इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान और उनके मंत्रिमंडल से 27 अगस्त 2024 को मुलाक़ात में सरकार के कामकाज के तरीक़े, देश की क्षमताओं, संसाधनों और चुनौतियों के बारे में बात की।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की तक़रीर
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
सब से पहले तो मैं अरबईन के इन दिनों को पूरे वजूद से, तहे दिल से सराहता हूँ और अरबईन के मौक़े पर अवाम की वॉक का अल्लाह से मदद मांगते हुए शुक्र अदा करता हूँ।
सरकार के सप्ताह की आप सब को बधाई देता हूँ और उम्मीद है कि यह हफ़्ता, आप लोगों की ज़िम्मेदारी के पूरे समय के लिए उम्मीद और अच्छी रिपोर्टों का हफ़्ता साबित हो।
हम इस अवसर पर शहीद रजाई और शहीद बाहुनर को याद करते हैं, यह हफ़्ता इन्ही दो महान हस्तियों की वजह से “सरकार का सप्ताह” कहा जाता है। और इस नामकरण के पीछे एक ख़ास रहस्य है और वह यह है कि सरकार, शहीदों का और उनकी राह का सम्मान करने वाली सरकार है और ख़ुदा के शुक्र से ऐसा ही रहा है।
हम इस अवसर पर अपने मरहूम राष्ट्रपति जनाब इब्राहीम रईसी को भी याद करते हैं और उनके लिए और इस नेक शोहरत के लिए जो अल्लाह ने उन्हें दी, अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हमेशा बाकी रहे। अल्लाह उनके और उनके साथियों के जिनमें ख़ास तौर पर उनके विदेशमंत्री (2) भी शामिल हैं दरजात बुलंद करे।
हम अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं कि राष्ट्रपति की मेहनत और संसद की मदद से नयी सरकार बन गयी, यह बहुत बड़ी नेमत है। पिछली कुछ सरकारों में तो एक महीना या उससे भी ज़्यादा समय तक सरकार बन नहीं पाती थी और सभी मंत्रियों को संसद से विश्वास मत प्राप्त नहीं होता था, इस बार अल्लाह ने करम किया, आप पर, हम पर, मुल्क पर और ख़ुदा के शुक्र से सभी मंत्रियों को संसद में विश्वास मत प्राप्त हुआ और सब को मंज़ूरी मिल गयी। उस दुखद दुर्घटना के बाद होने वाले चुनाव और सरकार के गठन में जिन लोगों ने भी रोल अदा किया है, सब को अल्लाह की तरफ़ से सवाब मिलेगा। पिछली सरकार के ज़िम्मेदारों, रेडियो टीवी की संस्था, और उन सभी ओहदेदारों को सवाब मिलेगा जिन्होंने उस कड़वी दुर्घटना के बाद मुल्क को ताज़ा दम होकर चुनाव में दाख़िल होने, राष्ट्रपति चुनाव की सुरक्षा व पारदर्शिता को सुनिश्चित करने और उसके बाद मंत्रियों के चयन में किसी न किसी तरह से भूमिका निभाई है। सच में उन सब का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए। ख़ुदा का भी बहुत शुक्र अदा किया जाना चाहिए। यहाँ मैं कुछ बातें कहता हूँ, और बाद में यह शुक्रिया अदा करता हूं।
राष्ट्रपति ने भी अपने साथ काम करने वाले मंत्रियों के चयन में बहुत मेहनत की, मुझ से भी सलाह ली और मैंने जिन लोगों को मैं जानता था और जिनकी योग्यताओं के बारे में भरोसेमंद सूत्रों से मुझे पता था, पुष्टि कर दी, कुछ लोगों के लिए ताकीद की, ज़्यादा तर लोगों को मैं नहीं जानता था, तो मैंने कह दिया कि उन लोगों के बारे में मेरी कोई राय नहीं है। बहरहाल ख़ुदा के शुक्र से जनाब अपने मंत्रियों को चुनने और संसद को संतुष्ट करने में सफल रहे, बड़ी कामयाबी थी और हम अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं।
आज आप सब मंत्री मुल्क के बड़े ओहदेदार हैं जिन पर राष्ट्रपति ने अपना भरोसा जताया है तो हम सब की यह ज़िम्मेदारी है कि हम आप का समर्थन करें, आप की मदद करें अगर मदद की ज़रूरत हो तो, और हम यह कोशिश करें कि आप लोग अपने काम में कामयाब रहें।
मैंने कुछ बातें नोट की हैं यहाँ बयान करने के लिए। सब से पहली बात, ख़ुदा का शुक्र है। आप लोग उस पोज़ीशन में हैं जिसमें आप मुल्क की तरक़्क़ी में, मुल्क को चलाने में असरदार हो सकते हैं, मंत्रालय ने आप को यह अवसर दिया है। यह अल्लाह की नेमत है, अगर इंसान अवाम की ख़िदमत कर पाए तो यह बहुत बड़ी नेमत है। बहुत से लोग सेवा करना चाहते हैं लेकिन उन्हें इसका मौक़ा ही नहीं मिलता। अल्लाह ने आप को यह मौक़ा दिया है, ख़ुदा का शुक्र अदा करें। इस ओहदे को अल्लाह की अमानत, जनता की अमानत समझें और इस बड़ी ज़िम्मेदारी और अहम ओहदे का ख़याल रखें। यक़ीनी तौर पर