सच्चाई ये है कि ग़दीर का वाक़ेआ और अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम को इस्लामी उम्मत के सरपरस्त और पैग़म्बर के ख़लीफ़ा के तौर पर पहचनवाना अल्लाह तआला की बड़ी नेमतों में से एक था, यानी जिस तरह से ख़ुद नुबुव्वत और रिसालत, अल्लाह का एक बड़ा एहसान और उसकी एक बड़ी नेमत है: यक़ीनन अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा एहसान किया कि उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेजा। (सूरए आले इमरान, आयत 164) अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विलायत (रसूलुल्लाह की जानशीनी) भी वास्तव में एक बड़ा एहसान और एक बड़ी नेमत थी: अल्लाह ने आप लोगों को नूर बनाया फिर अपने अर्श के क़रीब रखा यहाँ तक कि आपके ज़रिए से हम पर बड़ा एहसान किया और आपको ऐसे घरों में रखा जिनके लिए अल्लाह ने इजाज़त दी है कि उनका एहतेराम किया जाए। (ज़ियारते जामेआ) वाक़ई ये एक बड़ी नेमत है। अमीरुल मोमेनीन की विलायत और विलायत के वाक़ये को क़ुरआने मजीद में एक जगह काफ़िरों के लिए मायूसी की वजह बताया गया हैः आज काफ़िर आपके दीन की तरफ़ से मायूस हो गए। (सूरए माएदा, आयत 3) जिस दिन अमीरुल मोमेनीन की विलायत की बात पेश की गई, वो वही दिन है जब क़ुरआन के बक़ौल “काफ़िर मायूस हो गए।“ मरहूम अल्लामा तबातबाई ने अपनी किताब तफ़सीरुल मीज़ान में इस बारे में बड़ी ख़ूबसूरत तशरीह लिखी है कि ये मायूसी किस तरह की है और क्या सुबूत है कि यह मायूसी पाई जाती है। इसी सूरे में एक और जगह पर ये आयत है कि और जो भी अल्लाह, उसके रसूल और ईमान वालों को अपना सरपरस्त बना ले तो यक़ीनन अल्लाह का गिरोह ही ग़ालिब आने वाला है। (सूरए माएदा, आयत 56) इस आयत में ईमान वालों का और इससे पिछली वाली आयत में भी, जिसमें कहा गया है, जो लोग रुकू की हालत में ज़कात देने वाले हैं, (सूरए माएदा, आयत 55) दोनों जगहों पर मुराद अमीरुल मोमेनीन हैं। इस आयत में जो “आमनू” कहा गया है, वह उसी की तरफ़ इशारा है, यानी तुम्हारा सरपरस्त सिर्फ़ अल्लाह है (सूरए माएदा, आयत 55) के बाद वाली आयत। फिर यहां क़ुरआन “हिज़्बल्लाह” को, जो वही लोग हैं जो इस ईमान और इस क़दम के पीछे चलने वाले हैं, ग़ालिब बता रहा है यानी एक जगह काफ़िरों की मायूसी की बात है और एक जगह हक़ वालों के ग़ालिब आने की बात है। इस्लामी उम्मत, इस्लामी समाज ख़ास तौर पर शिया समाज के आगे बढ़ने के रास्ते ये हैं जो उनके ग़ालिब आने, काफ़िरों के मायूस होने और हमारी ताक़त का ज़रिया हैं जो हमारे पास हैं।

इस्लामी सरकार के तौर पर हमें जिस चीज़ पर लगातार नज़र रखनी चाहिए वो ये है कि अलवी सरकार को अपनी कसौटी बनाएं, अपने आपको अलवी शासन से तौलें, उस सरकार और हममें जितना फ़ासला है, उतने को हम अपना पिछड़ापन समझें। अगर हम अच्छे काम कर रहे हैं, रूहानी लेहाज़ से आगे बढ़ रहे हैं या वो काम जो इस्लामी मान्यताओं के हिसाब से गर्व की बुनियाद हैं, उन्हें अंजाम दे रहे हैं, उसकी अहमियत में मुबालेग़ा न करें, अलवी शासन से तुलना करें और देखें कि उसमें और हममें कितना फ़ासला है। अलवी शासन के जो सबसे अहम पैमाने हैं, उनमें से एक न्याय है, एक पवित्रता और पाकदामनी है, एक अवामी होना और अवाम के साथ होना है, अलवी हुकूमत में यही चीज़ें तो थीं। अमीरुल मोमेनीन की ज़िंदगी, न्याय की प्रतीक है, सादगी की प्रतीक है, अवामी होने और हर तरह की बुराई से पवित्र रहने की प्रतीक है। हमें इन चीज़ों को कसौटी बनाना चाहिए, हमें वास्तव में इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। मैं नहीं कहता कि हम अमीरुल मोमेनीन जैसे हो जाएं कि ये मुमकिन ही नहीं है लेकिन हम इस चोटी को नज़र में रखें और उसकी तरफ़ बढ़ें, मैं मान लेता हूं कि कोई चोटी तक नहीं पहुंचेगा लेकिन इस दिशा में और इस राह में क़दम तो बढ़ाएं, ये हमारी ज़िम्मेदारी है।

इमाम ख़ामेनेई

29 अगस्त 2018