रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 15 मई 2024 को तेहरान शहर और प्रांत के शहीदों पर सम्मेलन के आयोजकों से मुलाक़ात में अपने ख़ेताब में तेहरान की क़ुरबानियों का उल्लेख किया। (1)
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे के अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद और उनकी पाक नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी पर।
निश्चित तौर पर आज के दौर में जो बेहतरीन काम किए जा सकते हैं, उनमें से एक यही आपका काम है जिसके लिए आप आगे बढ़े हैं। इसका सांस्कृतिक पहलू भी है, राजनैतिक पहलू भी है, इसमें भविष्य पर नज़र भी है, मानवीय व नैतिक पहलू भी है और उन लोगों की क़द्रदानी भी है जिन्होंने अपनी जान क़ुर्बान कर दी ताकि हम आज यहाँ बैठकर बेफ़िक्र होकर एक दूसरे से बात कर सकें। इसलिए इस काम के अनेक पहलू हैं। आप सबका शुक्रिया, इंशाअल्लाह कामयाब रहें।
अलबत्ता पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान, तेहरान शहर के अलावा तेहरान प्रांत की इकाइयों के संघर्ष जगज़ाहिर है, यानी ये वो चीज़ें नहीं हैं जो उन लोगों से जो जंग और पाकीज़ा डिफ़ेंस के मसलों के बारे में जानकार हैं, छिपी रह जाएं लेकिन इन्हें बताया जाना चाहिए, लिखा जाना चाहिए, ठोस तरीक़े से पेश करना चाहिए, आर्ट की शक्ल में इन्हें दोहराया जाना चाहिए। तजुर्बे से यह बात साबित हो चुकी है कि अगर एक हक़ीक़त को, वह चाहे कितनी ही ज़ाहिर और नुमायां हो, दोहराया न जाए तो वह भुला दी जाएगी और जब भुला दी जाएगी तो दुश्मनों को यह मौक़ा मिल जाएगा कि इसका बिल्कुल मुख़ालिफ़ रूप या बदली हुयी शक्ल को बयान करें। इसलिए यह एक ज़रूरी काम है।
तेहरान ने, तेहरान शहर और तेहरान प्रांत ने, पाकीज़ा डिफ़ेंस के ज़माने में और पाकीज़ा डिफ़ेंस के बाद से लेकर आज तक सचमुच अहम किरदार अदा किया है। मिसाल के तौर पर सैयदुश्-शोहदा डिविजन ने कि जिसने जंग के ज़माने में बड़ी अज़ीम कोशिशें और नुमायां काम अंजाम दिए, उसके कमांडरों ने, चाहे ख़ुद डिविजन के कमांडर हों, चाहे उसकी बटालियनों के कमांडर हों, जिनमें से कुछ के नाम उन्होंने (2) लिए वाक़ई बड़े बड़े काम किए, मूल्यवान काम किए। ज़रूरी है कि उन्हें बयान किया जाए, उनका वर्णन किया जाए ताकि वो बाक़ी रहें। इस सिलसिले में हम और ज़्यादा काम कर सकते थे। बताया गया है कि दस्तावेज़ों को इकट्ठा किया गया है, उन दस्तावेज़ों से बेहतरीन तरीक़े से फ़ायदा उठाया जाना चाहिए। बैठकर देखना चाहिए कि इन हज़ारों दस्तावेज़ों को किस तरह, इतिहास और क्रांति की नज़र से सच बात बयान करने में उपयोग किया जा सकता है। कुछ टीमों को नियुक्त किया जाए कि वो इन पर काम करें, इनसे फ़ायदा उठाएं ताकि दस्तावेज़ यूं ही न रह जाएं। ये ख़ज़ाने की तरह हैं, कभी ख़ज़ाने को बाहर निकाला जाता है और कभी ख़ज़ाना ज़मीन के अंदर ही रह जाता है, वह ख़ज़ाना है लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं है। उस ख़ज़ाने को बाहर निकाला जाना चाहिए और उससे फ़ायदा उठाया जाना चाहिए।
