐतिहासिक आदेश की याद दिलाता है। यह वह आदेश था जिसने इस्लामी इंक़ेलाब के मूल्यों की रक्षा के लिए अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों को एक परचम तले इकट्ठा कर दिया। अगरचे आग़ाज़ में स्वयंसेवी बल 'बसीज' मुल्क में की जाने वाली साज़िशों और विदेशी हमलों का मुक़ाबला करने के लिए एक सैन्य संगठन लगता था और ख़ास तौर पर 8 साल के पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौर में उसने ईरान की सरहदों की रक्षा में बेजोड़ योगदान दिया लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ साथ उसने दिखा दिया कि वह हर संवेदनशील सामाजिक परिस्थिति में रोल अदा करने और प्रभावी होने की सलाहियत रखती है। इस पब्लिक फ़ोर्स के गठन में इमाम ख़ुमैनी की सूझबूझ और दूरदर्शिता ने मुल्क और इस्लामी गणराज्य सिस्टम को हमेशा के लिए ख़तरों के मुक़ाबले में सुरक्षित कर दिया। इसी उपलक्ष्य में हर साल स्वयंसेवियों की एक तादाद, इस पब्लिक संगठन के दसियों लाख सदस्यों के प्रतिनिधित्व में इस्लामी गणराज्य के संस्थापक के लक्ष्यों के सिलसिले में अपने वचन और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के आज्ञापालन के संकल्प को दोहराने के लिए इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इकट्ठा होती है। इस साल भी अपने नेता को क़रीब से देखने और उनके विवेकपूर्ण बयान को सुनने के लिए बसीजियों का शौक़ व जज़्बा देखने के क़ाबिल था।
5 आज़र बराबर 25 नवम्बर 2024 ...हल्की बूंदाबांदी के साथ पतझड के मौसम की सुबह जो अल्लाह की रहमत की ख़ुशख़बरी दे रही है...सवेरे ही इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की उत्सुकता से भरे स्वयंसेवियों की एक बड़ी भीड़ समूहों में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में दाख़िल हो रही है। यहाँ पर वर्ग, क़ौम और क़बीले के लोग हैं। स्कूल, कालेज के स्टूडेंट्स से लेकर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, धार्मिक स्टूडेंट्स्, डाक्टर, मज़दूर और नौकरी पेशा लोग सभी हैं। इसी तरह ईरानी, कुर्द, लुर, बलोच, अरब, माज़ेनी, गीलक और तुर्कमन क़ौमों के प्रतिनिधि भी यहाँ है। कुछ लोग अपने रंग बिरंगे और ख़ूबसूरत पारम्परिक लेबास में इस सभा में आए हैं। मार्शल आर्ट्स से संबंध रखने वाले कुछ लोगों का एक गिरोह अपने विशेष लेबास में आया है जिसका संदेश ज़ाहिर हैः हम जंग के लिए तैयार हैं...ऐसा लग रहा है जैसे यहाँ धीरे धीरे एक छोटा ईरान बनता जा रहा है। सभी हैं, औरत मर्द, बच्चों से लेकर अस्सी साल के बूढ़े तक। स्वयंसेवियों के लिए तो उम्र की सीमा नहीं होती। बस आप सिस्टम और इंक़ेलाब को अपना दिल दे दीजिए और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के आदेश पर अमल के लिए तैयार रहिए, समझिए आप स्वयंसेवी बन गए!
धीरे-धीरे लोग लाइन में बैठ रहे हैं और हर पेशे और तबक़े के लोग एक दूसरे के साथ बैठते जा रहे हैं। सभी ने सिर पर लाल और हरे रंग की पट्टी बांध रखी है और बाज़ुओं पर चफ़िया (कोफ़िया) डाल रखी है जिसके एक तरफ़ इमाम ख़ुमैनी और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की तस्वीर है जबकि दूसरी ओर रेज़िस्टेंस मोर्चे के शहीदों क़ासिम सुलैमानी, अबू महदी मोहन्दिस सैयद हसन नसरुल्लाह, इस्माईल हनीया और यहया सिनवार वग़ैरह की तस्वीरें हैं। कुछ किनारे जाकर तस्वीरें खिंचवा रहे हैं। यहाँ कोई भी अजनबी नहीं है, जो भी यहाँ पहुंचता है, अपनेपन की भावना से दूसरों के साथ खड़ा हो जाता है और कैमरामैन इस एकता व समरस्ता की तस्वीरें यादगार के तौर पर अपने कैमरे में इकट्ठा करते जा रहे हैं। धीरे-धीरे, लोगों की तादाद काफ़ी बढ़ गयी है और अब बैठने के लिए जगह बाक़ी नहीं बची है। आयोजन प्रबंधन के सदस्य लाइन में बैठे लोगों से और सिमट कर बैठने का निवेदन करने पर मजबूर हैं ताकि आने वालों को भी जगह मिल सके। जब सब लोग बैठ गए तो आगे की लाइनों में एक शख़्स ने खड़े होकर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की शान में कुछ शेर पढ़ने शुरू किए जिसकी उपस्थित लोगों ने बहुत तारीफ़ की। इसके बाद तो थोड़ी थोड़ी देर बाद मौजूद लोगों में से कोई खड़े होकर नारा लगाता है और बाक़ी लोग ऊंची आवाज़ में उसका जवाब देते हैं। ये वही नारे हैं जिनसे हमेशा इंक़ेलाबी सभाओं की शोभा बढ़ती है। "हम कूफ़े वाले नहीं है कि अली अकेले रह जाएं" "हमारी रगों में जो ख़ून है वह हमारे नेता पर क़ुरबान है" और "हैदर हैदर" वग़ैरह। 10 बजकर कुछ मिनट हुए थे कि अचानक पूरा मजमा अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ... अपने नेता और रहनुमा को देखकर स्वयंसेवियों के जो जज़्बात हैं, उन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। सभी हाथ ऊठाकर और "ऐ आज़ाद नेता, हम तैयार हैं, हम तैयार है" के नारे से इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का स्वागत करते हैं।
