इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से न्यायपालिका के प्रमुख और अधिकारियों ने तेहरान में मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने समाजों में अल्लाह की अटल परंपराओं की ओर इशारा करते हुए कहाः सन 1981 की बड़ी कटु घटनाओं के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र और इस्लामी गणराज्य व्यवस्था की हैरतनाक कामयाबी की वजह दुश्मन से न डरना, उसके मुक़ाबले में डट जाना और सतत कोशिश थी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि अल्लाह की यह परंपरा हर दौर में दोहरायी जा सकती है और हमें यह ख़याल रखना चाहिए कि जो अल्लाह सन 1981 में था वही 2022 में भी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस मुलाक़ात में 28 जून सन 1981 को शहीद होने वाले आयतुल्लाह बहिश्ती और दूसरे शहीदों को याद करते हुए शहीद बहिश्ती को बड़ी महान शख़्सियत क़रार दिया और 28 जून 1981 की घटना से कुछ महीने पहले और उसके बाद के पेचीदा हालात की ओर इशारा करते हुए कहाः उस दौर के हालात की समीक्षा हमारे आज के दौर के लिए बहुत अच्छा सबक़ और रास्ता खोलने वाली है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 1981 के हालात में 28 जून की घटना से कुछ महीने पहले के हालात, थोपी गयी जंग के सख़्त हालात, सद्दाम की फ़ौज के पश्चिम और दक्षिण के कई शहरों तक पहुंच जाने का ज़िक्र किया और कहाः जंग जैसे सख़्त हालात के साथ साथ तेहरान में मुनाफ़ेक़ीन (आतंकी संगठन एमकेओ) ने अमली तौर पर गृह युद्ध छेड़ रखा था और राजनैतिक पटल पर हालात यह थे कि 28 जून से कुछ दिन पहले संसद में राष्ट्रपति को अयोग्य ठहराया जा चुका था और देश बिना राष्ट्रपति के था। ऐसे हालात में शहीद बहिश्ती जैसी अहम शख़्सियत को इंक़ेलाब और व्यवस्था से छीन लिया गया।
इसी तरह उन्होंने 28 जून की घटना के दो महीने बाद राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री की शहादत और उसके बाद विमान दुर्घटना में जंग के कुछ बड़े कमांडरों की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहाः जवानों और नई नस्ल को इन घटनाओं की जानकारी नहीं है इसलिए इन चीज़ों का अध्ययन और इस बारे में बहुत ग़ौर करने की ज़रूरत है। उन्होंने सवालिया अंदाज़ में कहा कि क्या आप किसी ऐसी सरकार या देश के बारे में जानते हैं जिसके पैर ऐसी सख़्त व ख़तरनाक घटनाओं के सामने न उखड़े हों?
इस्लामी क्रांति के लीडर ने कहाः इन घटनाओं और सभी घटनाओं के मुक़ाबले में इमाम ख़ुमैनी 'दमावंद पहाड़' की तरह डटे रहे और मुल्क के हमदर्द अधिकारी, अवाम, क्रांतिकारी जवान भी डटे रहे और देश के हालात को 180 डिग्री बदलने में कामयाब हुए नतीजा यह हुआ कि लगातार होने वाली नाकामियां लगातार कामयाबियों में बदल गयीं, एमकेओ के तत्व सड़कों से हटा दिए गए, सेना और आईआरजीसी ताक़तवर होती गयीं और देश सामान्य हालत में लौट आया।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने देश के भीतर की कुछ कमज़ोरियों और कमियों की वजह से दुश्मन के ख़ुश हो जाने का ज़िक्र करते हुए कहाः सन 1981 में भी और उसके बाद पिछले चार दशकों में भी दुश्मन कई मौक़ों पर ख़ुश हुआ, उसे उम्मीद हो गयी और उसने सोचा कि क्रांति और इस्लामी व्यवस्था की बिसात पलटती जा रही है, लेकिन उसकी यह उम्मीद मायूसी में बदल गयी क्योंकि दुश्मनों की मुश्किल यह है कि वह इस मायूसी की अस्ल वजह समझ नहीं पा रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बल दिया कि दुश्मन यह नहीं समझ सकता कि इस दुनिया में राजनैतिक कारकों के अलावा भी कुछ दूसरे कारकों का असर होता है और वे कारक अल्लाह की परंपराएं