28 जून 1981 की शाम को ईरान के न्यायपालिका प्रमुख आयतुल्लाह सैयद मुहम्मद हुसैनी बहिश्ती और 70 से ज़्यादा अहम राजनैतिक हस्तियां, जिनमें चार मंत्री, अनेक उप विदेश मंत्री, 27 सांसद और जुमहूरी इस्लामी पार्टी के अनेक सदस्य शामिल थे, तेहरान में पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में एक बैठक के दौरान होने वाले आतंकी हमले में शहीद हो गए थे।

यह घटना, ग़द्दार राष्ट्रपति बनी सद्र को उसके पद से हटाए जाने के 6 दिन बाद हुई। घटना से 3 दिन पहले आतंकी गुट एम.के.ओ. के सरग़ना और आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई पर मस्जिदे अबूज़र में जानलेवा हमले के मास्टर माइंड महमूद जवाद क़दीरी ने अपने साथियों को यक़ीन दिलाया था कि 28 जून को काम तमाम हो जाएगा। यह दहशतगर्द संगठन आज तक अमरीका और यूरोपीय मुल्कों की देखरेख में अपनी गतिविधियां कर रहा है।

28 जून के वाक़ए के बारे में इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 27 जून 1983 को एक इंटरव्यू में कुछ अहम बातें बयान कीं।

“शहीद बहिश्ती ज़िंदगी में भी मज़लूम रहे और उनकी मौत भी मज़लूमियत वाली थी क्योंकि ज़िंदगी में किसी को भी इस मूल्यवान हस्ती की अज़मत का बख़ूबी अंदाज़ा नहीं था। यानी आम लोगों को इस बारे में वाक़ेफ़ियत नहीं थी। उनकी इससे बड़ी मज़लूमियत और क्या हो सकती है कि उन्हें बनी सद्र (इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था से ग़द्दारी करने वाला राष्ट्रपति अबुल हसन बनी सद्र, जिसे उसके पद से हटा दिया गया था) की पंक्ति में रखा जाने लगा था। कहा जाता था कि बहिश्ती, बनी सद्र। यह बड़ी मज़लूमियत है जबकि इल्म, अख़लाक़, सियासत, अक़्ल और चिंतन शक्ति जैसी अनेक ख़ासियतों में दोनों का कोई मुक़ाबला ही नहीं हो सकता। शहीद बहिश्ती वाक़ई इन सभी पहलुओं से बड़े महान इंसान थे।

शहीद बहिश्ती दुश्मन की आंख का कांटा इस लिए थे कि इस मज़लूमियत के बावजूद वो अपनी बर्दाश्त की ताक़त, विनम्रता और ख़ुद पर पूरे कंट्रोल की वजह से, जो इस महान इंसान में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, कभी भी जज़्बाती नहीं होते थे और जज़्बात में कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते थे। वो हमेशा बिलकुल सही, नपा-तुला और अक़्लमंदी वाला स्टैंड अपनाते थे। यही वजह थी कि दुश्मन हमेशा उनसे मात खा जाता था। इंक़ेलाब के आग़ाज़ से ही सारे दुश्मनों को शहीद बहिश्ती से शिकस्त खानी पड़ी। यही वजह थी कि दुश्मनों ने सबसे पहले जिन लोगों पर वार किया, उनमें शहीद बहिश्ती भी थे। दूसरों पर बाद में हमले शुरू हुए और कुछ पर तो आख़िर तक कोई हमला नहीं हुआ। शहीद बहिश्ती वाक़ई दुश्मन की आंख का कांटा थे। इमाम ख़ुमैनी उनका बड़ा एहतेराम करते थे। सिर्फ़ इंक़ेलाब के बाद नहीं बल्कि इंक़ेलाब से पहले भी शुरू से ही उनका बड़ा एहतेराम करते थे। उन्हें बड़ी अहम हस्ती के तौर पर देखते थे। हक़ीक़त भी यही है कि शहीद बहिश्ती बड़े महान व्यक्तित्व के स्वामी थी। अल्लाह उन पर रहमतें नाज़िल करे।”