यह 4 बरस इंसान की उम्र का हिस्सा हैं और बिजली की तरह गुज़र जाएंगे। मैं आज 85 साल की उम्र में जब अपने पीछे देखता हूँ तो मुझे लगता है कि यह 85 बरस बिजली की तेज़ी के साथ गुज़र गये। यह होता है, 4 साल बहुत जल्दी गुज़र जाते हैं लेकिन इसी जल्दी से गुज़र जाने वाले समय में बड़े बड़े काम किये जा सकते हैं। अमीर कबीर ने 3 बरस मुल्क में सरकार चलायी, बड़े बड़े कामों की बुनियाद रख दी। ख़ुद हमारे प्यारे राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने 3 बरस सत्ता संभाली और राष्ट्रपति रहे, उन्होंने भी अच्छे काम किये और बहुत से कामों की बुनियाद रखी कि इन्शाअल्लाह उसका फल भविष्य में देश को मिलेगा। इस बुनियाद पर आप काम कर सकते हैं, इन 4 बरसों में, अच्छी तरह से पार्दर्शिता के साथ आप बड़े बड़े काम कर सकते हैं।
दूसरी बात यह है कि सरकार चलाने वालों के लिए एक शर्त यह है कि उन्हें अपने पास मौजूद चीज़ों के बारे में मालूमात हो, अपनी पूंजी को जानते हों, इस्तेमाल के लायक़ योग्यताओं और गुंजाइशों को पहचानते हों। मैंने इतने बरसों में बहुत से ओहदेदारों को देखा है जिन्हें योग्यताओं का पता ही नहीं था, देश के श्रम बल को बारे में उन्हें मालूम ही नहीं था, देश के प्राकृतिक संसाधनों को बारे में कुछ पता नहीं था। एक बार एक ओहदेदार ने मुझ से कहा था कि हमें राजमार्ग बनाने के लिए विदेशी इंजीनियरों की ज़रूरत है! आज आप के युवाओं के हाथों, पूरे देश में जगह जगह राजमार्ग और सड़कें बनायी गयी हैं और हमें विदेशियों की ज़रूरत नहीं पड़ी, इस तरह की पहचान न होना बहुत बड़ी बुराई है। इस तरह की और भी मिसालों मेरे दिमाग़ में हैं लेकिन उन सब के ज़िक्र की ज़रूरत नहीं है।
अपने पास जो कुछ है उसे पहचानें, हमारे पास इस वक़्त भी बहुत पूंजी है, लेकिन जो कुछ है उससे कहीं ज़्यादा होने की गुंजाइश है। हमारे पास कई तरह के संसाधन हैं, यानि एक वह जो इस समय है और एक वह जो हम पैदा कर सकते हैं। कुछ प्राकृतिक संसाधन भी हैं। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन की बहुत बड़ी दौलत है, तेल है, गैस है, तरह तरह के खनिज पदार्थ हैं। यही जो रेगिस्तान आप देखते हैं, जो रेगिस्तानों के एक्सपर्ट हैं उन्होंने एक बार मुझ से कहा था कि इसमें बहुत बड़े भंडार हैं, वह दौलत है जिसकी क़ीमत, तेल और गैस से भी ज़्यादा है। हमारे पास यह सब है। इस इलाक़े में हमारी भौगोलिक स्थिति बेहद ख़ास है। हम भौगोलिक स्थिति के हिसाब से, पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण के चौराहे पर हैं, यह बहुत अहम पोज़ीशन है। मौसम के लिहाज़ से, अलग अलग मौसम हमारे लिए बहुत अहम अवसर है जो हमारे पास हैं। अंतरराष्ट्रीय समुद्र से जोड़ने वाले लंबे तट, हमारे पास यह भी है, हमारे द्वीप, हमारे तट, सब अवसर हैं। यही मकरान का इलाक़ा, एक बड़ा अवसर है और ख़ुशक़िस्मती से राष्ट्रपति जी जब इस बारे में मुझ से बात कर रहे थे तो उन्होंने कई बार इस इलाक़े का नाम लिया और उन्हें इस का एहसास है। इस तरह के हमारे पास बहुत से अवसर हैं। यह सब प्राकृतिक संसाधन और अवसर हैं।
कुछ अवसर, श्रमबल और लोगों की योग्यताओं से संबंधित होते हैं। पढ़े लिखे नौजवान, हमारे मुल्क में दसियों लाख पढ़े लिखे नौजवान हैं कि जो काम के प्यासे हैं, अगर हम इन लोगों से लाभ उठा सकें, इन लोगों को पहचान सकें, उनसे, उनकी योग्यताओं, उनकी सोच से अगर हम फ़ायदा उठा सकें तो हमारे मुल्क में बहुत ज़्यादा रोज़गार पैदा होगा। हमारे पढ़े लिखे नौजवान, ज़बरदस्त योग्यता वाले नौजवान, वैज्ञानिक योग्यताएं, अद्भुत योग्यता वाले नौजवान पैदा करने की ताक़त है। ग़ौर करें, जब हम मिसाल के तौर पर ख़्वाजा नसीर या इब्ने सीना या फिर मुहम्मद बिन ज़करिया राज़ी या मुल्ला सदरा और इसी तरह के दूसरे बड़े बड़े विद्वानों को देखते हैं कि जो हमारे दौर तक हमारे देश में गुज़रे हैं तो इससे हमें पता चलता है कि हमारे ज्ञान-विज्ञान की उड़ान बहुत ऊंची है और हम बहुत ऊपर तक पहुंच सकते हैं। एक हज़ार साल बाद आज भी इब्ने सीना की किताब का दुनिया में नाम है, यह बहुत अहम बात है, यह बहुत अहम चीज़ है। हमारे अंदर अद्भुत योग्यता वाले बुद्धिजीवी पैदा करने की ताक़त है, यानि हमारे नौजवानों में गैर मामूली सलाहियत विद्वान बनने की ताक़त है। यह हमारे पास श्रम के लिहाज़ से पूंजी है, यह हमारे लिए श्रम के मैदान में मौजूद अवसर हैं।
