इमाम महदी अलैहिस्सलाम के वजूद के अक़ीदे की कुछ ख़ासियतें हैं जो किसी भी क़ौम के शरीर में दौड़ने वाले ख़ून का काम करती हैं। यह जिस्म के अंदर रूह का दर्जा रखती हैं। एक ख़ुसूसियत है उम्मीद। कभी कभी ज़ालिम ताक़तें कमज़ोर क़ौमों को इस हालत में पहुंचा देती हैं कि उनकी उम्मीद मर जाती है। जब उम्मीद मर गई तो वो कुछ नहीं कर सकतीं। यही सोचती हैं कि क्या फ़ायदा? महदवीयत का अक़ीदा, हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के वजूद का यक़ीन दिलों में उम्मीद की शमा रौशन करता है। इस अक़ीदे का मानने वाला इंसान कभी मायूसी में मुबतला नहीं होता। क्यों? क्योंकि उसे मालूम है कि एक प्रकाशमान मंज़िल आने वाली है। इसमें कोई संदेह नहीं है। वह ख़ुद को उस मंज़िल तक पहुंचाने की कोशिश में लगा रहता है।

इमाम ख़ामेनेई

16 दिसम्बर 1997