यह काम जो आप लोग कर रहे हैं, इसकी एक बरकत यह है कि इस इलाक़े और क्षेत्र में, जिसके बयान की आपने कोशिश की है, यानी तेहरान प्रांत या तेहरान शहर में, इंक़ेलाब की ताक़त और क्रांति को प्रेरित करने वाले तत्वों के जारी रहने को चित्रित करता है। जब पाकीज़ा डिफ़ेंस शुरू हुआ तो बहुत से ऐसे तत्वों और क्षमताओं को, जिनके सामने आने के लिए कोई मंच नहीं था, मंच मिल गया। शायद अगर पाकीज़ा डिफ़ेंस न होता तो क्रांति की कामयाबी की स्थिति कुछ और होती। पाकीज़ा डिफ़ेंस की सलाहियतों, क्षमताओं, प्रेरक तत्वों और दिलों में मौजूद इश्क़ को सामने आने के लिए मैदान मिल गया। पाकीज़ा डिफ़ेंस के ख़त्म होने के बाद शायद कुछ लोग यह सोच रहे थे कि मामला ख़त्म हो गया लेकिन नहीं हुआ। इसकी दलील यह है कि आप पाकीज़ा डिफ़ेंस के अंत के क़रीब 35 साल बाद भी देख रहे हैं कि आपका जवान मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से कोशिश कर रहा है कि ख़ुद को ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ जंग के मैदान में या दाइश के ख़िलाफ़ जंग के मैदान में जो साम्राज्यवाद, अमरीका और दूसरों के पिट्ठू हैं, पहुंचाए और वह पहुंच जाता है, यह बात बहुत अहम है। या फ़र्ज़ कीजिए कि कुछ बरस पहले तेहरान में जो फ़ितना खड़ा किया गया था, कौन इन फ़ितनों के मुक़ाबले में खड़ा हुआ? वो जवान ही थे। उन जवानों ने न जंग देखी थी, न इमाम ख़ुमैनी को देखा था लेकिन मैदान में आए और उन सभी फ़ितनों को उन्होंने नाकाम बना दिया। दुश्मन ने इंक़ेलाब को उखाड़ फेंकने और मुल्क व क्रांति के सामने मुश्किलें खड़ी करने के लिए जितनी चालें सोच रखी थीं, उन्होंने उन सभी चालों को नाकाम बना दिया। सन 2009 का फ़ितना, उससे पहले, उसके बाद जो कुछ हुआ, किसने उन्हें, उन फ़ितनों को ख़ामोश किया? वो यही जवान थे। चाहे स्वयंसेवी बल की शक्ल में, आईआरजीसी की शक्ल में या पुलिस फ़ोर्स की शक्ल में, वो मुख़्तलिफ़ तरह से मैदान में आए और कोशिश की, काम किया। यह पाकीज़ा डिफ़ेंस के ज़माने के संघर्ष की बरकत है, यानी पाकीज़ा डिफ़ेंस जोशीले लोगों के काम के लिए मिसाल बन गया। इसके अलावा उसने मुल्क के भीतर से मुल्क की सरहदों से बाहर भी यह पैग़ाम पहुंचाया यानी दृढ़ता और प्रतिरोध का पैग़ाम।
आज बहुत से विशेषज्ञ यह बात मान रहे हैं कि ये वाक़ए जो दुनिया में फ़िलिस्तीन के हक़ में आज कल हो रहे हैं, इनमें से ज़्यादातर का स्रोत इस्लामी इंक़ेलाब की आत्मा और इस्लामी गणराज्य की आत्मा है। हो सकता है कि हम एहतियात और तकल्लुफ़ से काम लें और खुलकर यह बात न कहें या न कह सकें लेकिन दूसरे खुलकर यह बात कह रहे हैं। साफ़ लफ़्ज़ों में कह रहे हैं। और आप देख ही रहे हैं कि दुनिया में जो ये वाक़ए फ़िलिस्तीन के हक़ में सामने आ रहे हैं, ये वही बातें हैं जो ईरानी क़ौम कह चुकी है, ये वही बातें हैं जो इमाम ख़ुमैनी कह चुके हैं, ये वही नारे हैं जो अवाम के दिलों से निकले और उनकी ज़बान पर आए और बयान किए गए, आज क्षेत्रीय सतह पर और विश्व स्तर पर उन्हें बयान किया जा रहा है।