हमारे देश की जनता का ईमान भी अवसर है, यह जो ईमान है जनता में, दीनी ईमान, राजनीतिक ईमान, यह बहुत क़ीमती है, यह भी एक तरह की गुंजाइश है। इसी तरह की एक गुंजाइश, देश की राजनीतिक क्षमता और हमारी रणनीति है। एक ज़माना था कि जब ईरान को लोग क़ालीन और तेल से पहचानते थे, आज दुनिया, ईरान को विज्ञान व तकनीक से पहचानती है, सैन्य उपकरणों के लिए पहचानती है, क्षेत्रीय ताक़त के रूप में जानती है, स्ट्रैटैजिक डेप्थ की वजह से पहचानती है, यह एक अवसर है जो हमारे पास है। दुनिया के दूसरे मुल्कों पर असर डालने की ताक़त, इलाक़े पर असर डालने की क्षमता यह कोई मामूली चीज़ नहीं है, बहुत अहम चीज़ है, यह भी हमारे पास मौजूद अवसरों में से एक है।
एक और अवसर जो बेहद क़ीमती भी है, अनुभव है, हमें अपने तजुर्बों की क़द्र करना चाहिए। “अक़्ल, तजुर्बों को संभाल कर रखना है”। यह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है। अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम, तजुर्बों से फ़ायदा उठाने और उन्हें सुरक्षित रखने को अक़्लमंद होने की निशानी कहते हैं। “और तुम्हारे तजुर्बों में से सब से अच्छा वह है जिससे तुम्हें सीख मिले”(3) वह अनुभव सब से अच्छा है जो आप को कुछ सिखा सके और आप को रास्ता दिखा सके। हमारे पास बहुत अच्छे तजुर्बे हैं, बहुत सी सरकारें आयीं और उन्होंने काम किये हैं जो हमारे लिए तजुर्बा हैं। कुछ काम था जो नहीं करना चाहिए था मगर किया गया, नुक़सान हुआ, कुछ काम वो थे जो करने थे मगर नहीं किये गये, हमें नुक़सान हुआ, कुछ काम थे जो करना चाहिए था और किये गये तो उसका हमें फ़ायदा हुआ, यह भी अनुभव है, इन से फ़ायदा उठाया जा सकता है।
अगली बात, साथी का चयन है। आप बहरहाल अपने साथ काम करने वालों का चयन करते हैं, मेरी सिफ़ारिश यह है कि उन साथियों को चुनें जिनमें यह ख़ूबियां हों जैसेः नौजवान, मोमिन, इन्क़ेलाबी, प्रतिबद्ध, जोश व जज़्बे वाले, यह लोग हैं जो आप की मदद कर सकते हैं। हम ने रिसर्च और साइंस के विभिन्न मैदानों में, जैसे एटमी मैदान में, नेनो और स्टम सेल्स जैसे विभिन्न मैदानों में जो दुनिया के अहम और बड़े रिसर्च के विषय रहे हैं, इन्ही नौजवानों को इस्तेमाल किया, आगे बढ़े और बड़ी बड़ी तरक़्क़ी हासिल की, ख़ुदा के शुक्र से। यह उनकी ख़ूबी है। इन नौजवानों को इस्तेमाल करें, क्योंकि यह समस्याओं का समाधान ले आते हैं। इसी के साथ जब आप नौजवानों को ले आते हैं तो इसका मतलब यह है कि मैनेजमेंट को एक नस्ल नीचे ले जाते हैं, आप कल के लिए जोश से भरे युवा ओहदेदारों को ट्रेनिंग दे रहे होते हैं, यानी जब आप अपने विभाग में नौजवानों को ले आएंगे तो उन्हें तजुर्बा हासिल होगा और कल के लिए इस तरह से आप ने बेहतरीन ओहदेदारों की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर दी होगी जो मेरी नज़र में काफ़ी अहम है। हम जब राष्ट्रपति साहब से बात कर रहे थे तो इस पर बात हुई। अब अगर मिसाल के तौर पर यह 100 इन्क़ेलाबी और काम के पाबंद नौजवानों को ट्रेंड कर ले गये और अपनी सरकार के अंत में इस तरह के ट्रेंड ओहदेदारों की एक पीढ़ी देश को दे सके तो मेरी नज़र में यह बहुत बड़ा काम होगा। इस बुनियाद पर यह भी एक मुद्दा है कि अपने विभाग के लिए किसे चुनते हैं। मरहूम सैयद इब्राहीम रईसी को इस मैदान में काफ़ी कामयाबी मिली थी, इन्शाअल्लाह आप उनसे कई गुना ज़्यादा कामयाब होंगे।
