प्यार और स्नेह की फ़ज़ा इस्लामी समाज की बुनियादी विशेषता है, अल्लाह से लोगों का प्यार, लोगों से अल्लाह का प्यार, जिनसे अल्लाह प्यार करता होगा और वो अल्लाह से प्यार करते होंगे। (सूरए माएदा, आयत 54) बेशक अल्लाह उन लोगों को पसंद करता है जो बुराई से दूर रहें और पाकीज़गी अपनाएं। (सूरए बक़रह, आयत 222) ऐ रसूल! लोगों से कह दीजिए कि अगर तुम अल्लाह से प्यार करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे प्यार करेगा। (सूरए आले इमरान, आयत 31) प्यार, मुहब्बत, पत्नी से प्यार, बच्चे से प्यार, मुस्तहब है कि बच्चे को चूमें, मुस्तहब है कि बच्चे से प्यार करें, मुस्तहब है कि अपनी बीवी से प्यार करें, इश्क़ करें, मुस्तहब है कि अपने मुस्लिम भाइयों से प्यार करें, पैग़म्बर से प्यार, अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से प्यार, अगर रिसालत के अज्र के रूप में कुछ देना ही है तो पैग़म्बर के क़रीबी रिश्तेदारों (अहलेबैत) से मुहब्बत करो। (सूरए शूरा, आयत 23) पैग़म्बर ने ये तरीक़ा सिखाया, समाज को इसी तरीक़े पर तैयार किया।
इमाम ख़ामेनेई
8/5/1998