प्रोग्राम का आग़ाज़ क़ुरआन मजीद की तिलावत से होता है और फिर ईरान के मशहूर शौर्यगीत गाने वाले अलहाज सादिक़ आहंगरान डाइस पर आते हैं। वे अपनी फ़ौजी वर्दी पहनकर आते हैं। सबसे पहले बसीज और रेज़िस्टेंस फ़ोर्स के बारे में कुछ शेर पढ़ते हैं, फिर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के अवसर के संबंध में कुछ शेर पढ़ते हैं और फिर कुछ शौर्य गीत पढ़ते हैं जिनका मजमे की ओर से ऊंची आवाज़ में जवाब दिया जाता है। आख़िर में वह अपना सबसे मशहूर तराना "ऐ इमाम महदी के लशकर तैयार रहो तैयार रहो" पढ़ते हैं जो मौजूद लोगों की ज़ेहन को पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौर में पहुंचा देता है।
इसके बाद स्वयंसेवी बल बसीज से एक आला अधिकारी, इस फ़ोर्स की अहमियत और सरगर्मियों के बारे में एक रिपोर्ट पेश करते हैं और फिर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से ख़ेताब करने की दरख़ास्त करते हैं ताकि मौजूद लोग, टीवी और इंटरनेट पर इस प्रोग्राम को लाइव देखने वाले लाखों स्वयंसेवी अपने नेता बया बयान सुनें। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीच शुरू होते ही पूरा मजमा ख़ामोश होकर पूरी तनमयता से स्पीच सुनने लगता है। उनके ख़ेताब का हर जुमला, एक बिंदु और एक नसीहत पर आधारित है। बहुत से लोगों के हाथों में काग़ज़ और क़लम है और वे इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीच के अहम बिंदुओं को नोट कर रहे हैं। इस पुरजोश व अपनाइयत भरी मुलाक़ात से, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की रहनुमाइयों और नसीहतों से ज़्यादा क़ीमती तोहफ़ा क्या मिल सकता है?
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता अपनी स्पीच के आग़ाज़ में बसीज फ़ोर्स और स्वयंसेवी के बारे में बात करते हैं और कहते हैं कि इस स्वयंसेवी फ़ोर्स का गठन एक बेमिसाल काम था जिसकी नज़ीर पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं है। यह हमारी क़ौम से निकली और गठित हुयी है। अल्लाह पर भरोसा और आत्म-विश्वास, ऐसे दो मूल स्तंभ हैं, जिन पर बसीज का गठन हुआ है और इन्हीं दो उसूलों पर भरोसा करके स्वयंसेवी बल बसीज अपनी राह में मौजूद हर मुश्किल और हर रुकावट को दूर देता है। इसके बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता उस गहरे बिंदु की ओर इशारा करते हैं कि अगरचे बसीज, ज़ाहिरी तौर पर एक सैन्य संगठन है लेकिन उसके सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू ज़्यादा अहम और ज़्यादा गहरे हैं। एक दूसरा बिंदु जिस पर शायद कम ही ध्यान दिया गया है कि जिसकी ओर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इशारा करते हैं, यह है कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से काफ़ी पहले यानी 1962-63 में बसीज के गठन की कोशिश शुरू कर दी थी।
इस्लामी इंक़ेलाब के ख़ेताब का दूसरा हिस्सा रेज़िस्टेंस मोर्चे और ग़ज़ा तथा लेबनान में ज़ायोनियों के अपराधों के बारे में है और वो बल देकर कहते हैं कि घरों पर बमबारी, उनकी तबाही और आम लोगों का नरसंहार, ज़ायोनियों की फ़तह नहीं है बल्कि ये युद्ध अपराध हैं। वो कहते हैं कि नेतनयाहू और उसके युद्ध मंत्री की गिरफ़्तारी का वारेंट काफ़ी नहीं है बल्कि ये लोग मौत की सज़ा के हक़दार हैं। यहां पर मजमा अल्लाहु अकबर का नारा लगाकर और इस्राईल मुर्दाबाद के गगनभेदी नारे लगाकर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की बात से सहमति जताता है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ख़ेताब का आख़िरी भाग इस ख़ुशख़बरी पर आधारित है कि इस्राईल के ज़ुल्म और अपराध न सिर्फ़ यह कि रेज़िस्टेंस मोर्चे को कमज़ोर नहीं कर सके हैं बल्कि इससे इस मोर्चे की व्यापकता और ताक़त में दिन प्रतिदिन इज़ाफ़ा हो रहा है और आख़िरी फ़तह हक़ के मोर्चे को ही हासिल होगी।
प्रोग्राम अपने अंत को पहुंच गया है और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता, उपस्थित लोगों के गगनभेदी नारों के बीच इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े से रुख़सत हो जाते हैं लेकिन उनकी उम्मीद पैदा करने वाली बातों की गूंज अब भी माहौल में मौजूद है। "बातिल की शिकस्त और सत्य के मोर्चे की फ़तह व कामयाबी निश्चित है।" स्वयंसेवियों के दिल में सुकून तथा संकल्प और बढ़ गया है।