ऐसा नहीं है कि कोई ये सोचे कि भौतिक साधनों की मदद से इंसान अपना हर मक़सद हासिल कर सकता है बल्कि इंसान को कुछ चीज़ें दुआ के ज़रिए हासिल करनी होती हैं। अलबत्ता ख़ाली दुआ नहीं, अमल के बिना दुआ नहीं! इस बात का कोई फ़ायदा नहीं है कि इंसान अमल रोक दे और सिर्फ़ दुआ ही करता रहे लेकिन हमें अमल के साथ ही, क़दम उठाने के साथ ही, अपनी कोशिश और हिम्मत को इस्तेमाल करने के साथ ही अल्लाह से दुआ भी मांगनी चाहिए। ये दुआ, इंसान की ज़रूरत पूरी करती है। दुआ, अन्य ज़रियों के साथ ही एक अहम ज़रिया है। हमारे शोधकर्ताओं और स्कालरों का कहना है कि अल्लाह ने दसियों ज़रिए रखे हैं, दुआ भी उन्हीं में से एक ज़रिया है।

इमाम ख़ामेनेई

26 फ़रवरी 1993