चौथी बात विशेषज्ञों के बारे में है। डॉक्टर पेज़ेश्कियान के चुनावी अभियान में और जो वह बयान दे रहे थे उन सब में विशेषज्ञों की राय की बात बार बार कही गयी। मैं भी एक्सपर्ट से राय लेने में बहुत यक़ीन रखता हूँ, मेरा मानना है कि सरकार जब एक्सपर्ट की राय के साथ काम करती हैं तो उसका शासन अक़्ल और सूझबूझ के साथ आगे बढ़ता है। दिखावे, यारी दोस्ती और भाई भतीजावाद की सरकार नहीं होती। एक्स्पर्ट्स की राय से किये जाने वाले काम की ख़ूबी यह होती है कि कभी कभी आप अपने कुछ यार दोस्तों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एक्स्पर्ट्स की राय पर भरोसा करके कोई काम करते हैं तो इससे प्रभाव रखने वाले दोस्त नाराज़ हो जाते हैं लेकिन जनता ख़ुश होती है, देश आगे बढ़ता है, एक्स्पर्टस की राय से किया जाने वाला काम इस तरह का होता है। मैं समर्थन करता हूँ और एक्स्पर्ट्स की राय से काम किये जाने पर ज़ोर देता हूँ, बस यहाँ पर एक बात है जो एक्सपर्ट्स के चयन की हैः कभी कभी, किसी मौक़े पर, एक एक्सपर्ट के दिमाग की ग़लत तलछट, एक्सपर्ट की भाषा की पोशाक में सामने आती है, एक्सपर्ट की राय के रूप में पेश कर दी जाती है, उस वक़्त समस्या पैदा हो जाती है और एक्सपर्ट के दिमाग़ में उपजी वह ग़लत राय और उसकी ख़ास आदत की वजह से पैदा होने वाली सोच आप पर थोप दी जाती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में सिफ़ारिश करते हैं कि सलाह मशवेरा कंजूस से न लो, ... बुज़दिल से न लो”। क्या मतलब है इसका? इसका यह मतलब है कि एक्सपर्ट कंजूस न हो, क्यों? क्योंकि अगर तुम किसी की मदद करना चाहोगे तो यह कंजूस उसका रास्ता बंद कर देगा और कहेगा कि इससे आप की जेब ख़ाली हो जाएगी। बुज़दिल से मशवेरा न करो, बुज़दिल से मशविरा न लो क्योंकि जब भी कोई बड़ा काम करना चाहोगे, जब बड़ा और अच्छा क़दम उठाना चाहोगे तो वह तुम्हें डराएगा कि अगर यह कर लिया तो यह हो जाएगा वह हो जाएगा। “ न ही लालची से” (4) लालची से मशवेरा न लो यानी उसे एक्सपर्ट न बनाओ, क्योंकि लालची आदमी, अपनी लालच में तुम को भी घसीट लेगा। अब यह सब मिसालें हैं, यानी एक्सपर्ट की आदतें और उसका स्वभाव, कि जिससे हम मशविरा ले रहे हैं वह उसके मशविरे पर असर डाल सकता है और हमें नुक़सान हो सकता है। इस लिए हमें ख़्याल रखना होगा कि हम उस एक्सपर्ट से लाभ उठाएं जो सच्चा हो, मुल्क की भीतरी और राष्ट्रीय पूंजी के बारे में जानता हो, राष्ट्रीय पूंजी का ज्ञान रखता हो। हम उन एक्सपर्ट्स से मशविरा न लें जो विदेशियों द्वारा बताए गये समाधान के चक्कर में पड़े रहते हैं। कभी यह होता है कि किसी दूसरे मुल्क में कोई आर्थिक या सामाजिक या फिर राजनीतिक समाधान 50 साल, 70 साल पहले पेश किया था, फिर उसे हटा दिया गया अब हम उसे ही यहाँ लाकर लागू करना चाहें तो क्या होगा?! हमें ख़्याल रखना होगा कि एक्सपर्ट्स इस तरह के न हों, वर्ना एक्सपर्ट्स से राय लेने की जहां तक बात है तो वह बहुत ज़रूरी है।
अगली बात, जनता के बीच उपस्थिति के बारे में है। अब अगर आप प्रांतों की यात्रा करें और आप को पॉपुलिस्ट कहें या लोकलुभावनवादी का नाम दें तो इन सब बातों पर ध्यान न दें। जनता के जीवन में क्या हो रहा है इसका पता फ़ाइलों और अफ़सरों की रिपोर्टों से नहीं चलता, जाकर देखना होगा और ख़ुद जनता की ज़बान से सुनना होगा। जब इंसान जाकर ख़ुद सुनता है, तो पता चलता है कि हमें जो रिपोर्ट दी गयी थी वह बहुत अलग थी। मैं यह नहीं कहना चाहता कि सारी रिपोर्टें ग़लत होती हैं, उल्टी होती हैं, नहीं, अच्छी रिपोर्टें भी होती हैं, लेकिन बात यह है कि रिपोर्ट से सच्चाई का पता नहीं चलता। अभी जब हम यहाँ आ रहे थे तो मैंने अरबईन मार्च के बारे में एक साहब से पूछा जो अभी वापस आए थे वहाँ से तो मैंने पूछा कि कैसा रहा, अच्छा था, तो उन्होंने कहा कि अगर सभी उलमा, सारे शोअरा, सारे बुद्धिजीवी जमा हो जाएं तब भी जो कुछ वहाँ हो रहा है उसका हज़ारवां हिस्सा भी नहीं बयान कर पाएंगे! यह बात एक आदमी ने अभी कुछ देर पहले मुझ से कही है, यानी देखना, यह कि इंसान ख़ुद क़रीब से देखे तो उसकी बात ही अलग होती है। जनता के बीच में जाएं, जाकर जनता से क़रीब हो जाएं, बात करें उनसे। कभी कभी किसी ज़िले में, किसी गांव में अगर ज़रूरत है तो लोगों के घरों में जाएं, भूकंप या बाढ़ वाले इलाक़ों में, लोगों के टैंटों में जाएं, जाकर देखें, उनकी बातें सुनें, और फिर उन की बातों की बुनियाद पर फ़ैसला करें। इस बुनियाद पर जनता के बीच जाना बहुत अच्छा है, प्रांतीय यात्राएं बहुत अच्छी चीज़ हैं और इन्शाअल्लाह आप सब को अल्लाह कामयाबी देगा।
