क़ुरआने मजीद, इंसान की तरबियत की किताब है, इंसान को जितने भी मरहले ज़िदगी में पेश आते हैं, उन सभी मरहलों में क़ुरआन के पास पैग़ाम है, रास्ता है। क़ुरआने मजीद में वो सभी क़िस्से जो बयान हुए हैं और कभी कभी दोहराए भी गए हैं, इस लिए हैं कि उस मामले की ख़ास अहमियत है और वो इंसान की इसलाह  और उसकी शख़्सियत को सवांरने के लिए रहे हैं। क़ुरआन, फ़िक़ही मसलों की किताब नहीं है, बेशक उसने बुनियादी उसूल, फ़िक़ही मसलों की बुनियादी बातें और उनके उसूल बयान कर दिए हैं अलबत्ता वो भी मुकम्मल शक्ल में नहीं, क़ुरआने मजीद पैग़ाम की किताब है, समाज की इसलाह की किताब है और जब क़ुरआन के ज़रिए इस समाज का सुधार हो जाए तो फिर नबी की सुन्नत और इमामों व उनके रावियों के ज़रिए बयान की गईं पैग़म्बर की हदीसों पर अमल किया जाए।

इमाम ख़ुमैनी

20 जून 1982