इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने कहा कि कल्चर और तबलीग़ के मैदान के लोगों को पूरी तरह इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अल्लाह का पैग़ाम किसी भी हालत में नज़रअंदाज़ न होने पाए और इस मैदान में हंगामे, उपहास और आरोपों से घबराना नहीं चाहिए।
इस्लामी तब्लीग़ इदारे के प्रमुख और इस इदारे के तहत काम करने वाले आर्ट के मैदान के कुछ अधिकारियों ने बुधवार की सुबह आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने दिल में अल्लाह से ख़ौफ़ के साथ नई सोच पर आधारित शानदार पैग़ाम तैयार करने, पेश किए जाने और सामाजिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों के मद्देनज़र रखने पर ताकीद की और इसे कल्चरल और तब्लीग़ी मैदान के इदारों की दो अहम ज़िम्मेदारियां बताया।
सुप्रीम लीडर ने इस्लामी प्रचार विभाग की कोशिशों को सराहते हुए क़ुरआन मज़ीद की आयतों के हवाले से, ख़ौफ़े ख़ुदा की व्याख्या की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई के मुताबिक़, अल्लाह को मद्देनज़र रखना, उसकी तालीमात पर अमल और अपने अमल की निगरानी ही अल्लाह से ख़ौफ़ का अस्ली अर्थ है जो कल्चर व तब्लीग़ के मैदान में काम करने वालों की कार्यशैली होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कल्चर व तब्लीग़ के मैदान से जुड़ी संस्थाओं और लोगों को हमेशा इस बात की ओर से चौकन्ना रहना चाहिए कि अल्लाह के हुक्म पर अमल किसी भी हालत में रुकना नहीं चाहिए और इस राह में हंगामे, उपहास और आरोपों से नहीं डरना चाहिए।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने कल्चर और तब्लीग़ की सरगर्मियों में सुनने वाले की ज़बान को मद्देनज़र रखने पर बल दिया। उनका कहना था कि एक नौजवान और बच्चे से संपर्क के लिए इस्तेमाल होने वाली ज़बान, एक ग़ाफ़िल, ज़ाहिल और दुश्मन से बात के लिए इस्तेमाल होने वाली ज़बान से अलग होनी चाहिए, बिल्कुल इसी तरह दूसरे मुल्कों में बात करने या प्रचार की ज़बान, इन्क़ेलाबी हल्क़ों सहित मुल्क के भीतर कल्चर व तब्लीग़ का काम करने की ज़बान से अलग होनी चाहिए।
इस्लामी इन्क़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने कहा कि मुल्क और विदेश में नई सोच के ख़रीदार बहुत ज़्यादा हैं और आप को नई सोच ईजाद करके, उसे अच्छे सांचे में ढाल कर, अच्छी पैकिंग वाले बेहतरीन प्रोडक्ट्स में तबदील करके ख़रीदारों से भरे इस बाज़ार में पेश करने के लिए सरगर्म हो जाना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इसी तरह लोगों की ख़ुशी व शादाबी की रक्षा को कल्चरल व तब्लीग़ी विभाग की एक अहम ज़िम्मेदारी क़रार दिया।
उन्होंने इस बात की अहमियत और मुख़्तलिफ़ पहलुओं की व्याख्या में कहा कि अगर लोगों की आर्थिक हालत और ज़िन्दगी बेहतर हो जाए तो उनकी ख़ुशी और शादाबी किसी हद तक मुहैया हो जाएगी लेकिन इसके अलावा भी ख़ुद लोगों के साथ मिल कर मुख़्तलिफ़, अच्छे और उत्साह भरे काम किए जा सकते हैं।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने अपने ख़ेताब के आख़िरी हिस्से में गुटबाज़ी से परहेज़ सहित कई बातों की नतीहत की। उन्होंने कहा कि हमें पूरे मुल्क में एकता और तालमेल की ज़रूरत है और इन्क़ेलाबी हल्क़ों को तो पूरी तरह से वैचारिक झांसों के जाल में फंसने और गुटबाज़ी से दूर रहना चाहिए।
उन्होंने इस्लामी तब्लीग़ इदारे के प्रमुख और इस विभाग के तहत काम करने वाले कला विभाग के कुछ अधिकारियों को दिखावे के कामों के बचने और बिना सही स्टैंड के बेमक़सद प्रोडक्ट्स बनाने की ओर से चौकन्ना रहने की भी नसीहत की।