एक और बात न्याय के बारे में है। जी “न्याय” हम सब की बातों में बार बार दोहराया जाता है। डॉक्टर पेज़ेश्कियान ने भी चुनाव में और चुनावी अभियान के दौरान, उसके बाद भी और आज हमारी इस बैठक में भी, न्याय और न्याय के महत्व पर बात की है। यही है भी, यानी मैं यहाँ न्याय के ज़रूरी होने पर चर्चा नहीं करना चाहता, यह तो हमारी व्यवस्था और इस्लामी व्यवस्था व इन्क़ेलाब की बिल्कुल सामने की चीज़ है, बात इसकी नहीं है। बात यह है कि हम न्याय को कैसे लागू करें? रास्ता क्या है? तो हम सब यही चाहते हैं कि न्याय लागू हो, निरंतर इस बारे में क़ानून, उसूल, नियम और कार्यक्रम वग़ैरा बनाए और मंज़ूर किये जाते हैं, बातें होती हैं, काम होता है, तो इनका न्याय से क्या संबंध है? इस से वह न्याय जो हमें पसंद है और जिसकी हम हमेशा बातें करते हैं कितना व्यवहारिक हो सकता है? आज से कई बरस पहले मैंने“ न्याय के अटैचमेंट्स”की बात की थी (5) मैंने कहा था कि आप एक क़ानून बनाते हैं, जो भी फ़ैसला करना हो करें, अहम फ़ैसला, अहम क़ानून, लेकिन उसके लिए एक न्याय के अटैचमेंट्स भी बनाएं। मरहूम सैयद इब्राहीम रईसी ने इस मामले में थोड़ा आगे क़दम बढ़ाया था, कुछ काम भी किये थे, लेकिन काम अधूरा रह गया। अब मैं आप से यह सिफ़ारिश करना चाहता हूँ कि न्याय के अटैचमेंट्स ज़रूरी हैं। न्याय के अटैचमेंट्स कोई विभागीय काम या फ़ारमैलिटी का फ़ार्म नहीं बल्कि एक ठोस सच्चाई है यानी मिसाल के तौर पर प्लानिंग विभाग जैसी संस्थाएं, जो प्लानिंग करती हैं, फ़ैसले करती हैं, फ़ैसले करवाती हैं, क़ानून तैयार करती हैं, सरकार के क़ानून के बिल को वह लिखती हैं, वही तैयार करती हैं, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए, अब ख़ुद वे रखें या फिर वे लोग जिन्हें राष्ट्रपति ने यह ज़िम्मेदारी सौंपी है, वे देखें कि इस क़ानून का सामाजिक विषमता कम करने में कितना असर है, विभिन्न वर्गों में दूरी कम होती है या ज़्यादा, इस पर ध्यान दें, असर होता है या नहीं होता, अगर उन्हें यह नज़र आये कि इस योजना से समाज के विभिन्न वर्गों में दूरी बढ़ जाएगी तो योजना को ख़त्म कर दें, या उस हिस्सा को ख़त्म कर दें जिसका असर पड़ रहा हो। “न्याय के अटैचमेंट्स”का यह मतलब होता है। यह नहीं कि हम जो क़ानून बनाएं उसके साथ ही काग़ज़ पर कुछ लिख कर एक नोट लगा दें जिनमें कुछ शर्तें हों! नहीं, ख़ुद क़ानून में वह चीज़ हो, यह आसान काम नहीं है, कठिन काम है, मुश्किल काम है। वैसे मुझे पता चला है कि युनिवर्सिटी के कुछ क़ाबिल स्टूडेंट्स ने एक साफ़्टवेयर इसी काम के लिए बनाया है। अब अगर आप लोग चाहें तो उनसे बात कर सकते हैं और अगर वह आप के काम का हुआ तो उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। बहरहाल न्याय का मुद्दा, वह मुद्दा है जो ज़बान से, गुज़ारिश करने से, दोहराने से और धमकी वगैरा से व्यवहारिक नहीं होगा। न्याय को लागू किया जाना चाहिए, जज़्बा चाहिए, मैदान में उतरना पड़ेगा उसके लिए। सौभाग्य से जज़्बा है, मैं देख रहा हूँ कि जनाब (6) इस काम का जज़्बा रखते हैं। अच्छी बात है तो अब उसका रास्ता तलाश करें और यह देखें कि किस तरह से न्याय लागू कर सकते हैं। कुछ इस तरह का इंतेज़ाम हो कि कोई भी ओहदेदार, कोई भी अधिकारी न्याय की राह से हट न पाए।
एक और बात प्राथमिकताओं पर ध्यान है। हमारे पास समय कम है, पैसा कम है, काम बहुत है, तो देखें कि प्राथमिकताएं क्या हैं? प्राथमिकताएं दो तरह की होती हैं, एक बुनियादी ढांचे की प्राथमिकताएं होती हैं, दूसरी तत्कालिक कामों की प्राथमिकता। कुछ प्राथमिकताएं तत्कालिक कामों से संबंधित होती हैं, उन्हें समाज के अंदर किसी न किसी तरह से हल किया जाना चाहिए, महंगाई का मामला, इन्फ़्लेशन वग़ैरा का मामला। कुछ चीज़ें, बुनियादी ढांचे से संबंधित होती हैं, अगर आज वह काम नहीं किया तो 10 साल बाद नये सिरे से शुरु करना होगा। यह जो एटमी एनर्जी के बारे में कुछ लोगों को शक है कि उसका क्या फ़ायदा है तो उनका ध्यान इस सच्चाई की तरफ़ नहीं है। ज़ाहिर सी बात है कि ईरान क्यों दुनिया की एक माडर्न तकनीक से ख़ुद को वंचित कर ले, अगर आज शुरु नहीं किया तो 10 बरस बाद यह काम करना ही होगा लेकिन उस वक़्त आप बहुत पिछड़ चुके होंगे। मिसाल के तौर पर मैंने ज़िक्र किया है कि ईरान की भौगोलिक स्थिति कैसी है, अब सरकार के पास “उत्तर दक्षिण” और “पूरब पश्चिम “ कारीडोर की योजनाएं हैं। ज़ाहिर है उत्तर दक्षिण कोरीडोर की योजना ज़्यादा अहम है, यह बहुत अहम है। हमारे देश का उत्तरी हिस्सा, कई देशों से जुड़ा है कि जो युरोप और दूसरे इलाक़ों से मिलते हैं, हमारा दक्षिण भी, समुद्र है और हिंद महासागर है जिसके साथ ही महान एशिया है। हम यहाँ बीच में हैं, यह एक बुनियादी ढांचे की प्राथमिकता है, इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, इस पर काम किया जाना चाहिए। हमारे पास इस तरह की इंफ़्रास्ट्रक्चर की प्राथमिकताएं हैं।
