उन्होंने शनिवार की सुबह अपनी स्पीच में प्रतिष्ठा यानी ख़ुशामदाना कूटनीति से परहेज़, हिकमत यानी बुद्धिमत्तापूर्ण व नपा तुला सहयोग व संबंध, मसलेहत यानी रुकावटों को पार पाने के लिए ख़ास मौक़ों पर नर्मी को मुल्क की कूटनीति के तीन बुनियादी कीवर्ड्ज़ क़रार दिया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेश नीति विभाग के ज़िम्मेदारों को विश्व व्यवस्था पर गहरे असर डालने वाले बदलाव और धीरे धीरे ज़ाहिर होने वाली तब्दीलियों पर लगातार नज़र रखने की ताकीद की। उन्होंने कहा कि नए वर्ल्ड ऑर्डर में मुल्क को उसकी शान के मुताबिक़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए यह ज़रूरी है।

उन्होंने अच्छी विदेश नीति और उपयोगी कूटनीति को मुल्क का सिस्टम चलाने में निर्णायक हैसियत वाला क़रार दिया और विदेश नीति के छह अहम उसूल बयान किए। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि इन पैमानों को मद्देनज़र रखना, कामयाब विदेश नीति की निशानी है और अगर यह उसूल नज़र न आएं तो हमें विदेश नीति के नज़रिये या परफ़ार्मेन्स और कूटनैतिक प्रक्रिया में मुश्किलों का सामना होगा।

उनका कहना था कि कामयाब विदेश नीति का पहला उसूल है मुख़्तलिफ़ मुद्दों में मुल्क के रुझान को क़ायल करने वाले अंदाज़ में बयान करना।

उन्होंने दूसरे उसूल गिनवाते हुए कहा कि दुनिया के मुख़्तलिफ़ राजनैतिक व आर्थिक मामलों, वाक़यों और रुझानों में प्रभावी मौजूदगी, ईरान के ख़िलाफ़ ख़तरनाक नीतियों व फ़ैसलों को हटाना या कम करना, ख़तरा पैदा करने वाले सेंटरों को कमज़ोर करना, ईरान का साथ देने वाली सरकारों और घटक संगठनों को मज़बूत करना और मुल्क की स्ट्रैटेजिक गहराई को बढ़ाना, क्षेत्रीय व वैश्विक फ़ैसलों व कार्यवाहियों के पीछे छिपी परतों को समझने की सलाहियत, कामयाब विदेश नीति के उसूल हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेश नीति के तीन अहम कीवर्ड्ज़ की व्याख्या करते हुए फ़रमाया कि इज़्ज़त व प्रतिष्ठा का मतलब बातचीत और विषयवस्तु में ख़ुशामदाना कूटनीति को नकारना और दूसरे मुल्कों के अधिकारियों की बातों और फ़ैसलों से आस लगाने से परहेज़ करना है। उनका कहना था कि हमें उसूलों पर भरोसा करते हुए, सम्मानजनक तरीक़े से आगे बढ़ना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने हिकमत की व्याख्या करते हुए नपे तुले बुद्धिमत्तापूर्ण बयान और कार्यावाही का ज़िक्र किया और कहा कि विदेश नीति में हर क़दम भरपूर तरीक़े से सोच-विचार व सूझबूझ के साथ अंजाम पाना चाहिए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई के मुताबिक़, मसलेहत का मतलब कठिन रुकावटों को पार करने के लिए ज़रूरत के वक़्त नर्मी से पेश आना है। आपका कहना था कि उसूलों की पाबंदी और मसलेहत के मुताबिक़ अमल करने में कोई विरोधाभास नहीं है, क्योंकि मसलेहत का मतलब रुकावट आ जाने पर कोई अलग रास्ता तलाश करके अपने सफ़र को जारी रखना और मंज़िल की ओर आगे बढ़ना है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में अनेक मुल्कों के साथ जिनमें से कुछ बहुत अहम और प्रभावी मुल्क हैं, ईरान की संयुक्त सरहदों का ज़िक्र किया और पड़ोसी मुल्कों से संबंध बढ़ाने की मौजूदा नीति की तारीफ़ करते हुए कहा कि पड़ोसी मुल्कों से ईरान के संबंध ख़राब करने के लिए विदेशी सक्रिय हैं, उनकी साज़िश को कामयाब नहीं होने देना चाहिए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई की नज़र में इस्लामी मुल्कों से संबंध चाहे वे दूर स्थित हों, इसी तरह हमख़याल मुल्कों से रिश्ते बहुत अहमियत रखते हैं। उन्होंने कहा कि आज कुछ मामलों और अंतर्राष्ट्रीय नीति के संबंध में कुछ बड़े व अहम मुल्कों का इस्लामी गणराज्य के साथ आना बहुत अहम मौक़ा है जिसकी क़द्र करना और इन मुल्कों से संबंध को बढ़ावा देना चाहिए।

उन्होंने राजदूतों और कूटनयिकों की कॉन्फ़्रेंस के विषय यानी मौजूदा वर्ल्ड ऑर्डर में बदलाव का ज़िक्र करते हुए कहा कि विश्व स्तर पर होने वाली बहसों में यह विषय बार बार दोहराया जाने लगा है। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड ऑर्डर में बदलाव उतार चढ़ाव से भरी एक लंबी प्रक्रिया है जिस पर बहुत सी संभावित घटनाओं का गहरा असर पड़ सकता है और अलग अलग मुल्क इस बारे में अलग अलग नज़रिया व रुझान रखते हैं।

इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने विदेश नीति विभाग की मौजूदा प्राथमिकताओं, प्रोग्रामों और कामों के बारे में रिपोर्ट पेश की।