स्वाभाविक है कि इंसान दुनियावी हदेसात का सामना करने के लिए अपने जिस्म को मज़बूत बनाता है, तो इंसान को उन हादेसात से लड़ने के लिए क्या करना चाहिए, जो किसी न किसी तरह उसकी रूह से संबंधित होते हैं? मेरा मानना है कि इंसान को अपने ईमान को मज़बूत बनाना चाहिए। उसे अपने ईमान को एक बुनियादी, इतमीनान बख़्श और महफ़ूज़ सतह तक मज़बूत बनाना चाहिए। जब ऐसा ईमान होगा इंसान अपनी ज़िदगी के किसी भी पड़ाव पर निराश नहीं होगा। आपने ग़ौर किया? बुनियादी तौर पर जो चीज़ इंसान को तबाह कर देती है, वो निराशा है। इसकी वजह से इंसान कुछ भी नहीं कर पाता है और ये इंसान को तबाह कर देती है और उसकी सारी सलाहियतों को बर्बाद कर देती है।

इमाम ख़ामेनेई

26/7/1999