फ़ूड सेक्युरिटी का मामला, महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। इसके लिए गेहूँ की पैदावार में आत्म निर्भरता बहुत अहम है, खेती के लिए पानी के इस्तेमाल का तरीक़ा भी बहुत अहम है। कुछ लोगों के पास नये तरीक़े हैं, मैंने सुना है कि कुछ लोगों ने जनाब पेज़ेश्कियान के पास जाकर उन तरीक़ों पर बात भी की है। हो सकता है शुरु में कुछ कठिनाई हो, महंगा हो, लेकिन निश्चित रूप में उसमें भविष्य है, इन सब चीज़ों पर काम होना चाहि, यह सब बुनियादी ढांचे के काम हैं, हमारी प्राथमिकताएं यह हैं।
इसी तरह तेल के उद्योग में विकास है। बड़े उद्योग में भी जैसे तेल के कुएं वग़ैरा के लिए जो आज कल दुनिया में तेल निकालने के नये नये तरीक़े इस्तेमाल किये जा रहे हैं और हम इस मामले में पीछे हैं, तो हमें जितना हो सके इस तरह की तकनीक और तरीक़ों को इस्तेमाल करना चाहिए, या फिर निचले उद्योग के मामले में जैसे रिफ़ायनरी, जैसे कोई चीज़ बनाना वग़ैरा। आज तेल के मैदान में हमारा अंतिम उत्पादन मिसाल के तौर पर पेट्रोल या डीज़ल है जबकि अस्ल में अंतिम उत्पाद यह नहीं है, कहा जाता है कि बहुत सी दूसरी चीज़ें हैं जो इससे बनायी जाती हैंए हमें वहाँ तक पहुंचना चाहिए। यह सब प्राथमिकताएं हैं जिन पर अल्लाह ने चाहा तो आप लोग ध्यान देंगे ।
दूसरी एक चीज़ जो मैंने लिखी है जो आठवीं बात होगी, साइबर स्पेस के बारे में है। साइबर स्पेस, एक नयी दुनिया है, आप लोगों को इस बारे में मुझ से ज़्यादा मालूमात होगी यानी साइबर स्पेस अब वर्चुअल नहीं, बल्कि एक ठोस सच्चाई है जो इन्सानों की ज़िदंगी के साथ क़दम बढ़ा रहा है। जो चीज़ अहम है वह यह है कि साइबर स्पेस में, क़ानून का प्रभुत्व हो, यह जो मैं कभी कभी कहता हूँ कि साइबर स्पेस को यूं ही छोड़ दिया गया है! उसकी वजह यही है। क़ानून के आधार पर पकड़ हो उस पर, अगर क़ानून नहीं है तो क़ानून बनाएं और उस क़ानून के आधार पर चीज़ों को अपने कंट्रोल में लें। पूरी दुनिया में यह काम किया जा रहा है, आप देख ही रहे हैं, उस बेचारे नौजवान को, फ्रांसिसियों ने गिरफ़्तार कर लिया! (7) यानी वह इस हद तक और इतनी सख़्ती करते हैं कि एक इंसान को पकड़ कर जेल में डाल देते हैं और धमकी देते हैं कि 20 बरस की जेल की सज़ा देंगे, यह इस लिए है कि उसने उनके कंट्रोल का उल्लंघन किया। सरकार के कंट्रोल का उल्लंघन स्वीकारीय नहीं है, आप के हाथ में एक देश है जिसके बारे में आप पर कुछ ज़िम्मेदारियां हैं, उसके लिए कुछ मिशन हैं आप पर, आपकी सत्ता और कंट्रोल का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, किसी को करना भी नहीं चाहिए। सत्ता के कंट्रोल का यह मतलब है। मैंने इस साइबर स्पेस के बारे में अपनी बात और अपना उसूल बयान कर दिया, पहले भी कहा है, कुछ लोग दूसरा अर्थ निकालते या समझते हैं या समझना नहीं चाहते, लेकिन मेरी बात यह हैः मुल्क में साइबर स्पेस को क़ानून के तहत लाया जाना चाहिए, उस स्थिति में यह एक अवसर होगा। अगर हम साइबर स्पेस में क़ानून लागू कर सके तो हमारे मुल्क के लिए साइबर स्पेस एक मौक़ा होगा वर्ना हो सकता है कि यह एक ख़तरा बन जाए।