है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अल्लाह के दीन की मदद या अल्लाह की नेमतों का शुक्रिया अदा न करने के नतीजे के बारे में पवित्र क़ुरआन में अल्लाह की परंपराओं और क़ानूनों के कुछ नमूनों की ओर इशारा करते हुए कहाः क़ुरआन मजीद ऐसी बातों से भरा पड़ा है जो अल्लाह की परंपराओं के बारे में हैं जिनका निष्कर्ष यह है कि अगर समाज, दुश्मन के ख़िलाफ़ डट जाएं और अल्लाह पर भरोसा करते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करें तो इसका नतीजा फ़त्ह और तरक़्क़ी है लेकिन अगर वह मदभेद, आराम और आलस्य का शिकार हो जाएं तो इसका नतीजा हार है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अल्लाह की परंपराओं की वैज्ञानिक समीक्षा को ज़रूरी बताते हुए कहाः ईरानी क़ौम, सन 1981 में अल्लाह की एक परंपरा अर्थात जेहाद व दृढ़ता के ध्रुव पर क़ायम रह कर दुश्मन को मायूस करने में कामयाब रही। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि आज भी वही नियम जारी है और सन 2022 का अल्लाह वही है जो सन 1981 का है। उन्होंने कहा कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि अल्लाह की परंपराओं का नमूना बनें ताकि इसके नतीजे तरक़्क़ी और फ़त्ह की शक्ल में सामने आए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच के एक भाग में न्यायपालिका को, पूरे मुल्क में एक अहम व प्रभावी स्तंभ बताते हुए कहाः पवित्र क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़, इस्लामी सरकार का दायित्व नमाज़ क़ायम करना अर्थात इस्लामी गणराज्य में बंदगी के माहौल को बढ़ावा देना, ज़कात अर्थात इस्लामी समाज में हर चीज़ के बटवारे में न्याय, अच्छाई का हुक्म अर्थात न्याय और भाईचारे का हुक्म और बुराई से रोकना अर्थात अत्याचार, भ्रष्टाचार और भेदभाव से रोकना है। उन्होंने कहा कि इस बारे में संविधान में भी बल दिया गया है और यह न्यायपालिका के दायित्वों में शामिल है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि अगर न्यायिक तंत्र की सहूलतों का इन दायित्वों के अंजाम देने में इस्तेमान न हुआ तो यह अल्लाह की नेमतों को बर्बाद करने के अर्थ में है और हमें इसका ख़मियाज़ा भुगतना पड़ेगा।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के अंत में न्यायपालिका के काम को बहुत कठिन कामों में गिनवाते हुए कहाः अलबत्ता अगर इस काम को अल्लाह के लिए और उसी के निर्देशों के मुताबिक़ अंजाम दें तो इसका सवाब भी बहुत ज़्यादा होगा।
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में न्यायपालिका प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मोहसिनी एजेई ने इस तंत्र के हालिया दौर की कार्यवाहियों के बारे में एक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में उन्होंने अवाम के अनेक तबक़ों से ज़्यादा से ज़्यादा संपर्क, सरकार, संसद और न्यायपालिका के बीच सहयोग को बढ़ाने, न्यायपालिका में बदलाव के दस्तावेज़ पर अमल, न्यायपालिका की सेवाओं को स्मार्ट बनाने और नई तकनीकों के ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल, पैदावार का समर्थन और उसके रास्ते की रुकावटों को दूर करने, पिछड़े व सुदूर इलाक़ों में न्यायपालिका की सेवाओं को मुफ़्त करने, भ्रष्टाचार ख़ास तौर पर न्यायपालिका के भीतर भ्रष्टाचार से गंभीरता से निपटने, जनमत की नज़र में अहम केस और ज़्यादा याचीकर्ताओं वाले केसों को प्रथामिकता देने, क़ानूनों और अनिवार्य क़ानूनों को बेहतर तरीक़े से लागू करने की निगरानी बढ़ाने और इसी तरह न्यायपालिका के कर्मचारियों की आर्थिक हालत को बेहतर बनाने और न्यायपालिका के मूल बजट को मज़बूत बनाने के लिए लगातार कोशिशों का ज़िक्र किया।