आप अमरीकी यूनिवर्सिटियों को देखिए! मैने सुना है कि अमरीका की क़रीब 200 यूनिवर्सिटियों में स्टूडेंट्स का यह आंदोलन जारी है।(3) यह बहुत अहम चीज़ है। वह काम जो वे लोग ईरान में करना चाह रहे थे, वे ख़ुद उसका शिकार हो गए हैं। स्टूडेंट्स ऐसा क़दम उठाएं, ऐसा काम करें कि अमरीकी सरकार, अमरीकी पुलिस अपनी सारी बातों और सारे नारों को पैरों तले कुचलने पर मजबूर हो जाए, लोगों की आँखों के सामने, कैमरे के सामने नौजवान स्टूडेंट्स को रौंदे, बुरे तरीक़े से प्रोफ़ेसर को और स्टूडेंट्स को हथकड़ी लगाए। इन लोगों ने जो काम किया है वह इतना बड़ा है कि ये लोग दिखावे को किनारे रखने पर मजबूर हो गए हैं और मैदान में आ गए हैं। दुनिया में उनकी फ़ज़ीहत हो गयी है, उनकी बातों को झुठलाया जा रहा है, ये सब बड़े अहम वाक़ए हैं।
इसका श्रेय उस अभियान को जाता है जो इंक़ेलाब के आग़ाज़ में इमाम ख़ुमैनी की पाक नीयत पर आधारित कोशिश की बरकत से शुरू हुआ। अल्लाह, इंशाअल्लाह इस महान हस्ती के दर्जे को दिन ब दिन ज़्यादा से ज़्यादा बुलंद करे और उनका परचम लहराता रहे। इमाम ख़ुमैनी सचमुच एक बेमिसाल हस्ती थे, बेनज़ीर शख़्सियत थे। मैं जितना भी सोचता हूं, अपने पूरे इतिहास में मुझे कहीं भी इस महान शख़्स जैसी कोई मिसाल नहीं दिखाई देती। उनकी जो चमत्कारिक शख़्सियत थी, वह ताक़त, जो अल्लाह ने उनकी आत्मा और उनके इरादे में रखी थी, उनका ईमान, उनका दिली ईमान, ईमान के बाहर की ओर फैल जाने और लोगों के दिलों तक पहुंच जाने का स्रोत बन जाता था। "रसूले (ख़ुदा सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम) उन तमाम बातों पर ईमान रखते थे जो उनके परवरदिगार की तरफ़ से उन पर उतारी गयी हैं और मोमेनीन भी (सब) ख़ुदा पर, उनके मलाएका पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान रखते हैं।" (4) अगर पैग़म्बरे इस्लाम मोमिन न होते, उनका गहरा ईमान न होता तो मोमिनों में इस तरह से गहरा ईमान पैदा न होता। यहाँ भी ऐसा ही था, उनका ईमान था जो ईमानों को इस तरह गहराई दे रहा था।
बहरहाल यह अच्छा काम है, नुमायां काम है और अल्लाह की कृपा से क्रांति ने उस जोश व जज़्बे के साथ हमारे उन जवानों को, तेहरान के आस-पास के शहरों यानी तेहरान प्रांत के उन्ही नुमायां लोगों को इस मैदान में पहुंचाया, वह जोश व जज़्बा आज भी मौजूद है। आपने देखा कि पिछले साल की घटनाओं में तेहरान के जवानों ने अपना नाम अमर करा लिया, ख़ुद तेहरान में या फिर तेहरान के आस-पास के कुछ शहरों में।
हमें उम्मीद है कि अल्लाह आप सबको कामयाब करेगा, आपकी मदद करेगा और इंशाअल्लाह यह सिलसिला जारी रहेगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।