इसी सिलसिले में मैं आर्टिफिशल इंटिलिजेंस की बात भी कर देता हूँ कि जिसका मैंने पहले की बैठक में भी ज़िक्र किया था।(8) देखें, आज के दौर में एआई हैरत अंगेज़ तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही है यानी यह अजीब तकनीक कितनी तेज़ी के साथ बढ़ रही है आगे, इंसान को हैरत होती है। जी तो आज हमारे देश के विभिन्न विभाग, सैन्य व असैन्य, एआई को इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे फ़ाया उठा रहे हैं लेकिन हमें इससे धोखा नहीं खाना चाहिए। एआई के मामले में, इस्तेमाल करना कोई ख़ूबी नहीं है, इस तकनीक के गहरी परतें हैं कि जिनका ज्ञान होना चाहिए लेकिन वह दूसरों के हाथों में है। अगर आप एआई तकनीक की गहरी तहों तक और पर्तों पर नहीं पहुंच सके तो कल को यह लोग एटमी एनर्जी एजेन्सी की तरह एक स्टेज निर्धारित कर देंगे जिसकी तैयारी शुरु हो चुकी है, तो फिर अगर आप उस स्टेज तक पहुंच गये तो उनसे यह परमिशन लेना होगी कि अमुक विभाग में आप एआई इस्तेमाल कर सकते हैं, वह बताएंगे कि अमुक विभाग में आप एआई का इस्तेमाल नहीं कर सकते, यह होगा, दुनिया के चालाक लोग, अवसरवादी लोग, ताक़त के पुजारी इस तरह के कामों में लगे हैं। एआई की एक एजेन्सी भी बन जाएगी, फिर वह आप को एक ख़ास स्टेज से आगे बढ़ने की इजाज़त नहीं देंगे। आप को ख़ुद इस तकनीक की गहराइयों तक पहुंचना होगा, हमारे मुल्क में एआई का बुनियादी ढांचा बनाया जाना चाहिए, इस पर काम करें। यक़ीनी तौर पर पिछली सरकार में एक विभाग बनाया गया जिसका नाम था “नेशनल आर्टिफिशल इंटलिजेंस आर्गनाइज़ेशन” यह विभाग राष्ट्रपति की निगरानी में काम करता था, यह बड़ा अच्छा काम था लेकिन ज़ाहिर है अब अधूरा रह गया है। अब अगर यही विभाग ख़ुद राष्ट्रपति की निगरानी में काम जारी कर सके तो बहुत सी उम्मीद है कि जैसा कि हमने कहा यह काम आगे बढ़ सकता है। एक और बात अर्थ व्यवस्था के बारे में है। देखें इस बारे में मैं ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहता, लेकिन हमारे भरोसेमंद अर्थ शास्त्री इस बारे में जो हम से कहते हैं वह यह है कि देश की अर्थ व्यवस्था की समस्याओं की कुंजी पैदावार में है, सप्लाई साइड इकोनॉमी में है। अगर हम उत्पादन में आगे बढ़ सके, तो महंगाई का मामला हल हो जाएगा, रोज़गार की समस्या का समाधान हो जाएगा, देश की करेंसी का मामला हल हो जाएगा। पैदावार के मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारा देश राष्ट्रीय पैदावार के क्षेत्र में तरक़्क़ी करे तो इसके लिए सरकार की मदद ज़रूरी है, सरकार की मदद के बिना यह काम नहीं हो सकता। यही जो व्यापार के हालात में बेहतरी वग़ैरा की जो बातें की जाती हैं उन सब को व्यवहारिक बनाया जाना चाहिए। कुछ महीने पहले की बात है कि यही कारख़ानों के मालिक हमारे पास मुलाक़ात के लिए आए थे और कुछ बातें कही थीं उन्होंने। (9) इंसान जब इन लोगों की बातें सुनता है, हमारे इन कारख़ानों के मालिकों की योग्यताएं देखता है तो सच में हैरत में पड़ जाता है। यह लोग बहुत अच्छे काम कर सकते हैं, कभी तो यह लोग वह काम भी कर लेते हैं जो दिखने में असंभव लग रहा होता है, फ़ायदा भी हुआ उन्हें, लाभ भी उठाया उन्होंने, देश को भी फ़ायदा पहुंचाया, यह सब लोग बार बार यही कहते हैं कि उन्हें सरकार से मदद की ज़रूरत है, इस लिए सरकार को चाहिए कि इन लोगों की मदद करे।
एक और अहम बात आबादी और समय से पहले बुढ़ापे का है जो बहुत अहम है। 40 बरस पहले आबादी में वृद्धि की दर 3.5 फ़ीसद थी जो काफ़ी बड़ी दर है। तो कुछ लोग बौखला गये और कुछ क़ानून बनाए और कुछ पाबंदियों लगायीं। अब आबादी में वृद्धि की हमारी जो दर थी वह 3.5 फ़ीसद तो बहुत दूर, वैसे मुझे सही पता नहीं है, यानी नये आंकड़े नहीं हैं मेरे पास, लेकिन यही कोई आधा फ़ीसद या ज़्यादा से ज़्यादा एक फ़ीसद दर है आबादी में वृद्धि की। तो क्या हम आज भी वही पुराने क़ानून लागू करेंगे! यह तो नहीं हो सकता। नियमों में लचक होनी चाहिए। कभी आबादी बिना किसी नियम के ऐसे ही बढ़ती जा रही है तो उसे रोकें, अच्छी बात है, लेकिन कभी आबादी रुक जाती है या कम होने लगती है, देश बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगता है तो यहाँ पर फ़ौरन नियमों में देश की ज़रूरत के हिसाब से बदलाव लाया जाना चाहिए। मैं सम्मानीय स्वास्थ्य मंत्री जनाब ज़फ़रक़न्दी से गंभीरता के साथ यह चाहता हूँ कि वह इस विषय पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दें, पैरवी करें इस विषय की। यानी सच में आप इस मुद्दे पर ध्यान दें और यह जन्म दर में वृद्धि की रुकावटों को जो अफ़सोस बहुत ज़्यादा हैं, बाक़ी न रहने दें और इस विषय पर पूरी तरह से क़ाबू पाएं। आप ने अपनी जवानी के दौर में बहुत से ऐसे काम किये होंगे जो आज हो सकता है उस तरह का काम न कर पाएं। हमारे मुल्क में हमें नौजवानों की ज़रूरत है। अगर अल्लाह न करे हमारा मुल्क इस भयानक व कड़वे अंजाम को पहुंच गया यानी बूढ़ी आबादी तो फिर उसका कोई इलाज नहीं है, आज बहुत से देश इस में ग्रस्त हैं। यह तो आबादी का मामला है।
एक और बात रुकावटों से न डरना है। मैं आप सब से यह कहना चाहता हूँ कि बिना रुकावट के कोई काम नहीं होता, आप कोई ऐसी योजना नहीं तलाश कर सकते जिसकी राह में कोई बाधा न हो, हमेशा कुछ बाधाएं रहती हैं। कुछ लोगों के सामने जब रुकावट आ जाती है तो उनका सब से पहला विकल्प पीछे हटना होता है, यह ग़लत है। बाधा को पार करने की कोशिश करें, कोशिश करें, बाधा से घूम पर निकल जाएं। जब यह सब कुछ कर लिया, कभी इंसान रणनीति के हिसाब से पीछे हटता है, कोई बात नहीं, लेकिन ऐसा न हो कि हमारे सामने जैसे ही कोई बाधा आए फ़ौरन, अपनी बातों, अपनी राय और अपनी योजना को छोड़ दें। बाधाओं से न डरें, यह भी मेरी एक सिफ़ारिश है।
दुश्मन से उम्मीद न लगाएं, जनाब ने (10) भी ज़िक्र किया, कल परसों शायद विदेश मंत्री जी ने (11) भी एक इशारा किया था। हमें दुश्मन से उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, अपनी योजनाओं के लिए दुश्मन और जो लोग हम से दुश्मनी करते हैं उनकी सहमति का इंतेज़ार न करें लेकिन यह चीज़ इस बात के विपरीत नहीं है कि इंसान उसी दुश्मन से किसी मामले में सहयोग करे, कोई समस्या नहीं, लेकिन दुश्मन से उम्मीद न लगाए, दुश्मन पर भरोसा न करे।
आख़िरी बात यह है कि इस ज़िम्मेदारी के दौरान, जितना हो सके अपने आध्यात्म में वृद्धि करें। मेरे प्यारो! हम सब को ईमान से भरे दिल की, अच्छे कर्मों की, क़ुरआने मजीद से ज़्यादा लगाव की, अल्लाह के सामने ज़्यादा गिड़गिड़ाने की सच में इन सब चीज़ों की बहुत ज़रूरत है। मैं जिस चीज़ की ख़ास तौर पर सिफ़ारिश करता हूँ वह दिल से नमाज़ पढ़ना है, नमाज़ उसके अव्वले वक़्त पर पढ़ना है, और जहां तक हो सके जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना है और अगर अपने आफ़िस में अपने मातहतों के साथ नमाज़ पढ़ सकें तो यह बहुत अच्छा है। आप बहुत से लोगों के लिए आयडियल हैं, सब से पहले तो अपने मातहतों के लिए और फिर जनता आप को देखती है, आप के व्यवहार को, आप के लिबास को, आप के चहरे को यह बहुत से लोगों के लिए आदर्श होता है इस पर ध्यान रखें। आप को कुछ ऐसे काम करने होते हैं, आप की कुछ पाबंदियां होती हैं जो एक साधारण हैसियत के इंसान के लिए ज़रूरी नहीं होतीं। मैं यह सिफ़ारिश आम जनता के लिए नहीं करता, लेकिन आप लोगों से यह सिफ़ारिश करता हूँ क्योंकि आप लोग आदर्श हैं, क्योंकि आप लोगों पर जनता की नज़र है, आप से जनता सीखती है, आप का व्यवहार हमारे देश में बहुत से लोगों का व्यवहार बन जाता है। अल्लाह से दुआ करें, उसके सामने गिड़गिड़ाएं कि वह आप की मदद करे। अगर आप यह कर सकें और यह तौफ़ीक़ आप को मिल जाए कि मुस्तहब नमाज़ भी पढ़ें, ख़ास तौर पर नमाज़े शब, और अगर सुबह जल्दी उठ सकें तो यह बहुत अच्छी चीज़ है, सुबह बहुत अच्छा वक़्त होता है, अल्लाह से अकेले में बात करने का, अल्लाह से दुआएं मांगने का। आप सब ने भी ख़िदमत के मैदान में क़दम रखा है, सेवा के मैदान में उतर गये हैं, अल्लाह के लिए काम करने की नीयत करें, नीयत करें कि अल्लाह के लिए काम करेंगे। इसके लिए भी हो सकता है कि कोई यह कहे कि “वह अमुक व्यक्ति दिखावा करता है” तो यह दरअस्ल शैतानी चाल है। बहुत से लोग होते हैं कि जब उनसे कुछ कहा जाए तो कहते हैं कि अगर मैं यह काम करुंगा तो सब कहेंगे कि मैं दिखावा करता हूँ और दिखावा करने वाला इंसान हूँ, तो कहनें दें! मेरी नज़र में इस तरह के शैतानी बहकावे में न आएं। आप अल्लाह के सामने प्रतिज्ञा करें, वादा करें, काम करें, इन्शाअल्लाह अल्लाह आप की इज़्ज़त रखेगा, आप को सम्मान देगा, आप को बड़ा बनाएगा और आप को सम्मानित करेगा।
अल्लाह आप सब को कामयाब करे। थोड़ी बड़ी तक़रीर हो गयी लेकिन इन्शाअल्लाह फ़ायदेमंद व असरदार होगी, अल्लाह करे हम सब इस देश के लिए, अपने देश की जनता के लिए और इस्लाम के लिए एक साथ मिल कर काम कर सकें।
वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू